शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण के उद्देश्य | Objectives of teaching economics of education in Hindi
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आधुनिक भारत में शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण के उद्देश्य क्या होने चाहिए ताकि देश एक पूर्णतः विकसित देश बन सके?
शैक्षिक विकास के सम्बन्ध में शिक्षा के अर्थशास्त्र के रूप में नई विचारधारा आधुनिक काल से ही शुरू हुआ जब द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की माँग बढ़ने से शिक्षा का व्यय बहुत जोर से बढ़ा । राष्ट्रीय संसाधनों की आर्थिक विकास हेतु आवश्यकता सर्वविदित ही है। अतः अर्थशास्त्रियों और प्रशासकों ने शिक्षा पर होने वाले व्यय को अधिक कुशलता से करने पर बल देना आरम्भ किया। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि तथा उद्योगों पर आधारित होने के कारण शिक्षा के इस प्रकार नियाजन की आवश्यकता अनुभव की गई की नवीन उपकरणों का प्रयोग करने में सक्षम कृषि विशेषज्ञ तैयार हो सकें तथा नवीन प्रौद्योगिकी का भी विकास हो जिससे भारत एक पूर्णतः विकसित देश बन सके। इस सन्दर्भ में भारत में शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण के निम्न उद्देश्य संभावित हो सकते हैं।
(1) शिक्षा द्वारा तकनीकी क्षेत्र में क्रान्ति से देश की उत्पादन क्षमता बढ़ाना तथा सकल राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि करना।
(2) शिक्षा द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि हेतु ग्रामीणों में कृषि ज्ञान का उपयोग उत्पादन वृद्धि हेतु करना।
(3) शिक्षा द्वारा श्रमिकों की कार्य कुशलता में वृद्धि करके मानवीय साधनों को बढ़ाना।
(4) शिक्षा द्वारा प्राकृतिक साधनों का सदुपयोग कर आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करना जिसमें सुन्दर शिक्षा व्यवस्था के कारण देश अपने सीमित साधनों का भरपूर सदुपयोग कर सके।
(5) न्यूमैन के विचार में शिक्षा द्वारा व्यक्ति में सोचने समझने तथा तर्क देने, तुलना तथा विभेद करने एवं विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है तथा इसका प्रभाव व्यक्ति के रहन-सहन, कार्य करने के ढंग तथा उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। अत: शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण हेतु इस उद्देश्य की पूर्ति का प्रयास करना।
(6) शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण को शिक्षा व्यय के अन्य पूँजीगत विनियोगों के समान बनाना।
(7) शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण द्वारा राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था के दोषों को दूर करके उसे अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास करना।
(৪) शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण द्वारा, व्यक्ति के दृष्टिकोण एवं चिन्तन को नई दिशा प्रदान करना तथा पूँजी निर्माण के सम्बन्ध में धारणा में परिवर्तन लाना।
संक्षेप में, आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान का मूल्यांकन करने पर पता चलता है कि शैक्षिक क्रिया के समस्त सूचकांक व आर्थिक क्रिया के सूचकां में सहसम्बन्ध है, अतः: शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण के उद्देश्य इस प्रकार हो कि उच्च साक्षारता प्रतिशत द्वारा देश ऊँची विकास दर प्राप्त करने में सक्षम हो। इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सकल राष्ट्रीय विकास (GN.P) का शिक्षा पर व्यय प्रतिशत और श्रमिक शक्ति के शिक्षण गुणांक को आधार बनाया जा सकता है। इनके द्वारा उन सभी प्रयासों की तुलना भी सम्भव हो सकती है जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है। ऐसा विकासशील देशों में किए गए शिक्षा प्रयासों की तुलना विकसित देशों द्वारा शरपनाए गए शिक्षण प्रयासों द्वारा की जा सकती है। वास्तव में शिक्षा पर हुए खर्च को एक निवेश के रूप में मानकर आर्थिक विकास निकालने में शिक्षा के अर्थशास्त्र के शिक्षण की महती भूमिका हो सकती है।
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