शिक्षाशास्त्र / Education

सामाजिक स्तरीकरण और शिक्षा | शिक्षा पर स्तरीकरण का प्रभाव | शिक्षा का स्तरीकरण पर प्रभाव

सामाजिक स्तरीकरण और शिक्षा | शिक्षा पर स्तरीकरण का प्रभाव | शिक्षा का स्तरीकरण पर प्रभाव

सामाजिक स्तरीकरण और शिक्षा

सामाजिक स्तरीकरण और शिक्षा दोनों सामाजिक प्रक्रियाएँ हैं। (Social stratification and education both are social processes)। ऐसी दशा में दोनों में गहरा सम्बन्ध पाया जाना जरूरी है। शिक्षा पर सामाजिक स्तरीकरण का क्या प्रभाव पड़ता है इस पर हमें पहले ध्यान देना चाहिए।

(i) शिक्षा पर सामाजिक स्तरीकरण का प्रभाव-

शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के लोगों का विकास होता है। ऐसी दशा में शिक्षा समाज के स्तर के अनुकूल प्रदान की जाती है। उदाहरण के लिए अपने देश में प्राचीन काल के समाज में वैदिक, ब्राह्मणीय एवं बौद्ध शिक्षा दी जाती रही जिस पर धर्म का प्रभाव था। आज विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान का प्रभाव समाज पर जाने से सामाजिक स्तर एवं लोगों में जो परिवर्तन हुआ उसके अनुसार अब हमारा देश भी अन्य लोगों के समान विज्ञान की एवं तकनीकी शिक्षा की ओर मुड़ गया है। इसके फलस्वरूप शिक्षा का सारा पाठ्यक्रम विज्ञान एवं तकनीकी शास्त्र का शिक्षा का केन्द्र बनाने में लगा दिया गया है। धर्म निरपेक्षता से शिक्षा भौतिकवादी दृष्टिकोण से दी जाने लगी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षा का उद्देश्य भी आर्थिक विकास प्रमुख समझा जाने लगा जिससे समाज के उच्चस्तरीय जीवन को व्यतीत किया जा सके। जीवन की मान्यताएँ, उसके आदर्श एवं मूल्य भी सामाजिक स्तरीकरण के कारण नए हो गए। समाज में ऊँच-नीच की भावना छुआछूत की भावना एवं अलगाव की भावना समाप्त करके सामाजिक सुदृढ़ता (Social solidarity) के लिए सामाजिक एकीकरण (Social Integration) के लिए प्रयत्न किए गए हैं। शिक्षा इस प्रकार से सामाजिक पुनर्संगठन की प्रक्रिया एवं साधन बन गई है।

सामाजिक स्तरीकरण के प्रभाव से शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं शिक्षा-विधि के साथ विद्यार्थी एवं अध्यापक तथा विद्यालय भी प्रभावित हुये हैं। वर्ग-संघर्ष का जो रूप आज विद्यालयों में दिखाई देता है वह स्तरीकरण का प्रभाव है। राजनीति के क्षेत्र में जिस ढंग का कार्य होता है उसी तरह का कार्य वे करते हैं। भारत का राजनैतिक स्तरीकरण देश के उत्थान में बाधक हो रहा है क्योंकि विभिन्न राजनैतिक दल स्वार्थ के लिए निर्दोष एवं बलहीन का शोषण एवं दलन कर रहे हैं। अध्यापकों के कई स्तर हैं जैसे प्राथमिक स्तर के अध्यापक, माध्यमिक स्तर के अध्यापक एवं उच्च स्तरीय अध्यापक । उच्च स्तर के अध्यापकों में महाविद्यालयों के तथा विश्वविद्यालयों के अध्यापकों के अलग-अलग स्तर हैं जिनके वेतन मान, पद, स्थिति एवं सम्मान में अन्तर है। शिक्षा पर स्तरीकरण का प्रभाव इस तरह से स्पष्ट दिखाई दे रहा है। विद्यालयों की स्थापना भी स्तरीकरण से प्रभावीकरण होती है। अपने देश के नगरीय विद्यालय ग्रामीण विद्यालय से भिन्न स्तर रखते हैं। पब्लिक स्कूल नगरपालिका के स्कूलों से ऊँचे स्तर के होते हैं, इसी प्रकार से प्राइवेट रूप से चलने वाले प्राथमिक एवं मिडिल स्कूलों का स्तर निम्न होता है क्योंकि उन पर राजकीय नियंत्रण नहीं रहता है। अब स्पष्ट है कि स्तरीकरण समाज के विद्यालयों की प्रकृति, संक्रिया एवं स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करता है और शिक्षा की प्रगति या अवगति में योगदान देता है।

(ii) शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव-

शिक्षा का प्रभाव सामाजिक स्तरीकरण पर पाया जाता है। आज शिक्षा समाजीकरण की प्रक्रिया कहलाती है। समाजीकरण से समाज के लोगों में ‘हम-भावना’ या ‘भ्रातृभावना’ का विकास होता है। इससे शिक्षा के द्वारा लोगों में समाज एवं समाज के स्तरों (इकाइयों) के प्रति निष्ठा की स्थापना की भावना का भी विकास होता है। ऐसा विचार प्रो० ई० ए० रॉस का है। सामाजिक निष्ठा के विकास में निश्चय ही शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन बनता है। फलस्वरूप लोगों में वर्ग का संघर्ष समाप्त होता है और सामाजिक सुदृढ़ता आती है, सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना भी अच्छी तरह हो जाती है। एक प्रकार से सामाजिक स्तरीकरण शिक्षा के कारण स्थापित एवं दृढ़ होता है।

सामाजिक स्तरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव एक दूसरे ढंग से भी पड़ता है। शिक्षा के द्वारा समाज के सदस्य अपनी भूमिका का निर्वाह करने में सचेतन बनाए जाते हैं। इस सम्बन्ध में प्रो० गार्डनर मर्फी ने लिखा है कि “वह (समाज का सदस्य) समय पाकर उस प्रकार का मनुष्य बन जाता है जो चीजों को कार्यों के रूप में देखता है जिन्हें पूरा करना उसने सीखा है और जिसके पूरा करने से समुदाय में उसे स्थान मिलता है।”

शिक्षा प्राप्त करने के बाद मनुष्य अपने ज्ञान, कौशल, स्वभाव एवं संस्कृति के अनुकूल स्तर को भी निश्चित करता है। “समाज किए जाने वाले कार्यों को निश्चित करता है और शिक्षा उन कार्यों के योग्य व्यक्ति तैयार करती है। ये तथ्य सिद्ध करते हैं  कि शिक्षा के कारण सामाजिक स्तरीकरण होता है।”

निष्कर्ष

सामाजिक स्तरीकरण एवं शिक्षा में कितना घनिष्ठ सम्बन्ध होता है यह हमें ऊपर के विचारों से ज्ञात होता है। मोटे तौर पर, व्यक्तियों के आर्थिक, राजनीतिक, प्रजातीय, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि स्थितियों के कारण समाज के कई श्रेष्ठ और निम्न इकाइयों या स्तरों का बन जाना ही सामाजिक स्तरीकरण होता है। शिक्षा यदि सामाजिक प्रक्रिया मानी जावे जिससे व्यक्ति में समाज के प्रति चेतना, निष्ठा की जागृति होती है तो सामाजिक स्तरीकरण का होना शिक्षा के माध्यम से सम्भव है। ऐसी दशा में शिक्षा सामाजिक स्तरीकरण को उत्पन्न करती है।

शिक्षा समाज की एक आवश्यकता है अतएव समाज की विभिन्न इकाइयों को जोड़ने के लिये शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षा लेकर ही समाज के सभी व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, अपनी योग्यता एवं कार्यकुशलता प्रकट करते हैं। इससे समाज का संगठन बना रहता है। उदाहरण के लिये अपने देश में कर्मों के कारण जाति यवस्था बनी और इससे समाज को स्थायित्व मिला, उसका संगठन सुदृढ़ हुआ। यह सब उस शिक्षा के कारण हुआ जो प्रत्येक वर्ग और जाति को आवश्यकता के अनुसार मिली। आज देश के सभी लोग “नौकरी” चाहते हैं और “नौकरी” के अनुसार शिक्षा लेते हैं। फलस्वरूप कृषि प्रधान भारत के निवासी अब नौकरी प्रधान देश के निवासी बन गये हैं। एक प्रकार से एक नय सामाजिक स्तर बन गया है। इसके मूल में शिक्षा ही पाई जाती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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