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भारतीय करारोपण के सुधार के बारे में सुझाव | निवेश पर करारोपण का क्या प्रभाव पड़ता है।

भारतीय करारोपण के सुधार के बारे में सुझाव | निवेश पर करारोपण का क्या प्रभाव पड़ता है।

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आधुनिक युग में किसी भी देश की सरकार की आय का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन है। करों या टैक्सों का लगाना तथा उनके द्वारा प्राप्त आय। सरकार करों से प्राप्त आय या अन्य साधनों से प्राप्त आय को जनता के सामान्य कल्याण तथा देश के आर्थिक विकास पर व्यय करती है। कर एक अनिवार्य भुगतान है जो कि उस व्यक्ति को अवश्य या अनिवार्य रूप से देना होगा जिस पर कर लगाया जाता है चाहे वह व्यक्ति उसे पसन्द करे या न करे। कर व्यक्ति की आय पर, सम्पत्ति पर या वस्तु की विक्रय आदि पर लगाया जाता है और कर का भुगतान करना सम्बन्धित व्यक्ति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। यदि व्यक्ति कर नहीं देता तो सरकार उसे दण्ड दे सकती है।

कर की परिभाषा

कर की परिभाषा कई अर्थशास्त्रियों ने अपने मतानुसार दी है जो निम्नलिखित है-

प्रो. सेलिग्रमेन के अनुसार- कर व्यक्तियों द्वारा सरकार को दिया गया । एक अनिवार्य अशंदान या भुगतान है जो कि सार्वजनिक हितों पर किए गए व्यय की पूर्ति के लिए दिया जाता है विशिष्ट व्यक्तिगत हितों व लाभ के लिए नहीं।

प्रो. टॉजिग के अनुसार- आय के अन्य साधनों की तुलना में कर का सार इन्ही तथ्यों में है कि उसमें सरकार व करदाता के बीच जैसा का तैसा सम्बन्ध का अभाव होता है।

फिंडले शिराज के शब्दों में- कर सरकारी अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले वे अनुदान हैं जो सार्वजनिक हित को पूरा करने के लिए कर वसूल किये जाते हैं और जिनका किसी विशेष लाभ से कोई सम्बन्ध नही हैं।

करारोपण के सुधार के सुझाव (Suggestions for the improvement of Taxation System)

करो द्वारा प्राप्त आय सरकार जनता के सामान्य कल्याण व हित पर व्यय करती है। किसी व्यक्ति विशेष के हित के लिए नहीं करती टैक्स देने वाले व्यक्ति या सरकार के मध्य कोई विनियय सम्बन्ध नहीं होता। सरकार अपने व्ययों की पूर्ति हेतु करों को लगाती है परन्तु करों से अधिकतम व्यय प्राप्त करने के साथ-साथ सामाजिक तथा आर्थिक उद्देश्यों को भी ध्यान में रखा जाता है।

  • निश्चितता (Certainly)-

कर प्रणाली में निश्चितता होनी चाहिए अर्थात् किसी व्यक्ति को आयों, सम्पत्तियों, उत्पादनों, या विक्रयों पर किस दर से कर देना है। यह निश्चित किया जाना चाहिए और इनके अन्दर बार-बार परिवर्तन नहीं किए जाने चाहिए। निश्चितता का अर्थ यह भी है कि कर सम्बन्धी अधिनियमों में जो प्रावधान दिये गए हों, उनके अर्थ स्पष्ट हो और उनके निर्वचन (Interpretation) में अस्पष्टता या अनावश्यक मत भिन्नता उत्पन्न न हो।

  • सुविधाजनक (Convenient)-

करों को सुविधाजनक होने फर इस प्रकार से लगाए जाने चाहिए कि देने वाले करदाता को कष्ट या त्याग का अनुभव न हो अत: कर इस प्रकार लगाए जाएं कि करदाताओं को अनावश्यक या असूविधा न हो कर निर्धारण की सरलीकृत व्यवस्था होनी चाहिए। जिससे कर प्रणाली में सुविधा हो सके।

  • पर्याप्त (Sufficiency)-

कर प्रणाली को सुधार हेतु हमें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे आगम पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो सकें।

  • समता एवं न्याय (Equity and justice)-

करारोपण के सुधार हेतु करदाता के दृष्टिकोण में समता व न्याय सबसे अधिक सुधारजनक तथ्य है इसका अर्थ है कि भार का उचित वितरण किया जाए और यह वितरण केवल सिद्धान्त में ही नहीं बल्कि करदाता को भी यह अनुभव हो कि कर भार का न्यायपूर्ण वितरण किया गया है और इसके द्वारा किसी भी वर्ग का शोषण नहीं किया जा सकता।

  • मितव्ययिता (Economical)-

करारोपण के सुधार हेतु ऐसे कार्यक्रम व प्रणाली अपनानी चाहिए कि प्रशासन की दृष्टि से कर प्रणाली ऐसी हो, जिससे कर प्राप्ति की तुलना में कर वसूली व्यय का अनुपात बहुत कम हो और करदाताओं की दृष्टि से जिसमें कर के भुगतान के अतिरिक्त ऊपरी व्यय बहुत कम हो।

  • सामाजिक विकास की पूर्ति (Fulfilment of Social development)-

कर केवल सरकारी आय का ही साधन नहीं है वह अधिक से अधिक सामाजिक विकास की पूर्ति का भी साधन है। कर प्रणाली ऐसी हो जिससे विविध सामाजिक विकास की पूर्ति हो सके। जैसे आय और सम्पत्ति के वितरण में विषमताएँ कम हो, हानिकारक वस्तुओं का उपभोग कम हो, विलासिता की वस्तुओं के आयात का नियमन होना आवश्यक है आदि।

  • समन्वित पद्धति (Co-ordinated System)-

भारत जैसी संघीय व्यवस्था के अन्तर्गत यह आवश्यक है कि केन्द्र राज्य और स्थानीय सरकारों के करों तथा प्रगतिशील व अनुपातिक करों को सन्तुलित रूप से अपनाना चाहिए।

  • सन्तुलित पद्धति (Balanced System)-

कर पद्धति करों के प्रकार और दरों की दृष्टि से सन्तुलित होनी चाहिए। अर्थात् प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों तथा प्रगतिशील व आनुपातिक करों सन्तुलित रूप से रखना चाहिए।

  • शुद्ध एवं पर्याप्त आँकडों पर आधारित (Pure and Adequate Data)-

कर प्रणाली के अन्तर्गत ऐसे आँकडें होने चाहिए जो शद्ध एवं पर्याप्त हो इसके लिए यह विविध आवश्यक है कि वह अर्थ व्यवस्था के विविध पहलुओं से सम्बन्धित कर प्रर्याप्त व शुद्ध आँकड़ों पर आधारित हो।

  • अन्तर्निहित लोच (Built-in-elasticity)-

कर प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय आय की मात्रा के अनुसार लोच बनी रहे और कर की आय बक़ान के लिए बार-बार कर की दरों या आधारों में परिवर्तन न करना पड़।

  • उत्पादकता (Productivity)-

कर प्रणाली के सुधार के लिए उत्पादकता का होना आवश्यक है। उत्पादकता का अर्थ दो दृष्टिकोणों से लगाया जा सकता है- कर आगम की दृष्टि से आर कर के प्रभावों की दृष्टि से। कर आगम की दृष्टि पर्याप्त की दृष्टि के समान ही है कर के प्रभावों की दृष्टि से अच्छी कर पद्धति वह है जो देश में बचत, विनियोग, उत्पादन, रोजगार वृद्धि पर विपरीत प्रभाव न डालें।

  • ईमानदार व कुशल प्रशासन ( Honesty and Active Administration)-

करारोपण के सुधार हेतु कर प्रशासन का ईमानदार व कुशल होना भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है। क्योंकि ऐसा इसल आवश्यक है क्योंकि इसके बिना सैद्धान्तिक रूप गे कितनी भी अच्छी क्यों न हो, व्यावहारिक रूप से दोषपूर्ण बन जाती है।

  • बचतों व पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित के लिए (Encouraging Saving and Capital Formation)-

करारोपण द्वारा बचतों को प्रोत्साहन मिलता है यदि करारोपण के सुधार हेतु अच्छी सुविधाएँ हों तो हम अधिक बचतों एवं पूँजी निर्माण में सहायता पा सकते हैं।

  • आर्थिक संसाधनों के कुशल प्रयोग हेतु (Uses of Economic Resources)-

कर प्रणाली की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे आर्थिक संसाधनों का प्रयोग कुशल हो सके ताकि कर के भुगतान हेतु आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सके।

इस प्रकार निष्कर्ष स्वरूप हम यह कह सकते हैं कि इन तथ्यों के प्रयोग हेतु हम करारोपण की पद्धति में भी सुधार कर सकते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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