अर्थशास्त्र / Economics

विनिमय नियंत्रण का अर्थ | विनिमय नियंत्रण के तरीके | बहुल विनिमय दरें | विनिमय नियंत्रण के अप्रत्यक्ष तरीके | विनिमय नियंत्रण के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके

विनिमय नियंत्रण का अर्थ | विनिमय नियंत्रण के तरीके | बहुल विनिमय दरें | विनिमय नियंत्रण के अप्रत्यक्ष तरीके | विनिमय नियंत्रण के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके | Meaning of Exchange Control in Hindi | Exchange Control Methods in Hindi | Multiple exchange rates in Hindi | Indirect Methods of Exchange Control in Hindi | Direct and Indirect Methods of Exchange Control in Hindi

विनिमय नियंत्रण का अर्थ

(Meaning of exchange control)

विनिमय नियंत्रण का आशय विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाली शक्तियों के स्वतंत्र क्रियाकलाप में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप से है, चाहे यह हस्तेक्षप सरकार, अथवा सरकार द्वारा स्थापित किसी संस्था द्वारा हो। विनिमय नियंत्रण प्रणाली का लक्ष्य विदेशी विनिमय बाजार में बाजार की शक्तियों को दबाना या हटाना होता है। पूर्ण विनिमय नियंत्रण प्रणाली के अन्तर्गत समस्त अर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय व्यवसायों से पूर्व, विनिमय अधिकारी की अनुमति आवश्यक होती है। समस्त तात्कालीन विदेशी विनिमय की प्राप्तियों को विनिमय अधिकारी को विक्रय तथा आवश्यक विदेशी विनिमय को क्रय करना पड़ता हेबरलर के अनुसार, ‘विनिमय नियंत्रण उस सरकारी हस्तक्षेप को कहते हैं जो कि विनिमय बाजार में आर्थिक शक्तियों को स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने देता है।’

विनिमय नियंत्रण के तरीके

(Method of exchange control)

विदेशी विनिमय के नियंत्रण के लिए सरकार जिन विधियों को अपनाती है उनमें (i) सरकार विनिमय की दर निश्चित कर देती है जिसके आधार पर भुगतान करके देशवासी विदेशी मुद्रा प्राप्त  सकते हैं, (ii) सरकार द्वारा ऐसी दरें निर्धारित की जाती हैं जिनके आधार पर देशवासी ऐसी सब मुद्राओं को बेचने के लिए बाध्य होते हैं जो उनके अधिकार में आती रहती हैं, (iii) सरकार द्वारा ऐसी दरों का निर्धारण हो सकता है जिन पर वह विदेशी देश की मुद्रा खरीदने के लिए स्वतंत्र रहेगी, सरकार कुछ ऐसे नियम बना सकती है जिसके अन्तर्गत देशवासी विदेशी विनिमय को सरकार को सुपुर्द करने के लिए बाध्य हो जाय, सरकार प्राथमिकता के पूर्व निर्धारित क्रम में प्रार्थियों को विदेशी विनिमय के कोटे स्वीकार करके सुपुर्द करने के लिए बाध्य हो जाय, सरकार प्राथमिकता के पूर्व निर्धारित क्रम में प्रार्थियों को विदेशी विनिमय के कोटे स्वीकार करने सम्बनधी नियम बना सकती है, सरकार विदेशियों पर इस प्रकार का प्रतिबन्ध लगा सकती है कि वे घरेलू मुद्रा का प्रयोग नियंत्रित रूप में कर सकें, सरकार अन्य सरकारों से परस्पर भुगतान की व्यवस्था सम्बन्धी समझौते कर सकती है। किसी देश द्वारा विनिमय नियंत्रण हेतु अपनायी गयी विधियों को मुख्यतः दो वर्गों- ‘प्रत्यक्ष’ एवं ‘अप्रत्यक्ष’ में विभक्त कर सकते हैं। प्रत्यक्ष रीतियों के अन्तर्गत सरकार स्वयं विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय करती है अथवा इसके क्रय-विक्रय’ को नियंत्रित करती है। प्रत्यक्ष रीति में ही विनिमय हस्तक्षेप, विनिमय प्रतिबन्ध, अवरुद्ध खाते, बहुल विनिमय दरें आदि को सम्मिलित किया जाता है। ये रीतियां प्रायः साधारण काल में ही प्रयोग की जाती है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रीतियों का विस्तृत विवेचन नीचे प्रस्तुत किया गया है।

हस्तक्षेप

(Intervention)

जब कभी सरकार अपनी करेन्सी की विनिमय दर को सामान्य विनिमय दर से ऊंचे या नीचे निर्धारित करना चाहती है तो विदेशी विनिमय बाजार में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का अवलम्बन लेना पड़ता है। सामान्य व्यवहार में विनिमय दर को सामान्य विनिमय दर से ऊंचे निर्धारित करने के लिए ही हस्तक्षेप का सहारा लिया गया है। हस्तक्षेप के अन्तर्गत विदेशी विनिमय बाजार में सरकार द्वारा या उसके निर्देशन पर कार्य करने वाले केन्द्रीय बैंक के अधिकारी द्वारा भारी मात्रा में घरेलू मुद्रा का क्रय-विक्रय किया जाता है। करेन्सी के विनिमय मूल्य को निर्धारित विनिमय दर के आधार पर निर्धारण की क्रिया को विनिमय दर का बांधना या टाँकना (Pegging) कहते हैं। विनिमय दर का टांकना हस्तक्षेप की सबसे अधिक प्रचलित रीति है। इस रीति का महत्व इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि इसकी अनुपस्थिति में विदेशी विनिमय की दर तथा बंधी हुई विनिमय दर में बड़ा अन्तर होता है। 1914-18 की अवधि में पौण्ड स्टर्लिंग का मूल्य 4.765 डलर पर टांका गया था। स्टर्लिंग का टांका गया मूल्य डालर के रूप में सामान्य मूल्य से अधिक था। इसका प्रमाण मार्च 1919 में मिल गया जबकि सरकारी समर्थन के अभाव में एक वर्ष से कम की अवधि में ही स्टर्लिंग का डालर मूल्य 4.765 से घटकर 3.40 हो गया था।

विनिमय प्रतिबन्ध

(Exchange Restrictions)

‘विनिमय प्रतिबन्ध’ का आशय उस नीति से है जिसके अन्तर्गत सरकार विदेशी विनिमय बाजार में स्वदेशी मुद्रा की पूर्ति अनिवार्य रूप से कम कर देती है। स्वदेशी मुद्रा का विनिमय मूल्य उसकी पूर्ति को घटाकर कायम रखा जाता है विनिमय प्रतिबन्ध की तीन प्रमुख विशेषतायें हैं। प्रथम, विदेशी विनिमय सम्बन्धी समस्त व्यापारों को सरकार अपने या अपने एजेन्टों के हाथों में केन्द्रित कर लेती है। द्वितीय, किसी विदेशी मुद्रा के बदले में स्वदेशी मुद्रा सुपुर्द करने से पूर्व  देशवासियों को सरकार से आज्ञा लेनी पड़ती है। तीसरे, सरकार की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति विदेशी विनिमय के सौदों में प्रवेश नहीं कर सकता और सौदा सरकारी एजेन्टों के माध्यम से ही किया जा सकता है। सर्वप्रथम जर्मनी, आस्ट्रिीय ने इस नीति को 1931 में अपनाया था। जर्मनी में करेन्सी नियमन की अवहेलना करने वाले को मौत की सजा की घोषणा की गयी थी। द्वितीय विश्व युद्ध काल में अन्य देशों, जिनमें ब्रिटेन और फ्रांस भी सम्मिलित थे, ने भी विनिमय प्रतिबन्ध को अपनया।

बहुल विनिमय दरें

(Multiple Exchange Rates)

बहुल विनिमय दरों का प्रयोग सर्वप्रथम जर्मनी में किया गया, तत्पश्चात चिली, अर्जेन्टाइना, ब्राजील, पेरु, इक्वेडर तथा अन्य देशों ने भी इस प्रथा को अपना लिया था। इस प्रथा के अन्तर्गत विनिमय वस्तुओं के आयातों तथा निर्यात के लिए भिन्न-भिन्न विदेशी विनिमय दरें निर्धारित की गयी थी। यहां तक कि आयात वस्तुओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए भी पृथक-पृथक दरें तय की जाती थी। भिन्न-भिन्न विनिमय दरें निर्धारित करने का प्रमुख उद्देश्य निर्यातों में अधिकतम सीमा तक वृद्धि और आयातों में हास्य करना था। लंदन में विभिन्न प्रकार के जर्मन मार्क Travelmark, Askimark, Registermark, Blockmark, Sendermark, Handelmark, Degomark मित्र- भित्र मूल्यों पर बिकते थे, जिनके परविर्तन की सीमा 2 पेंस से लेकर 1 शि. 8 पेंस तक थी। अर्जेन्टाइना में बहुल विनिमय दर की विषम प्रथा हाल के वर्षों तक प्रचलित थी। चूंकि अर्जेन्टाइना बहुल विनिमय दर की विषम प्रथा हाल के वर्षों तक प्रचलित थी। चूंकि अर्जेन्टाइना मुद्रा कोष का सदस्य नहीं था अतः वह भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न विनिमय दरें अपनाने को स्वतंत्र था ताकि निर्यातों से अधिकतम लाभ अर्जित कर सके। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति लगभग 50 देशों में बहुल विनिमय दर की नीति विद्यमान थी।

विनिमय नियंत्रण के अप्रत्यक्ष तरीके

(Methods indirect exchange control)

विनिमय नियन्त्रण की अप्रत्यक्ष विधियाँ, रीतियाँ या साधन (Indirect Method of Exchange Control) – विनिमय नियन्त्रण की अप्रत्यक्ष रीतियों से आशय उन रीतियों से है, जो मुद्रा चलन की मांग एवं पूर्ति पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालती हैं-

  1. आयात प्रतिबन्ध (Import Restrictions) – आयात प्रतिबन्ध निम्नलिखित दो प्रकार से लगाये जाते हैं –

(i) आयात कर लगा कर तथा (ii) अभ्यंश या अनुज्ञा द्वारा (Quota or licence)

आयात कर लगाने से आयातित वस्तु के मूल्य बढ़ जाते हैं, जिससे उनकी माँग घट जाती है। जब आयातित वस्तुओं के लिये व्यापारियों को अभ्यंश या अनुज्ञा (Quota licence) देने की व्यवस्था होती है, तब भी आयात की मात्रा कम हो जाती है। इन दोनों बातों से देश की विनिमय दर अनुकूल हो जाती है और व्यापार शेष ठीक हो जाता है।

  1. निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)- निर्यातों को निम्नांकित तीन प्रकार से प्रोत्साहित किया जा सकता है-

(1) निर्यात कर घटा कर (Reducing Export Duty)

(ii) निर्यात को आर्थिक सहायता (Bounties and Subsidies)- देकर इन दोनों  रीतियों से निर्यात की गई वस्तुओं का मूल्य कम हो जाता है तथा निर्यातकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलता है एवं निर्यात की मात्रा बढ़ जाती है। निर्यात में वृद्धि होने से विदेशों में स्वदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है, उसका मूल्य बढ़ जाता है तथा विनिमय दर देश के अनुकूल हो जाती है।

(iii) व्याज की दरों में परिवर्तन (Change in the Rates of Interest)- ब्याज की दर का पूँजी के आवागमन पर पड़ता है, जो देश ब्याज की दर बढ़ा देते हैं, वहाँ पर विदेशी पूँजी आकर्षित होने लगती है, जिससे देश में मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तथा भुगतान सन्तुलन पक्ष में हो जाता है। इसी प्रकार ब्याज दर घटा देने का भुगतान सन्तुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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