अर्थशास्त्र / Economics

विदेशी विनिमय दर निर्धारण माँग एवं पूर्ति सिद्धान्त | विदेशी विनिमय की माँग की लोच | विदेशी विनिमय दर के भुगतान शेष सिद्धान्त

विदेशी विनिमय दर निर्धारण माँग एवं पूर्ति सिद्धान्त | विदेशी विनिमय की माँग की लोच | विदेशी विनिमय दर के भुगतान शेष सिद्धान्त | Foreign Exchange Rate Determination Demand and Supply Theory in Hindi | Elasticity of Demand for Foreign Exchange in Hindi | balance of payments principle of foreign exchange rate in Hindi

विदेशी विनिमय दर निर्धारण माँग एवं पूर्ति सिद्धान्त

(Theory of supply and demand determination of foreign exchange rate)

जिस प्रकार किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण उसकी माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है उसी प्रकार विदेशी विनिमय दर जो एक देश की मुद्रा की दूसरे देश की मुद्रा में कीमत है, का भी निर्धारण माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। इसका निर्धारण विदेशी मुद्रा की माँग तथा विदेशी मुद्रा की पूर्ति के द्वारा होता है और इसलिए इसे माँग एवं पूर्ति का सिद्धान्त कहते हैं और चूँकि विदेशी विनिमय की माँग तथा उसकी की शक्तियाँ भुगतान सन्तुलन के दोनों पक्षों में अन्तर्निहित होती हैं इसलिए इसे विदेशी विनिमय दर के निर्धारण का भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त कहते हैं। प्रो० हॉम के अनुसार, ‘भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त के अनुसार घरेलू मुद्रा के रूप में विदेशी मुद्रा का मूल्य निर्धारण विदेशी विनिमय बाजार में विद्यमान माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। माँग एवं पूर्ति की वे शक्तियाँ भुगतान सन्तुलन में व्यक्त विनिमय मदों द्वारा निर्धारित होती हैं।’ हैबरलर के अनुसार, ‘भुगतान सन्तुलन यह स्पष्ट करता है कि विनिमय दर का निर्धारण भुगतान सन्तुलन के द्वारा होता है जिसे माँग एवं पूर्ति के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।’ उल्लेखनीय है कि चूँकि भुगतान सन्तुलन विवरण की प्रविष्टियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है। कि मुद्रामान पत्रमुद्रा मान है या स्वर्णमान इसलिए भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त विदेशी विनिमय दर निर्धारण का एक सामान्य सिद्धान्त है जो प्रत्येक स्थिति में लागू होता है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जहाँ विदेशी विनिमय की मांग विदेशी विनिमय की पूर्ति के बराबर हो वहीं संस्थिति या साम्य विनिमय दर का निर्धारण होगा पर यहाँ निम्नांकित बातें विचारणीय हैं-

(क) विदेशी विनिमय की माँग उसको प्रभावित करने वाले चर तथा विनिमय दर से इसका सम्बन्ध।

(ख) विदेशी विनिमय की पूर्ति, उसको प्रभावित करने वाले चर तथा विनिमय दर से इसका सम्बन्ध।

(ग) विदेशी विनिमय की माँग तथा पूर्ति की शक्तियों का भुगतान सन्तुलन विवरण की मदों में अन्तर्निहित होने का विवेचन।

(घ) माँग और पर्ति के द्वारा संस्थिति विदेशी विनिमय दर का निर्धारण, विनिमय दर में परिवर्तन तथा संस्थिति दर का पुनर्स्थापित होना तथा विदेशी विनिमय की माँग एवं पूर्ति वक्रों में परिवर्तन तथा संस्थिति विनिमय दर का निर्धारण

विदेशी विनिमय की माँग दो बातों पर निर्भर करती है-माँग की मात्रा तथा विदेशी विनिमय  की माँग-लोच। वैसे विदेशी विनिमय के माँग का आकार देश के नागरिकों, संस्थाओं तथा सरकार द्वारा विदेशियों को किये गये आयात के आकार तथा भुगतान की मात्रा पर निर्भर करेगा पर आयात की मात्रा बहुत अधिक सीमा तक देश की जनसंख्या के आकार, मूल्य-स्तर, रोजगार, आय का स्तर, सरकार की संरक्षण नीति, विदेशी वस्तुओं के प्रयोग की प्रवृत्ति, विकास के स्तर आदि पर निर्भर करती है।

विदेशी विनिमय की माँग की लोच (Elasticity of demand of foreign exchange) –

निम्नांकित बातों पर निर्भर करती है—

(क) जिन वस्तुओं का हम आयात करते हैं उन वस्तुओं के सम्बन्ध में घरेलू उपभोक्ताओं की माँग की लोच।

(ख) जिन वस्तुओं का हम आयात करते हैं उसके सम्बन्ध में विदेशी उपभोक्ताओं की माँग की लोच।

(ग) विदेशी फर्म जो आयात की जाने वाली वस्तुओं की पूर्ति करती हैं उनकी उस सम्बन्ध में पूर्ति की लोच।

(घ) आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थानापन्न के रूप में उत्पादित घरेलू वस्तुओं की पूर्ति की लोच ।

सभी विदेशी प्राप्तियाँ, अर्जन तथा उधारी-विदेशी विनिमय की पूर्ति प्रदर्शित करती हैं जबकि देश द्वारा किया गया सभी भुगतान देश द्वारा किया गया विदेशी वस्तुओं सेवाओं, आदि का व्यय तथा उधार देना विदेशी विनिमय की माँग प्रदर्शित करते हैं। यह मानने के लिए कोई आधार नहीं है कि हमारी विदेशी विनिमय की पूर्ति हमेशा ही हमारी विदेशी विनिमय की माँग के बराबर होगी। ऐसा तभी होगा जबकि चालू खाता तथा पूँजी खाता की स्वायत्त प्राप्ति चालू खाते तथा पूँजी खाते पर प्रदर्शित स्वायत्त भुगतान के ठीक-ठीक बराबर हो, ऐसी भुगतान सन्तुलन की जब भी स्थिति होगी तो इससे सम्बन्धित विनिमय दर संस्थिति विनिमय दर होगी। आरेख में प्रदर्शित or0 (1 डालर = 16 रुपया) संस्थिति विदेशी विनिमय दर है जिस पर सम्पूर्ण स्वायत्त प्राप्तियाँ = सम्पूर्ण स्वायत्त भुगतान अर्थात् Df = Sf और यह विदेशी विनिमय बाजार की पूर्ण निकासी प्रदर्शित करेगी तथा इस स्थिति में भुगतान सन्तुलन संस्थिति (या सन्तुलन) की स्थिति में है। उल्लेखनीय है कि r0 को छोड़कर सभी दरें असन्तुलन प्रदर्शित करती हैं। उदाहरण के लिए, r2 को लीजिए जिस पर विदेशी विनिमय की पूर्ति r2 b है जबकि माँगे r2 a है अर्थात् ab पूर्ति आधिक्य है। यदि विदेशी विनिमय बाजार में पूर्ति आधिक्य हो तो माँग एवं पूर्ति की शक्तियाँ क्रियाशील होंगी, विनिमय दर नीचे गिरेगी, तब तक गिरेगी जब तक संस्थिति विनिमय दर or2 नहीं प्राप्त हो जाती। इसी प्रकार यदि विनिमय दर or2 हो तो माँग rd होगी जबकि पूर्ति r2c  होगी, माँग आधिक्य की स्थिति होगी, विनिमय दर में ऊपर उठने की प्रवृत्ति होगी, जब तक कि or0 की संस्थिति दर नहीं जाती।

निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि किसी देश की प्राप्तियाँ उसके भुगतान से अधिक हो जायं तो उसकी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति से अधिक हो जायेगी या विदेशी मुद्रा की पूर्ति उसकी माँग से अधिक हो जायेगी, फलस्वरूप विदेशी मुद्रा के रूप में उस देश की मुद्रा का मूल्य बढ़ जायेगा या उस देश की मुद्रा के रूप में विदेशी मुद्रा का मूल्य गिर जायेगा, इसके विपरीत यदि उस देश का भुगतान उसकी प्राप्तियों से अधिक हो जाय तो उसकी मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति से अधिक हो जायेगी। फलस्वरूप उसकी मुद्रा का विदेशी मुद्रा के रूप में मूल्य गिरेगा तथा उस देश की मुद्रा  के रूप में विदेशी मुद्रा का मूल्य बढ़ेगा। इस प्रकार चाहे हम यह कहें कि दो देशों की मुद्राओं की माँग तथा पूर्ति विनिमय दर का निर्धारण करती हैं या चाहे यह कहें कि उन देशों का भुगतान सन्तुलन उनके बीच विनिमय दर का निर्धारण करता है, बात एक ही होगी।

मुद्राओं की माँग तथा पूर्ति की शक्तियों में होने वाला परिवर्तन उन देशों के भुगतान सन्तुलन के विवरण में पूर्णतया परिलक्षित होगा तथा भुगतान सन्तुलन में होने वाला परिवर्तन मुद्राओं की माँग तथा पूर्ति की शक्तियों में होने वाले परिवर्तन को प्रदर्शित करेगा। किसी देश के भुगतान के सन्तुलन का उसके अनुकूल होना अर्थात् निर्यात का आयात के ऊपर आधिक्य प्रदर्शित करना उस देश की मुद्रा की माँग का उसकी पूर्ति के ऊपर आधिक्य प्रदर्शित करेगा, फलस्वरूप विदेशी मुद्रा के रूप में उसकी मुद्रा की पूर्ति का मूल्य बढ़ेगा (या विदेशी मुद्रा का मूल्य गिरेगा) तथा इसके विपरीत किसी देश के भुगतान सन्तुलन का उसके प्रतिकूल होना अर्थात् आयात का निर्यात के ऊपर आधिक्य प्रदर्शित करना उस देश की मुद्रा की पूर्ति का उसकी माँग के ऊपर आधिक्य प्रदर्शित करेगा, फलस्वरूप विदेशी मुद्रा के रूप में उसकी मुद्रा का मूल्य गिरेगा (या विदेशी मुद्रा का मूल्य बढ़ेगा) डा० एस. एल. परमार के शब्दों में यह कहना उचित होगा कि ‘दो देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दर का निर्धारण उनके भुगतान सन्तुलन के द्वारा होता है जो एक दूसरे सन्दर्भ में उनकी मुद्राओं की मांग तथा पूर्ति के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जिस प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु का मूल्य उसकी माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वास- होता है उसी प्रकार विदेशी विनिमय बाजार में विदेशी विनिमय दर का निर्धारण उसकी माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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