इतिहास / History

हिन्दू विरोधी नीति का प्रत्यक्ष रूप | हिन्दू विरोधी नीति का प्रत्यक्ष रूप | हिन्दू-विरोधी नीति के परिणाम | औरंगजेब का चरित्र और उसका मूल्यांकन

हिन्दू विरोधी नीति का प्रत्यक्ष रूप | हिन्दू विरोधी नीति का प्रत्यक्ष रूप | हिन्दू-विरोधी नीति के परिणाम | औरंगजेब का चरित्र और उसका मूल्यांकन

हिन्दू विरोधी नीति का प्रत्यक्ष रूप

औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने जिस नीति का अनुसरण किया वह अकबर की नीति से पूर्णतया भिन्न थी। उसने एक ऐसे राज्य की कल्पना की जिसमें इस्लाम और कुरान का ही साम्राज्य हो। इसकी पूर्ति हेतु उसने मुसलमानों को सर्वोपरि अधिकार प्रदान किए गये थे। वह इतना कट्टर मुसलमान था कि संसार कोई भी शक्ति उसे अपने धर्म से विचलित नहीं कर सकती थी। अपने धर्म के लिये वह सिंहासन तक छोड़ने के लिए तत्पर था। ऐसे कट्टर मुसलमान ने यदि हिन्दुओं का विरोध किया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उसकी धार्मिक कट्टरता का परिचय हिन्दुओं के साथ किए गये उसके व्यवहार में स्पष्ट दिखाई पड़ता है।

हिन्दू विरोधी नीति का प्रत्यक्ष रूप

(1) हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस- औरंगजेब ने अनेक हिन्दू मन्दिरों को गिराने के आदेश जारी किए। लेनपूल महोदय लिखते हैं-

“For religion he persecuted, the Hindus and destroyed their temples.”

-Lanepool.

जिस समय वह गुजरात का सूबेदार था, उसी समय से उसने हिन्दू मन्दिरों के विध्वंस का कार्य आरम्भ कर दिया था। अहमदाबाद में चिन्तामणि मन्दिर में गऊ की हत्या करवाकर उसने उसे मस्जिद में परिवर्तित करवा दिया। सिंहासनारूढ़ होते ही उसने यह आज्ञा दी कि अटक से मेदिनीपुर तक जितने भी हिन्दू मन्दिर हैं, वे सभी गिरा दिए जायें । शासनकाल के 12वें वर्ष में उसने यह आज्ञा प्रसारित की कि हिन्दुओं के जितने भी मन्दिर हैं वे सब नष्ट कर दिए जायें और उनके रीति-रिवाजों का दमन दिया जाय। उसकी धार्मिक कट्टरता के कारण ही सोमनाथ का मन्दिर, बनारस का विश्वनाथ मन्दिर तथा मथुरा का केशवराय का मन्दिर नष्ट किया गया। उसने मन्दिरों के निर्माण को भी निषेध करवा दिया।

(2) पाठशाला का विध्वंस- औरंगजेब केवल हिन्दुओं के मन्दिरों और मूर्तियों को नष्ट नहीं किया, वरन् हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का प्रचार करने वाले विद्यालयों को भी विध्वंस करवा दिया। हिन्दुओं के विद्यालय धार्मिक शिक्षा नहीं दे सकते थे।

(3) हिन्दुओं पर जजिया कर- जजिया नामक धार्मिक कर जिसे अकबर ने हटा दिया था, औरंगजेब ने फिर लगा दिया। यह जजिया बड़ी कठोरतापूर्वक वसूल किया जाता था। इसको वसूल करने के लिए अनेकों कर्मचारियों तथा अधिकारियों की नियुक्तियाँ की गयी थीं। डॉ० ईश्वरी प्रसाद लिखते हैं-

“The Jazia was levied with the great vigour and a large staff of officers was employed to collect it.”

-Dr. Ishwari Prasad.

जजिया लगाने का उद्देश्य धार्मिक होने के साथ आर्थिक भी था। इतिहासकार मनूषी ने स्पष्ट लिखा है, औरंगजेब ने जजिया दो कारणों से लगाया था। प्रथम तो वह खजाने को बढ़ाना चाहता था क्योंकि अनेक लड़ाइयों के कारण राज्यकोष रिक्त होता चला जा रहा था दूसरे वह हिन्दुओं को करों के भार से लादकर तंग करना चाहता था, जिससे वे तंग आकर मुसलमान बन जायें।”

औरंगजेब के इस कर की वसूली करने के लिए अफसरों को बड़े कठोर आदेश दिये थे। उसने उनसे कहा था कि यदि वह इस कर को कट्टरतापूर्वक नहीं वसूलेंगे तो उनको उचित दण्ड दिया जाएगा। जब बहुत से हिन्दू इस कर के विरोध में एकत्र हुए तो औरंगजेब ने अपने हाथियों को उनको कुचलने के लिए छोड़ दिया।

(4) हिन्दुओं को उच्च पदों से वंचित करना- एक विज्ञप्ति के द्वारा औरंगजेब ने बहुत से हिन्दुओं को सरकारी नौकरी से अलग कर दिया। हिन्दुओं पर बेईमानी का आरोप लगाकर अलग कर दिया गया था। वास्तव में हिन्दुओं को सरकारी नौकरी से अलग करना औरंगजेब की बहुत बड़ी भूल थी। इसका उसके शासन-प्रबन्ध पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

(5) चुंगी सम्बन्धी भेद नीति- हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली विक्रय की सभी चीजों पर मुसलमानों से अधिक चुंगी ली जाती थी। 1666 ई० में एक विज्ञप्ति द्वारा मुसलमानों (व्यापारियों) को सभी प्रकार की चुंगी से छूट दे दी गई थी, परन्तु हिन्दू व्यापारियों को पुरानी ही दर से चुंगी देनी पड़ती थी।

(6) हिन्दुओं की स्वतन्त्रता का अपहरण- औरंगजेब ने हिन्दुओं को व्यक्तिगत स्वतत्रता का अपहरण किया। उसने उनके धार्मिक रीति-रिवाजों पर रोक लगा दी। झरोखा प्रदर्शन की प्रथा एक हिन्दू प्रथा थी जिसको सम्राट अकबर ने चलाया था। इस प्रथा को औरंगजेब ने बन्दी करवा दिया। गुजरात में उसने एक आज्ञा निकाली थी कि दीवाली पर कोई रोशनी नहीं की जाय और होली का त्यौहार भी उत्साहपूर्वक नहीं मनाया जाय। हिन्दू धर्म-प्रचारक अपने धर्म का प्रचार नहीं कर सकते थे। ऊधव वैरवी नामक एक व्यक्ति, जो खुल्लम-खुल्ला हिन्दू धर्म का प्रचार करता था, को औरंगजेब ने कैद करवा लिया और फिर उसकी हत्या करवा दी।

औरंगजेब ने हिन्दुओं पर यह बल दिया कि वे इस्लाम धर्म अपना लें। हिन्दुओं को अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर इस्लाम धर्मान्यायी बनाने का प्रयास किया गया। जो हिन्दू इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेते थे उनको उच्च पद प्रदान कर दिये जाते थे। इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेने पर जेल से मुक्ति भी प्रदान कर दी जाती थी। कभी-कभी हिन्दुओं को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर कठोर दण्ड भी दिया जाता था। 1669 ई० में जाट विद्रोह के दमन के पश्चात् गोकुल नानक जाट को जबर्दस्ती मुसलमान बना लिया था।

(8) सिक्खों पर अत्याचार- औरंगजेब ने केवल हिन्दुओं पर ही अत्याचार नहीं किया, बल्कि उनके बन्धु सिक्खों को भी उसका कोपभाजन बनना पड़ा। उसने सिक्खों के गुरु तेग बहादुर की हत्या करवा दी, जिससे सिक्ख उसके प्रबल विरोधी हो गये।

हिन्दू-विरोधी नीति के परिणाम

औरंगजेब की हिन्दू-विरोधी नीति के परिणामों ने मुगल साम्राज्य की जड़ें हिला दीं। मुख्य रूप से उसकी इस नीति के परिणामों को हम दो भागों में ही बाँट सकते हैं-

(1) आर्थिक परिणाम एवं

(2) राजनीतिक परिणाम।

(1) आर्थिक परिणाम- औरंगजेब ने राजकोष का काफी धन इस्लाम धर्म के प्रचार में लगाया। इसके अतिरिक्त मुसलमान व्यापारियों से उसने चुंगी लेनी भी बन्द कर दी तथा हिन्दुओं से चुंगी ली जाती थी । उसमें बेईमानी होने लगी। हिन्दू लोग मुसलमानों का माल बताकर चुंगी से छूटने का प्रयत्न करते थे इससे राज्य की आय को काफी धक्का पहुँचा । जजिया कर के लगने से अनेक हिन्दू दक्षिण की ओर भाग गये। हिन्दुओं के मेलों को वन्द कर देने से राज्य को वह आय बन्द हो गई जो मेलों से कर व चुंगी के रूप में प्राप्त होती थी। इस प्रकार औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति से राज्य को काफी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी।

(2) राजनीतिक परिणाम- औरंगजेब की इस नीति ने हिन्दुओं को अपना शत्रु बना लिया। देश के विभिन्न भागों में हिन्दू, औरंगजेब की धर्मान्धता तथा असहिष्णुता की नीति के विरुद्ध विद्रोह करने लगे। इन विद्रोहों में निम्न मुख्य हैं-

(अ) जाटों का विद्रोह- मथुरा में जाटों का भयानक विद्रोह हुआ जाटों ने गोकुल जाट नामक एक व्यक्ति के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। इन लोगों ने मथुरा के हाकिम अब्दुल नबी की हत्या कर दी और कई परगने लूट लिये। विद्रोह का समाचार सुनते ही औरंगजेब ने कई मुगल सेनापतियों को वहाँ भेजा। मुगलों ने बड़ी क्रूरतापूर्वक जाटों का दमन किया। जाटों के नेता गोकुल की हत्या कर दी गयी और उसके परिवार को बलात् मुसलमान बना लिया। परन्तु विद्रोह सदैव के लिए समाप्त न हो पाया। शीघ्र ही जाटों ने राजाराम के नेतृत्व में पुनः विद्रोह कर दिया। मुगलों ने विद्रोह शान्त करने राजाराम को मार डाला। परन्तु उसके भतीजे चूड़ामणि ने औरंगजेब के शासन काल के अंतिम दिनों तक विद्रोह जारी रखा।

(ब) सतनामियों का विद्रोह- जाटों के अतिरिक्त सतनामियों ने भी विद्रोह खड़ा कर दिया। ये लोग ब्राह्मण जाति के थे। सतनामी दिल्ली से लगभग 120 किलोमीटर दूर नारनूल नामक स्थान का एक सम्प्रदाय था वहाँ के एक व्यक्ति तथा एक सतनामी के बीच झगड़ा हो जाने से वहाँ के शिकदार ने सतनामियों को बुलाने के लिए सेना भेजी किन्तु सतनामियों ने सेना को मारकर भगा दिया। बाद में गृह-युद्ध होने से वहाँ का फौजदार भी मार डाला गया। विद्रोह को दबाने के लिए पुनः सेना भेजी गयी और घमासान युद्ध में हजारों सतनामी मौत के घाट उतार दिये गये। इस प्रकार 1672 ई. में यह विद्रोह शान्त हुआ।

(स) बुन्देलों का विद्रोह- बुन्देल राजपूतों का तीसरा मुख्य विद्रोह उसके काल में हुआ। औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति ने बुन्देल राजपूतों को भी अपना शत्रु बना लिया। बुन्देलों के सरदार चम्पतराय ने विद्रोह किया परन्तु उसे सफलता न मिली, अतः उसने आत्महत्या कर ली। उसके पश्चात् उसके पुत्र छत्रसाल ने विद्रोह किया। मुगलों को उसने कई बार परास्त किया तथा पूर्वी मालवा में शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। उसने 1711 ई० तक शासन किया।

(द) सिक्खों का विद्रोह- औरंगजेब की धार्मिक नीति का ही परिणाम था कि सिक्खों ने भी उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सिक्खों के गुरु तेगबहादुर ने काश्मीर में हिन्दुओं को मुगल साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह के लिए भड़काया। तत्पश्चात् उन्होंने प्रत्यक्ष विद्रोह किया। परन्तु मुगलों ने उन्हें कैद कर लिया तथा दिल्ली लाकर उनका सिर कटवा दिया। इस घटना ने विद्रोह की अग्नि में घी का काम किया। अब सिक्खों ने निरन्तर विद्रोह प्रारम्भ कर दिये। तेगबहादुर के पुत्र गुरु गोविन्द सिंह ने विद्रोहियों का नेतृत्व ग्रहण किया। विद्रोह दवाने के लिये सरहिन्द में एक विशाल सेना भेजी गई। सिक्खों ने वीरतापूर्वक मुगलों का सामना किया, परन्तु अन्त में उनकी पराजय हुई । गुरु गोविन्द सिंह के दो पुत्रों को मुगलों ने जिन्दा दीवार में चुनवा दिया। गुरु गोविन्द सिंह सदैव मुगलों से लड़ते ही रहे।

इन दुष्परिणामों के साथ ही हिन्दू कर्मचारियों को पदच्युत कर देने के फलस्वरूप उसे शासन के संचालन में कठिनाई उपस्थित हुई और शासन का ढाँचा दिन प्रतिदिन बिगड़ता गया।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति ने मुगलों के साम्राज्य को कमजोर बना दिया। राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासकीय सभी क्षेत्रों में उसकी नीति का बुरा प्रभाव पड़ा और मुगल साम्राज्य की नींव हिलने लगी प्रो. एस. आर. शर्मा का मत है कि औरंगजेब हिन्दू विरोधी नीति का अनुसरण न करता और हिन्दुओं पर अत्याचार न करता तो उसका शासन काल अत्यन्त वैभवशाली माना जाता ।

औरंगजेब का चरित्र और उसका मूल्यांकन

औरंगजेब मुगल काल का ऐसा बादशाह है जिसकी विभिन्न विद्वानों ने बहुत अधिक बुराई की है। इसका कारण यह नहीं है कि औरंगजेब में वीरता और साहस नहीं था बल्कि उसका क्रूरता और धार्मिक असहिष्णुता ने उसे विभिन्न इतिहासकारों का कोपभाजन बनागा। खफी खां ने लिखा है, ‘यद्यपि औरंगजेब में लगन, तपस्या, न्यायप्रियता, साहस, सहनशीलता और ठोस निर्णायक बुद्धि थी, फिर भी प्रत्येक योजना जो उसने बनाई निरर्थक सिद्ध हुई और जो भी कार्य उसने करना चाहा वह देर से हुआ और अन्त में उसको उसमें असफलता प्राप्त हुई।”

चरित्र के गुण- औरंगजेब अत्यन्त पवित्र और सादगी पसन्द व्यक्ति था। सुरा और अन्य दुर्व्यसनों से वह रहित था। वह अत्यन्त धर्म-परायण, क्रियाशील और न्यायप्रिय था। उसकी न्यायप्रियता के विषय में ओविष्टन ने लिखा है, “औरंगजेब महान् न्याय का सागर है।” एक सेनापति के रूप में उसने अपनी वीरता और योग्यता का परिचय दिया। अपने सैनिक गुणों के कारण ही वह मुगल सिंहासन को प्राप्त कर सका तथा दक्षिण के राज्यों पर उसने विजय प्राप्त की।

चरित्र के दुर्गुण- औरंगजेब एक हृदयहीन सम्राट था। उसमें प्रेम और दया का अभाव था। अपने भाइयों का उसने क्रूरता से दमन किया और अपने पिता को कारावास में बन्द किया। संगीत और नृत्य आदि से भी उसे कोई प्रेम न था। वह अत्यन्त संदेहशील था। उसे अपने किसी पदाधिकारी का विश्वास नहीं था और अपने पुत्रों को भी वह अपने से दूर रखता था। लेनपूल महोदय ने लिखा है, “औरंगजेव संदेहशील व्यक्ति था। वह किसी पर विश्वास नहीं रखता था न किसी से अधिक मिलना पसंद करता था इसीलिए उसकी कर्तव्यपरायणता, धार्मिकता, न्याय-प्रियता एवं प्रजाहित-चिन्तन आदि गुणों का प्रजा के हृदय में कोई मूल्य नहीं था।

आर्थिक दृष्टि से वह अत्यन्त असहिष्णु था। उसने हिन्दुओ को बहुत अधिक तंग किया। सिक्खों के साथ दुर्व्यवहार किया और शिया मुसलमानों पर भी अत्याचार किया। उसकी धर्मान्धता उसकी असफलता का बहुत बड़ा कारण था।

औरंगजेब के शासन काल में शासन का पतन हुआ। जनता दुखी रहती थी और साहित्य एवं कला का हास हुआ। एक विद्वान् ने लिखा है, “सांस्कृतिक क्षेत्र में औरंगजेब का काल शून्य था। साहित्य, कला और संगीत का बहुत अधिक उपकार होता यदि औरंगजेब जैसा कट्टरपंथी शासक दिल्ली की गद्दी पर न बैठा होता।”

संक्षेप में कह सकते हैं कि सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी दृष्टियों से औरंगजेब असफल रहा और मुगल वंश पर उसने बहुत बड़ा धब्बा लगाया। एक विद्वान् ने बड़े स्पष्ट शब्दों में लिखा है-

“Aurangzeb was a curse for the glorious Mughal Dynasty.”

यह ठीक है कि औरंगजेब असफल रहा परन्तु उसकी असफलता में भी उसकी शान थी। आज चाहे हम उसको अत्याचारी, और बुरा शासक बतायें, परन्तु जीवन-काल में उसने बड़ी शान से राज्य किया और सदैव इस्लाम धर्म के प्रति वफादार रहा । लेनपूल ने बड़े सुन्दर शब्दों में लिखा है-

“Aurangzeb’s life had been a vast failure, indeed but he had failed grandly.”

-Lanepool

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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