शिक्षाशास्त्र / Education

जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी समस्यायें | जनसंख्या शिक्षा की समस्याओं के हल के उपाय

जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी समस्यायें | जनसंख्या शिक्षा की समस्याओं के हल के उपाय | Problems related to population education in Hindi | Measures to solve the problems of population education in Hindi

जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी समस्यायें

जनसंख्या शिक्षा से सम्बन्धित अनेक समस्यायें हैं जिनमें निम्न प्रमुख है-

(1) जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धित उचित साहित्य तथा पठन सामग्री का अभाव- जनसंख्या शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या उचित साहित्य तथा पठन सामग्री उपलब्ध न होना है। जनसंख्या वृद्धि सम्बन्धी पर्याप्त आँकड़े तथा इस वृद्धि का परिवार, समाज, पर्यावरण, अर्थ-व्यवस्था आदि पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट करने वाली पठन सामग्री या साहित्य का अभी भी अभाव ही है। जनांकिकी सम्बन्धी आँकड़ों से यह बात स्पष्ट नहीं होती है।

जनसाधारण तथा शिक्षकों और कार्यकर्ताओं को जब तक जनसंख्या परिवर्तन, उसके स्वरूप आदि के व्यक्ति, परिवार, समाज आदि पर पड़ने वाले ज्ञान नहीं कराया जायेगा, केवल जनसंख्या वृद्धि के आँकड़े कोई अर्थ नहीं रखेंगें। भारतीय परिस्थितियों में इन आँकड़ों को स्पष्ट करना तथा इनकी पृष्ठभूमि, स्वरूप, प्रभाव आदि को स्पष्ट करने वाला प्रामाणिक साहित्य और वह भी ऐसा साहित्य जो शिक्षकों, कार्यकर्ताओं, सामान्य जनता और बच्चों को समझ में आ जावे, अत्यन्त आवश्यक है।

(2) जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी शोध का अभाव- जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी शोध का अभी अभाव हो है। एक तो यह क्षेत्र ही नवीन है दूसरे इसमें काम भी अभी बहुत नहीं हो पाया है। अभी भी प्रयोग ही इसमें चल रहे हैं। अतः जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों, इनका व्यक्ति, परिवार, समाज, अर्थ व्यवस्था आदि से सम्बन्ध के बारे में जनता में अज्ञान ही बना हुआ है। अभी तक जो थोड़ा बहुत शोध कार्य इस क्षेत्र में हुआ है वह सर्वेक्षण प्रकार का ही अधिक है। जनसंख्या सम्बन्धी तत्वों का सामाजिक तथा प्राकृतिक पर्यावरण से सम्बन्ध ज्ञात करने के लिये अनेक क्षेत्रों के शोध का समन्वय करना भी आवश्यक है।

जनसंख्या शोध को यह बड़ी भारी समस्या है। जनसंख्या शिक्षा की उचित दिशा देने के लिये इस क्षेत्र में समुचित शोध का कार्य किया जाना अति आवश्यक है। फिर इस शोध कार्य को विश्वविद्यालयों का अलमारियों में ही जमा करके रखने से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। इसका प्रकाशन करके उचित प्रसार भी आवश्यक है, तभी सामान्य जन तथा कार्यकता इससे लाभाविन्त हो सकेंगे।

(3) जनसंख्या शिक्षा को परिवार से सम्बन्धित मानना – सामान्यतः लोगों का विचार रहता है कि जनसंख्या वृद्धि का सम्बन्ध बच्चों के उत्पादन से है। अतः जनसंख्या शिक्षा को परिवार नियोजन से सम्बन्धित समझते हैं। उनका कधन रहता है कि शाला शिक्षा से जनसंख्या शिक्षा का क्या सम्बन्ध है? बच्चों के प्रौढ़ होने या विवाहित होने पर परिवार नियोजन सम्बन्धी बातें बताई जाननी चाहिये। इन्हें यौन शिक्षा देना उचित नहीं रहता है। जनसंख्या वृद्धि कैसे होती है तथा इसे

झमेले में नहीं डालना चाहिये। कैसे कम किया जा सकता है? इन बातों को बच्चों को बतलाने से क्या लाभ है? बच्चों को इस झमेले में डालना चाहिए।

यह भ्रांति जनसंख्या शिक्षा का उचित और सही अर्थ न जानने कारण बनी रहती है। वास्तव में जनसंख्या शिक्षा के द्वारा तो भावी प्रौढों को जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं को बतलाकर सीमित परिवार करके सुखी जीवन करने की सम्भावनाओं से परिचित कराना ही हमारा उद्देश्य रहता है। बचपन में उचित प्रवृत्तियों का विकास सरलता से हो सकता है। अत: यह आवश्यक है कि परिवार नियोजन और जनसंख्या शिक्षा को अलग अलग माना जाये तथा इसके प्रति उचित दृष्टिकोण रखा जाये।

(4) जनसंख्या शिक्षा शिक्षकों और कार्यकर्ताओं का अभाव इनमें जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी उचित ज्ञान का न होना- जनसंख्या शिक्षा शाला स्तर से ही प्रारम्भ की जानी उचित और आवश्यक है परन्तु शालाओं में जो शिक्षक वर्तमान में कार्यरत हैं वे, जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य, विचार, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम आदि से परिचित नहीं हैं। जनसंख्या शिक्षा अभी कुछ वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई हैं।

अतः शिक्षकों को इसके सम्बन्ध में समुचित ज्ञान ही नहीं है। फिर शिक्षकों की धारणाओं और प्रवृतियों के अनुसार ही जनसंख्या शिक्षा दी जा सकेगी। यदि शिक्षकों और अन्य कार्यकर्ताओं को जनसंख्या शिक्षा का अर्थ, शिक्षण विधि, उद्देश्य आदि का उचित ज्ञान नहीं है तो वे बच्चों में उचित प्रवृतियों का विकास करने में सफल नहीं हो सकेंगे। चूँकि जनसंख्या शिक्षा पर पठन सामग्री तथा साहित्य का विकास भी कम ही हुआ है, शिक्षक तथा अन्य कार्यकर्ताओं को उचित साहित्य शीघ्र सुलभ नहीं हो पाता है।

(5) जनसंख्या शिक्षा पाठ्यक्रम विकास- जनसंख्या शिक्षा की एक बहुत बड़ी कठिनाई है शाला स्तर पर जनसंख्या शिक्षा पाठ्यक्रम विकास की। शाला पाठ्यक्रम अभी भी बोझिल है तथा अलग से एक और विषय जनसंख्या शिक्षा का जोड़ना शाला स्तर पर न तो उपयोगी होगा और न आवश्यक ही होगा। एक विषय अतिरिक्त जोड़ने का अर्थ है शिक्षा व्यय में वृद्धि करना। महाविद्यालय स्तर पर तो आधारभूत पाठ्यक्रम बनाकर या अतिरिक्त विषय के रूप में जनसंख्या शिक्षा शिक्षण कराया जा सकता है। परन्तु शाला स्तर पर यह कठिन ही है।

अतः इस कठिनाई को हल करने के लिये अनेक विद्वानों ने सुझाव दिया है कि वर्तमान पाठ्यक्रम की पुस्तकों में उपयुक्त स्थलों पर जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी बातों का समावेश करके छात्रों को जनसंख्या सम्बन्धी तथ्यों तथा जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों से परिचित कराया जाये। इस सुझाव से काम करने में भी कठिनाइयाँ हैं। अनेक राज्यों में पाठ्यपुस्तक निगम द्वारा प्रकाशित पुस्तकें शालाओं में चलाई जाती है। इनका मुद्रण ये निगम ही करते है। इनके मुद्रण प्रकाशन तथा इनमें परिवर्तन करने की प्रक्रियाओं तथा पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन करने में तालमेल बैठाने में बहुत कठिनाई आती है। अतः अभी तक इस दिशा में भारत में बहुत कम प्रगति हो सकी है। पाठ्यक्रम में क्या क्या बातें रखी जावें तथा यौन शिक्षा दो जाये या नहीं आदि अनेक समस्यायें इस सम्बन्ध में है। यह एक व्यावहारिक तथा अत्यन्त महत्वपूर्ण कठिनाई है।

(6) जनसंख्या शिक्षा हेतु आधुनिक तकनीकी साधन तथा मासमीडिया का उपयोग – जनसंख्या शिक्षा केवल शब्द या भाषा के द्वारा देने से बातें स्पष्ट नहीं होती है। वास्तव में भाषा का माध्यम न तो उतना प्रभावी होता है और न वह स्थिति अधिक स्पष्ट करने में ही सफल होता है। इसके लिये तो चित्र, नक्शे, फिल्म, स्लाइड, चार्ट सारिणा आदि अधिक उपयोगी और प्रभावी होते हैं। परन्तु इनकी व्यवस्था करने में बहुत अधिक धन को आवश्यकता होती है। साथ ही साथ इन साधनों की सुविधा सभी जगह होती भी नहीं। फलस्वरूप जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी बातों का प्रसार-प्रचार जैसे होना चाहिये, नहीं हो पा रहा है। इन साधनों के उपयोग के लिये मशोन, तकनीको व्यक्ति, बिजलो आदि सभी को उपलब्ध कराना कठिन हो रहा है।

(7) जनसंख्या शिक्षा में मूल्यांकन – जनसंख्या शिक्षा नवीन हो है तथा जो भी गतिविधियां या कार्य इस क्षेत्र में किये जा रहे है उनका उचित मूल्यांकन करना अति आवश्यक है। अभी इसको उचित व्यवस्था नहीं हो पाई है। इन कार्यों पर जो व्यय हो रहा है, जो व्यवस्था इनकी है, इसके सम्बन्ध में मूल्यांकन करके कार्य विधि को उन्नत करना आवश्यक है अभी तक यही देखने में आता है कि जिसने जो काम कर दिया, वही नया और काफी है। परन्तु वह उपयोगी, उचित और पर्याप्त है या नहीं, इसके सम्बन्ध में कोई कुछ नहीं कह पाता है। अतः उचित मूल्यांकन प्रक्रिया विकसित करना आवश्यक है।

जनसंख्या शिक्षा की समस्याओं के हल के उपाय

जनसंख्या शिक्षा की समस्याओं के हल हेतु निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं-

(1) जनसंख्या शिक्षा शिक्षकों तथा कार्यकर्ताओं को उचित प्रशिक्षण दिया जाय। शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में जनसंख्या शिक्षण सम्बन्धी बातों का समावेश किया जावे। मध्य प्रदेश में तो बुनियादी शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, बी०एड०, एम०एड० आदि स्तरों पर जनसंख्या शिक्षा को महत्व देकर शिक्षकों को इसमें आवश्यक प्रशिक्षण देने के प्रयास किये जा रहे है।

(2) प्रशिक्षण महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी शोधकार्य किया जाना चाहिये तथा इनका प्रकाशन करके इनके उचित प्रसार की व्यवस्था भी की जानी चाहिये। जनसंख्या शिक्षा पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों आदि के सम्बन्ध में कार्य किया जाना अत्यन्त आवश्यक है।

(3) जनसंख्या शिक्षा पर शिक्षण संस्थाओं, प्रशिक्षण महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में गोष्ठियां आयोजित करके जनसंख्या शिक्षा को उचित व्याख्या की जानी चाहिये इसके सम्बन्ध में समुचित ज्ञान और इसकी स्पष्ट संकल्पना का प्रचार समाज में हो, इसके प्रयास किये जाने चाहिये। समाचार पत्रों में लेख आदि लिख कर भी इस दिशा में पर्याप्त कार्य किया जा सकता है।

(4)  जनसंख्या वृद्धि तथा उसके प्रभावों पर उत्तम चार्ट, चित्र, फिल्म, सारणियां, साहित्य विकसित किया जाना अति आवश्यक है। इनका प्रकाशन और निर्माण करके इनके उचित उपयोग की व्यवस्था आवश्यक है। प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तरों पर पाठ्य पुस्तकों में उपयुक्त स्थलों पर जनसंख्या सम्बन्धी बातों का समावेश करके जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी अनेक बातों का ज्ञान समाज विज्ञान, जीवशास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भाषा आदि विषयों के शिक्षण के समय सरलता से दिया जा सकता है।

(5) जनसंख्या शिक्षा शिक्षकों, कार्यकर्ताओं तथा जनता को जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी बातों की स्पष्ट संकल्पना शालाओं, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में विभिन्न समारोहों, दिवसों, बैठकों आदि के आयोजनों के माध्यम से करायी जा सकती है। शाला विकास समितियां इसमें बहुत अधिक योगदान दे सकती हैं।

(6) समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यम से विद्वानों द्वारा तैयार किये गये जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी भाषण, कार्यक्रमों आदि का प्रसारण करना अधिक उपयोगी होगा। इससे जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी भ्रांतियाँ दूर होगी तथा इसके सम्बन्ध में उचित दृष्टिकोण विकसित होगा।

(7) जनसंख्या शिक्षा के सम्बन्ध में समुचित शोधकार्य महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में किया जाना आवश्यक है।

(8) जनसंख्या शिक्षा के कार्यक्रमों के प्रभाव, उपयोगिता तथा आवश्यकता के सम्बन्ध में इन गतिविधियों का समय-समय पर उचित मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। इस हेतु उचित व्यवस्था को जानी चाहिये।

(9) जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम की सफलता के लिये आवश्यक है कि जनसंख्या शिक्षा. सामान्य शिक्षा तथा परिवार नियोजन कार्यक्रम करने वाले व्यक्तियों तथा संगठनों के कार्यों में समन्वय स्थापित किया जाये। इसके अभाव में जनसंख्या शिक्षा का कार्य उचित ढंग से नहीं चल पाता है। इनमें समन्वय स्थापना से कार्य व्यवस्थित ढंग से चलेगा तथा सभी के साधनों का समुचित उपयोग जनसंख्या शिक्षा हेतु सम्भव होगा।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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