समाज शास्‍त्र / Sociology

आधुनिकीकरण का अर्थ | आधुनिकरण की परिभाषा | आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएँ

आधुनिकीकरण का अर्थ | आधुनिकरण की परिभाषा | आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएँ

आधुनिकीकरण का अर्थ

आधुनिकीकरण का शाब्दिक अर्थ है– आधुनिकतम विचारों का स्वरूप व आधुनिकतम स्तर से अनुकूलन करना। इस प्रकार के अनुकूलन में हम परम्परा अथवा अर्द्ध-परम्परा को त्यागकर विचारों, कार्यों व तथ्यों को आधुनिकतम उपलब्धियों की सहायतासे सरल, सुगम, सुविधाजनक एवं प्रगतिशील बनाते हैं। वर्तमान युग में विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में पर्याप्त विकास हुआ है जिसके कारण ही मानव चन्द्रतल पर पहुँचने में समर्थ हुआ है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी एव इलेक्ट्रॉनिक्स के विकास के फलस्वरूप ही आज के मानव ने जीवन के समस्त क्षेत्रों यथा- आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक, शैक्षिक आदि क्षेत्रों में प्रगति की है। चिकित्सा में नवीनतम पद्धतियाँ, यातायात एवं संचार के साधनों में आधुनिकता, नये-नये कृषि- यन्त्रों, उपकरणों एवं विधियों, उद्योगों में नवीन यन्त्र, उपकरण एवं विधियाँ आदि आधुनिकीकरण की ही देन हैं। इन सब साधनों के विकास के कारण हमारे वैयक्तिक एवं सामाजिक मूल्यों में पर्याप्त परिवर्तन हुआ है। उदाहरण के लिये, यातायात एवं संचार के माध्यमों में आधुनिकता के कारण समाज के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए और नये समाज के मूल्यों को ग्रहण किया गया। इस प्रकार आधुनिकीकरण ‘परिवर्तन’ (Change) रूपान्तरण’ (Transfomation) व ‘गतिशीलता’ (Mobility) शब्द का द्योतक है। जो परिवर्तन, रूपान्तरण व गतिशीलता होती है वह ऊपर से नीचे की ओर अर्थात् ‘प्रगतिशील दिशा’ (Progressive Direction) की ओर होती है। यह परिवर्तन संस्कृति के ‘भौतिक अथवा अभौतिक पक्ष’ (Material or Non-material Aspect) में न होकर दोनों पक्षों में होता है। हाँ यह अवश्य है कि आधुनिकीकरण में अभौतिक पक्ष की तुलना में भौतिक पक्ष में अधिक परिवर्तन हुआ है क्योंकि इन परिवर्तनों को लाने का श्रेय पाश्चात्य भौतिकवाद, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा सांसारिक मूल्यों पर आधारित है, को ही है। संक्षेप एवं सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण का तात्पर्य किसी परम्परागत समाज में होने वाले उस परिवर्तन, रूपान्तरण व गतिशीलता से है जिसमें वह परम्परागत सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों एवं मानवीय आकांक्षाओं को त्यागकर उन्नत व पाश्चात्य समाजों के आधुनिक व नवीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों एवं मानवीय आकांक्षाओं को ग्रहण करता है।

आधुनिकरण की परिभाषा

श्री एन. प्रसाद- “आधुनिकीकरण सदैव एक क्रान्तिकारी प्रक्रिया है जिससे वर्तमान संस्थानिक संरचना बेकार हो जाती। इसकी सफलता समाज की आन्तरिक रूपान्तरण की क्षमता पर निर्भर करती है।”

हालपर्न- “आधुनिकीकरण रूपान्तरण से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत उन सभी पहलुओं जैसे राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक, धार्मिक तथा मनोवैज्ञानिक आदि का रूपान्तरण किया जाता है जिसे व्यक्ति अपने समाज के निर्माण में प्रयोग करता है।”

पाई- “आधुनिकीकरण एक नये प्रकार के मानसिक दृष्टिकोण की उपज है। जिसमें मशीनों एवं प्रविधियों के उपयोग के लिए एक नई पृष्ठभूमि का निर्माण होता है। सामाजिक सम्बन्धों का एक नया प्रारूप बनता है।”

आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएँ

आधुनिकीकरण के निम्नलिखित विशेषताएँ है-

गत्यात्मक नैतिक व्यवस्था (Dynamic Moral System)- आधुनिकीकरण के लिए समाज में नैतिक मूल्यों की गत्यात्मक व्यवस्था का होना आवश्यक है। इस व्यवस्था के फलस्वरूप ही समाज अपने परम्परागत नैतिक मूल्यों की सीमा से बाहर निकलकर नवीन नैतिक मूल्यों को ग्रहण करता है। समाज परम्परागत नैतिक मूल्यों को छोड़कर नये नैतिक मूल्यों को ग्रहण नहीं कर पाते उन समाजों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया नहीं चल पाती। आधुनिकीकरण के लिए समाज में ऐसी व्यवस्था तथा क्षमता होनी चाहिए जिससे समाज में नये सामाजिक मूल्यों को प्राप्त किया जा सके। जिस संस्कार को हम आज बुरा समझते हैं उसे यदि अपना लिया जाता है तो गत्यात्मक नैतिकता कही जायेगी। बिना नैतिक गत्यात्मकता के समाज में नैतिक मूल्यों का आधुनिकीकरण नहीं हो सकता और पुराने संस्कारों से मुक्ति नहीं मिल सकती। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आधुनिकीकरण आज के परिवर्तित समाज के लिये आवश्यक है और इस प्रक्रिया में शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

ग्रहणशीलता (Adaptation)- आधुनिकीकरण के लिये केवल सामाजिक परिवर्तन ही आवश्यक नहीं है अपितु उन परिवर्तनों को ग्रहण करना भी है, बिना ग्रहणशीलता के आधुनिकीकरण असम्भव है। जब समाज पुरानी मान्यताओं को शीघ्र त्यागकर नवीन मान्यताओं को ग्रहण कर लेता है। तो उन समाजों को आधुनिक समाज कहा जाता है। आधुनिकीकरण की यह पक्रिया सामाजिक परिवर्तनों को ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर करती है।

प्रेरणा एवं उच्च आकांक्षाएँ (Motivation and Higher Aspiration)-  जो समाज कुछ नयापन देखना चाहते हैं उनमें उच्च स्तर की प्रेरणा तथा उच्च स्तर की आकांक्षायें पाई जाती हैं। इनके आधार पर ही उसमें रचनात्मक या सृजनात्मक कार्य करने की प्रेरणा तथा आकांक्षा का प्रादुर्भाव होता है। कुछ समाज ऐसे भी होते हैं जो अपने वर्तमान से (शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक तथा नैतिक उपलब्धि से) सन्तुष्ट रहते हैं। उनमें प्रेरणा तथा आकांक्षा शक्ति नहीं होती और वे पिछड़ जाते हैं। इसके विपरीत उच्च आकांक्षा स्तर तथा प्रेरणा शक्ति उसे आधुनिक बनाकर प्रगति के रास्ते पर अग्रसर करती है।

औद्योगिक उन्नति (Industrial Progress)-  औद्योगिक प्रगति के कारण उच्चस्तरीय आधुनिकतम उत्पादन होते हैं, जीवन-यापन के लिए आधुनिकतम आरामदायक साधन मिलते हैं, इससे व्यक्ति का जीवन-स्तर उठता है, रीति-रिवाजों में परिवर्तन तथा यातायात के साधनों में भी नवीनता उपभोक्ताओं तक पहुंच पाती है। इन नवीनतम साधनों से औद्योगीकरण में भी तीव्रता के साथ विकास होता है। कृषि व्यवसाय में भी औद्योगीकरण द्वारा उत्पादन में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप समाज का आर्थिक विकास होता है। वे समाज आधुनिकता की ओर अग्रसर होते हैं तथा परम्पराओं को तोड़कर भाग्य को परिवर्तित करते हैं।

सामाजिक परिवर्तनशीलता (Social Changeability)-  जिन समाजों में सामाजिक परिवर्तन तीव्र गति से घटित होते हैं उनके अन्तर्गत आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अधिक तीव्रता के साथ होती है। आधुनिकीकरण के अन्तर्गत प्राचीन मान्यताओं को त्यागकर आधुनिकतम नवीनताओं को ग्रहण करना होता है, इसे ही सच्चे अर्थों में सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। आधुनिकीकरण तथा परिवर्तन साथ-साथ चलते हैं। आधुनिकीकरण के लिए यह परिवर्तन अनिवार्य एवं आवश्यक है।

उच्च ज्ञान हेतु जिज्ञासा प्रवृत्ति (Tendency of Curiosity for Higher knowledge)-  जिन समाजों में विश्व में हो रहे परिवर्तनों तथा विकास कार्यों को जानने का भाव नहीं होता और जहाँ उच्च ज्ञान के साधन या अवसर नहीं मिलते वहाँ पर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आधुनिक विचारों से तीव्र नहीं हो पाती और वह समाज आधुनिक विचारधाराओं को ग्रहण नहीं कर पाता। उच्च ज्ञान भण्डार द्वारा ही समाज अपने उत्पादन कृषि, सुरक्षा तथा यातायात के आधुनिकतम साधनों को अपनाता है।

शिक्षा (Education)-  शिक्षा आधुनिकीकरण का एक अत्यधिक सशक्त साधन है। जिन समाजों में शैक्षिक वातावरण उच्च स्तर का होता है। उनमें तीव्रता से सामाजिक परिवर्तन होता है। शिक्षा द्वारा ही आर्थिक विकास हेतु मार्ग खोजे जाते हैं। उच्च सामाजिक आकांक्षाओं का निर्धारण किया जाता है। तथा ज्ञान भण्डार बढ़ता है। नैतिक मूल्यों की गत्यात्मक व्यवस्था का सृजन होता है। जैसा कि हम जानते हैं कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के लिये सामाजिक परिवर्तन आवश्यक है और वह समुचित शिक्षा व्यवस्था द्वारा ही सम्भव है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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