महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व का मूल्यांकन

महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व का मूल्यांकन | Assessment of the personality of Mahatma Buddha in Hindi

महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व का मूल्यांकन | Assessment of the personality of Mahatma Buddha in Hindi

महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व का मूल्यांकन

बौद्ध साहित्य तथा यत्र-तत्र प्राप्त अनेक प्रसंगों द्वारा हमें महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण परिचय प्राप्त होता है। उनके जन्म से पूर्व तथा जन्म समय की अद्भुत घटनाएँ, शैशवकाल से लेकर निर्वाणोपरान्त तक के क्रियाशील जीवन चरित द्वारा हमें एक महान विभूति की सम्पूर्ण प्राप्तियों का योग प्राप्त होता है। बौद्ध साहित्य के अनेक ग्रन्थों में ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिनमें बुद्ध के शिष्यों ने उनके व्यक्तित्व का वर्णन किया है। एक प्रसंग के अनुसार बुद्ध के एक शिष्य ने कहा है-“उसने लाठी तथा तलवार का त्याग कर उन्हें एक ओर रख दिया। रूखापन तो उनके पास भी नहीं फटकता था। लांछन तथा कलंक एवं दूसरों पर कीचड़ उछालने की विधि का त्याग करके उन्होंने जीवमात्र को अपनी कृपा का पात्र बनाया। वे आक्षेप और निद्रा से कोसों दूर रहते थे। वे बिछुड़े हुओं को मिलाने वाले तथा मिले हुओं को घनिष्टता प्रदान करने वाले थे। इन सबके अतिरिक्त शान्ति सथापक, शान्तिप्रिय, शान्ति के लिये प्रयत्नशील तथा शान्तभाषी आदि कितने ही विशेषणों से उनका श्रृंगार किया जा सकता है।”

महात्मा बुद्ध के समकालीन सोनदण्ड नामक ब्राह्मण ने उनके सम्पूर्ण जीवन चरित तथा व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हुए लिखा है- “निश्चय ही श्रीमान, श्रद्धेय गौतम का व्यक्तित्व दोनों दृष्टियों से उत्तम था। पहला-वे पवित्र और उच्चकुल के थे, दूसरे-उनका जन्म सर्वथा दोष रहित था। ……..धन सम्पदा, स्वर्ण तथा निधियों तथा अनेक अति निकट सम्बन्धियों को त्यागकर उन्होंने धार्मिक जीवन का अनुसरण किया।………उनका व्यक्तित्व आकर्षक, विश्वसनीय, प्रभावशाली, गौरवर्ण तथा राजसी था।……..वे अनेक गुरुओं के गुरु थे। ब्राह्मणों को उपदेश देते समय वे सदैव सदाचार की ही बात करते थे।……..उनका वाणी स्वर कर्णप्रिय तथा भाषा अत्यन्त भावभीनी होती थी। वे वार्तालाप में नम्र तथा स्पष्ट एवं समस्याओं को सुलझाने में निपुण थे।……..दूर-दूर से लोग उनसे प्रश्न पूछने आते हैं, वे सभी का स्वागत करते हैं। वे उत्तम प्रकृति तथा समन्वय में विश्वास रखने वाले प्राणी हैं। वे उद्धत तथा असहनशील न होकर सरल प्रकृति के स्वामी हैं। वे सभी से वार्तालाप के लिये तत्पर तथा उसमें कभी पीछे न रहने वाले हैं। ……वे विश्वसनीय, श्रद्धेय तथा सम्माननीय व्यक्ति हैं। मगध नरेश, सैनीय, बिम्बिसार, कोसलराज पसेनादि तथा प्रमुख ब्राह्मण आचार्य पोखरसादी अपने बच्चों, पत्नी सहित सभी बुद्ध का स्वागत करते हैं।’ महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व अद्वितीय था तथा उनके व्यक्तित्व में सम्मोहन शक्ति थी। उन्हें तर्क द्वारा परास्त करना टेढ़ी खीर थी। स्वयं तथागत ने अपने विषय में कहा है कि “तर्क-वितर्क द्वारा मुझे न तो कोई परिभ्रमित कर सकता है और न ही परास्त। यही कारण है कि मैं तार्किक विवाद के समय अत्यन्त शान्त और स्थिर बना रहता हूँ।”

ईसा तथा लाओत्से के व्यक्तित्व पर महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट दिखती है। बुराई के बदले अच्छाई तथा घृणा के बदले प्रेम-उनका सिद्धान्त मात्र ही नहीं था वरन् वे इसका अक्षरशः पालन करते थे। वे कहा करते थे कि “यदि कोई मुझसे ईर्ष्या करता है तो भी मैं उससे ईर्ष्यारहित प्रेम करूँगा। मुझसे जितनी ही अधिक ईर्ष्या की जायेगी, मैं उतना ही अधिक प्रेम करूँगा।”

महात्मा बुद्ध की नम्रता, सौम्यता, शान्तस्वभाव तथा सुशीलता का वर्णन करते हुए ओल्डेनबर्ग महोदय ने बड़े स्पष्ट शब्दों में लिखा है-

“जिसके समक्ष बड़े-बड़े सम्राट् नतमस्तक हो जाते थे, जिसका यशोगान सारे देश में हो रहा था-वह मात्र भिक्षापात्र लेकर भ्रमण करता था। छोटी तथा सँकरी गलियों में जाता और बिना याचना के नत दृष्टि करके द्वार पर तब तक खड़ा रहता था जब तक मुट्ठी भर भोजन इसके भिक्षापात्र में न डाल दिया जाये। वह कहता था कि “जो व्यक्ति निन्दा का बदला निन्दा द्वारा नहीं देता, वह दुहरी विजय प्राप्त करता है। वह निन्दा, जिसका उत्तर नहीं दिया जाता, उस भोजन के समान है जिसे अतिथि ने ग्रहण करने से इंकार कर दिया है और इस दशा में वह भोजन उसी के पास रहेगा जो उसे देना चाहता है।”

विल डयूरेन्ट महोदय ने बुद्ध के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हुए उन्हें “Manof strong will, authoritative and proud but of gentle manner and speech and of infinite benevolence” बताया है।

तथागत के व्यक्तित्व की उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर हम इस बात को पूर्ण निश्चितता के साथ कह सकते हैं कि महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व अद्वितीय था तथा जीवन के समस्त क्षेत्रों में वे श्रेष्ठ थे।

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