शिक्षा जगत में वित्त की समस्या को हल करने के उपाय | Measures to solve the problem of finance in the education world in Hindi

शिक्षा जगत में वित्त की समस्या को हल करने के उपाय | Measures to solve the problem of finance in the education world in Hindi
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भारत में शिक्षा वित्त की समस्याओं को हल करने के लिए कुछ उपाय निम्न प्रकार हैं-
- शिक्षा प्रशासन के क्षेत्र में अपव्यय तथा अस्थिरता को समाप्त किया जाये।
- केन्द्र को इस सम्बन्ध में राज्यों की बिना भेदभाव के सहायता करनी चाहिए क्योंकि प्रमुख रूप से यह उत्तरदायित्व राज्य सरकार का ही है। राज्य सरकार को भी इस सम्बन्ध में होने वाले व्यय पर कड़ी निगरानी करनी चाहिए।
- इस समस्या को हल करने के लिए एक प्रमुख सुझाव यह है कि जनसंख्या वृद्धि को रोकना चाहिए। जनसंख्या में वृद्धि होने से अनेक प्रकार के व्यय बढ़ते हैं जिनसे अनावश्यक भार सरकार पर पड़ता है तथा वह उनकी पूर्ति के लिए शिक्षा वित्त में कटौती करने को बाध्य होती है।
- शोध कार्यों तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर ही शिक्षा का स्तर तथा गुणवत्ता निर्भर करती है इसलिए इनको अधिक महत्व देकर प्रोत्साहित करना चाहिए।
- बेकारी को दूर करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए।
- समाज शिक्षा को प्रोत्साहन देना चाहिए।
- प्रत्येक राज्य को प्राप्त राजस्व का एक चौथाई के लगभग हिस्सा शिक्षा के मद में व्यय करना चाहिए।
- स्थानीय स्वायत्त शासन संस्थाओं को पुनः व्यवस्थित करके स्थानीय स्तर पर शिक्षण संस्थाओं तथा अन्य विकास कार्यों का दायित्व उन्हें सौंपना चाहिए तथा स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र में राजस्व वसुली का कार्य भी इन संस्थाओं को सौंपना चाहिए। इस संस्थाओं का मूल उत्तरदायित्व प्राथमिक शिक्षा की सर्व उपलब्धता हो तथा इन स्वायत्त संस्थाओं को समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
- शिक्षा पर व्यय करने के लिए निजी संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मन्दिरों व अन्य धर्मार्थ टस्ट्रों को अपने जमा धन को शिक्षा के ऊपर व्यय करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए तथा इनके फण्ड आदि पर शिक्षा कर लगाने की संभावना देखनी चाहिए।
- उच्च व माध्यमिक स्तर की शिक्षा को ही निजी प्रयास की सीमा में लाना चाहिए।
- विकलांगों तथा महिलाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा इस सम्बन्ध में उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। उच्च स्तर पर महिलाओं को अलग से शिक्षा की बजाय अन्य छात्रों के साथ ही शिक्षा प्रदान करनी चाहिए क्योंकि अलग से शिक्षा की व्यवस्था करना अधिक व्ययकारी होगा।
- प्रतिभाशाली, योग्य एतु निर्धन छात्रों की शिक्षा की ओर भी ध्यान देना आतण्यक है।
- प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय, प्रयोगशाला, खेल का मैदान आदि की व्यवस्था होनी चाहिए।
- प्रत्येक राज्य की माध्यमिक शिक्षा का प्रमण्डल एक होना चाहिये तथा उसकी स्वयं की प्रेस भी होनी चाहिए जिससे वह पुस्तकों का प्रकाशन कर सकें तथा उनकी आय में भी वृद्धि हो व उन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता न हो।
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