पारिश्रमिक का आशय | प्रबन्धकीय परिश्रमिक के प्रावधान | Meaning of Remuneration in Hindi | Provisions of Managerial Remuneration in Hindi
पारिश्रमिक का आशय | प्रबन्धकीय परिश्रमिक के प्रावधान | Meaning of Remuneration in Hindi | Provisions of Managerial Remuneration in Hindi
पारिश्रमिक का आशय (Meaning of Remuneration)
पारिश्रमिक में निम्नांकित मद शामिल किये जाते हैं:
(i) कम्पनी द्वारा अपने संचालकों या प्रबन्धक को रहने के लिए निःशुल्क मकान देने में या रहने के मकान के सम्बन्ध में निःशुल्क अन्य सुविधाएं देने में किये गये व्यय ।
(ii) कम्पनी द्वारा अपने संचालकों और प्रबन्धक को अन्य कोई लाभ की सुविधा निःशुल्क या रियायती दर पर देने में किये गये व्यय ।
(iii) कम्पनी द्वारा अपने संचालक या प्रबन्धक की ओर से किया गया कोई व्यय जिसे यदि कम्पनी न करती, तो कर्मचारी को करना पड़ता।
(iv) कम्पनी द्वारा अपने संचालक, प्रबन्धक एवं इनकी पत्नी और बच्चों के जीवन बीमा, पेंशन, वार्षिकी या ग्रेच्युइटी पर किया हुआ व्यय ।
नियमों में केवल प्रबन्धकीय पारिश्रमिक पर नियंत्रण किया गया है जो इस बात को स्पष्ट करता है कि संचालक आदि द्वारा किसी अन्य में प्राप्त किया गया पारिश्रमिक निर्धारित अधिकतम सीमा में नहीं जोड़ा जाएगा।
प्रबन्धकीय परिश्रमिक के प्रावधान
(Provisions of Managerial Remuneration)
संचालकों एवं प्रबन्ध संचालकों के पारिश्रमिक से सम्बंधित प्रावधान कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 197 में दिए गए हैं, जो निम्न प्रकार हैं:
(1) प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की अधिकतम सीमा- किसी वित्तीय वर्ष में एक सार्वजनिक कम्पनी द्वारा अपने संचालकों (प्रबन्ध संचालक एवं पूर्णकालिक संचालक को शामिल करते हुए और अपने प्रबन्धकों को दिया जाने वाला कुल पारिश्रमिक उस वित्तीय वर्ष के शुद्ध लाभ के 11% से अधिक नहीं होगा।
यह प्रावधान है कि केन्द्र सरकार के अनुमोदन के साथ कोई कम्पनी अपनी सामान्य सभा में कम्पनी को शुद्ध लाभ के 11% से अधिक पारिश्रमिक के भुगतान के लिए अधिकृत कर सकती है, लेकिन यह अनुसूची V के प्रावधानों के अनुकूल होगा। इसके साथ ही।
(i) किसी एक प्रबन्ध संचालक या पूर्णकालिक संचालक या प्रबन्धक को भुगतान किया जाने वाला पारिश्रमिक शुद्ध लाभ के 5% से अधिक नहीं होगा। यदि ऐसे एक से अधिक संचालक हैं तो इन सभी का कुल मिलाकर पारिश्रमिक कम्पनी के शुद्ध लाभ के 10% से अधिक नहीं हो सकता।
(ii) संचालकों को देय पारिश्रमिक, जो न तो पूर्णकालिक संचालक हैं और न प्रबन्ध संचालक हैं (अ) कम्पनी के शुद्ध लाभ के 1% से अधिक नहीं होगा यदि कम्पनी में प्रबन्ध संचालक या पूर्णकालिक संचालक या प्रबन्धक हैं। (व) अन्य दशाओं में शुद्ध लाभ के 3% से अधिक नहीं होगा। (धारा 197(1)
संक्षेप में प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की सारणी को निम्न प्रकार रखा जा सकता है:
कुल दिए जाने वाले प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की सारणी
पारिश्रमिक प्राप्त करने वाले विभिन्न श्रेणी के व्यक्ति |
शुद्ध लाभ का अधिकतम दर |
समस्त अंशकालिक संचालक जब कोई मैनेजर या प्रबन्ध संचालक या पूर्णकालिक संचालक हो |
1% |
समस्त अंशकालिक संचालक जब कोई मैनेजर या प्रबन्ध संचालक या पूर्णकालिक संचालक न हो |
3% |
प्रबन्धकीय संचालक (जब केवल एक प्रबन्धकीय संचालक हो) |
5% |
मैनेजर (जब एक से अधिक मैनेजर होने का प्रावधान न हो) |
5% |
पूर्णकालिक संचालक (जब केवल एक संचालक हो) |
5% |
पूर्णकालिक संचालक व पूर्णकालिक संचालकों को संयुक्त रूप से लेने पर |
10% |
कुल प्रबन्धकीय पारिश्रमिक समस्त संचालकों, प्रबन्धकीय संचालकों या मैनेजर व/या पूर्णकालिक संचालक |
11% |
(2) पारिश्रमिक फीस के अतिरक्त- उपर्युक्त वर्णित प्रतिशत दरें उप-धारा (5) के अन्तर्गत संचालकों को भुगतान की जाने वाली फीस के अलावा होंगी। (धारा 197 (2)।
(3) लाभ न होना या अपर्याप्त लाभ- यदि किसी वित्तीय वर्ष में लाभ नहीं हुआ है। या इसके लाभ अपर्याप्त हैं तो कम्पनी अपने संचालकों, प्रबन्ध या पूर्णकालिक संचालक या प्रबन्धक सहित, को अनुसूची V के प्रावधानों के सिवाय उप-धारा (5) के अन्तर्गत फीस को छोड़कर अन्य किसी पारिश्रमिक का भुगतान नहीं करेगी।
(धारा 197(3)।
(4) अन्तर्नियमों या प्रस्ताव के अनुसार- इस धारा के प्रावधानों के अनुसार प्रबन्धकीय पारिश्रमिक का निर्धारण कम्पनी के अन्तर्नियमों अथवा एक प्रस्ताव के द्वारा किया जा सकता है। अगर अन्तर्नियमों में प्रावधान हो तो कम्पनी की साधारण सभा में एक विशेष प्रस्ताव पारित किया जा सकता है।
संचालकों को उनकी सेवाओं के बदले दिया गया कोई भी पारिश्रमिक इनके पारिश्रामिक में शामिल किया जाता है, किन्तु निम्न को छोड़करः
(अ) प्रदान की गयी सेवाएं पेशेवर प्रकृति की हैं और
(ब) यदि कम्पनी धारा 178 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत आती है तो मनोनयन एवं पारिश्रमिक समिति के विचार में तथा अन्य दशाओं में संचालक मण्डल के विचार में वह संचालक पेशेवर की तरह कार्य करने की आवश्यक योग्यता रखता है।
(धारा 197 (4))।
(5) फीस की राशि- एक संचालक बोर्ड या समिति की बैठक में शामिल होने के लिए फीस के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है।
(धारा 197 (5)।
कम्पनीज (प्रबन्धकीय व्यक्तियों की नियुक्ति एवं पारिश्रमिक) नियम, 2014 के अनुसार कम्पनी द्वारा संचालक को संचालक मण्डल या समिति की बैठक में शामिल होने के लिए वह फीस दी जाएगी जो इस सम्बन्ध में संचालक मण्डल द्वारा निर्धारित की लेकिन यह फीस प्रति बैठक एक लाख र. से अधिक नहीं होगी। यह भी प्रावधान है कि स्वतंत्र संचालकों एवं महिला संचालकों की फीस अन्य संचालकों को देय फीस से कम नहीं होगी।
(6) पारिश्रमिक भुगतान की विधि- संचालक या प्रबन्धक को पारिश्रमिक का भुगतान मासिक आधार पर किया जा सकता है या कम्पनी के शुद्ध लाभ के प्रतिशत के रूप में किया जा सकता है अथवा आंशिक एक तरह से और आंशिक दूसरी तरह से दिया जा सकता है।
(धारा 197(6)।
(7) स्वतंत्र संचालक पर प्रतिबन्ध- कोई स्वतंत्र संचालक किसी स्टॉक विकल्प (Employees Stock Option) का अधिकारी नहीं होगा और उप-धारा (5) के अधीन प्रावधारित फीस के रूप में पारिश्रमिक, बोर्ड की अथवा अन्य मीटिंगों में भाग लेने के लिए व्ययों की प्रतिपूर्ति और लाभ सम्बद्ध कमीशन, जैसा सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाए, प्राप्त कर सकता।
(धारा 197 (7)।
(8) शुद्ध लाभ की गणना- इस धारा के लिए शुद्ध लाभ की गणना धारा 198 में निर्दिष्ट रीति से की जाएगी।
(धारा 197 (8)।
(9) संचालकों द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक से अधिक ले लेने पर उसे लौटाना– यदि किसी संचालक ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में पारिश्रमिक की सीमाओं से अधिक पारिश्रमिक बिना केन्द्र सरकार की पूर्व अनुमति (जहां इसके लेने की आवश्यकता हो) ले लिया है, तो उसे यह अधिक राशि कम्पनी को लौटानी पड़ेगी और जब तक यह राशि नहीं लौटायी जायेगी तब तक वे इसे कम्पनी के लिए प्रन्यास के रूप में रखेंगे।
(धारा 197(9)।
(10) शर्त हटाना- जब तक केन्द्र सरकार की सहमति न हो, कोई कम्पनी संचालकों द्वारा वापस किये जाने वाली उपर्युक्त वर्णित राशि वाली शर्त को हटा नहीं सकती।
(धारा 197 (10)।
(11) पारिश्रमिक का स्पष्टीकरण- प्रत्येक सूचीबद्ध कम्पनी संचालक मण्डल रिपोर्ट में कर्मचारियों के मध्यका पारिश्रमिक से प्रत्येक संचालक के पारिश्रमिक के अनुपात को स्पष्ट करेगी।
(धारा 197 (11)
यदि कम्पनी ने लाभ न कमाया हो या अपर्याप्त लाभ हों तो (अनुसूची V भाग II ) – यदि किसी वित्तीय वर्ष में कम्पनी को लाभ न हुआ हो या अपर्याप्त लाभ हुआ हो तो कम्पनी बिना केन्द्र सरकार के अनुमोदन के निम्न में से जो भी अधिक हो की दर से पारिश्रमिक दे सकती हैं:
(1) |
(2) |
जब प्रभावी पूजी की मात्रा निम्न प्रकार हो |
वार्षिक पारिश्रमिक की सीमा निम्न से अधिक नहीं हो सकती |
(i) ऋणात्मक (Negative) या ₹ 5 करोड़ से कम पूंजी हो |
₹.30 लाख |
(ii) ₹.5 करोड़ या अधिक परन्तु र.100 करोड़ से कम पूंजी हो |
₹. 42 लाख |
(iii) ₹.100 करोड़ से अधिक परन्तु ₹250 करोड़ से कम पूंजी हो या ₹. 250 करोड़ या अधिक पूंजी हो |
₹.60 लाख – ₹.60 लाख + ₹250 करोड़ से ऊपर प्रभावी पूंजी का 0.01 प्रतिशत |
उपर्युक्त राशियां दोगुनी हो जाएंगी यदि कम्पनी की सामान्य सभा में विशेष प्रस्ताव पारित कर लिया जाए।
लाभ न होने या कम होने की दशा में पारिश्रमिक के विषय में ऊपर दी हुई सीमाएं तभी लागू होंगी जब-(i) संचालक मण्डल की बैठक में प्रस्ताव पारित किया जाए।
(ii) उस प्रबन्धकीय व्यक्ति की नियुक्ति के पिछले वित्तीय वर्ष में कम्पनी ने अपने किसी ऋण (जिसमें जन-निक्षेप भी शामिल हैं) ऋणपत्रों या उन पर देय ब्याज के भुगतान में लगातार 30 दिन की अवधि की त्रुटि नहीं की है।
(iii) कम्पनी की सामान्य सभा में अधिकतम तीन वर्ष का पारिश्रमिक देने का विशेष प्रस्ताव पारित किया जाता है। इस सभा का नोटिस सभी अंशधारियों को भेजा जाएगा, जिसमें पारिश्रमिक के विषय का वर्णन होगा।
नोट- उस प्रबन्धकीय व्यक्ति की दशा में जिसके पास कम्पनी की ₹.5 लाख से अधिक की प्रतिभूतियां नहीं हैं या कम्पनी का कर्मचारी या संचालक या ऐसा व्यक्ति जो अपनी प्रबन्धकीय व्यक्ति के रूप में नियुक्ति से पहले के दो वर्षों में किसी संचालक या प्रवर्तक का रिश्तेदार नहीं था उसका पारिश्रमिक 2.5 प्रतिशत हो सकता है।
कुछ विशेष परिस्थितियों में कम्पनियां बिना केन्द्र सरकार की आज्ञा के उपर्युक्त बताई गई सीमा से अधिक पारिश्रमिक दे सकती हैं।
(अनुसूची V भाग II)
विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) में स्थापित कम्पनियों के लिए विशेष प्रावधान (Special provision for companies established in Special Economic Zone) – विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थापित कम्पनियों के लिए 240 लाख र प्रतिवर्ष या 20 लाख प्रति माह तक प्रबन्धकीय पारिश्रमिक भुगतान करना सम्भव है। इस सम्बन्ध में केन्द्र सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त करना आवश्यक नहीं है।
(अनुसूची V भाग III)
इस दशा में निम्न शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है :
(अ) कम्पनी ने अंशों या ऋणपत्रों को जारी कर कोई भी पूंजी अर्जित नहीं की है, व
(ब) कम्पनी ने ऋणों व ऋणपत्रों व उन पर देय व्याज के भुगतान में किसी वित्तीय वर्ष में 30 दिन तक लगातार कोई त्रुटि नहीं की हो।
यदि कोई कम्पनी अधिनियम की उपर्युक्त अनुसूची में वर्णित दरों से अधिक पारिश्रमिक का भुगतान करना चाहती है तो उसे ‘कम्पनी मामलों से सम्बंधित विभाग’ (Department of Company Affairs) को एक आवेदन-पत्र देना होगा जिसके साथ संचालक मण्डल या साधारण वार्षिक सभा में पारित प्रस्ताव की प्रति और पारिश्रमिक वृद्धि के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक होगा। यदि कम्पनी के द्वारा अधिक पारिश्रमिक देने का प्रस्ताव किया जाता है तो उसके औचित्य को विस्तार से बतलाना होगा और उसे आवश्यक तत्वों पर ध्यान देना होगा।
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