भारत में प्राथमिक शिक्षा का विकास | ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा | स्वतंत्र भारत में प्राथमिक शिक्षा
भारत में प्राथमिक शिक्षा का विकास | ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा | स्वतंत्र भारत में प्राथमिक शिक्षा
भारत में प्राथमिक शिक्षा का विकास
(Development of Primary Education in India)
शिक्षा के विभिन्न स्तरों में प्राथमिक स्तर शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्तर है, क्योंकि प्राथमिक स्तर से ही बालकों की शिक्षा प्रारंभ होती है। प्राथमिक शिक्षा की गुणात्मकता का प्रभाव न सिर्फ बालकों के भविष्य पर ही नहीं, वरन् पूरे देश के भविष्य पर पड़ता है। इसीलिए प्राथमिक शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए ब्रिटिश काल से ही समय-समय पर प्रयास किये गये हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ‘भारतीय संविधान में प्राथमिक स्तर के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इस शिक्षा को अनिवार्य तथा निःशुल्क बनाने की घोषणा की गयी। प्राथमिक शिक्षा के विकास का वर्णन अग्र प्रकार से किया गया है-
(1) ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा।
(2) स्वतंत्र भारत में प्राथमिक शिक्षा।
ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा
(Primary Education in British Period)
सन् 1835 में लार्ड विलियम बैंटिक ने भारत में शिक्षा से सम्बन्धित अपनी नीतियों को निर्धारित किया तथा सन् 1854 में वुड के घोषणा-पत्र के आधार पर सभी राज्यों में शिक्षा विभाग स्थापित किये तथा इन विभागों को ही प्राथमिक शिक्षा के विकास का उत्तरदायित्व सौंपा गया, परन्तु व्यावहारिक रूप में कम्पनी के शासकों द्वारा प्राथमिक शिक्षा में अपेक्षित सुधार करने में कोई विशेष रूचि प्रदर्शित नहीं की गयी तथा न ही कोई कार्य ऐसा किया गया जो प्राथमिक शिक्षा के विकास में सहायक हो। सन् 1857 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन की समाप्ति हो गयी तथा भारतीय शासन की सम्पूर्ण सत्ता ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गयी।
सन् 1859 में स्टैनले ने ब्रिटिश सरकार का ध्यान प्राथमिक शिक्षा की ओर आकृष्ट किया तथा इस सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिये। इसके पश्चात् सन् 1882 में भारत सरकार ने भारतीय शिक्षा की स्थिति के सम्बंध में अपने सुझाव देने के लिए हण्टर कमीशन की स्थापना की। हण्टर कमीशन के पश्चात् लार्ड कर्जन द्वारा प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रशंसनीय कार्य किये तथा सरकार को प्राथमिक शिक्षालयों की संख्या में वृद्धि करने तथा प्राथमिक स्तर के शिक्षण में सुधार करने के लिये सुझाव दिये, परन्तु लार्ड कर्जन के सुझावों को कार्यान्वित न किया जा सका तथा लार्ड कर्जन अधिक समय तक भारत में न रहें। इसके पश्चात् सन् 1904 में शिक्षा नीति के उपरांत प्राथमिक शिक्षा का विकास प्रारंभ हुआ। सन् 1905 में अखिल भारतीय कलकत्ता अधिवेशन में भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ तथा प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने की माँग की गयी।
यद्यपि अनिवार्य शिक्षा अधिनियम घोषित होने से पहले तक भारतवर्ष में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का कोई विशेष विकास नहीं हो सका, किन्तु समय-समय पर इस दिशा में विभिन्न भारतीयों तथा ब्रिटिश व्यक्तियों, जन आंदोलनो तथा सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरूप समुचित सफलता अर्जित की। इस दिशा में शुरुआत से ही विभिन्न प्रयास किये जाते रहे है।
स्वतंत्र भारत में प्राथमिक शिक्षा का विकास
(Progress of Primary Education in Independent India)
स्वाधीनता प्राप्त करने के पश्चात् हमारे संविधान के निर्माताओं ने प्राथमिक शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया तथा निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को राज्य का एक नीति निर्देशक सिद्धांत घोषित किया। संविधान के अनुसार, “राज्य इस संविधान के कार्यान्वित किये जाने के समय से दस वर्ष के भीतर सब बच्चों के लिये, जब तक वह चौदह वर्ष की आयु पूर्ण नहीं कर लेंगे, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की चेष्टा करेगा।”
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय 17% लोग साक्षर थे। 1949 में प्राथमिक स्कूलों की संख्या 2,20,000 थी और इन स्कूलों में केवल 1,73,94,000 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, जबकि 1951 की जनगणना के अनुसार 6 वर्ष से 11 वर्ष की आयु के बालकों की संख्या 5.4 करोड़ थी।
नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य पूरा करने के लिये विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा का विस्तार करने का प्रयास किया गया।
(1) प्रथम पंचवर्षीय योजना-प्रथम पंचवर्षीय योजना में संविधान के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बालकों के लिये अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा गया। सरकार ने 85 करोड़ रूपया इस कार्य के लिये व्यय किया और 42 प्रतिशत बालक ही इस योजना में स्कूलों में आ सकें।
(2) द्वितीय पंचवर्षीय योजना- द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 87 करोड़ रूपये की व्यवस्था की गई। सरकार की ओर से यह आश्वासन दिया गया कि वह प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिये हर संभव प्रयास करेगी, नवीन विद्यालय खोले जायेंगे। अध्यापक प्रशिक्षण संस्थायें भी स्थापित की जायेंगी तथा प्राइमरी स्तर पर अधिक से अधिक अध्यापिकायें नियुक्त की जायेगी।
(3) तृतीय पंचवर्षीय योजना- तृतीय पंचवर्षीय योजना में सरकार ने शिक्षा के पूर्ण बजट में से प्राथमिक स्तर के लिये 209 करोड़ रूपये की व्यवस्था की। इस योजना में 6 से 11 वर्ष तक की आयु के बालकों में से 76% के लिये 11 से 14 वर्ष की आयु के बालकों में से 28% बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध किया गया। इस योजना में सरकार का ध्यान अधिक सुविधायें प्रदान करने की ओर दिया गया।
(4) चौथी पंचवर्षीय योजना-चौथी पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकार ने 322 करोड़ रूपये की व्यवस्था की थी और 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के सभी बालकों की शिक्षा की व्यवस्था की आशा की थी। 8 वर्ष की आयु तक के सभी बालकों की सर्वागीण शिक्षा की व्यवस्था पर बल दिया गया। चौथी योजना में कम से कम 60% अनुसूचित जाति तथा लड़कियों के लिए शिक्षा व्यवस्था प्रदान करने पर बल दिया गया। इस प्रकार चौथी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 77.3% बच्चों के लिये शिक्षा के विस्तार की योजना बनाई गई।
(5) पाँचवीं पंचवर्षीय योजना- पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में सरकार ने सभी बालकों को प्राइमरी स्तर पर शिक्षा देने के अपने लक्ष्य को दोहराया और प्राथमिक स्तर के लिये 1575 करोड़ रूपये की व्यवस्था की। इस योजना के अन्तर्गत प्राइमरी शिक्षा के प्रसार एवं विकास के लिये निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये-
(i)6-11 वर्ष के सभी बालकों को स्कूल में प्रवेश दे दिया जायेगा।
(ii) बालको के दाखिले के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये स्कूलों की स्थापना बालकों के घर के नजदीक की जायेगी। सार्वभौमिक नामांकन (Universal Enrolment) तथा सार्वभौमिक स्थिरता (Universal Retention) की व्यवस्था की जायेगी।
(iii) निर्धन बालकों के लिये आर्थिक सहायता का प्रबंध किया जायेगा, जिसके अन्तर्गत पुस्तकें, कापियाँ, कपड़े तथा दोपहर का भोजन देने की व्यवस्था होगी।
(iv) 14 वर्ष के बालकों को शिक्षा को सुविधाजनक बनाने के लिये अंशकालिक (Part-time) स्कूलों की स्थापना की जायेगी।
(v) प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहित किया जायेगा। इससे प्राथमिक शिक्षा के विकास में बड़ों का सहयोग प्राप्त होगा।
(6) छठी पंचवर्षीय योजना-छठी पंचवर्षीय योजना में सरकार ने आने वाले दस वर्षों में सभी 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिये अनिवार्य न्यूनतम शिक्षा सुनिश्चित करने तथा व्यावसायिक शिक्षा की ओर ध्यान देने के लिए कहा गया। इस प्रकार उपर्युक्त कार्यक्रमों के माध्यम से ‘पढ़ते हुए आय करने’ की ओर विशेष बल दिया गया।
(7) सातवीं पंचवर्षीय योजना-सातवीं पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिये अनेकों प्रयास किये गये। प्राथमिक शिक्षा के अध्यापक-अध्यापिकाओं के प्रशिक्षण पर बल दिया गया। नवीन प्राथमिक एवं पब्लिक स्कूलों को खोलने की स्वीकृति प्रदान की गयी।
(8) आठवीं पंचवर्षीय योजना-आठवीं पंचवर्षीय योजना में केन्द्र सरकार ने 25 जुलाई, 1995 को एक योजना को मंजूरी दी, जिसमें अगस्त 1995 से देश भर के स्कूली बच्चों को रोजना एक वक्त का भोजन मुफ्त मुहैया करायेगी। इससे साढ़े पाँच लाख गाँव के करोड़ों बच्चे लाभान्वित होंगे। सरकार इस पर 6-7 हजार करोड़ रुपया खर्च करेगी। इस योजना का प्रारंभ माननीय प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिंह राव ने स्कूली बच्चों को भोजन कराकर किया था।
(9) नौवीं तथा दसवीं पंचवर्षीय योजना- नौवीं एवं दसवीं पंचवर्षीय योजना में भी प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिये अनेक योजनाएं चलाई गई तथा वर्तमान समय में प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिये प्रयास जारी है।
अतएव, यह स्पष्ट है कि प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिये प्रत्येक पंचवर्षीय योजनाओं में महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गये हैं तथा सरकार ने भी प्राथमिक शिक्षा को विकसित करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं।
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