राजनीति विज्ञान / Political Science

कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय | कार्ल मार्क्स का जीवन वृत्त

कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय | कार्ल मार्क्स का जीवन वृत्त

कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय (Life Sketch)-

कार्ल मार्क्स उन दार्शनिकों में से एक हैं जिन्होंने अपने विचारों से विश्व को सर्वाधिक प्रभावित किया है। आज विश्व के अधिकांश राष्ट्र समाजवाद को सामाजिक एवं आर्थिक बुराइयों को दूर करने का एकमात्र उपाय मानते हैं। समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 ई० को प्रशिया के राइन प्रान्त के टायर नामक नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक वकील थे। राइन प्रान्त उस समय प्रशिया के औद्योगिक रूप से विकसित क्षेत्रों में था।

कार्ल मार्क्स का जीवन वृत्त

(Life Sketch of Marx)

मार्क्स अपने विद्यार्थी जीवन में अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि का छात्रं समझा जाता था। मार्स ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के समाप्त करने के पश्चात् सन् 1835 में बोन विश्वविद्यालय में कानून की शिक्षा के लिए प्रवेश लिया। उसके पिता कार्ल को एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में देखना चाहते थे। परन्तु मार्क्स की रुचि कानून में नहीं थी। सन् 1841 में उसने जेना विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्ति की। मार्क्स के परिवर्तनवादी विचारों के कारण विश्वविद्यालय के अधिकारी उसे संदेह की दृष्टि से देखने लगे और इसी कारण उसे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का पद न मिल सका । अतः मार्क्स ने पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण किया। हीगेल का उसने बड़ी गहराई से अध्ययन किया तथा उसकी आदर्शवादी विचारधारा की आधारभूत कमी पर गहराई से विचार किया।

अक्टूबर 1843 में माक्स पेरिस चला गया। पेरिस में उसे अनेकों नवीन अनुभव हुए तथा उसके ज्ञान में वृद्धि हुई । वह शहर के बाहरी भाग में रहने वाले श्रमिकों की बस्तियों में जाया करता था। उसने ‘लीग आफ दी जस्ट’ (League of the Just) नाम की जर्मन श्रमिकों की एक गुप्त संस्था से अपना सम्पर्क स्थापित किया। पेरिस में रहते हुये वह फ्रांस के ‘काल्पनिक समाजवादियों’ (Utopian Socialists) के सम्पर्क में आया जिनमें लैटोक्स, लुई ब्लस्क तथा प्रूधा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ‘हैनरिक हेन’ (Heinrich Hein) के साथ उसकी मित्रता हो गई तथा वह बाकुनिन एवं वोटोकिन जैसे रूसी अराजकतावादियों के सम्पर्क में भी आया।

सन् 1845 ई० में मार्क्स पेरिस छोड़कर ब्रूसेल्स में आकर रहने लगा। फ्रांस को छोड़ने से पूर्व मार्क्स की फ्रेडरिक एंजिल्स के साथ मित्रता हो चुकी थी। मार्क्स तथा ऐंजिल्स की मित्रता जीवन-पर्यन्त कायम रही। एंजिल्स मार्क्स को जीवनपर्यन्त सहयोग दिया। दोनों मित्रों के विचारों में साम्य होने के कारण उन्होंने लेखन कार्य में एक-दूसरे को सहयोग दिया । सन् 1845 मार्क्स एंजिल्स के साथ इंग्लैण्ड आ गया। इंग्लैण्ड आकर वह ‘German Worker’s Education of Union’ नामक संस्था के सम्पर्क में आया। थोड़े दिन इंग्लैण्ड में रहने के पश्चात् मार्क्स पुनः ब्रूसेल्स गया तथा वहाँ उसने उसी प्रकार की संस्था की स्थापना की।

मार्क्स ने अपने जीवन के अन्तिम दिन, इंग्लैण्ड में व्यतीत किये। इंग्लैण्ड में उसे गरीबी तथा अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। धनाभाव के कारण मार्क्स तथा उसके परिवार को पर्याप्त भोजन भी नहीं मिल पाता था। इन कठिनाइयों के बावजूद भी मार्क्स अपने अध्ययन में लगा रहा। वह प्रात: ही ब्रिटिश म्यूजियम चला जाता था। वहाँ पुस्तकालय के खुले. रहने तक अध्ययन करता रहता था। इस प्रकार वह अपने संघर्षमय जीवन में भी अपने ध्येय के प्रति ईमानदार रहा । उसने श्रमिक वर्ग को पूँजीवाद से मुक्ति का मार्ग दिखाया तथा अपने उस लक्ष्य की पूर्ति में उसे आर्थिक अभाव, पत्नी वियोग तथा बीमारियों का शिकार होना पड़ा। सन् 1883 में लन्दन में उसकी मृत्यु हो गई।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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