शिक्षाशास्त्र / Education

रेडियो | भारत में शैक्षिक रेडियो का विकासात्मक इतिहास | रेडियो के उपयोग | रेडियो द्वारा शिक्षण | शैक्षिक समाचारों में रेडियो

रेडियो | भारत में शैक्षिक रेडियो का विकासात्मक इतिहास | रेडियो के उपयोग | रेडियो द्वारा शिक्षण | शैक्षिक समाचारों में रेडियो

रेडियो

आधुनिक संचार माध्यमों में रेडियो सबसे सस्ता एवं सर्वसुलभ माध्यम है। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की तुलना में इसका विस्तार क्षेत्र भी अधिक व्यापक है। इसके विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के प्रसारण से विभिन्न आयु वर्ग तथा दर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग लाभान्वित होते हैं। इसकी उपयोगिता को देखते हुए शैक्षिक उद्देश्यों के लिए इसका अधिक से अधिक प्रयोग किया जाने लगा है। इसके प्रयोग से एक कुशल एवं प्रभावशाली शिक्षक को बहुत अधिक लोग एक साथ सुन एवं समझ सकते हैं जबकि कक्षागत शिक्षण से केवल थोड़े छात्र (40-50 तक) ही लाभ उठा पाते हैं। इसके अतिरिक्त रेडियो के माध्यम से सुनना लोगों को रुचिकर भी लगता है। अतः रेडियो के माध्यम से अनुदेशन प्रदान करने से शिक्षार्थी में अधिगम के प्रति एक नया उत्साह एवं खुशी उत्पन्न होती है। रेडियो के माध्यम से छात्रों में शब्दों के प्रयोग, एकाग्रचित्तता, सूक्ष्मता से सुनना, बोलने एवं वार्तालाप में विश्वासपूर्ण दृढ़ता आदि क्षमताओं का विकास किया जा सकता है। अतः इसे औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षा के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। इसके माध्यम से स्कूली छात्रों के साथ-साथ दूसरे बच्चों, महिलाओं, प्रौढ़ों, ग्रामीणों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य कर्मियों आदि के लिए भी उपयुक्त कार्यक्रम प्रसारित किये जा सकते हैं। इन कार्यक्रमों से शैक्षिक अवसरों की समानता एवं उनके विस्तार में सहायता प्राप्त होती है।

भारत में शैक्षिक रेडियो का विकासात्मक इतिहास

बीसवीं शताब्दी के महान वैज्ञानिक आविष्कारों में ‘चुम्बकीय विद्युत तरंगों’ (Electromagnetic Wave) द्वारा बिना किसी तार के मनुष्य की आवाज को लम्बी दूरी तक सम्प्रेषित कर सकने का आविष्कार बहुत अधिक महत्व रखता है। इस आविष्कार के व्यावहारिक रूप अर्थात् रेडियो ने सम्प्रेषण/संचार के क्षेत्र में एक नये युग का प्रारम्भ किया है।

भारत में 23 जुलाई, 1927 ई. को लार्ड इरविन द्वारा बम्बई में पहले रेडियो स्टेशन का उद्घाटन किया गया तथा इसके एक महीने के पश्चात् 26 अगस्त, 1927 ई. को कलकत्ता रेडियो स्टेशन ने कार्य करना प्रारम्भ किया। बाद में जनवरी, 1936 ई. में दिल्ली में रेडियो स्टेशन की स्थापना हुई। इसके पश्चात् इस नेटवर्क का तीव्र गति से विस्तार हुआ है। यह विस्तार रेडियो केन्द्रौ की संख्या, ट्रान्समीटर्स की संख्या एवं ट्रान्समीटरों की शक्ति क्षमता में वृद्धि के रूप में तो हुआ ही है, साथ ही रेडियो सम्प्रेषण एवं इलैक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय तकनीकी विकास भी हुआ है। वर्तमान समय में आल इण्डिया रेडियो नेटवर्क विश्व में सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क है। अपनी तीन स्तरीय सेवाओं (राष्ट्रीय क्षेत्रीय एवं स्थानीय) के द्वारा यह नेटवर्क देश की लगभंग 95 प्रतिशत जनसंख्या को आंच्छादित कर रहा है। इन सेवाओं के द्वारा देश की सम्पूर्ण जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। आल इण्डिया रेडियो (आकाशवाणी) क्षेत्रीय एवं स्थानीय सेवाओं के विस्तार पर अधिक बल दे रहा है जिससे प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक चैनेल अवश्य उपलब्ध हो सके।

भारत में रेडियो द्वारा शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रसारण का प्रारम्भ रेडियो केन्द्रों की स्थापना के साथ ही माना जा सकता है किन्तु व्यवस्थित रूप में शीक्षक कार्यक्रमों का प्रसारण कलकत्ता रेडियो केन्द्र द्वारा 1937 ई. में प्रारम्भ किया गया इस प्रकार 1937 ई. से भारत में शीक्षक रेडियो की शुरूआत हुई।

शैक्षिक रेडियो के विकास के दो पक्ष हैं-

(i) प्रसारण नेटवर्क की स्थापना, तथा

(ii) विशिष्ट शैक्षिक कार्यक्रमों की तैयारी एवं निर्माण।

प्रसारण नेटवर्क की स्थापना के सम्बन्ध में आकाशवाणी (A.LR) द्वारा देश की लगभग सम्पूर्ण जनसंख्या तक अपनी पहुँच बनाकर अत्यधिक सराहनीय एवं उल्लेखनीय का्ये किया गया है। भारत का आल इण्डिया रेडियो नेटवर्क विश्व का सबसे बड़ा रेडियो नेटवर्क है। यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है।

रेडियो एवं टेलीविजन के उपयोग

रेडियो एवं टेलीविजन शिक्षा के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। इनके मूल्यों का वर्णन निम्न प्रकार से कर सकते हैं-

  1. रेडियो और टेलीविजन विद्यार्थियों को जीवन की वास्तविकताओं से परिचित कराते हैं। उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान विद्यार्थियों के दृष्टिकोण को विस्तृत करता है, क्योंकि उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में सूचना मिलती है और जीवन की ऐसी यथार्थताओं से परिचय प्राप्त होता है जो कक्षा के कमरे में कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता।
  2. रेडियो और टेलीविजन प्राथमिक सूचना प्रदान करते हैं । विद्यार्थी ऐसे व्यक्तियों की वाणी एवं चित्र देख लेते हैं जो देश के लिए अथवा उनकी रुचि के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  3. रेडियो और टेलीविजन विभिन्न क्षेत्रों में नेताओं से परिचय प्रदान करते हैं।
  4. यह दोनों विद्यार्थियों को अभिप्रेरणा देने के सबसे अच्छे साधन हैं।
  5. यह दोनों विद्यार्थियों को सुनने और नोट कर लेने के अवसर प्रदान करते हैं।
  6. यह दोनों विद्यार्थीयों को भाषा के सम्बन्ध में अच्छे स्तर प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं।
  7. यह दोनों अभिरुचियों को स्थापित करने में बहुत सहायक होते हैं।
  8. यह शिक्षण के स्तर स्थापित करके और कार्य में एकत्व लाने में भी सहायक होते हैं।
  9. यह शिक्षा में अधिक रुचि की ओर भी प्रेरणा प्रदान करते हैं।
  10. यह वांछित अभिवृत्तियाँ निर्माण करने के अवसर प्रदान करते हैं जिनके कारण विद्यार्थी अपने अवकाश के समय का सदुपयोग करना सीख जाता है।

रेडियो और टेलीविजन द्वारा शिक्षण-

रेडियो और टेलीविजन द्वारा कक्षा में शिक्षण दिया जा सकता है। इस प्रकार से दिये जाने वाले शिक्षण में अग्र पदों पर ध्यान देना चाहिए-

(1) जिस विषय पर बालकों को रेडियो कार्यक्रम सुनाना है या टेलीविजन पर दिखाना है उसके लिए उनको पूर्णरूप से तैयार कर लिया जाये। शिक्षक उन्हें कुछ पुस्तकें बता सकता है जो वह पढ़कर आये या कुछ पूर्व-ज्ञान अपनी ओर से दे सकता है।

(2) कार्यक्रम प्रारम्भ होने से पहले कक्षा का वातावरण बना दिया जाये ताकि प्रारम्भ की वार्ता या दृश्य बिना ध्यान दिये हुए न गुजर जाये ।

(3) कार्यक्रम के समय विद्यार्थी नोट्स लेते रहें।

(4) शिक्षक कार्यक्रम के पश्चात् विद्यार्थियों की कठिनाइयों को दूर करने को तैयार

(5) यदि शिक्षक समझता है कि कार्यक्रम का कोई भाग विद्यार्थीयों की समझ से बाहर है तो वह उसकी व्याख्या कर दे।

(6) कार्यक्रम के पश्चात् उसका मूल्यांकन कराया जाये। विद्यार्थियों से अपने विचारों को प्रकट करने को कहा जाए।

(7) शिक्षक तथा विद्यार्थियों द्वारा कार्यक्रम को अधिक प्रभावशाली बनाने के सुझाव दिये जायें।

अब अनेक विद्यालयों में ‘बन्द चक्र टेलीविजन’ का प्रयोग हो रहा है। अब ऐसे भी विकास हो गये हैं कि तुरन्त चित्र बनाकर उसे दिखाया जा सकता है। वीडियो-टेप द्वारा विद्यार्थी का उपलब्धि का तुरन्त पता लगा लिया जाता है। कक्षा के कमरे की फिल्म खीचकर जो शिक्षण में त्रुटियां होती है, उनका भी तुरन्त पता लगा लिया जाता है। इस प्रकार तकनको आज शिक्षण प्रणाली में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला रही है।

शैक्षिक समाचारों में रेडियो

वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, तकनीकी विकास तथा भूमण्डलीकरण तत्त्व के परिणामस्वरूप शिक्षा तथा शिक्षा प्रबन्ध का रूप परिवर्तित होता जा रहा है। जन शिक्षा (Mass Education) का भी सम्पूर्ण शिक्षा पर प्रभाव पड़ा है। औद्योगीकरण का तत्त्व भी प्रभावपूर्ण है। जनसंचार तथा यातायात के साधनों ने जनसंख्या की गतिशीलता बढ़ाई है। ज्ञान का विस्फोट अति तीव्र गति से हो रहा है। इन सब कारणों से जो नई तकनीकें तथा सिद्धान्त शिक्षा के विभिन्न पक्षों को प्रभावित कर रहे हैं, उन्हें नवाचार कहते हैं।

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जो आज नवीन तकनीक हैं, वे भविष्य में पुरानी तकनीकी बन सकती हैं। आज नयी तकनीक वह है जो पहले नहीं थी। किसी जमाने में मैजिक लालटेन को नई तकनीक माना जाता था, परन्तु आज वह नई नही रह गई है। उसका स्थान नई तकनीको ने ले लिया है।

शिक्षा में दूरदर्शन का प्रयोग जब आरम्भ हुआ तो इसे नई तकनीक कहा जाता था।

इसी प्रकार तकनीक नई है अथवा पुरानी-इसका आधार उपलब्ध साधनो पर निर्भर करता है। विकासशील देशों, विकसित देशों तथा अति पिछड़े देशों में ‘नई तकनीक ‘ सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं।

शीघ्र परिवर्तनशील परिस्थितियों में ‘नई तथा पुरानी’ अवधारणा में बहुत अन्तर आ जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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