इतिहास / History

शिवाजी की उपलब्धियां | शिवाजी की उपलब्धियों का आलोचनात्मक परीक्षण

शिवाजी की उपलब्धियां | शिवाजी की उपलब्धियों का आलोचनात्मक परीक्षण

शिवाजी की उपलब्धियां

मराठे दक्षिण में अनादिकाल से निर्वसित थे, किन्तु मात्र प्रजावत जीवनयापन कर रहे थे। 15वीं शताब्दी में वहाँ कुछ धार्मिक सुधारक एवं प्रचारक पैदा हुए जिनमें एकनाथ, तुकाराम एवं रामदास के नाम प्रमुख है। इन सन्तों ने अपनी ओजस्वी वाणी में इस जाति के कानों में ऐसा मन्त्र फेंक दिया जो राष्ट्रीयता की भावना में परिवर्तित हुआ। इस राष्ट्रीयता के प्रथम उन्नायक शिवाजी के पिता शाह जी थे। किन्तु उन्होंने स्वतन्त्र रूप से मुगलों का विरोध न कर पहले तो निजामशाही सुलतान के दरबार में नौकरी करते हुए और बाद में आदिलशाही दरबार में नौकरी करते हुए अपने प्रभाव को विस्तृत किया।

शिवाजी का जन्म 1627 ई० में शिवनेर के दुर्ग में हुआ था। पिता की अनुपस्थिति में माता जीजाबाई और गुरु रामदास ने ही उनके अन्दर स्वदेश प्रेम और स्वधर्म की रक्षा तथा हिन्दुत्व की भावना दृढ़ किया। 1647 में दादा कोंडदेवजी जो जीजाबाई के साथ ही पूना की जागीर के संचालक थे, की मृत्यु के बाद शिवाजी पूरी तरह आजाद हो गये थे और अपने पिता की सारी जागीर उनके नियन्त्रण में आ गयी थी।

शिवाजी ने अपनी योग्यता का परिचय सन् 1645-47 बीच 18 वर्ष की आयु में ही दे दिया था जबकि उन्होंने सर्वप्रथम मावल लोगों को संगठित किया और पूना के निकट स्थित राजगढ़ कोकंज व तोरण के किलों पर कब्जा कर लिया। शिवाजी की इस सफलता से क्षुब्ध होकर बीजापुर के शासक ने इनके पिता शाहजी को बंदी बना लिया। किन्तु अपनी कूटनीतिक बुद्धि के कारण शिवाजी उन्हें छुड़ाने में सफल रहे।

शिवाजी ने अपना विजय अभियान 1656 ई० में प्रारम्भ किया जब उन्होनें मराठा सरदार चन्द्रराव मोरे से जावली छीन लिया। जावली का राज्य तथा वहाँ मोरोको खजाना बहुत महत्वपूर्ण था और शिवाजी ने षड्यन्त्र रचकर कब्जा किया था। जावली की विजय से शिवाजी मावल क्षेत्र के शासक हो गये तथा सतारा व कोंकण तक का रास्ता उसके लिए साफ हो गया। मावल के पैदल सैनिक शिवाजी की सेना के प्रमुख अंग बन गये। उनकी सहायता से शिवाजी ने पूना के निकट और भी कई पहाड़ी किलों को जीत कर अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।

1657 में बीजापुर पर मुगलों के आक्रमण के कारण शिवाजी बीजापुर के जवाबी हमले से बच गये। उन्होंने औरंगजेब के साथ पहले बातचीत का रास्ता अपनाया जिसके माध्यम से उन सभी बीजापुरी क्षेत्रों की मांग की। किन्तु शीघ्र ही शिवाजी ने अपना रुख बदल दिया और मुगल क्षेत्रों की लूट मार की। किन्तु इसी बीच बीजापुर के शासक और औरंगजेब के बीच संधि हो गयी, जिसमें शिवाजी को समस्त बीजापुरी क्षेत्रों से निकाल देना था। साथ ही यह भी शर्त थी कि यदि बीजापुर का शासक शिवाजी को अपनी सेवा में रखना चाहें तो कर्नाटक क्षेत्र में रखें। परिणाम यह हुआ कि जैसे ही औरंगजेब लौटा शिवाजी ने पुनः आदिलशाही राज्य पर आक्रमण कर दिया तथा उत्तरी कोंकण को जीत लिया।

शिवाजी की उपर्युक्त सफलता को देखकर बीजापुर के शासक ने कड़ी कार्यवाही करने की सोची। उसने प्रमुख सरदार अफजल खाँ को 10 हजार सैनिकों के साथ शिवाजी के विरुद्ध भेजा। अफजल खाँ को आदेश था कि वह शिवाजी को किसी भी तरह बन्दी बना ले । उन दिनों षड्यन्त्र एवं धोखाधड़ी आम बात थी। अफजल खा एवं शिवाजी दोनों ने ही कई अवसर पर ऐसे तरीके अपनाये थे। शिवाजी की सेना खुले मैदान में युद्ध करने की आदी नहीं थी। अफजल खाँ ने शिवाजी को व्यक्तिगत भेंट के लिए एक सन्देश भेजा और और इस बात का वादा किया कि वह बीजापुर दरबार से उसे क्षमा दिलवा देगा। शिवाजी को विश्वास था कि यह एक चाल है। यह उस भेंट के लिए पूरी तरह तैयार होकर गया। चालाकी तथा साहस से खान की हत्या कर डाली । 1659 ई० हत्या के बाद शिवाजी ने उसकी नेतृत्वहीन सेना को तितर-बितर कर दिया साथ ही सारे साजो-समान व तोपखाने पर अधिकार कर लिया। इस विजय से मराठा सेना की हिम्मत बढ़ गयी और उसने पन्टाला के मजबूत किले पर भी अपना कब्जा कर लिया तथा दक्षिण कोंकण और कोल्हापुर के जिलों में कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।

शाइस्ता खाँ लगातार शिवाजी के विरुद्ध सफलता प्राप्त करता जा रहा था। उसने सर्वप्रथम पूना पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में लिया तथा मुख्यालय बनाया। तदुपरान्त उत्तरी कोंकण पर भी कब्जा करने में सफल हो गया। ऐसी स्थिति में शिवाजी ने एक अत्यन्त साहसपूर्ण कदम उठाया। वह रात के अंधेरे में पूना में शाइस्ता खाँ के खेमे में घुस गया तथा जब वह हरम में था उस पर हमला कर दिया (1665 ई०)। उसने शाइस्ता खाँ के लड़के तथा उसके सेनानायक को मार डाला। शाइस्ता खाँ भी घायल हुआ। इस साहसपूर्ण हमले से शाइस्ता की इज्जत घट गयी। शिवाजी की प्रतिष्ठा एक बार पुनः कायम हो गयी। क्रोध में आकर औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को बंगाल भेज दिया। इसी बीच शिवाजी ने एक और साहसपूर्ण कार्य किया उसने मुगलों के मुख्य बन्दरगाह सूरत पर आक्रमण किया। चार दिन चार रात तक घेरा जारी रखा और बुरी तरह लूटा।

शाइस्ता खां की असफलता के बाद औरंगजेब ने अपने प्रमुख तथा विश्वसनीय सलाहकार आमेर के राजा जयसिंह को शिवाजी का सामना करने भेजा। अपने से पहले के मुगल सरदारों की तरह मराठों की शक्ति का अनुमान लगाने में जयसिंह ने गलती नहीं की। उसने शत्रु को पूर्णतः अकेला कर देने की नीति का अनुसरण किया, साथ ही उसने शिवाजी के प्रमुख अड्डा पुरन्दर पर ही जहाँ वह सपरिवार रह रहा था, आक्रमण कर दिया। 1656 ई० में पुरन्दर के किले की घेराबन्दी कर ली गयी। अपनी पराजय तथा कहीं से कोई सहायता न आती देख शिवाजी ने जयसिंह से संधि कर लिया। यह संधि पुरन्दर को सन्धि’ के नाम से जानी जाती है। शर्ते इस प्रकार थीं-

(1) शिवाजी के 35 किलों में ये चार लाख हुन प्रतिवर्ष के लगान वाले 23 किलों तथा उसके आस-पास के क्षेत्र सौंपने थे। शिवाजी के पास एक लाख हून वाले 12 किले बच जाते साथ ही उसे सम्राट के प्रति सेवा और निष्ठा का वचन भी देना था।

(2) कोंकण में चार लाख हून प्रतिवर्ष की आय वाले क्षेत्र जिन पर शिवाजी का पहले ही अधिकार था, शिवाजी के पास ही रहना था। इसके अलावा बालाघाट में 5 लाख हून प्रतिवर्ष आय वाले इलाके जिन्हें शिवाजी ने बीजापुर से जीता था, भी उसे दिये गये। इनके बदले में शिवाजी को मुगलों को 40 लाख हुन किस्तों में देना था।

शिवाजी ने व्यक्तिगत रूप से सेवा करने से छूट मांगी। इसके बदले उसके स्थान पर उसके छोटे पुत्र शम्भा जी को 5 हजार मनसब की पदवी प्रदान की गयी। शिवाजी ने यह वचन दिया कि वह दक्कन में मुगलों के अभियानों में उनका साथ देगा।

पुरन्दर की संधि की सफलता इस बात पर आश्रित थी कि मुगल मराठों को बीजापुर आक्रमण में मदद करते किन्तु औरंगजेब तो सदैव शिवाजी को सन्देह की नजर से देखता था ।अतः जयसिंह ने शिवाजी को आगरा जाकर औरंगजेब से ही बात के लिए राजी कर लिया। शिवाजी 12 मई को आगरा मुगल दरबार में उस समय पहुंचे जबकि औरंगजेब का जन्म-दिवस समारोह समाप्त हो चुका था। अतः उन्हें दीवान-ए-खास ले जाया गया। वहाँ उन्हें 5 हजार मनसबदारों की पंक्ति में खड़ा किया गया। शिवाजी ने इसे अपमान समझा क्योंकि यह पदवी तो उनके नाबालिग पुत्र को मिली थी। अधिकांश इतिहासकार भी इसे शिवाजी का अपमान समझते हैं।

किन्तु डॉ० फारुखी इसे शिवाजी की उद्दण्डता ही बताते हैं-उनके अनुसार (1) औरंगजेब ने शिवाजी को आने के लिए एक लाख रुपया भेजा था और रास्ते में अपने सूबेदारों को आतिथ्य का आदेश दिया था।

(2) दीवाने आम समाप्त होने पर दीवाने वास में स्वागत किया जबकि दीवाने खास स्वागतार्थ न था।

(3) अभी तक औरंगजेब को न मालूम हो सका था कि मिर्जा राजा जयसिंह ने शिवाजी को क्या आश्वासन दिया था।

(4) शिवाजी की अगवानी मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह ने की थी।

(5) मुगल प्रथा के अनुसार एक हजार के ऊपर के मनसब उन्हीं को दिया जाता था जो उच्च समझे जाते थे या जिनके पूर्वज मुगल सेना में रह चुके थे।

(6) शिवाजी को सख्त पहरे में इसलिए रखा गया कि शिवाजी के शत्रु उन्हें नुकसान न पहुंचा सकें।

डॉ० फारुखी के अनुसार औरंगजेब के बार बार बुलाने पर भी शिवाजी बात के लिए तैयार न हुआ। वह आगरा से छिप कर भाग गया। 13 सितम्बर 1667 में रायगढ़ पहुंचे। अत: यदि दोनों के मध्य समझौता न हो सका तो इसमें औरंगजेब का क्या दोष है। वास्तव में दोनों व्यक्तियों के स्वार्थों के कारण कोई समझौता नहीं हो सका। औरंगजेब शिवाजी को अपनी ओर से पूर्ण स्वतन्त्र राज्य का शासक किन्हीं भी परिस्थितियों में मानने को तैयार न था दूसरी ओर शिवाजी अधीनता नहीं चाहते थे।

इस समय तक राजा जयसिंह का देहान्त हो चुका था। दक्षिण में जसवन्त सिंह की नियुक्ति भी हो चुकी थी। शिवाजी के लिए मैदान साफ था। 1668 ई० में जसवन्त सिंह के कहने पर मुगलों से संधि तो कर ली किन्तु इसे कोई महत्व न दिया। 1670 ई० में शिवाजी ने पुनः सैनिक कार्यवाही आरम्भ कर दी। चौथ आदि वसूलने के लिए दूर-दूर तक छापे मारे तथा 1670 में सूरत को दूसरी बार लूट लिया। अगले चार वर्षों में उसने पुरन्दर सहित कई किले मुगलों से वापस ले लिए तथा बरार एवं खानदेश सहित अन्य मुगल क्षेत्रों पर भी कब्जा किये। शिवाजी की सफलता का प्रमुख कारण दक्षिण में नियुक्त मुगल सूबेदार तथा शाहजादा के मध्य मतभेद हो जाना तथा उत्तर में अफगानों के साथ संघर्षरत रहना है। शिवाजी ने बीजापुर के साथ भी पुनः संघर्ष प्रारम्भ किया। रिश्वत देकर पन्हाला तथा सतारा को हासिल कर लिया।

सन् 1674 ई. रायगढ़ में औपचारिक रूप से शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ। उनकी शुरुआत पूना के एक साधारण जागीरदार के रूप में हुई थी और अब वह सबसे शक्तिशाली मराठा सरदार था। इस राज्याभिषेक से शिवाजी को कई लाभ हुए।

(1) वे अन्य मराठा सरदारों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली और श्रेष्ठतम रूप में उभर कर सामने आये।

(2) उन्हें क्षत्रिय घोषित किया गया।

(3) अब स्वतंत्र शासक के रूप में दक्षिण के सुलतानों से बराबरी का व्यवहार करने लगे।

(4) मराठा राष्ट्र भावना के विकास में यह एक और महत्वपूर्ण कदम था। सन् 1674 ई० तक लगातार शिवाजी मुगल अधिकृत प्रदेशों और बीजापुर को लूटता रहा। 1676 ई० में शिवाजी ने एक नया महत्वपूर्ण कदम उठाया। हैदराबाद में मदत्रा तथा अखन्ना दो भाइयों की सहायता से उसने बीजापुरी कर्नाटक पर आक्रमण करने का फैसला किया। कुतुबशाह ने अपनी राजधानी में उसका भव्य स्वागत किया और दोनों के बीच संधि हुई कुतुबशाह ने एक लाख हून प्रतिवर्ष शिवाजी को देना स्वीकार किया तथा अपने दरबार में एक मराठा राजदूत रखने की इजाजत दी बदले में कर्नाटक की सम्पत्ति को आधा-आधा बॉटना था। कुतुबशाह ने सेना का खर्च एवं सेना भी दिया। इस मदद से शिवाजी ने बेल्लोर तथा जिंजी जीत लिया। उसने अपने सौतेले भाई एकोजी के क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया। जब शिवाजी बड़े खजाने के साथ वापस लौटा तब उसने कुतुबशाह के साथ इसका बंटवारा करने से इंकार कर दिया।

कर्नाटक अभियान शिवाजी का अन्तिम महत्वपूर्ण अभियान था। लौटने पर 13 दिन की बीमारी के बाद वर्ष की आयु में शिवाजी की मृत्यु 4 अप्रैल 1680 में हो गयी।

इस प्रकार मृत्यु के पूर्व आजीवन संघर्षरत रहते हुए भी शिवाजी ने एक सुगठित स्वतत्र मराठा साम्राज्य स्थापित किया जो थोड़े परिवर्तन के साथ आज भी लागू है। यद्यपि यह सच है कि आन्तरिक एवं बाह्य शक्तियों के सामने यह साम्राज्य अधिक दिनों तक नहीं चल सका, किन्तु वहीं यह भी सच है कि शिवाजी ने ही उस राष्ट्र का बीजारोपण किया जो आज अखण्ड भारत के रूप में विद्यमान है।

शिवाजी की राजधानी पूना के पास रायगढ़ में थी। उनके राज्य में सूरत से लेकर दक्षिण में मालाबार तक का इलाका था। इस पश्चिमी समुद्र तट पर केवल डमन, सालसेट, बेसिन और गोआ उनके अधिकार में नहीं थे । इन स्थानों पर पुर्तगालियों का अधिकार था। पूर्व में उनके राज्य की सीमा नासिक पूना होती हुई कोल्हापुर तक पहुंचती थी। इसके अतिरिक्त बेलगांव से लेकर तुंगभद्रा तक का समस्त पश्चिमी कर्नाटक उनके अधिकार में था। साथ ही अन्य आस-पास के कतिपय इलाकों पर शिवाजी का अधिकार था जहाँ से वे चौथ और सरदेशमुखी वसूल करते थे । इस प्रकार उनके अधिकार में मद्रास (चेन्नई) और मैसूर के कुछ स्थान भी थे, जिनमें बेलारी, बंगलौर तथा तंजौर मुख्य थे। शिवाजी ने नवनिर्मित साम्राज्य को बहुत सुगठित प्रशासन भी दिया।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!