मौलिक अधिकार | Fundamental Rights in Hindi
मौलिक अधिकार | Fundamental Rights in Hindi
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
मौलिक अधिकार वह अधिकार होते हैं जो किसी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं तथा इसमें राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। इसमें परिवर्तन के लिए संविधान में संशोधन करना होता है। यह ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता। यह मौलिक अधिकार न्याय योग्य होते हैं। अर्थात देश का कानून इन अधिकारों की रक्षा करता है, जिसका उत्तरदायित्व न्यायपालिका पर होता है।
संविधान में मौलिक अधिकार –
भारतीय संविधान में नागरिकों को 7 मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, संविधान में 44 वे संविधान संशोधन (1978) द्वारा संपत्ति के मौलिक अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया गया है इसे अब केवल एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है। वर्तमान समय में नागरिकों के पास 6 अधिकार ही मौलिक अधिकार के रूप में है –
समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक) – इसमें कानून के समक्ष समानता, धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध शामिल है और रोजगार के संबंध में समान अवसर शामिल है।
स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक) – यहां भाषा और विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता का अधिकार, जमा होने, संघ या यूनियन बनाने, आने-जाने, निवास करने और कोई भी जीविकोपार्जन एवं व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का अधिकार (इसमें से कुछ अधिकार राज्य की सुरक्षा, विदेशी देशों के साथ विभिन्नता पूर्ण संघर्ष सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के अधीन दिए जाते हैं)।
शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24 तक) – इसमें बेगार, बाल श्रम और मनुष्यों के व्यापार का निषेध किया जाता है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक) – इसमें आस्था एवं अंतर करण की स्वतंत्रता , किसी भी धर्म का अनुयाई बनना, उस पर विश्वास रखना एवं धर्म का प्रचार करना इसमें शामिल है।
संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 तथा 30) – किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी संस्कृति सुरक्षित रखने, भाषा या लिपि बचाए रखने और अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद की शैक्षिक संस्थाएं चलाने का अधिकार है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) – मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिए संवैधानिक उपचार का अधिकार।
मौलिक अधिकारों का महत्व
- यह लोकतंत्र के आधार तत्व है व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विकास तथा प्रगति के लिए मौलिक अधिकार अनिवार्य है। इन अधिकारों के बिना सच्चे प्रजातंत्र के सिद्धांत लागू नहीं होते तथा व्यक्ति की गरिमा एवं प्रतिष्ठा का अस्तित्व प्रभावी नहीं होता।
- मौलिक अधिकार व्यक्ति की राजनीतिक प्रक्रिया में सहभागिता सुनिश्चित करते हैं, जिससे व्यक्ति की आकांक्षाओं एवं राजनीतिक उद्देश्यों के मध्य समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित होता है।
- मौलिक अधिकार व्यक्ति एवं समुदाय विशेष को शोषण से सुरक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि राजनीतिक चेतना को जागृत करने में यह अधिक सहायक होते हैं।
- मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं।
- ये सरकार की निरंकुशता पर प्रतिबंध लगाते हैं।
- ये कानून का शासन स्थापित करते हैं।
- ये सामाजिक समानता स्थापित करते हैं।
- ये धर्मनिरपेक्ष राज्य के आधार हैं।
- ये कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- ये अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं।
- ये अधिकार लोकतंत्र की आधार शिला है।
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