इतिहास / History

आर्यों का मूल निवास स्थान | आर्यों के मूल निवास स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न मत

आर्यों का मूल निवास स्थान | आर्यों के मूल निवास स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न मत

आर्यों का मूल निवास स्थान (प्रस्तावना)

सिन्धु सभ्यता को जन्म देने वाली एवं विकसित करने वाली जाति या जातियों के बारे में कोई निश्चित ज्ञान नहीं है। अतः इस सभ्यता का नामकरण उस क्षेत्र के नाम के आधार पर हुआ जिसमें कि उसका प्रसार हुआ। सिन्धु सभ्यता के विनाश के पश्चात् ही भारत में वैदिक सभ्यता का जन्म हुआ। इस वैदिक सभ्यता के विकास करने वाले जन समुदाय को ‘आर्य’ कहकर पुकारा जाता था। आर्य शब्द का अर्थ उत्तम अथवा श्रेष्ठ होता है। अतः भारत में बसने वाली अन्य जातियों से अपनी श्रेष्ठता प्रकट करने के लिए वैदिक सभ्यता के निर्माताओं ने अपने आपको आर्य कहकर सम्बोधित करना प्रारम्भ किया। आर्य लोग लम्बे डीलडौल, हृष्ट-पुष्ट, गोरे रंग तथा वीर एवं साहसी होते थे। ‘आर्य’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग वेद लिखने वालों ने किया जो अपने विरोधियों को ‘दस्यु’ और दास कहकर पुकारते थे। अधिकांश विद्वानों का मत है कि सैंधव लोगों पर आक्रमण कर अपनी विकसित युद्ध प्रणाली तथा उच्चतर सैनिक संगठन द्वारा युद्ध कर्मी आर्यों ने उन पर विजय प्राप्त कर ली और उनकी सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस प्रकार सैंधव सभ्यता के ध्वंसावशेषों के ऊपर आर्य सभ्यता की नींव डाली गई। आर्यों का आदि देश कौन-सा था, इस पर विद्वानों ने मुख्य पाँच साधनों- (1) इतिहास, (2) भाषा विज्ञान, (3) पुरातत्व, (4) शरीर रचना-शास्त्र और (5) शब्दार्थ विकास-शास्त्र का प्रयोग किया है। परन्तु इनके निष्कर्ष इतने भिन्न हैं कि आज भी यह प्रश्न उतना ही विवादग्रस्त है।

आर्यों के मूल निवास स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न मत

आर्यों के मूल निवास-स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के मत निम्नलिखित हैं-

(1) भारत ही आर्यों का मूल निवास-स्थान

स्वयं वेदों में कोई उल्लेख न मिलने के कारण तथा पुराणों के आधार पर कुछ विद्वान भारत को ही आर्यों का मूल स्थान मानते हैं। डॉ० अविनाश चन्द्रदास और डॉ० सम्पूर्णानन्द ने सप्त सिन्धु आर्यों का आदि स्थान माना है। उनके अनुसार वेदों में इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति का विस्तृत विवरण मिलता है। धार्मिक मतभेदों के कारण उनमें दो दल बन गये जो देव और असुर के नाम से सम्बोधित हुए। पुराण तथा ईरानियों के धार्मिक ग्रन्थों के सम्मिलित अध्ययन से भी यह पता चलता है कि कोई संग्राम (पुराणों का देवासुर संग्राम) दो जत्थों के बीच हुआ। इस युद्ध में, पुराणों के अनुसार, देवताओं ने असुरों को खदेड़ दिया। इन विद्वानों का कहना है कि आर्य यहाँ से बाहर अवश्य गये थे किन्तु आये कहीं से नहीं थे। अपनी पुष्टि में वे आर्यों की विभिन्न शाखाओं में साम्य प्रस्तुत करते हैं। ग्रीक, लेटिन, संस्कृत, गैधिक, कैल्टिक तथा फारसी भाषाओं में काफी समानता है। भारतीय विद्वान श्री एल०डी० कल्ला तथा डी०एस० त्रिवेदी का भी यही मत है। श्री एल० डी० कल्ला ने कश्मीर तथा हिमालय पर्वत को आर्यों का मूल निवास- स्थान बतलाया है और डी० एस० त्रिवेदी ने मुल्तान के निकट देविका नदी के आस-पास के क्षेत्र को आर्यों की जन्मभूमि बताया है। डॉ० राजबली पाण्डेय ने मध्य देश को आर्यों का मूल स्थान बताया है।

भारत को आर्यों का आदि देश मानने वालों का एक अन्य तर्क यह है कि आर्य परिवार की भाषाओं में संस्कृत शब्दों की संख्या अन्य भाषाओं की अपेक्षा अधिक है।

परन्तु इस मत के विरुद्ध अनेक पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों का कहना है कि ये विचार केवल भारत के प्रति अपनत्व की भावना से प्रेरित होकर भावुकतावश प्रकट किये गए हैं। आर्यों को भारत का मूल निवासी न मानने वाले विद्वान निम्न तर्क देते हैं-

(i) भारत में आर्यों के आने के पहले अनार्य मौजूद थे जिनके पुर और दुर्ग नष्ट करके आर्यों ने उन्हें या तो खदेड़ दिया था या उन्हें दास बना लिया था। आर्यों और अनार्यों के बीच भीषण संघर्ष हुए हैं, जिनका उल्लेख वेदों में मौजूद है। यदि आर्य भारत के मूल निवासी होते तो फिर अनार्यों से संघर्ष होने का प्रश्न नहीं उठता।

(ii) आर्यों तथा अनार्यों की सभ्यता में जमीन-आसमान का अन्तर है। फिर भी अनार्यों ने चप्पा-चप्पा भूमि के लिए अपना खून बहाया और हार जाने पर ही वे पीछे हटे या तो वे जंगलों में भाग गये या आर्यों के दास बन गये। निष्कर्ष यही निकलता है कि आर्य भारत में कहीं बाहर से आये थे। वे भारत के मूल निवासी नहीं थे।

(iii) एक अन्य तर्क इस सम्बन्ध में यह दिया जाता है कि यदि भारत आर्यों का आदि देश रहा तो इससे पूर्व कि यहां से कुछ आर्य बाहर जायँ, सम्पूर्ण भारत का आर्याकरण हो गया होता। किन्तु यहाँ तो सम्पूर्ण दक्षिण भारत तथा उत्तर भारत का कुछ भाग भाषा के विचार से अनार्य सा ही है।

(iv) यदि आर्य सिन्धु सभ्यता के निर्माता नहीं हैं तो उनको भारत का आदि निवासी कैसे माना जा सकता है।

(2) आर्यों का मूल निवास स्थान ध्रुव प्रदेश-

ऋग्वेद में कुछ ऐसे दृश्यों का वर्णन मिलता है, जहाँ छः महीने का दिन और छः महीने की रात तथा कई-कई दिन के उषा-काल का उल्लेख किया गया है। प्रामाणिक ईरानी ग्रन्थ ‘अवेस्ता’ में भी लम्बे-लम्बे दिन-रात तथा बर्फ गिरने का वर्णन मिलता है। अतः श्री बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक ‘आर्कटिक होम इन दी वेदाज’ में यह मत प्रस्तुत किया है कि आर्यों का मूल और सम्मिलित निवास- स्थान उत्तरी ध्रुव प्रदेश था।

किन्तु अन्य विद्वानों का कहना है कि ऐसे शीत प्रदेश में आर्य सभ्यता कैसे पनपी होगी? भूगोलवेत्ताओं का कहना है कि अति प्राचीन काल में ध्रुव-प्रदेश इतना ठंडा नहीं था, जितना अब है। कुछ भी हो, तिलक का यह मत संदिग्धावस्था में ही है।

(3) आर्यों का मूल निवास स्थान तिब्बत प्रदेश

आर्य समाज के जन्मदाता स्वामी दयानन्द ने प्राचीन पुस्तकों के आधार पर आर्यों का मूल निवास स्थान तिब्बत प्रदेश माना है। आर्यों ने ऋग्वेद में जिन वस्तुओं का तथा बातों का वर्णन किया है वे प्रायः तिब्बत में पाई जाती हैं। जब तिब्बत में आर्यों की जनसंख्या बढ़ गई, तब वे बाहर निकले, कुछ भारत आ गये और कुछ यूरोप की ओर चले गये। किन्तु आजकल के इतिहासकार स्वामी दयानन्द के इस मत से भी सहमत नहीं हैं।

(4) आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य यूरोप-

अधिकांश विद्वानों ने मध्य यूरोप को (आस्ट्रिया तथा हंगरी को) आर्यों का मूल निवास स्थान माना है। डॉ० पी० गाइल्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Cambridge History of India में लिखा है कि आर्य डेन्यूब नदी के किनारे रहा करते थे। वे वहीं से भारत की ओर आए। उन्होंने प्रमाण में कहा है कि गंगा घाटी से लेकर आयरलैंड तक जितनी भी भाषायें हैं, वे सब आर्यों की भाषा से सम्बन्ध रखती हैं। उन्हीं के शब्दों में, “उनकी भाषा से हमें ज्ञात होता है कि किन-किन पशुओं एवं वृक्षों का उन्हें ज्ञान था। उन भाषाओं के साम्य से जिन्हें वे बोलते थे, हम ऐसा अनुमान करते हैं कि वे लोग पर्याप्त समय तक एक स्थान पर एक साथ रहे होंगे जिससे कई पीढ़ियों तक वे अपने विशेष गुणों में विकास लाते रहे। यह क्षेत्र गिरि-शृंखला या जल द्वारा अन्य स्थानों से पृथक् कर दिया गया होगा। इन भाषाओं के अध्ययन से हमें यह आभास नहीं मिलता कि ये लोग किस द्वीप पर रहते होंगे। …इनकी भाषाओं के अध्ययन से यह ज्ञात हो जाता है कि इन्हें किन-किन वृक्षों का ज्ञान था। ये वृक्ष शीतोष्ण कटिबन्ध में उत्पन्न होते हैं। अतः आर्यों का आदि देश शीतोष्ण कटिबन्ध में रहा होगा। वह पर्वतमालाओं से घिरा रहा होगा। …जिन पशुओं का उन्हें ज्ञान था वे बैल, गाय, भेड़, घोड़ा, कुत्ता, सूअर, हिरण इत्यादि थे।….ये लोग खाद्यान्न, विशेषतया गेहूं तथा जौ का प्रयोग जानते थे।” इस आधार पर उन्होंने हंगरी को आर्यों का आदि देश ठहराया है। प्रो० मैकाडानेल ने भी डॉ०पी० गाइल्स के मत की पुष्टि की है। उनका कहना है कि गाय, घोड़ा, लोहा आदि उन दिनों केवल मध्य-यूरोप में ही मिलते थे।

(5) आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया-

जर्मनी के एक प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर मैक्समूलर की मान्यता थी कि आर्य मध्य एशिया के रहने वाले थे। उन्होंने विभिन्न भाषाओं के शब्द साम्य के आधार पर यह विचार व्यक्त किया था। भारतीय आर्यों की जानकारी वेदों से मिलती है और ईरान के आर्यों की जानकारी ‘अवेस्ता’ से मिलती है। वेदों की और अवेस्ता की भाषा में बहुत निकटता है। इसलिए उनका कहना है कि यह स्थान ईरान और भारत के बीच या बीच के आस-पास होना चाहिए। यह स्थान मध्य एशिया ही होना चाहिए। मध्य एशिया में घोड़े पाये जाते हैं, पीपल के वृक्ष भी मध्य एशिया में हैं, जिससे आर्य परिचित थे। आर्यों का मूल निवास स्थान खूब हरा-भरा था। अतः मध्य एशिया ही वह स्थान हो सकता है।

(6) पामीर पर्वत और जर्मनी-

एडवर्ड, मेयर आर्यों का मूल निवास स्थान पामीर पर्वत मानते हैं और कुछ विद्वानों का मत है कि आर्यों का मूल निवास स्थान जर्मनी था। पेन्का नामक विद्वान ने भूरे-बालों और शारीरिक विशेषताओं के आधार पर जर्मन-प्रदेश के स्केण्डिनेविया को आर्यों का निवास स्थान माना है। हर्ट नामक विद्वान ने भाषा-सम्बन्धी आधार पर स्केण्डिनेविया को आर्यों का मूल निवास स्थान माना है। किन्तु तर्क और प्रमाणों के अभाव में दोनों ही मत स्वीकार नहीं किये जाते।

सबसे अधिक विश्वसनीय मत मध्य एशिया-

आर्यों के मूल निवास स्थान के सम्बन्ध में ऊपर जिन विभिन्न मतों का उल्लेख किया गया है, उनमें प्रो० मैक्समूलर का मत अधिक विश्वसनीय समझा जाता है। बिल्कुल सत्य क्या है, यह कहना तो कठिन है, किन्तु प्रोफेसर मैक्समूलर के सिद्धान्त में विश्वासन करने के निम्नलिखित कारण हैं-

(i) बहुसंख्या में विदेशी और भारतीय इतिहासकार मैक्समूलर के मत से सहमत हैं। अन्य मतों की अपेक्षा वे इसे अधिक महत्व देते हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० त्रिपाठी ने इस सम्बन्ध में लिखा है, “यह भावना अनुचित नहीं है कि यूरोप और भारत के रहने वाले लोगों के पूर्वज एक ही मूल स्थान के रहने वाले थे और धीरे-धीरे मध्य एशिया से वे अन्य देशों में फैल गये।

(ii) एशिया माइनर ने ‘बोगजकोई’ नामक स्थान पर एक शिलालेख मिला है, जिसमें आर्यों के देवता इन्द्र और वरुण का उल्लेख है, जो उस देश में भी प्रारम्भ में पूजे जाते थे। यह लेख इस बात को सिद्ध करता है कि आर्य मध्य एशिया की ओर से भारत आये।

(iii) आर्यों का मुख्य उद्यम कृषि और पशुपालन था। उन दिनों मध्य एशिया एक बड़ा उपजाऊ प्रदेश था और वहाँ सब प्रकार की उपज और घास, जो पशुओं के चरने में काम आती थी, काफी होती थी। आर्य लोग ऐसी ही जगह रह सकते थे। अपनी संख्या बढ़ जाने या पारस्परिक झगड़ों के कारण वे अन्य देशों में चले गये।

(iv) अन्तिम कारण यह बताया जाता है कि मध्य एशिया ही एक ऐसा स्थान है, जो यूरोप और भारतवर्ष से लगभग समान दूरी पर है। इसलिए कुछ आर्य भारतवर्ष की ओर आ गये और कुछ यूरोप की ओर चले गये।

आर्य कब और कैसे आये?-

ऋग्वेद की रचना का कोई निश्चित समय नहीं बताया जा सकता। इस सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। बालगंगाधर तिलक के मतानुसार वेदों की रचना 6000 ई०पू० हुई है। ज्योतिष के आधार पर जेकोबी ईसा के 4000 वर्ष पूर्व इसकी रचना मानते हैं। मैक्समूर जैसे विद्वान ऋग्वेद की रचना का समय ईसा से 1200-1000 वर्ष पूर्व मानते हैं। अधिकांश लोग इस मत से सहमत हैं कि ऋग्वेद की रचना लगभग 1500 ई०पू० हुई थी। उपर्युक्त सब मत केवल अनुमान पर आधारित है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि आर्य भारत में कब आये। डॉ० विमलचन्द्र पाण्डेय का कथन है कि ‘स्थूल रूप से हम आर्यों के आगमन की तिथि 2500 ई०पू० तथा 1000 ई०पू० के बीच में रख सकते हैं। सम्भव है कि यह आगमन की तिथि 2000 ई०पू० और 1500 ई०पू० के बीच रही हो।

निष्कर्ष-

निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि आर्य भारत में आये छोटे-छोटे समूह बनाकर आये और रहने के विचार से आये। क्यों आये? जनसंख्या बढ़ने के कारण या आपसी झगड़ों के कारण, यह नहीं कहा जा सकता। ऋग्वेद में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अफगानिस्तान पर आर्यों का अधिकार था और वे खैबर दर्रे से होकर भारत में आये थे। आर्यों का अनार्यों के साथ वर्षों तक संघर्ष चला। अनार्यों को परास्त कर आर्यों ने सप्तसिन्धु पर अधिकार कर लिया तथा वर्षों बाद वे गंगा-यमुना की ओर बढ़े। उस समय उन्हें बंगाल और विन्ध्याचल का भी पता नहीं था। अतः धीरे-धीरे पूर्व की ओर तथा दक्षिण की ओर गये। अनार्यों को जीतकर आर्यों ने उन्हें अपना दास बना लिया। इस प्रकार समय बीत जाने पर आर्यों और अनार्यों का वैमनस्य दूर हो गया और उनमें पारस्परिक निकट सम्बन्ध स्थापित हो गये। कालान्तर में अनार्य भी आर्यों में ही घुलमिल गये।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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