समाज शास्‍त्र / Sociology

सामूहिक सौदाकारी का अर्थ | सामूहिक सौदेबाजी की विषयवस्तु

सामूहिक सौदाकारी का अर्थ | सामूहिक सौदेबाजी की विषयवस्तु | Meaning of collective bargaining in Hindi | Subject matter of collective bargaining in Hindi

सामूहिक सौदाकारी का अर्थ

(Meaning of Collective Bargaining)

औद्योगीकरण का आरम्भ में ‘सामूहिक सौदाकारी’ का प्रयोग उद्योग की स्वतंत्रता के रूप में किया जाता था। परन्तु औद्योगीकरण की व्यापकता के साथ-साथ इस सिद्धांत की व्यापकता बढ़ गयी है। अतः वर्तमान समय में सामूहिक सौदाकारी श्रमिक और मालिकों के मध्य होने वाली शर्तों की स्वतन्त्रता के विरुद्ध है। लुइत्जे ने व्यक्ति की स्वरुचि को प्रधानता दी है और कहा है कि व्यक्ति अपनी भलाई स्वयं स्वयं भली प्रकार समझता है। परन्तु अनेक विद्वान यह मानते हैं कि व्यक्तियों को स्वरुचि में स्वतन्त्रता के स्थान पर निराशा ही मिलेगी। लुइत्जे का विरोध करने वालों में कार्ल मार्क्स और एंजिल्स के नाम प्रमुख हैं और यही कारण है कि सामूहिक सौदाकारी में मालिकों और श्रमिकों के मध्य अनेक कानून बनाये गये हैं।

परिभाषा (Definition)

विद्वानों ने सामूहिक सौदाकारी की अनेक परिभाषाएं दी है। इस सम्बन्ध में निम्न परिभाषायें प्रमुख है।-

(1) रिचार्डसन का मत है, “सामूहिक सौदेबाज का उदय तब होता है जब श्रमिकों में से एक सदस्य सौदेबाजी एक इकाई की हैसियत से नियोक्ताओं के समूह के सम्मुख कार्य की दशाओं के विषय में समझौता करने को प्रस्तुत करता है।

(2) इसी प्रकार हार्बसन और कोलमैन के मतानुसार, “सामूहिक सौदाकारी वह प्रक्रिया या ढंग है जिसमें रोजगार की शर्तें, प्रबन्ध और श्रमिकों के प्रतिनिधियों के माध्यम से तय की जाती है।”

सामूहिक सौदाकारी की विषयवस्तु

(Content of Collective Bargaining)

वास्तव में सामूहिक सौदाकारी की प्रक्रिया विभिन्न विषयों में काम करती है। परन्तु सरलता के लिए इन रूपों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-

(1) स्वीकार-पत्र के क्षेत्र और उद्देश्य के लिए इसमें स्वीकार-पत्र की मंजूरी का उद्देश्य और इसकी अवधि निश्चित की जाती है। इस मद में यह भी सम्मिलित है कि बातचीत के मध्य हड़ताल या तालाबन्दी नहीं हो सकती है।

(2) दोनों पक्षों के पद और अधिकार- इस पद से यह विधान सम्बन्धित हैं, जो कि संगठन को मान्यता देने, संगठन के कार्य और निर्णय देने के प्रकारों से सम्बन्धित हैं।

(3) क्षतिपूर्ति की राशि और इसके प्रकार इस पद के भुगतान और वेतन के वह सभी तत्त्व विद्यमान रहते हैं, जो संघों के व्यवस्थापन से, पेन्शन से, सवैतनिक छुट्टियों से, पद से हटाने से तथा क्षति के भुगतानों से सम्बन्धित हैं।

(4) सामान्य कार्य के विधान और अवसर- यह विषय रिक्त स्थानों की पूर्ति से सम्बन्धित है, इसमें तरक्की, बदली, दुबारा नियुक्ति आदि से सम्बन्धित नियम आपसी सुलहनामों द्वारा बनाये जाते हैं।

(5) कार्य तथा कार्य करने की स्थितियाँ- यह सुचारु रूप से कार्य करने में सम्मिलित हैं। अतः यह कार्य की गति, समय, व्यक्ति की प्रकृति, किसी एक कार्य में लगे हुए कर्मचारियों की संख्या और कार्य की स्थिति जैसे स्वास्थ्य रक्षा, सफाई, हवा और दिनभर के कार्य की लम्बाई एवं सप्ताह में कुल कार्य आदि से सम्बन्ध रखता है।

(6) स्वचालन- वर्तमान समय में कर्मचारियों का जीवन स्तर उन्नत करने के लिए तथा साथ-साथ उत्पादन को बढ़ाने के लिए स्वचालन पर अधिक बल दिया जा रहा है। परन्तु स्वचालन के फलास्वरूप, कर्मचारी नौकरी से वंचित हो जाते हैं। अतः अनेक नयी समस्याओं का उदय होता जा रहा है। इस प्रकार स्वचालन से पैदा होने वाली समस्याओं को भी आजकल सामूहिक सौदाबाजी का ही विषय मान लिया गया है।

जापान में सामूहिक सौदाकारी में निम्नलिखित मामलों को सम्मिलित किया गया है-

(1) कार्य और कार्य की स्थितियाँ, (2) कार्य के नियम और विधान, (3) छुट्टियाँ, (4) अतिरिक्त समय और वेतन, (5) तरक्की, पदोन्नति, पदच्युति, और सफाई आदि से सम्बन्धित नियम, (6) कष्टों के निवारण के लिए यन्त्र, (7) रक्षा अभ्यास, तथा (8) सामूहिक सौदाकारी के विकास और पुनः वृत्ति की शर्ते

जापान के अलावा फेडरल जनतान्त्रिक जर्मनी के रसायनिक उद्योगों में सन् 1953 में सामूहिक सौदाकारी में निम्नलिखित विषय सम्मिलित किये गये थे-

(1) साधारण श्रम के घण्टे,

(2) अतिरिक्त समय,

(3) छुट्टियों के दिन या रविवार के दिन किया गया कार्य,

(4) श्रम के घण्टे और कर्मचारियों की कार्य करने की इच्छा,

(5) न्यून समय,

(6) कार्य के समय चोट,

(7) नियमित श्रम के घण्टों के झगड़ों का निपटारा,

(8) खतरनाक एवं अस्वास्थकर कार्यों के लिए बोनस,

(9) वेतन और वेतन श्रेणी,

(10) सवेतन अवकाश,

(11) परिणामों का भुगतान, तथा

(12) सलाह देने वाली एवं समझौता समितियों के कार्य और पद्धतियाँ।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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