संरचनात्मक प्रकार्यवाव | संरचनात्मक प्रक्रियावाद की प्रक्रिया | संरचनात्मक प्रकार्यवाद की आलोचना | संरचनात्मक प्रकार्यवाव का मूल्यांकन
संरचनात्मक प्रकार्यवाव | संरचनात्मक प्रक्रियावाद की प्रक्रिया | संरचनात्मक प्रकार्यवाद की आलोचना | संरचनात्मक प्रकार्यवाव का मूल्यांकन
संरचनात्मक प्रकार्यवाव
(Structural Functionalism)-
संरचनात्मक प्रकार्यवाद का दृष्टिकोण वह है जो अध्ययन की विधियों में ढाँचे अथवा संरचना के गठन तथा उनके कार्यों की प्रक्रियाओं के बीच तालमेल के कारण और परिणामों को पहचानने का प्रयास करता है। स्थूल रूप से इसे व्यवस्था विश्लेषण का एक नियम भी कहा जा सकता है।
संरचनात्मक प्रकार्यवाद समस्त घटकों, प्रकार्यों एवं संरचनाओं का, जिनकी विश्लेषण के अधीन इकाई के संधारण में आवश्यकता है, अध्ययन करता है। इस उपागम में समष्टिपरकता, तुलनात्मकता, निगमनात्मकता जो कि संरचनावादी उपागा के लक्षण हैं और व्यष्टिपरकता, आगमनात्मकता, पूर्ति व्यापकता, विचार प्रधानता जो कि प्रकार्यवाद के लक्षण हैं, का समन्वय हो जाता है।
संरचनात्मक प्रकार्यवाद का अनुगमन एवं विस्तार विकासशील देशों के शोधकर्ताओं जैसे आलमण्ड, कोलमैन आदि ने किया है। इस उपागम का उद्देश्य राजनीतिक व्यवस्थाओं के सभी पक्षों से सम्बद्ध व्याख्यात्मक परिकल्पनायें प्रस्तुत करने योग्य एक सुसंगत और एकीकृत सिद्धान्त निर्मित करना है।
संरचनात्मक प्रक्रियावाद की प्रक्रिया
(Process of Structural Functionalism)-
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण एक निरन्तर विकासशील, प्राथमिक एवं प्रभावपूर्ण उपागम है।
इसकी प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार हैं:-
(1) इस उपागम का विश्लेषण करने वाला सबसे पहले अपनी अध्ययन इकाई की परिभाषा प्रस्तुत करता है।
(2) तत्पश्चात् वह उस इकाई पर प्रभाव डालने वाले संचालन करने वाले परिवेश की खोज करता है।
(3) वह कतिपय परिकल्पनायें प्रस्थापित करके यह देखता है कि विचाराधीन स्तर पर उस परिवेश में संरचनाओं को परिवर्तित किये बिना, उस इकाई की सत्यता को बनाये रखने हेतु किन-किन प्रकार्यों की अपेक्षा की जा सकती है। इसी प्रक्रिया से संरचनात्मक अपेक्षायें भी ज्ञात की जाती हैं।
(4) विश्लेषणकर्ता यह भी देखता है कि उस व्यवस्था की प्रकार्यात्मक एवं संरचनात्मक पूवपिक्षायें, जो उसकी सत्यता तथा साम्यावस्था की अनिवार्य शर्ते हैं, कौन-कौन-सी हैं।
संरचनात्मक प्रकार्यवाद की आलोचना
(Criticism of Structural Functionalism)
संरचनात्मक प्रक्रियावाद की आलोचना निम्नलिखित प्रकार से की गई है:-
(1) प्रायः समस्त प्रकार्यवादियों में यथास्थितिवाद, स्थायित्व और सन्तुलन-जैसी अनुदारवादी पूर्वधारणायें पायी जाती हैं।
(2) यंग ने प्रकार्यवादियों की आलोचना करते हुए कहा है कि उनमें शाश्वत प्रकार्यवादिता का दोष पाया जाता है।
(3) इस उपागम में नियन्त्रण, शक्ति, नीति निर्माण, प्रभाव आदि दलों के विश्लेषण की सामर्थ्य नहीं है।
(4) इस उपागम ने केवल संधारणात्मक पक्ष पर ही बल दिया है, जिससे उसमें मानवीय तत्वों का समावेश हो गया है।
(5) इस सिद्धान्त को प्रयोग किये जाने के पश्चात् किसी सामान्य सिद्धान्त के विकास के सम्बन्ध में कहना केवल भूतार्थ निर्णयन से है। इसका कारण यह है कि सिद्धान्त का अधिग्रहण तो पहले ही किया जा चुका है।
(6) इस उपागम से सोद्देश्यवादिता स्पष्ट होती है।
(7) वास्तविकता में व्यवस्था अनेक विकल्पों से स्वयं को बनाये रखती हैं और किसी भी विशिष्ट प्रकार्य को अनिवार्य प्रकार्य स्वीकार नहीं किया जा सकता।
(8) यंग (Young) ने कहा है कि प्रकार्यात्मक अनिवार्यताओं की पूर्वधारणा ने इसे यथास्थितिवाद बना दिया है।
संरचनात्मक प्रकार्यवाव का मूल्यांकन
(Evaluation)
उपर्युक्त कमियों के होते हुए भी संरचनात्मक प्रकार्यवाद सर्वाधिक लोकप्रिय और व्यवहार में आने वाला उपागम है। इस उपागम का मूल्यांकन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है।
(1) इस उपागम ने राजनीतिक घटनाओं, आँकड़ों, परिवों तथा प्रक्रियाओं के अध्ययन के प्रबन्धकीय संवर्ग प्रस्तुत किये हैं।
(2) इस उपागम के कारण एक न्यूनतम प्रकार्यों की सूची को मानवीकृत करने से राजनीतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव हो सकता है।
(3) इस उपागम ने समाज के विभिन्न तत्वों की अन्तर्निर्भरता पर ध्यान आकर्षित किया है। इसके कारण अन्तर्निर्भरता तथा अन्त क्रियाओं पर नियन्त्रण करने वाले नियमों की खोज और उनका अध्ययन किया जाने लगा।
(4) इस उपागम ने विश्लेषणात्मक अनुवाद (Atomism) तथा उग्र व्यक्तिवाद के लिये प्रतिबल (Counter force) का कार्य निष्पादित किया है।
(5) इस उपागम ने वर्तमान समस्याओं की ओर अध्ययनकर्ताओं का ध्यान खींचा है।
(6) इस उपागम ने इस सत्य को स्पष्ट कर दिया है कि समाज मशीन मात्र न होकर उससे कुछ अधिक है।
कतिपय आलोचकों ने संरचनात्मक प्रकार्यवादियों की आलोचना यथास्थितिवादी तथा अनुदारवादी कह कर की है। पर वास्तविकता यह है कि वे न तो यथास्थितिवादी हैं और न रूढ़िवादी।
अब प्रकार्यवादी भी अपने दोषों के प्रति सजग हो गये हैं। उन्होंने अपनी सीमाओं, भ्रान्तियों और त्रुटियों को जान लिया है। इसका एक उदाहरण आलमण्ड है। उससे सन् 1965 में सामर्थ्य तथा व्यवस्था संधारण एवं अनुकूलन के संवर्ग जोड़े हैं। उसने राजनीतिक परिवर्तन की व्याख्या करने का प्रयास किया है।
उपसंहार (Conclusion)–
निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि प्रकार्यवाद भले ही सिद्धान्त न हो अथवा उसमें पूर्वकथन तथा नियन्त्रण-शक्ति प्रदान करने का प्रभाव हो तथापि यह स्वीकार करना होगा कि उसने तुलनात्मक विश्लेषण को व्यापक, अधिक यथार्थवादी और परिशुद्ध बनाया है। इस उपागम में अनेक महत्वपूर्ण अवधारणाओं, मानवीकृत शब्दावली एवं आनुभविक विचारबन्ध प्रस्तुत किया है।
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