हिन्दी / Hindi

काव्य में बिम्ब-विधान | काव्य बिम्ब का कार्य या उद्देश्य | बिम्ब के गुण एवं तत्व | बिम्बों का वर्गीकरण

काव्य में बिम्ब-विधान | काव्य बिम्ब का कार्य या उद्देश्य | बिम्ब के गुण एवं तत्व | बिम्बों का वर्गीकरण

काव्य में बिम्ब-विधान

‘बिम्ब-विधान’ काव्य-शिल्प का आधुनिक सिद्धान्त है। प्राचीन भारतीय आचार्य ने काव्य की विवेचन करते हुए अपने सिद्धान्तों में कहीं भी ‘बिम्ब’ को काव्य-विवेचन का आधार नहीं बनाया है। पाश्चात्य काव्य जगत में बिम्ब के सम्बन्ध में पर्याप्त चर्चा है। काव्य में बिम्ब-विधान का अर्थ-

बिम्ब अंग्रेजी शब्द इमेज (Image) का पर्यायवाची है। यह शब्द अपने आप में बड़ा व्यापक है। साधारणतः विम्व शब्द का प्रयोग छाया, प्रतिच्छाया, अनुकृति आदि के रूप में होता है। अंग्रेजी कोश में भी बिम्ब का किसी वस्तु की छाया, अनुकृति, सादृश्यता अथवा समानता माना गया है। विम्ब शब्द का बड़ा व्यापक प्रयोग होता है। मनोविज्ञान, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में इसका विशेष महत्त्व है।

मनोविज्ञान में विम्ब शब्द से मानसिक पुनर्निर्माण का अर्थ लिया जाता है। विश्व-कोश के अनुसार ‘बिम्ब’ चेतन स्मृतियाँ जो विचारों की मौलिक उत्तेजना के अभाव में इस विचार को सम्पूर्ण या आंशिक रूप में प्रस्तुत करती हैं।

आधुनिक कविता के अध्ययन में बिम्ब का प्रयोग आधुनिक है। आधुनिक मानव की वैज्ञानिक दृष्टि, अन्वेषण की प्रवृत्ति, निरन्तर जीवन और जगत् की गहन जटिलताओं को खोलने की प्रवृत्ति, बाह्य यथार्थ के प्रति भावात्मक प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति इन सब ने अम, कल्पना के स्थान पर प्रत्यक्ष ठोस अनुभव को आधार बनाकर काव्य में बिम्बों की खोज शरू की। अमेरिकी विचारक जोजेफाइन माइल्स के अनसार, ‘बिम्ब सिद्धान्त का आरम्भ उस समय से मानना चाहिए जब लॉक और ह्यूम जैसे इन्द्रियानुभववादी दार्शनिक ने तर्क और अनुमान की अपेक्षा वस्तु की प्रत्यक्ष संवेदना को अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण सिद्ध किया। काव्य के क्षेत्र में मूर्त भावना के स्थान पर मूर्त ऐन्द्रिय-चित्रों अथवा बिम्ब-विधान का आग्रह इसी क्रान्तिकारी दार्शनिक स्थापना का परिणाम था।’

कविता के विकास के साथ-साथ उसके मूल्यांकन के आधार और रसास्वादन की दिशा में भी परिवर्तन अवश्यम्भावी है। कविता का उद्देश्य सौन्दर्य बोधात्मक आनन्द की उपलब्धि होने से इसके मूल्यांकन के लिए ऐसे मूल्यों की खोज आवश्यक रहा है जिनसे काव्य के दोनों पक्षों-विषयवस्तु और रूप को ठीक ठीक आँका जा सके। सामान्यतः सौन्दर्य बोधात्मक आनन्द को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है सन्दर्भ- सापेक्ष आनन्द और सन्दर्भ-निरपेक्ष आनन्द। पहले प्रकार के आनन्द में इस प्रकार की भौतिकता, ऐतिहासिकता नहीं होती। उसमें काव्य का अपना लय, संगीत, गठन और लालित्य ही प्रमुख होता है। इन दोनों प्रकार के विरोधी तत्त्वों को मिलाने का कठिन कार्य-मतूल के रूप में प्रतिमान को करना पड़ता है। इस दृष्टि से बिम्ब-विधान एक ऐसी व्याख्यात्मक प्रतिमान है जिसका सम्बन्ध विषय-वस्तु और रूप दोनों से स्थापित है भाग होने से तथा सम्प्रेषित अनुभूति का मूर्तवाहक होने के कारण बिम्ब काव्य की रचना प्रक्रिया का एक ऐसा केन्द्र बिन्दु है जिसमें काव्य का बाह्य और आभ्यान्तर विषय-वस्तु और रूप दोनों समाहित हो जाते हैं।

एच० कुम्ब्स (H. Coombes) ने ‘लिटरेचर एण्ड क्रिटिसिज्म’ में बिम्ब के सम्बन्ध में लिखा है, ‘एक अच्छे लेखक के हाथों ताजा तथा साफ-सुधरे बिम्ब का सर्वोत्तम प्रयोग काव्यगत अर्थ को सघन, गम्भीर, स्पष्ट तथा समृद्ध बनाने के लिए होता है। एक सफल बिम्ब से हमें पता चलता है कि सन्दर्भित वस्तु पर लेखक की पकड़ कितनी मजबूत है। बिम्ब की सहायता से वह वस्तु को अत्यन्त संक्षिप्तता, स्पष्टता, शक्तिमत्ता तथा मितव्ययता के साथ प्रस्तुत करके हमारे ऊपर यथेष्ट प्रभाव उत्पन्न करने में सफल होता है। विशेष बात यह है कि बिम्ब का साधन-सामग्री अत्यधिक वायवीय तथा हमारे अनुभव जगत् से बहुत दूर नहीं होनी चाहिए अपितु ऐसी होनी चाहिए कि हमारे जीवन के ताने- बाने से किसी-न-किसी रूप में सम्बद्ध हो और तत्काल हमारे लिए संवेद्य हो।’

सी० डे0 लेविस के अनुसार, ‘एक प्रकार का भाव-गर्भित शब्द-चित्र ही काव्य बिम्ब है।’

सुजान के0 लेंगर के अनुसार, ‘बिम्ब ऐन्द्रिय माध्यम द्वारा आध्यात्मिक अथवा बौद्धिक सत्यों तक पहुंचाने का मार्ग है।’

श्रीमती सपर्जियन ने काव्य में बिम्ब के स्थान का विवेचन करते हुए बतलाया है कि कवि बिम्बों का नैसर्गिक रूप में प्रयोग करता है अर्थात् मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उसके अचेतन-मन की विलक्षणता को सूचित करते हैं। इसके आधार पर उनका निष्कर्ष है कि बिम्ब विधान के अध्ययन द्वारा कवि के व्यक्तित्व की विशिष्टता को उद्घाटित किया जा सकता है।

इसी प्रकार का निष्कर्ष प्रोफेसर क्लेमन विल्सन नाइट, सी0 डे0 लेविस, आर0 ए0 फाक्स, फ्रैंक करमोड आदि आलोचकों ने निकाला है। इन विद्वानों के अध्ययनों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ऐन्द्रियता बिम्ब का प्रथम और अन्तिम गुण है जिससे कवि अपने रागात्मक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति करता है। कवि की मौलिकता बिम्ब निर्माण में हैं। बिम्ब के कारण कवि वस्तु-जगत के भीतर एक अधिक गहरा और स्थायी संघटन देखता है। उसके बिम्ब विधान में एक प्रकार का संवेगात्मक तर्क होता है। अतः बिम्ब कभी भी एकान्त और स्वतः पूर्ण नहीं होता है। उस सन्दर्भ में धुंधले, बारीक और जीवन सूत्रों से उसका कलेवर बुना होता है। उदाहरण के लिए, अरुण यह मधुमय देश हमारा’ स्वतः बिम्ब निर्माण नहीं करता, जब तक कवि पूरा परिवेश को उपस्थित नहीं करता-

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।

सरस तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरु शिखा मनोहर,

छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कंकम सारा।

काव्य बिम्ब का कार्य या उद्देश्य-

काव्य-बिम्ब का प्रयोजन है वर्ण्य विषय को स्पष्ट बनाना, कवि और अनुभूति को तीव्र बनाना तथा वहीं अनुभूति पाठक अथवा श्रोता के मन में जागृत करना। आज का मानव जीवन और जगत् की जटिलताओं से त्रस्त हैं, कुण्ठाओं से ग्रस्त है। कवि स्वस्थ और ताजे बिम्वों का निर्माण करके इस अव्यवस्था की ओर अराजकता की व्यवस्था में बदल सकता है। इसीलिए बिम्बों की तुलना लेविन महोदय ने जादुई दर्पण से की है।

बिम्ब-विधान द्वारा अर्थ को स्पष्टता मिलती है, भाव को तीव्रता मिलती है, वस्तु को प्रत्यक्षता प्राप्त होती है तथा गुण को हृदय-संवेद्य बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, तुलसी की ये पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं-

कनक भूधराकार सरीरा। कुम्भकरण आवत रनधीरा।।

इसमें तुलसी ने एक स्वर्ण पर्वत का बिम्ब प्रस्तुत करके कुम्भकरण के वर्ण और आकार का एक प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार प्रसाद जी ने निम्न पंक्तियों से बिम्ब-विधान द्वारा की अमूर्त लज्जा भाव को मूर्त आकार प्रदान किया है क्योंकि लाज के उत्पन्न से ही नारी के कर्णमूल रक्ति हो उठते हैं-

कोमल किशोर सुन्दरता की मैं करती रहती रखवाली।

मैं वह हल्की-सी मसलन हूँ बनती कानों की लाली।

बिम्ब के गुण एवं तत्व-

जिस प्रकार निरन्तर प्रयोग से सिक्का घिस जाता है और उसकी चमक कम हो जाती है, उसी प्रकार निरन्तर प्रयुक्त होनेवाले बिम्ब भी घिस-पिट जाते हैं और उनकी चमत्कृत करने की शक्ति कम हो जाती है। अतएव पाठक कवि से यह अपेक्षा करता है कि नये-नये बिम्बों का प्रयोग करें। परिवर्तित होता हुआ जीवन, सभ्यता के नवीन पृष्ठ, जीव के नये मानदण्ड, विचारों के नये मोड़ आदि भी यह माँग करते हैं कि कविता में नवीन बिम्बों का प्रयोग हो। कहा भी गया है-

‘पुरातनता का यह निर्भीक सहन करती न प्रकृति पल एका’

बिम्ब का दूसरा महत्त्वपूर्ण गुण है उसका विषयानुरूप होना। यदि यह विषय के अनुरूप नहीं  है तो प्रभाव डालने में सफल नहीं होगा। बिम्ब और विषय के मध्य गहरा तालमेल होना ही बिम्ब को सफल बनाता है। अतः बिग्व और विषय की संगति इतनी सुन्दर हो कि उसे पढ़ते ही कवि के कौशल पर पाठक यह सोचने को बाध्य हो जाय कि इतने निकट सादृश्य पर आज तक मेरी दृष्टि क्यों नहीं गयी थी?

बिम्ब स्वाभाविक होना चाहिए। पहली दृष्टि से वह भले ही चमत्कारिक प्रतीत हो, परन्तु उसका स्थायी प्रभाव यह पड़े कि उसमें कृत्रिमता नहीं है, स्वाभाविकता है जो बिम्ब अलंकरण के लिए प्रयुक्त होते हैं, वे स्थायी प्रभाव नहीं डालते।

बिम्ब के अन्य आवश्यक गुण हैं-

ताजगी, सघनता तथा कवि की अनुभूति को पाठक तक संप्रेषित करने की क्षमता। विम्ब का प्रस्तुतीकरण इस प्रकार हो और वह ऐसे भाव का उद्घाटन करे जो पाठक के लिए नया हो। सघनता का अभिप्राय कम-से-कम शब्दों में विराट अनुभूति को व्यक्त करने से है। सफल बिम्ब योजना के लिए कवि का भाषा अबोध अधिकार होना वांछनीय है क्योंकि तभी उसकी अनुभूति पाठक की अनुभूति बन सकेगी।

बिम्बों का वर्गीकरण-

बिम्बों का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया गया है यथा अभिव्यंजना पद्धति की दृष्टि से, स्वरूप की दृष्टि से, प्रेरक अनुशस्ति की दृष्टि से तथा काव्यार्थ की दृष्टि से तथा ऐन्द्रियबोध की दृष्टि से है।

(क) अभिव्यंजना पद्धति की दृष्टि से- इस दृष्टि से बिम्ब के दो प्रकार किये गये हैं-

प्रत्यक्ष बिम्ब तथा अलंकत बिम्ब। प्रथम में कवि सार्थक शब्दों के प्रयोग से चित्र उपस्थित करता है जबकि द्वितीय में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों द्वारा ऐसा करता है। रीतिकालीन कवियों की बिम्ब योजना अधिकांशतः इसी प्रकार की है। बिहारी ने झरोखे से झाँककर जाती हुई नायिका का बिम्ब उपमा अलंकार द्वारा प्रस्तुत किया है-

सटपटाति-सी सीसामुखी मुख घूघट पट ढाँकि।

पावक झर-सी झमकि कै गई झरोखी झाँकि॥

प्रत्यक्ष बिम्ब का उदाहरण सांकेत की निम्न पंक्ति है जिसमें ‘आँधी’ शब्द के द्वारा दशरथ के शान्त पारिवारिक जीवन में हलचल मचा देनेवाली कैकेयी का चित्रण अंकित किया है-

विमाता बन गई आंधी भयावह।

(ख) स्वरूप की दृष्टि से- इस दृष्टि से विम्ब के चार भेद किये गये हैं-सरल बिम्ब, जटिल बिम्ब, अमूर्त बिम्ब तथा संयुक्त बिम्ब।

(ग) प्रेरक अनुभूति की दृष्टि से-इस दृष्टि से बिम्ब के चार भेद किये गये हैं-सरल बिम्ब, मिश्र बिम्ब, खण्डित बिम्ब तथा समाकलन बिम्ब।

(घ) काव्यार्थ की दृष्टि से- इस दृष्टि से बिम्ब के दो भेद एकल तथा संश्लिष्ट किये गये हैं।

(ङ) ऐन्द्रियबोध की दृष्टि से- इस आधार पर बिम्ब के दो भेद किये गये हैं- सूक्ष्म संवेदात्मक बिम्ब जो मन के विषय होते हैं तथा स्थूल संवेदनात्मक बिम्ब जो इन्द्रियों के विषय होते हैं। इसी आधार पर बिम्ब के दृश्य बिम्ब, प्राण बिम्ब, स्पर्श बिम्ब तथा श्रवण बिम्ब आदि भेद मिलते हैं। बिम्ब का एक सुन्दर उदाहरण देखिए-

‘उड़ी क्रौंचमाला कहाँ लेकर वन्नावार?

किस सुकृत का द्वार वह जहाँ मंगलाचार?’

स्पर्श विम्ब का उदाहरण-

‘ऊन सी यह धूप की गर्मी मुलायम

है खिला पाती न जीवन फूल को।’

ध्राण बिम्न का उदाहरण-

तपती जिन्दगी की उदास दोपहर में

तुम खस की खुशबू की तरह

कमरे में आई थीं।’

श्रवण बिम्ब का उदाहरण-

सनसनाती साँझ सूनी, वायु का कठला ठनकता।

झींगुरों की खंजनी पर, झाँझ सा बीहड़ झनकता।।’

इसी प्रकार निम्न पंक्तियों में प्रयुक्त बिम्ब एक साथ हमारे स्पर्श बोध, गति बोध एवं श्रवण बोध को प्रभावित करता है-

‘सर सर मर मर

रेशम के-से स्वर-भर,

घने नीम दल

लम्बे पतले चंचल

श्वसन स्पर्श से, रोम हर्ष से

हिल हिल उठते प्रतिपल।’

ऐन्द्रिय बिम्बों के सम्बन्ध में एक बात ध्यान देने योग्य है कि इनका प्रायः विपर्यय होता रहता है। जैसे ‘मधुर रूप’ में दृश्य के लिए आस्वाद बिम्बों का प्रयोग है, ‘कोमल-स्वर’ और ‘कटु-स्वर’ में श्रव्य के लिए क्रमशः स्पृश्य विम्ब का प्रयोग अनायास ही होता रहता है। इस विपर्यय का कारण यह है कि विभिन्न इन्द्रियां केवल एक ही चेतना के माध्यम-भेद हैं।

बिम्बों का विभाजन ऐन्द्रियता के अतिरिक्त अन्य आधारों पर किया जा सकता है। काव्य में ‘सामान्य’ की अपेक्षा ‘विशेष’ की खोजें ही बिम्बों के भिन्न-भिन्न भेदों को उत्पन्न करने की प्रेरणा देती है। काव्य का उद्देश्य सौन्दर्य वोधात्मक आनन्द को उत्पन्न करना है। यह आनन्द वस्तु और रूप आदि से ही उत्पन्न किया जा सकता है।

हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!