अर्थशास्त्र / Economics

कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिये सुझाव | भारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता में सुधार हेतु सुझाव

कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिये सुझाव | भारतीय कृषि की निम्न उत्पादकता में सुधार हेतु सुझाव

कृषि के पिछड़ेपन के सुधार हेतु सुझाव (कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिये सुझाव)-

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 64 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर ही आश्रित है, अतः यहाँ के लोगों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने के लिए कृषि का विकास अनिवार्य है। भारतीय कृषि को विभिन्न समस्याओं को दूर करने अथवा कृषि उपज को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-

(1) जोतों की चकबन्दी (Consolidation of Holdings)-

जोतों के छोटे-छोटे टकड़ों में बँटे रहने तथा उनके बिखरे रहने के कारण यहाँ कृषि में वैज्ञानिक प्रणाली का प्रयोग सम्भव नहीं हो पा रहा है। अतः भूमि पर वैज्ञानिक प्रणाली तथा वैज्ञानिक यन्त्रों के प्रयोग के लिए जोतों की चकबन्दी करनी चाहिए तथा सहकारी कृषि को प्रोत्साहन देना चाहिए। जोतों की चकबन्दी से उपज में निश्चित ही वृद्धि होगी।

(2) सहकारिता आन्दोलन का विकास (Development of Co-operative Movement)-

कृषि सम्बन्धी कार्या का सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए गाँवों में सहकारिता आन्दोलन का विकास अत्यन्त आवश्यक है। सहकारिता द्वारा उत्तम बीज, उत्तम खाद, आवश्यक ऋण, कृषि औजारों खाद्यान्नों की क्रय-विक्रय, जोतों की चकबन्दी, सहकारी खेती, इत्यादि की व्यवस्था की जाती है। यहाँ के कुछ गाँवों में बहुधन्धी सहकारी समितियाँ (Multipurpose Co-operative Societies) काम कर रही हैं किन्तु उनकी प्रगति सन्तोषजनक नहीं है। अतः इन समितियों का विकास किया जाना चाहिए।

(3) सहायक उद्योग-धन्धों की व्यवस्था (Arrangement of Supplementary occupations)-

भारतीय किसान वर्ष में करीब छः माह बेकार पड़े रहते हैं। अतः इन्हें अवकाश की अवधि में रोजगार प्रदान करने के लिए घरेलू स्तर के सहायक उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए। इन उद्योगों के विकास से कृषि पर जनसंख्या का बोझ भी कम होगा तथा कृषि के क्षेत्र में वर्तमान बेरोजगारी तथा छुपी हुई बेरोजगारी की समस्या का निराकरण किया जा सकेगा।

(4) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण ( Control on increase in Population)-

कृषि पर जनसंख्या के बोझ को कम करने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण लगाना अनिवार्य होता है। इस कार्यक्रम की सफलता के लिए ग्रामीणों को शिक्षित बनाना चाहिए तथा उनके लिए विस्तृत सुविधाओं एवं परामर्श की व्यवस्था की जानी चाहिए।

(5) सिंचाई के साधनों का विकास (Development of Irrigation Facilities)-

कृषि-उपज में वृद्धि के लिए सिंचाई के साधनों का विकास अत्यन्त आवश्यक है। सिंचाई के साधनों में विकास के सहारे ही कृषि को वर्षा की अनिश्चितता से मुक्त किया जा सकता है। यहाँ कुल कृषि योग्य भूमि के सिर्फ 35 प्रतिशत भाग में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। सिंचाई के साधनों में विकास के अन्तर्गत नहर, कुँए तथा तालाब खुदवाने की अनेक योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं जिनके पूर्ण होने पर सिंचाई की सुविधा पर्याप्त भूमि को उपलब्ध हो सकेगी। सिंचाई की बड़ी योजनाओं के अतिरिक्त लघु योजनाओं पर भी सरकार जोर दे रही है। सिंचाई की समुचित व्यवस्था के फलस्वरूप उपज में 60 से 100 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है।

(6) उन्न बीजों का प्रबन्ध (Arrangement of Improved Seeds) –

कृषि उपज को बढ़ाने के लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था की तरह उन्नत बीज की भी आवश्यकता होती है। किसानों को, विभिन्न अनुसंधानों द्वारा प्राप्त उन्नत बीज उपलब्ध कराना चाहिए।

(7) उत्तम खाद का प्रबन्ध (Arrangement of Better Manure)-

कृषि उपज को बढ़ाने में खादों का विशेष सहयोग होता है, अतः उत्तम खाद का प्रबन्ध अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। गोबर की खाद सर्वोत्तम मानी जाती है, अतः किसानों को ईंधन के रूप में इसकी बर्बादी पर रोक लगानी चाहिए।

(8) पूँजी की व्यवस्था (Arrangement of Capital) –

किसानों को न्यूनतम व्याज पर ऋण मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस कार्य के लिए गाँवों में सहकारी साख समितियों तथा भूमि विकास बैंकों (Land Development) की स्थापना की जानी चाहिए।

(9) कृषि बाजार की उचित व्यवस्था (Proper Arrangement of Agricultural Market)-

भारत में कृषि बाजार अत्यन्त ही दयनीय अवस्था में है जिससे कृषि-उपज का अधिकांश लाभ किसानों की जगह मध्यस्थों को मिलता है। अतः यातायात के विकास, माप-तौल के प्रमाणीकरण, सहकारी विक्रय-व्यवस्था इत्यादि के द्वारा कृषि बाजार की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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