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राष्ट्र भाषा का सामान्य अर्थ | राजभाषा की परिभाषा | राजभाषा की संवैधानिक स्थिति | राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर

राष्ट्र भाषा का सामान्य अर्थ | राजभाषा की परिभाषा | राजभाषा की संवैधानिक स्थिति | राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर

राष्ट्र भाषा का सामान्य अर्थ है-

सम्पूर्ण राष्ट्र की भाषा। किसी भी देश में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, उन सभी को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं होता। राष्ट्र भाषा वही भाषा हो सकती है जो देश के विस्तृत भू-भाग में बोली जाती हो और बहुसंख्यक लोगों की भाषा हो।

जिस प्रकार किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता एवं स्वाभिमान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज एवं राजचिन्ह होता है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र की संस्कृति एवं भाषा भी उसके आत्म-गौरव और अस्मिता का प्रतीक होती है।

भारत बहु भाषा भाषी राष्ट्र है। विस्तृत भू-भाग वाले इस राष्ट्र में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर ब्रह्मपुत्र तक अनेक भाषाएँ एवं बोलियाँ बोली जाती हैं, किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से भारत ‘एक’ इकाई है। विभिन्नता में एकता भारत की दुर्बलता न होकर इसकी शक्ति है। कश्मीरी,सिन्धी, पंजाबी, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, उड़िया, असमिया, बंगला, तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम जैसी अनेक समृद्ध भाषाएँ भारतवर्ष में व्यवहृत होती है।

राजभाषा की परिभाषा

राज भाषा का अर्थ है संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी कामकाज की भाषा। किसी देश का सरकारी कामकाज जिस भाषा में करने का कोई निर्देश संविधान के प्रावधानों द्वारा दिया जाता है, वह उस देश की राज भाषा कही जाती है।

भारत के संविधान में हिन्दी भाषा को राज भाषा का दर्जा दिया गया है, किन्तु साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि अंग्रेजी भाषा में भी केन्द्र सरकार अपना कामकाज तब तक कर सकती है जब तक हिन्दी पूरी तरह राज भाषा के रूप में स्वीकार्य नहीं हो जाती।

राज भाषा की परिभाषा-डॉ० शिवराज वर्मा के अनुसार, “केन्द्रीय तथा प्रादेशिक सरकारें पत्र-व्यवहार, राजकाज तथा अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिए जिस भाषा का प्रयोग करती हैं, उसे राज भाषा कहते हैं । केन्द्र की राज भाषा को संघ भाषा’ भी कहा जाता है। प्रशासन तथा न्याय की भाषा होने के कारण, सरकारी दृष्टि से राज भाषा का बहुत अधिक महत्व होता है। राज भाषा का प्रयोग मुख्य रूप से चार क्षेत्रों-शासन, प्रशासन, न्यायपालिका और विधानमण्डलों में होता है।’

राजभाषा की संवैधानिक स्थिति

संविधान में राज भाषा सम्बन्धी अनुच्छेद भाग 17 के अध्याय 1 में धारा 343 से 351 तक है। धारा 343 में संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी को घोषित किया गया है। अंकों का प्रयोग वही रहेगा जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित है।

अनुच्छेद 344 राष्ट्रपति द्वारा राज भाषा आयोग एवं समिति के गठन से सम्बन्धित है। अनुच्छेद 345, 346, 347 में प्रादेशिक भाषाओं सम्बन्धी प्रावधान है।

अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, संसद और विधान मण्डलों में प्रस्तुत विधेयकों की भाषा के सम्बन्ध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

अनुच्छेद 349 में भाषा से सम्बन्धित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने की प्रक्रिया का वर्णन है।

अनुच्छेद 350 में जनसाधारण की शिकायतें दूर करने के लिए आवेदन में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा का उल्लेख है साथ ही यह भी बताया गया है कि प्राथमिक स्तर पर मातृ भाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए। इसी अनुच्छेद में भाषायी अल्पसंख्यकों के बारे में दिशा-निर्देश भी दिये गये हैं।

अनुच्छेद 351 में सरकार के उन कर्तव्यों एवं दायित्वों का उल्लेख है जिनका निर्वहन हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु उसे करना है।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति ने अधिसूचना संख्या 59/2/54 दिनांक 3/12/55 के द्वारा सरकारी प्रयोजनों के हेतु हिन्दी भाषा का आदेश 1955 जारी किया है, जिसके द्वारा अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों हेतु किया जा सकता है-

(i) जनता के साथ पत्र-व्यवहार के लिए।

(ii) हिन्दी-भाषी राज्यों के साथ पत्र-व्यवहार के लिए।

(iii) अन्य देश की सरकारों और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ पत्र-व्यवहार के लिए।

(iv) सन्धियों एवं ऋणों के लिए।

स्पष्ट है कि संविधान में हिन्दी को यह स्थान दिया गया है कि जो किसी राज भाषा को ञ्ञ् मिलना चाहिए, किन्तु साथ ही अंग्रेजी का विकल्प भी है। परिणामतः अंग्रेजी-भक्त अधिकारी हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी का प्रयोग निरन्तर कर रहे हैं और हिन्दी को उसका राज भाषा का दर्जा नहीं मिल सका है।

राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर

राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अन्तर निम्न प्रकार है-

(i) राज भाषा संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी कामकाज की भाषा होती है किन्तु राष्ट्र भाषा का संविधान से कोई सम्बन्ध नहीं है।

(ii) राष्ट्र भाषा देश के बहुसंख्यक लोगों की भाषा होती है जो एक विस्तृत भू-भाग में बोली- समझी जाती है। राज भाषा के लिए यह आवश्यक नहीं है।

(iii) राष्ट्र भाषा देश में बोली जाने वाली भाषा हो सकती है किन्तु राज भाषा के लिए यह आवश्यक नहीं है। मुस्लिम शासन काल में फारसी तथा अंग्रेजी शासन काल में अंग्रेजी राज भाषा थीं। जबकि ये दोनों ही विदेशी भाषाएँ थीं।

(iv) राष्ट्र भाषा का शब्द-भण्डार देश की विविध उपभाषाओं एवं बोलियों से समृद्ध होता रहता है। उसमें नयी शब्दावली जुड़ती रहती है किन्तु राज भाषा प्रायः मानक भाषा को बनाया जाता है जिसमें परिवर्तन-परिवर्द्धन बहुत कम होता है।

(v) राष्ट्र भाषा का सम्बन्ध राष्ट्र की आत्मा से रहता है। उसका प्रयोग करने में देशवासी

गौरव का अनुभव करते हैं। सम्पूर्ण देश का चिन्तन, संस्कृति, विश्वास, धर्म, अवधारणाएँ उससे व्यक्त होती हैं किन्तु राज भाषा वैधानिक अवधारणा से युक्त संवैधानिक संरक्षण प्राप्त भाषा होती है जिसमें शासन, प्रशासन, न्यायपालिका, विधानमण्डल अपना कार्य सम्पन्न करते हैं।

(vi) देश की अधिकांश जनता पारस्परिक विचार-विनिमय के लिए राष्ट्र भाषा का प्रयोग करती है, राज भाषा का नहीं

(vii) संविधान में कहीं राष्ट्र भाषा का उल्लेख नहीं है किन्तु राज भाषा सम्बन्धी उपबन्ध संविधान के भाग 5, 6 एवं 17 में दिये गये हैं। भाग 17 के अध्याय 1 के अन्तर्गत धारा 343 से 351 तक राज भाषा सम्बन्धी नियम संविधान में उल्लिखित है।

विडम्बना यह है कि जो अंग्रेजी राज भाषा के तौर पर भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व सरकारी कामकाज में प्रयुक्त हो रही थी आज भी उसका वर्चस्व बना हुआ है। भले ही हिन्दी को संविधान ने राज भाषा घोषित किया हो किन्तु वैकल्पिक रूप में अंग्रेजी का प्रयोग करने की जो छूट राजनीतिक मजबूरियों के कारण संविधान ने दी हुई है उसका लाभ उठाकर अंग्रेजी भाषा के भक्त अधिकारी अंग्रेजी का ही प्रयोग अधिकतर सरकारी कामकाज में करते चले आ रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका, प्रशासन एवं विधानमण्डल में हिन्दी का प्रयोग किया जाये तभी यह सही अर्थों में भारत की राज भाषा बन सकेगी। सभी हिन्दी बोलने वालों का यह दायित्व है कि वे हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग अपने क्रिया-कलापों में करें तभी सही अर्थों में हम राष्ट्र भाषा का गौरव बढ़ायेंगे।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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