इतिहास अध्ययन का महत्त्व | इतिहास अध्ययन का विरोध | इतिहास अध्ययन का क्या महत्त्व है | अध्ययन का विरोध क्यों किया जाता है

इतिहास अध्ययन का महत्त्व | इतिहास अध्ययन का विरोध | इतिहास अध्ययन का क्या महत्त्व है | अध्ययन का विरोध क्यों किया जाता है

इतिहास अध्ययन का महत्त्व

प्रायः कहा जाता है कि अतीत की अपेक्षा वर्तमान में दिल्लचस्पी लेनी चाहिए। किन्तु, यह दृष्टिकोण उपयुक्त नहीं। यह ठीक है कि वर्तमान महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यह कहना अनुपयुक्त है कि अतीत महत्त्वहीन है। वस्तुतः हमारी आज की समस्याओं का जन्म अतीत में ही हुआ था। हम उन समस्याओं का कोई निदान नहीं ढूँढ़ सकते जब तक कि यह न जान लें कि अतीत में उनका जन्म कैसे हुआ था।

प्रो० गुस्तावसन (Gustavson) के शब्दों में, “यहाँ तक कि वैद्य भी मरीज के पिछले रोग का हवाला जानकर ही कोई उपचार तय करता है। जिस तरह आदमी का व्यक्तित्व उसके अनुभव को बतलाता है उसी प्रकार राष्ट्र और संस्थाओं का वर्तमान रूप और व्यवहार उसके अतीत को बतलाता है।” अतः इतिहास की एक उपयोगिता यह है कि यह हमारी आज की समस्याओं को सुलझाने में सहायक होता है। इसका एक दूसरा महत्त्व भी है। यह बौद्धिक संतोष प्रदान करता है। जैसा कि प्रो० इल्टन का कहना है, “अतीत को समझने में एक उच्चकोटि का भावनात्मक संतोष प्राप्त होता है।” इतिहास अध्ययन का एक तीसरा महत्त्व व्यक्ति के अनुभव क्षेत्र में वृद्धि करना है। इसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के मानवीय आचरण, एक का दूसरे से सम्बन्ध, परिस्थितियों और शर्तों की अन्तक्रियाओं तथा उनका व्यक्ति और समाज के भाग्यों पर प्रभाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। ऐतिहासिक ज्ञान हमें वर्तमान को समझने में मदद करता है और भविष्य के लिए मार्ग-दर्शन करता है। यह हमारी तार्किक प्रवृत्ति को उन्नत करता है। इतिहास सत्य की खोज करने में विवेकपूर्ण अतीत की संरचना करता है।

आर0 जी0 कॉलिंगवुड ने इतिहास की उपयोगिता पर बल देते हुए बतलाया है, “मानव जीवन के लिए इतिहास के पाठ बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। कभी-कभी इसकी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है। अतः घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है। यह कम से कम इतना तो बता ही देता है कि कौन-सी घटना की संभावना है।”

सर टॉमस मुनरो ने कहा है, “सम्पूर्ण तत्वमीमांसा की प्रकाशित जिल्दों की अपेक्षा इतिहास के कुछ पन्ने मानव-मस्तिष्क को सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करते हैं।”

इतिहास के महत्त्व पर बल देते हुए लेकी ने कहा है, “वह जो अतीत की सही प्रवृत्ति और प्रकृति को समझने में सफल रहा है, अपने युग के मूल्यांकन करने में अधिक भूल नहीं कर सकता।”

बोदां के अनुसार इतिहास का अध्ययन कई दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। प्रथम, यह विश्वजनीन प्राकृतिक नियमों की खोज करता है जिस पर मानव व्यवहार आधारित है। द्वितीय, यह मानव इतिहास के सिद्धांतों की एक विवेकपूर्ण हद तक भविष्यवाणी करता है। तृतीय, विश्व को इकाई मानकर यह मानव इतिहास को समझने में मदद करता है।

इतिहास-अध्ययन का विरोध-

यद्यपि इतिहास अध्ययन के अनेक लाभ हैं फिर भी कुछ विद्वान् इसकी उपयोगिता को स्वीकार नहीं करते, वे यह मानते हैं कि इतिहास के अध्ययन से युवकों में देशभक्ति की भावना आती है फिर भी वे कुछ आधार पर इतिहास के अध्ययन का विरोध करते हैं। प्रथम, वर्तमान परिस्थितियाँ अतीत की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न हैं। अतः अतीत के अध्ययन का कोई व्यावहारिक लाभ नहीं। इतिहासकार अतीत के अध्ययन में ही अधिक समय लगा देता है और वर्तमान की उपेक्षा करता है। द्वितीय, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी  इतिहास का अध्ययन वेकार है क्योंकि यह पारलौकिक की अपेक्षा लौकिक घटनाओं का उल्लेख करता है। इसका काम शाश्वत सत्यों की खोज करना नहीं है। तृतीय, दार्शनिक आधार पर भी इतिहास का अध्ययन अर्थहीन है। इतिहासकार का दृष्टिकोण वस्तुपरक नहीं होता। उसका सम्बन्ध ऐतिहासिक घटनाओं से होता है। वह आत्मा, ईश्वर आदि दार्शनिक तथ्यों की खोज नहीं करता। दार्शनिक तो पारलौकिक विषयों पर भी चिन्तन करता है। चतुर्थ, अतीत के अध्ययन के रूप में भी इतिहास का सन्देहात्मक मूल्य है। कारण यह कि जो अतीत की घटनाओं को लिखता है वह किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो। यदि हम यह भी मान लें कि वह निष्पक्ष व किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है तो जिन अतीत की घटनाओं को वह लिखता है, उसका उसने स्वयं पर्यवेक्षण तो किया नहीं है। उसे तो दूसरे व्यक्ति के साक्ष्य पर विश्वास करना है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक घटना को विभिन्न इतिहासकार विभिन्न तरह से पेश करते हैं। अतः ऐतिहासिक तथ्य सन्देहजनक हो जाते हैं और इतिहास के अध्ययन का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।

किन्तु, उपर्युक्त आपत्तियाँ सही नहीं हैं। वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप कुछ ऐसे तकनीकों का विकास हुआ है जिनसे हम अतीत की घटनाओं तथा प्राचीन रेकार्ड की सत्यता की जाँच कर सकते हैं। प्रो० कोईन के शब्दों में, “यद्यपि साक्षी गिर सकते हैं, परम्पराएँ भ्रष्ट हो सकती हैं और इतिहासकार तरफदारी कर सकता है। तथापि हम लोग वैकल्पिक स्रोतों के आलोचनात्मक परीक्षण द्वारा भूलों की जाँच कर सकते हैं और हम अपने सम्भावित सन्देहों की सीमाओं का निर्धारण कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप हम ऐतिहासिक तथ्यों की सत्यता की जाँच कर सकते हैं।” कोईन आगे कहता है, “युवावस्था के हमारे अनुभव, भाषाएँ जो हमने सीखी हैं, जिन परिस्थितियों में हमारा. पालन-पोषण हुआ है आदि हमारे आचरण के अंग बन जाते हैं तथा आम परम्पराएँ जो हमारे चरित्र का निर्माण करती हैं। वर्तमान की क्रियाशील शक्तियाँ हैं। इस दृष्टिकोण ने वर्तमान को समझने के लिए इतिहास एक उत्तम मार्ग-दर्शक है।

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