अर्थशास्त्र / Economics

प्राकृतिवाद | वणिकवाद के विरुद्ध एक विद्रोह | निर्बाधावादियों के प्रमुख विचार | प्रकृतिवाद और वणिकवाद में भिन्नतायें | प्रकृतिवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन | प्रकृतिवादियों की त्रुटियाँ | प्रकृतिवादियों की देन

प्राकृतिवाद | वणिकवाद के विरुद्ध एक विद्रोह | निर्बाधावादियों के प्रमुख विचार | प्रकृतिवाद और वणिकवाद में भिन्नतायें | प्रकृतिवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन | प्रकृतिवादियों की त्रुटियाँ | प्रकृतिवादियों की देन

प्राकृतिवाद : वणिकवाद के विरुद्ध एक विद्रोह

(Physiocracy: Mere Revolt Against Mercantilism)

हेने का कथन है कि “निर्बाधावाद का आशय यद्यपि कहीं अधिक विस्तृत है, तथापि उसे वणिकवाद के विरुद्ध फ्रांसीसी विद्रोह के रूप में परिभाषित किया जा  सकता है।” इस कथन में दो बातें कही गयी हैं-प्रथम तो यह कि निर्बाधावाद वणिकवाद के विरुद्ध एक विद्रोह’ अर्थात् एक प्रतिक्रिया था और दूसरे यह कि इसने कुछ नये, रचनात्मक विचार भी प्रस्तुत किये, जिस कारण यह एक व्यापक चिन्तन था।

निर्बाधावाद का विद्रोह सम्बन्धी (या नकारात्मक) स्वरूप- अब कोई भी विद्वान् इस बात से इन्कार नहीं करता कि निर्बाधावाद का जन्म वणिकवाद के विरोध स्वरूप हुआ। वणिकवाद के सिद्धान्तों की व्यावहारिक उपयोगिता 18वीं शताब्दी के मध्य तक समाप्त हो चुकी थी और स्वयं टामस मन के अपने देश में भी वणिकवादी सिद्धान्त कुख्यात हो गये थे। विशेषत: फ्रांस में एक निरंकुश, अत्याचारी और कुशल शासन के अन्तर्गत कृषि के हितों को बलिदान करके व्यापार एवं उद्योग का विकास किया जा रहा था। इस अन्यायपूर्ण नीति के प्रति एक बौद्धिक चुनौती के रूप में निर्बाधावाद का उदय हुआ। इसमें जो गुण-दोष थे, वह मुख्यत: वणिकवाद के विरुद्ध इसके प्रतिक्रियागत स्वभाव के कारण आ गये थे।

प्रकृतिवाद और वणिकवाद में भिन्नतायें

(Distinction Between Mercantilism and Physiocracy)

निर्बाधावाद को वणिकवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया अथवा विद्रोह प्रमाणित करने के लिए अथवा यों कहें कि इसके नकारात्मक स्वरूप (negativism) को दिखलाने के लिए इन दोनों चिन्तनों की विशेषताओं पर तुलनात्मक रूप से विचार करना चाहिए। इससे दोनों का अन्तर स्पष्ट हो जायेगा। यह कार्य निम्नांकित तालिका में किया गया है-

वणिकवाद प्रकृतिवाद
वणिकवादियों ने बहुमूल्य धातुओं सोना-चाँदी को अत्यधिक महत्व दिया, क्योंकि नहीं इनको विश्वास था कि सोना देकर इनका स्वामी अपनी इच्छित वस्तुयें सहज ही खरीद सकता है। निर्बाधावादियों ने धातुओं को कोई महत्व नहीं दिया। उन्होंने कृषि से प्राप्त विशुद्ध उत्पत्ति पर बल दिया और कहा कि देश का कल्याण विशुद्ध उत्पत्ति के बढ़ने पर निर्भर है। सोना-चाँदी स्वयं में मानव समाज की भूख-प्यास सन्तुष्ट करने की सामर्थ्य नहीं रखते।
बहुमूल्य धातुओं को प्राप्त करने के उद्देश्य से वणिकवादियों ने विदेशी व्यापार को विशेष महत्व दिया और वे इसे यथाशक्ति सुविधायें प्रदान की। निर्बाधावादियों ने विशुद्ध उत्पत्ति को बढ़ाने के लिए कृषि पर बल दिया। उनकी दृष्टि में कृषि ही उत्पादक है। विदेशी व्यापार को वे एक आवश्यक बुराई समझते थे और कोई महत्व न देते थे।
वणिकवादी विदेशी व्यापार के क्षेत्र में व्यापार सन्तुलन की अनुकूलता पर बल देते थे और इस हेतु उन्होंने आयात और निर्यात की राय दी जिसमें आयात हतोत्साहित और निर्यात प्रोत्साहित हों, क्योंकि केवल ऐसा होने पर ही विदेशों से स्वर्ण प्राप्त हो सकता था। निर्बाधावादी इस नीति के समर्थक न थे। उनका विचार था कि देश में सोना चाँदीक्ष अधिक हो जाने से वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं। परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अत्यधिक कष्ट सहना पड़ता है। उनका यह भी कहना था कि व्यापार सन्तुलन स्वयं ही अपनी उचित स्थिति में आ जायेगा। हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
वणिकवादो कच्चे माल का आयात करना ठीक समझते थे। निर्बाधावादी पक्के माल का आयात करना ठीक मानते थे।
वणिकवादी राष्ट्रवादी थे और देश के हितों को अभिवृद्धि के लिये उन्होंने कई सिद्धान्त व नीतियाँ प्रस्तुत की। निर्बाधावादी विश्ववादी थे। वे राजनीति में श्रेणीवाद को अनुचित मानते थे।
वणिकवादी एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण करने के पक्ष में थे और इस हेतु राज्य को बहुत से अधिकार सौंपने का सुझाव देते थे। निर्बाधावादी राजसत्ता तो चाहते थे लेकिन उसके हाथों न्यूनतम सत्ता सौंपने के समर्थक थे। उनकी राय थी कि कम से कम कानून बनाये जायें।
वणिकवादी प्रतिबन्धात्मक व्यापार प्रणाली के समर्थक थे। ये स्वतन्त्र व्यापार के समर्थक थे।
वणिकवादियों ने भूमि और श्रम को प्रमुख उत्पादन साधन माना था, किन्तु इनमें भी अधिक महत्व श्रम को दिया। निर्बाधावादियों ने केवल भूमि को उत्पत्ति साधन के रूप में स्वीकार किया। उनका कहना था कि भूमि के अलावा अन्य क्षेत्रों में लगा श्रम अनुत्पादक है।
वणिकवादियों के मतानुसार प्रत्येक मनुष्य को उतना कर देना चाहिए जितना कि वह सरकार से लाभ उठाता है। निर्बाधावादियों के मतानुसार केवल भूस्वामियों पर कर लगना चाहिए और ऐसा कर विशुद्ध उत्पत्ति का लगभग 30% हो। वे अन्य सामाजिक वर्गों पर कर लगाने के पक्ष में न थे।
इन्होंने सरकार के कार्यों को काफी बढ़ा दिया। इन्होंने सरकार के कार्य सीमित कर दिये।
ये लोग सम्पत्ति को द्रव्य के रूप में मानते थे। ये लोग सम्पत्ति को कच्चे माल के रूप में मानते थे।
व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु वणिकवादियों ने नीची ब्याज दर का समर्थन किया। इन्होंने केवल ऐसी पूँजी पर ब्याज लेने-देने का समर्थन किया जो कि उत्पादक कार्य (और ऐसा कार्य उनकी राय में कृषि था) में लगायी जाय।

प्रकृतिवाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन

(Critical Evaluation of Physiocracy)

प्रकृतिवादियों की त्रुटियाँ

व्यापारवाद की आलोचना करते हुए निर्बाधावादी बहुत आगे निकल गये और उन्होंने ऐसी त्रुटियाँ कर दी, जिनके कारण बाद में उनकी बहुत आलोचना हुई। प्रमुख त्रुटियाँ निम्न थीं-

(1) उनकी मुख्य त्रुटि यह थी कि उनको मूल्य के विषय में सही ज्ञान न था। यदि उन्होंने इसकी कहीं चर्चा की भी है, तो वह बहुत मामूली या नीची श्रेणी की। मूल्य का सही ज्ञान न होने के कारण ही वे स्थूल पदार्थ के सृजन को उत्पादन समझ बैठे और यह धारणा बना ली कि कृषि ही उत्पादक है तथा उद्योग एवं व्यापार अनुत्पादक हैं।

(2) व्यक्तिवादिता की धुन में उन्होंने सामूहिक क्रिया की आवश्यकता को एकदम ही भुला दिया।

(3) उनके प्रकृतिवाद ने उन्हें निरपेक्षवादी बना दिया। परिणामत: वे अपने विचारों को सार्वभौमिक समझते थे। वे अपनी नीतियों में स्थान व समय का आवश्यकताओं के अनुसार कोई भी परिवर्तन करने के लिए प्रस्तुत नहीं थे।

प्रकृतिवादियों की देन

उक्त आलोचनाओं के कारण हमें उनकी देन को नहीं भुला देना चाहिए। हैने के शब्दों में, “विचारों के राज्य में विश्व की प्रगति एक जहाज के सदृश्य होती है, जो अपने सीधे मार्ग से कभी बायीं ओर और कभी दायीं ओर हवा के थपेड़ों से विचलित होती रहती है। निर्बाधावादियों ने पूर्व विचारकों को एक ओर हटाकर नया मार्ग ग्रहण कर लिया, जो प्रगति के लिए आवश्यक भी था।” निर्बाधावादियों के महत्वपूर्ण कार्यों को संक्षेप में इस प्रकार लिखा जा सकता है-

(1) उन्होंने अर्थशास्त्रों को नीतिशास्त्र, न्यायशास्त्र व अन्य विज्ञानों से पृथक् करके एक वैज्ञानिक आधार पर स्थापित किया।

(2) उन्होंने जीवन की भौतिक वस्तुओं से सम्बन्धित सामाजिक उत्पादन एवं वितरण के केन्द्र विषय पर अपना ध्यान लगाया और उन मौलिक नियमों का पता लगाने की चेष्टा की, जो कि इन क्रियाओं को शासित करते थे। यही वह कार्य था, जिसके बारे में आगे चलकर एडम स्मिथ संलग्न हुआ तथा अपने लिए ‘अर्थशास्त्र के जनक’ का दर्जा प्राप्त कर सका। निर्बाधावादी स्वयं इस दर्जे को प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि उन्होंने कृषि की ही उत्पादकता पर बल दिया। यह तो एडम स्मिथ ही था, जिसने बुद्धि चातुर्य से सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं के एक सामान्य घटक’ के रूप में श्रम का पता लगाया तथा यह प्रमाणित किया कि सभी क्रियाएँ उत्पादक हैं।

(3) वास्तविक उत्पत्ति सम्बन्धी उनके विचार को बाद में ‘आधिक्य की धारणा’ में विकसित कर लिया गया, जो कि आर्थिक विश्लेषण का एक शक्तिशाली उपकरण बना हुआ है।

(4) भूमि पर उत्पत्ति के एक साधन के रूप में उनके जोर देने से इन साधनों के वर्गीकरण के लिए एक मार्ग बन गया।

(5) उनका करारोपण सिद्धान्त एवं पूँजी का विश्लेषण प्रारम्भिक होते हुए भी ठोस है।

(6) निजी सम्पत्ति सम्बन्धी उनका दबाव तब से ‘क्लासिक’ बन गया है।

(7) स्वतन्त्रता की नीति एवं सरकारी हस्तक्षेप को सीमित रखने का तर्क सभी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के लिए मार्गदर्शक बन गया।

एडम स्मिथ के शब्दों में, “यह प्रणाली (निर्वाधावाद) अपनी समस्त त्रुटियों के होते हुए भी सत्य के सबसे निकट है, जो कि सभी राजनैतिक अर्थशास्त्र के विषय पर प्रशासित होता है और इसी कारण यह उस व्यक्ति के लिए, जो कि इस महत्वपूर्ण विज्ञान के सिद्धान्तों का सावधानी से अध्ययन करता है, ध्यान देने योग्य है।”

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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