मार्क्स की राजनीतिक विचारों में देन

मार्क्स की राजनीतिक विचारों में देन | मार्क्स के राजनीतिक महत्व का वर्णन

मार्क्स की राजनीतिक विचारों में देन | मार्क्स के राजनीतिक महत्व का वर्णन

मार्क्स की राजनीतिक विचारों में देन

मार्क्स की महानता पर विभिन्न और परस्पर विरोधी विचार व्यक्त किये जाते हैं। समाजवादियों के लिए यह एक देवता तुल्य है तो पूंजीवादियों के लिए सबसे बड़ा पिशाच, लेकिन इससे मार्क्स की महानता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि सम्पूर्ण मानवीय इतिहास में ऐसा कोई विचारक नहीं हुआ, जिसके विचारों ने मानव जाति के इतने बड़े भाग को प्रभावित और अनुप्राणित किया हो, और उनके सामाजिक जीवन में इतने गहरे, दूरगामी और आमूल परिवर्तन कर दिए हों, जितने कि मार्क्स के विचारों ने किए हैं। मार्क्स का नाम विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय है और उसकी रचनाएं सम्पूर्ण विश्व के करोड़ों व्यक्तियों द्वारा पढ़ी जाती हैं।

मार्क्स राजनीतिक विचारों के क्षेत्र में अपनी कई विशिष्ट देनों के कारण चिरस्मरणीय है। उसकी प्रमुख देन निम्नलिखित हैं-

वैज्ञानिक समाजवाद का प्रतिपादन-

मावर्स वैज्ञानिक साम्यवाद की विचारधाराओं का प्रबलतम प्रवर्तक और समर्थक है। मार्क्स प्रथम समाजवादी नहीं था और मार्क्स के पूर्व भी रॉबर्ट ओवन, एफ0डी0 मॉरिस, चार्ल्स किंग्सले, डॉ० हाल, पँधो और सेण्ट साइमन आदि समाजवादी विचारक हुए हैं, किन्तु इन लेखकों द्वारा प्रतिपादित समाज प्लेटो की ‘रिपब्लिक’ और थामस मूर की ‘यूटोपिया’ (Utopia) की भांति काल्पनिक था। किन्तु मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवाद एक काल्पनिक विचारधारा न होकर विधिवत् रूप से प्रस्तुत एक व्यावहारिक दर्शन है जिसमें विद्यमान विश्व की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को परिवर्तित करने का एक व्यावहारिक मार्ग भी बताया गया है। इस प्रकार समाजवाद को वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक रूप प्रदान करने का श्रेय मार्क्स को ही प्राप्त है। इस सम्बन्ध में  लुईस वाशरमैन ने   ठीक ही लिखा है कि “मार्क्स ने समाजवाद को एक षड्यंत्र के रूप में पाया और उसे एक आन्दोलन के रूप में छोड़ा। समाजवाद ने उससे एक दर्शन और दिशा प्राप्त की।”

इतिहास की आर्थिक व्याख्या का सिद्धान्त-

इतिहास की आर्थिक व्याख्या का सिद्धान्त सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में उसकी एक बहुत बड़ी देन है। इतिहास की आर्थिक व्याख्या को अपूर्ण मानते हुए भी हमें स्वीकार करना होगा कि समस्त सामाजिक संस्थाओं में आर्थिक तत्व के महत्व का प्रतिपादन करते हुए उसने सामाजिक अध्ययन की एक बहुत बड़ी सेवा की है। वैधानिक और राजनीतिक संस्थाओं तथा विद्यमान आर्थिक व्यवस्था की अन्तर्निर्भरता के प्रतिपादन ने उसे 19वीं सदी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामाजिक दार्शनिक बना दिया है।

आर्थिक गतिविधियों का व्यापक अध्ययन-

आर्थिक गतिविधियों और जीवन के अन्य क्षेत्रों पर उसके प्रभावों का जैसा अध्ययन मार्क्स ने किया है, वैसा अन्य किसी ने भी नहीं किया। मार्क्स पहला विचारक था जिसने व्यापार-चक्र, अतिउत्पादन और बेरोजगारी के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया। उसने ही यह अनुभव किया कि राष्ट्र की खुशहाली का एकमात्र साधन व्यापार नहीं है और यन्त्रीकरण के परिणामस्वरूप अनेक दोष उत्पन्न होंगे। उसने ही सर्वप्रथम यह अनुभव किया कि उद्योगों के यन्त्रीकरण का प्रभाव राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा और औद्योगीकरण तथा उद्योगों के स्थानीयकरण के परिणामस्वरूप श्रमिक वर्ग में वर्गीय चेतना का तीव्रता के साथ विकास होगा।

पूंजीवाद के सम्बन्ध में अन्तर्दृष्टि-

इसके अलावा यद्यपि हम समाजवाद की अवश्यम्भावना को स्वीकार नहीं करते और हम यह मानते हैं कि पूंजीवाद का अन्तर समाजवाद से नितान्त भिन्न एक सामाजिक व्यवस्था को जन्म दे सकता है, लेकिन यह मानना ही होगा कि पूंजीवाद के महत्वपूर्ण विकासों को पहले से देख लेने में मार्क्स ने उस सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि का परिचय दिया है, जिसका उसके समकालीन विचारकों में अभाव ही दीखता है। मार्क्स ने बिलकुल सही रूप में इस बात का प्रतिपादन किया कि यद्यपि पूंजीवाद का परिणाम उत्पादन में वृद्धि होगा, किंतु पूंजीवाद अपने विद्यमान स्वरूप में अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता। 19वीं सदी का अबाधित पूंजीवाद अब भूत की वस्तु बन गया है और 20वीं सदी की पूंजीवाद उससे बहुत अधिक भिन्न है।

श्रमिक वर्ग में वर्गीय चेतना और एकता को जन्म-

इन सबके अतिरिक्त मार्क्स की यदि कोई बड़ी देन है तो वह है श्रमिक वर्ग में वर्गीय चेतना और एकता को जन्म देना, उसकी स्थिति में सुधार करना, पूंजीपतियों के सम्मुख उनकी स्थिति को सबलता प्रदान करना और उन्हें पूँजीवाद के विरुद्ध अन्तिम संघर्ष के लिए तैयार करना। “पूंजीवाद का अन्त और साम्यवाद का आगमन अवश्यम्भावी है।” “विश्व के मजदूरों एक हो जाओ, तुम्हारे पास खोने के लिए केवल जंजीरें हैं और पाने के लिए समस्त विश्व पड़ा है।” मार्क्स की ये बातें निरपेक्ष सत्य नहीं हैं और उनकी आलोचना की जा सकती है, लेकिन यह एक तथ्य है कि मार्क्स के इन नारों ने श्रमिक वर्ग में वर्गीय चेतना उत्पन्न करने में अद्वितीय सफलता प्राप्त की है। मार्क्स ने समाजवाद के सैद्धान्तिक विवेचन के अतिरिक्त ‘प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ’ का निर्माण कर श्रमिक वर्ग को संगठित भी किया। मार्क्स तथा उसकी विचारधारा का महत्व इस बात में है कि वह पूर्णतया शोषित वर्ग के कल्याण हेतु समर्पित है और इसी बात ने उसे महान व्यक्ति बना दिया है। इसाह बर्लिन के अनुसार, “19वीं सदी में ऐसे अनेक सामाजिक आलोचक और क्रान्तिकारी हुए हैं, जिन्हें मार्क्स की तुलना में कम मौलिक, कम हिंसक या कम कट्टर सिद्धान्तवादी नहीं कहा जा सकता लेकिन इनमें से किसी ने भी एकनिष्ठ होकर अपने आपको एक ही किसी ऐसे तात्कालिक व्यावहारिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पित नहीं किया जिसके लिए कोई भी त्याग महान नहीं हो सकता।”

वेपर ने मार्क्स के सम्बन्ध में लिखा है, “अपने सन्देश की शक्ति और भावी साम्यवादी आन्दोलन पर अपने प्रभाव के आधार पर विश्व के महान राजनीतिक विचारकों के किसी भी संग्रह में मार्क्स का स्थान पूर्णतया सुरक्षित है।”                                

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