हिन्दी / Hindi

हिन्दी साहित्य के काल विभाजन की समस्या | काल विभाजन के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों द्वारा दिए गए विभिन्न मत

हिन्दी साहित्य के काल विभाजन की समस्या | काल विभाजन के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों द्वारा दिए गए विभिन्न मत

हिन्दी साहित्य के काल विभाजन की समस्या

किसी भी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन उस साहित्य में प्रवाहित होने वाली विविध साहित्यिक धाराओं एवं अनेकानेक प्रवृत्तियों के आधार पर ही सम्भव हुआ करता है। युगानुकूल मानव समाज में परिवर्तन होते रहते हैं, फलतः साहित्य में भी परिवर्तन आ जाता है क्योंकि कवि या लेखक समाज का एक अविभाज्य अंग ही होता है। वह भी सामाजिक परिवर्तनों का शिकार होता है, उसके ऊपर भी समाज की सवृत्तियों एवं विकृतियों का प्रभाव पड़ता है। साहित्य में भी शैलीगत एवं विषयगत परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि काल विशेष में समाज की परिस्थितियाँ भी विशेष रहती हैं, उनकी विचारधाराएं भी तदनुकूल ही होती हैं। इसीलिए काल विशेष की रचनाएँ भी उन परिस्थितियों एवं विचारधाराओं के अनुरूप ही होती हैं। अन्य साहित्यों की भाँति हमारे हिंदी साहित्य पर भी यही नियम लागू होता है। साहित्य को देखने से पता चलता है कि समय विशेष में विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों को लेकर काव्य रचनाएँ हुई हैं। इसी नियम को आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य के काल विभाजन का आधार माना है। वे लिखते हैं- ‘जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है।’ समयानुकूल जनता की चित्तवृत्तियाँ राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं साम्प्रदायिक परिस्थितियों के कारण बदलती रहती है अतएव साहित्य में इन उपर्युक्त परिस्थितियों का चित्रण भी कुछ न कुछ देखने को अवश्य मिलता है।

आचार्य शुक्ल का काल-विभाजन

अपने काल विभाजन की उपयुक्तता बतलाते हुए शुक्ल जी लिखते हैं कि- ‘इस प्रकार प्रत्येक काल का एक विशिष्ट सामान्य लक्षण बताया जा सकता है। किसी एक ढंग की रचना की प्रचुरता से अभिप्राय यह है कि शेष दूसरे ढंग की रचनाओं में से चाहे किसी एक ढंग की रचना को लें, यह परिणाम में प्रथम के बराबर न होगी.. दूसरी बात है, ग्रंथों की प्रसिद्धि भी किसी काल की लोक- प्रवृत्ति की प्रातिध्वनि है। इन दोनों बातों की ओर ध्यान रखकर काल विभाजन का नामकरण किया गया है।

उपर्युक्त लक्षण के आधार पर उन्होंने हिंदी साहित्य के 900 वर्ष के इतिहास को चार. निम्नांकित कालों में विभक्त किया है-

(i) आदिकाल (वीरगाथाकाल, सं. 1050 से 1375 तक)

(ii) पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल, सं. 1357 से 1700 तक)

(iii) उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, सं. 1700 से 1900 तक)

(iv) आधुनिक काल (गद्यकाल, सं. 1900 से वर्तमान तक)

आचार्य शुक्ल का कथन है यद्यपि इन कालों की रचनाओं का विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही इसका नामकरण किया गया है, पर यह न समझना चाहिए कि किसी विशेष काल में और प्रकार की रचनाएँ होती ही नहीं थी। जैसे भक्तिकाल या रीति काल को लें तो इसमें वीर रस के भी अनेक काव्य मिलेंगे जिनमें वीर राजाओं की प्रशंसा उसी ढंग से की होगी, जिस ढंग की वीरगाथा काल में हुआ करती थी। अतः प्रत्येक काल का वर्णन इस प्रणाली पर किया जाएगा कि पहले तो उक्त काल की विशेष प्रकृतिसूचक उन रचनाओं का वर्णन होगा जो उस काल के लक्षण के अंतर्गत होगी, पीछे संक्षेप में उनके अतिरिक्त और नाना प्रकार की देने योग्य रचनाओं का उल्लेख होगा।’

अन्य विद्वानों का काल-विभाजन

अन्य विद्वानों ने भी हिंदी साहित्य के काल विभाजन का पास किया है। डॉ0 श्यामसुदर दास, डॉ0 गुलाबराय आदि विद्वानों ने किंचित् -परिवर्तन के साथ आचार्य शुक्ल के परिवर्तन को स्वीकार किया है किंतु कुछ विद्वानों ने शुक्ल जी से विरोध कर अपनी स्वतंत्र विचारधारा का निदर्शन किया है। डॉ0 रामकुमार वर्मा ने हिंदी साहित्य के इतिहास को पाँच खंडों में विभक्त किया है।

उनके अनुसार ये खंड इस प्रकार हैं- (1) संधिकाल (2) चारणकाल (3) भक्तिकाल (4) रीतिकाल (5) आधुनिककाल।

इसके ठीक विपरीत कमल कुलश्रेष्ठ ने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार नवीन नामों से संबोधित किया है उनके अनुसार ये नाम इस प्रकार हैं- (क) अंधकार काल, (ख) कलात्मक उत्कर्ष काल, (ग) साहित्य शास्त्रीय विकास काल, (घ) साहित्यिक काल।

डॉ. धीरेंद्र वर्मा ने विकास की दृष्टि से हिंदी साहित्य के इतिहास को केवल तीन ही भागों में विभक्त किया है। ये भाग हैं- 1. प्राचीनकाल 2. मध्यकाल 3. आधुनिक काल।

डॉ0 हजारीप्रसाद द्विवेदी ने पर्याप्त अनुसंधान के उपरांत हिंदी साहित्य के इतिहास को निम्नांकित चार भागों में विभक्त किया है-

(i) हिंदी साहित्य का आदि काल- दसवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक।

(ii) भक्ति साहित्य-चौदहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी का मध्य भाग।

(iii) रीतिकाल- 16वीं शती के मध्य से 19वीं शती के मध्य तक।

(iv) आधुनिक काल- 19वीं शती के मध्य से लेकर आज तक।

शुक्ल जी के काल-विभाजन के आधार पर औचित्य- काल-विभाजन के प्रश्न पर विचार करते समय यह प्रश्न बड़े ही स्वाभाविक ढंग से उठता है कि यदि रचना प्रवृत्ति को काल विभाजन का आधार न माना जाय तो किसे माना जाय? आप जानते हैं कि डॉ. रामकुमार वर्मा ने आदिकाल को चारणकाल कहा है, क्योंकि तत्कालीन काव्यकर्ता या तो चारण थे या बंदीजन थे। यदि डॉ. वर्मा की भाँति रचनाकारों को ही काल-विभाजन का मूलाधार माना जाय तब अन्य कालों का नामकरण का क्या होगा? वैसी स्थिति में नामकरण होंगे- चारणकाल, संतकाल, सूफीकाल, वैष्णवकाल, आचार्यकाल? यह आचार्यकाल सं. 1900 में समाप्त हो जाएगा। फिर क्या होगा? अर्थात् आधुनिक काल का नाम क्या होगा? इस युग के साहित्यकारों ने विभिन्न विचारों से अनुप्राणित होकर रचनाएँ की हैं। ऐसी स्थिति में आधुनिक काल साहित्य को देखकर इसे सुधारवादी काल, फ्रायडवादी काल, हालावादी काल में विभक्त करना कहाँ तक युक्तिसंगत होगा? ऐसी स्थिति में डॉ. रामकुमार वर्मा का काल विभाजन का आधार स्वीकार्य नहीं। वीरगाथा काल की ही भाँति कुछ विद्वानों ने रीतिकाल को शृंगारकाल कहा है। क्योंकि उनकी दृष्टि से उक्त काल में श्रृंगारपरक रचनाएँ ही अधिक संख्या में लिखी गयीं। इस आधार पर आदिकाल के नाम में कुछ विशेष अंतर नहीं आता क्योंकि वह वीर-रस काल बना रहता है और भक्तिकाल के नामकरण पर भी आँच नहीं आती।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विवेचन से यह सष्ट है कि आचार्य शुक्ल द्वारा प्रतिपादित काल विभाजन का आधार उपयुक्त है। इतना ही नहीं उन्होंने रचनाओं की प्रवृत्तियों के आधार पर जो काल विभाजन प्रस्तुत किया है वही समीचीन प्रतीत होता है।

हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!