दूरस्थ शिक्षा का इतिहास

दूरस्थ शिक्षा का इतिहास । वर्तमान भारत में दूरस्थ शिक्षा | राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आवश्यकता

दूरस्थ शिक्षा का इतिहास । वर्तमान भारत में दूरस्थ शिक्षा | राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आवश्यकता

दूरस्थ शिक्षा का इतिहास

दूरस्थ शिक्षा को अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया जाता हैं जैसे-पत्राचार शिक्षा, मुक्त अधिगम, गृह अध्ययन, स्वतंत्र अध्ययन, बाह्य अध्ययन, परिसर से बाहर अध्ययन। दूरस्थ शिक्षा की शुरुआत अंग्रेजी भाषा में शार्ट हैन्ड का विकास करने वाले आइजक पिटमैन ने की। 1856 में जर्मनी के लैंगेनशीट और टासैन्ट ने पत्राचार द्वारा भाषाओं का शिक्षण शुरू किया। अमेरिका में पत्राचार द्वारा अनुदेशन को संगठित करने का प्रयत्न किया गया। 1890 में जर्मनी में पत्राचार संस्थानों की स्थापना हुई। 1938 में अंतर्राष्ट्रीय पत्राचार शिक्षा परिषद् का गठन किया गया। रूस संसार का पहला देश है जिसकी सरकार ने 1962 में पत्राचार के माध्यम से शिक्षा को राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति प्रदान की। भारत में सर्वप्रथम 1962 को पत्राचार पाठ्यक्रम शुरू किये गए। 1982 में कनाडा में अन्तरष्ट्रीय पत्राचार शिक्षा परिषद् का 12वां विश्व सम्मेलन हुआ। अब इसे पत्राचार शिक्षा की बजाय ‘दूर शिक्षा’ की संज्ञा दी गई और अन्तर्राष्ट्रीय पत्राचार शिक्षा परिषद का नाम बदल कर ‘अन्तर्राष्ट्रीयं दूर शिक्षा परिषद् का नाम दिया गया। वर्तमान में पत्राचार शिक्षा और खुली शिक्षा, दोनों ही दूर शिक्षा के अन्तर्गत आती है। एशिया में खुले विद्यालय की स्थापना सर्वप्रथम जापान में हुई। भारत में सर्वप्रथम 1977 में मदुराई विश्वविद्यालय ने ‘खुला विश्वविद्यालय विंग’ की स्थापना की गई।

वर्तमान भारत में दूरस्थ शिक्षा

सन् 1962 में दिल्ली विश्वविद्यालय में दूरस्थ शिक्षा के विभाग के खुलने से भारत में दूरस्थ शिक्षा शुरू हुईं। सन् 1985 में इग्नू की स्थापना हुई।

वर्तमान में भारत में 11 मुक्त विश्वविद्यालय हैं-

  1. डॉ. भीमराव अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, अहमदाबाद
  2. यशवन्त राव चौव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय, नासिक (महाराष्ट्र)
  3. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, अहमदाबाद
  4. कर्नाटक मुक्त विश्वविद्यालय, मैसूर
  5. राजस्थान मुक्त विश्वविद्यालय, कोटा
  6. बंकिमचन्द्र चटर्जी मुक्त विश्वविद्यालय, पश्चिमी बंगाल
  7. नालन्दा मुक्त विश्वविद्यालय, बिहार
  8. राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
  9. भोज मुक्त विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्यप्रदेश
  10. इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
  11. सुन्दर लाल मुक्त विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़

निम्न पर टिप्पणी

(अ) कोठारी आयोग

(ब) राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986 )

(द) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद।

(स) मुक्त स्कूल पद्धति

(अ) कोठारी आयोग ( 1964-66) –

कोठारी आयोग (1964-66) का यह सुझाव है कि पत्राचार द्वारा दूरस्थ शिक्षा का व्यापक रूप से गठन किया जाए ताकि लाखों व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान की जा सके। इस दिशा में आयोग के मुख्य सुझाव निम्न हैं- जैसे पत्राचार कोस्सों का गठन, विद्यार्थियों को कभी-2 अध्यापको से मिलने के अवसर, पत्राचार कोसों का रेडियो एवं दूरदर्शन के कार्यक्रमों के साथ उचित तालमेल, कृषि, उद्याग तथा अन्य व्यवसाय के कार्यकर्त्ताओं के लिए विशिष्ट कोर्स, अध्यापकों को नवीन शिक्षण-विधियों एवं तकनीकों का ज्ञान प्रदान करना, सैकण्डरी शिक्षा बोर्ड तथा विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं दिने का अवसर देना चाहिए।

(ब) राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( 1986 ) –

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) ने दूरस्थ शिक्षा पर यह विचार व्यक्त किए हैं कि उच्चतर शिक्षा के अवसरों में वृद्धि करने के लिए मुक्त विश्वविद्यालय पद्धति आरम्भ की गई है। राष्ट्रीय मूक्त विश्वविद्यालय को सशक्त बनाना और इस सशक्त साधन का विकास एवं विस्तार करना। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कार्यान्वित करने के लिए कार्यावयन-कार्यक्रम, 1886 तैयार किया गया। इसकी महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं।

मुक्त विश्वविद्यालय पद्धति उच्च शिक्षा के अवसरों में वृद्धि करती है, कम खर्चीली है, सफलता को सुनिश्चित करती है और नवीन शिक्षा-पद्धति के विकास में सहायक है, इन लक्ष्यों को सम्मुख रखकर इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। इसे देश में दूरस्थ शिक्षा पद्धति में तालमेल स्थापित करने तथा उसका स्तर निर्धारित करने का दायित्व सौंपा गया है। इन्दिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय के अनुसार मुक्त विश्वविद्यालय पद्धति को विकसित एवं सशक्त करने के लिए निम्न उपाय किए जाएंगे जैसे दूरस्थ शिक्षा में डिग्री एवं डिप्लोमा कोर्स, माङ्यूलर नमूने के कोर्स, वितरण पद्धति को सशक्त बनाना, कार्यक्रम की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना, शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिए अधिगम का न्यूनतम मानक निर्धारित करना, दूरस्थ अधिगम पद्धति में ताल-मेल करना इत्यादि।

(स) मुक्त स्कूल पद्धति-

मुक्त विश्वविद्यालय प्रत्येक वर्ग को उच्चतर शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के निदेशक ने 1974 में एक कार्यकारी दल का गठन किया जिसका काम दिल्ली में मुक्त-स्कूल की स्थापना की सम्भावना का परीक्षण करना था। कोई गोष्ठियों में हुए विचार विमर्श के परिणामस्वरुप 1979 में दिल्ली में ‘निदेशक, मुक्त स्कूल’ की नियुक्ति की गई।

(द) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (National For Teacher Education)-

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की स्थापना 1973 में की गई थी। दिसम्बर 1993 में संसद में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् एक्ट, 1993 पास कर इसे संवैधानिक दर्जा दिया गया और 1995 में इस एक्ट के अनुसार इस परिषद का पुनर्गठन किया गया| इस परिषद् का मुख्य कार्यालय दिल्ली में है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के मुख्य उद्देश्य-

  1. देश भर में शिक्षक शिक्षा प्रणाली का समन्वित विकास करना है तथा मानकों और मानदंडों का समुचित रख रखाव करना है।
  2. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परषिद् को दिए गए जनादेश बहुत व्यापक हैं। जिसमें स्कूलों पूर्व प्राथमिक, माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक तथा गैर औपचारिक शिक्षा संस्थानों, अंशकालिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा तथा पत्राचार व दूरस्थ शिक्षा पाठयक्रमों को पढ़ाने के लिए शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों को शामिल किया गया है।
  3. सभी प्रकार की शिक्षक शिक्षा संस्थाओं के शिक्षकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित और साथ ही उनके वेतनमान निर्धारित करना इत्यादि।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आवश्यकता-

बदले समय में वेष्विक आवश्यकताओं के अनुकूल भारत को भी स्वतंत्र-आत्मनियंत्रित शिक्षा प्रणाली जो राष्ट्रीय विकास के पथ पर अग्रसर हो, ऐसी शिक्षा नीति की आवश्यकता थी जेा जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकें और बृहत्तर राष्ट्रीय सांस्कृतिक एवं मानवीय मूल्यों की स्थापना में भी सहायक हो।

ऐसी शिक्षा सर्वसुलभ हो, जीवनोपयोगी होने के साथ स्वस्थ दिशा प्रदान करने वाली स्वतंत्र भारत की केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय दायित्व के निर्वहन में शिक्षा के अधिकार के साथ भावी विकास की परिकल्पना का सूत्र चार भागों में विभाजित किया-

  1. शिक्षा, समाज और विकास
  2. शैक्षिक विकास और विहंगम दृष्टि
  3. समीक्षात्मक मूल्यांकन
  4. शिक्षा के स्वरूप के पुनः निर्धारण के बारे में एक, दृष्टिकोण।

प्रथम भाग में 34 सूत्रों के अंतर्गत शिक्षा समाज और विकास संबंधी अन्तर्सूत्रों को गंभीरता से नियोजित किया गया है। सन् 1968 में लागू हुई स्वाधीन भारत में रखा गया है। इसी भाग के अन्त में शिक्षा के प्रसंग में आधुनिक युवाओं की चुनौतियों और मूल्य धर्मिता की बात कही गई है।

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