सृजनात्मकता का अर्थ

सृजनात्मकता का अर्थ तथा परिभाषायें | सृजनात्मकता की प्रमुख विशेषतायें | सृजनात्मकता प्रक्रिया के विभिन्न चरण | सृजनात्मक व्यवहार में प्रमुख बाधायें

सृजनात्मकता का अर्थ तथा परिभाषायें | सृजनात्मकता की प्रमुख विशेषतायें | सृजनात्मकता प्रक्रिया के विभिन्न चरण | सृजनात्मक व्यवहार में प्रमुख बाधायें | Meaning and definitions of creativity in Hindi | Main characteristics of creativity in Hindi | Different Stages of the Creativity Process in Hindi | Major Barriers to Creative Behavior in Hindi

सृजनात्मकता का अर्थ तथा परिभाषायें

(Creativity-Meaning and Definitions)

सामान्य अर्थ में, सृजनात्मकता से अभिप्राय चिन्तन प्रकिया से है, जिसके द्वारा नवीन विचार उत्पन्न होते हैं। इसे नये तथा विशिष्ट विचारों को विकसित करने की योग्यता तथा शक्ति भी कहा जा सकता है। यह असम्बन्धित वस्तुओं में नये सम्बन्ध की कल्पना की योग्यता है। व्यापक अर्थ में, यह चिन्तन-मनन की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी नये विचार, अवधारणा अथवा सम्बन्धों की खोज के लिये व्यक्ति की मानसिक योग्यता तथा शक्ति का प्रयोग होता है। यह एक व्यापक विचार है, जिसकी जीवन के क्षेत्र में आवश्यकता होती है।

हिक्स एवं गुलेट के अनुसार, “सृजनात्मकता व्यक्ति की मानसिक योग्यता तथा जिज्ञासा है, जिसके परिणामस्वरूप किसी नई वस्तु का सृजन अथवा खोज होती है।”

ऐरिक फ्रोम के अनुसार, “सृजनात्मकता अवलोकन करने, सचेत होने तथा प्रतिक्रिया करने की योग्यता है।”

एच० हर्बट फॉक्स के अनुसार, “सृजनात्मक प्रक्रिया एक चिन्तन प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किसी समस्या का मौलिक एवं उपयोगी ढंग से समाधान किया जाता है।”

गुड के अनुसार, “सृजनात्मकता वह विचार है जो किसी समूह में सांतत्य का निर्माण करता है। सृजनात्मकता के कारक हैं- साहचर्य, आदर्शात्मक मौलिकता, अनुकूलता, सांतत्यता, लोच तथा तार्किक विकास की योग्यता।”

उचित परिभाषा- “सृजनात्मकता व्यक्ति की मानसिक योग्यता, चेतना शक्ति तथा जिज्ञासा से सम्बद्ध योग्यता है, जिसके द्वारा नये विशिष्ट विचारों या तथ्यों की खोज की जाती है। प्रबन्ध के क्षेत्र में सृजनात्मकता के द्वारा उच्च उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है तथा नये विचारों और अवधारणाओं का विकास किया जा सकता है।”

सृजनात्मकता की प्रमुख विशेषतायें

(Main Characteristics of Creativity)

सृजनात्मकता की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ मात्रा में सृजनात्मकता अवश्य होती है।

(2) सृजनात्मकता का व्यक्ति के सामाजिक वातावरण से गहरा सम्बन्ध होता है।

(3) यद्यपि सृजनात्मकता एक जन्मजात गुण है, फिर भी उचित प्रशिक्षण द्वारा इसे विकसित किया जा सकता है।

(4) सृजनात्मकता एक चिन्तन प्रक्रिया है जो व्यक्ति की मानवाले कार्यों को सम्मिलित नहीं किया जाता है

(5) सृजनात्मकता व्यक्ति के मौलिक योगदान से सम्बन्धित है जिसमें आदतन किये जाने वाले कार्यों को सम्मिलित नहीं किया जाता है।

(6) सृजनात्मकनता एक व्यापक विचार है जिसका उपयोग समस्त प्रकार के कार्यों में सम्भव है।

(7) सृजनात्मकता का विकास किन्हीं तकनीकों से नहीं, वरन् योगदान करने की आन्तरिक प्रेरणा से होता है।

(8) सृजनात्मकता एक तर्क नहीं वरन् कल्पना शक्ति है जिसके द्वारा वस्तुओं में विचारों को नये दृष्टिकोण से देखा जाता है।

(9) सृजनात्मकता नये विचार या नई वस्तुओं को विकसित करने से सम्बन्धित है।

(10) सृजनात्मकता मस्तिष्क की एक अभिवृत्ति है।

सृजनात्मकता प्रक्रिया के विभिन्न चरण

सृजनात्मकता की प्रक्रिया

(Process of Creativity)

पार्किंसन तथा हस्तमजी ने सृजनात्मक प्रक्रिया के निम्नलिखित पाँच चरण (step) बताये हैं-

(i) समस्या की पहचान

(ii) समस्या से सम्बन्धित समंकों को एकत्रित करना

(iii) समंकों को पीसना

(iv) सम्भावित समाधान को पहचानना

(v) प्रस्तावित समाधान का परीक्षण करना।

जॉन एफ०मी ने सृजनात्मक प्रक्रिया के निम्नलिखित चरण (step) बतायें हैं-

(1) समस्या जानना- सृजनात्मक प्रक्रिया के पहले चरण में व्यक्ति समस्या का चयन करता है जिसका समाधान किया जाता है। यहाँ इस बात का पता लगाया जाता है कि वास्तव में समस्या विद्यमान है अथवा नहीं।

(2) तैयारी- सृजनात्मक प्रक्रिया के इस चरण में व्यक्ति समस्या पर केन्द्रित हो जाता है और उसमें तत्परता से जुट जाता है। इसके लिये वह संगत सूचनाओं का संग्रह करता है तथा बिना मूल्यांकन किये परिकल्पनाओं का विकास करता है।

(3) एक नये रूप में व्यवस्थित- उपलब्ध सूचनाओं को एकत्रित करने के पश्चात् व्यक्ति आराम करता है तथा अवचेतन की सामग्री पर लगने के लिये छोड़ देता है। इस चरण में व्यक्ति सामान्यतः निरुपयोगी या दिन में सपने देखने वाले के रूप में प्रकट होता है, लेकिन उसका अवचेन वास्तव में तथ्यों को एक नये रूप में व्यवस्थित करने के लिये प्रयत्नशील रहता है।

(4) परिज्ञान अथवा सुसज्जा- इस चरण में नये विचार व्यक्ति के दिमाग में अचानक उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसी प्रेरणा को तुरन्त रिकार्ड किया जाना आवश्यक होता है, क्योंकि अन्य क्रियाओं के क्रम में चेतन दिमाग उन्हें भूल सकता है।

(5) सत्यापन तथा प्रयोग- सृजनात्मक प्रक्रिया के पाँचवें तथा अन्तिम चरण में व्यक्ति तर्क के प्रयोग के द्वारा यह प्रमाणित करने की व्यवस्था करता है कि नया विचार समस्या का समाधान करता है तथा उसको लागू किया जा सकता है। इस बिन्दु पर चिपकाव की आवश्यकता हो सकती है, क्योंकि नये विचार को अव्यावहारिक या मिथ्या मानकर प्रारम्भ में अस्वीकार किया जा सकता है, जोकि बाद में रक्षा करने वाला हो सकता है।

सृजनात्मक व्यवहार में प्रमुख बाधायें

(Major Hurdles in Creative Behaviour)

सामान्यतः बड़े संगठनों में उद्यमी सृजनात्मक व्यवहार में निम्नलिखित बाधायें महसूस या अनुभव करता है-

(1) दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण एक व्यक्ति स्वयं पंगु हो जाता है तथा सृजनात्मकता से विमुख हो जाता है।

(2) उदासीनता की भावना सृजनात्मक व्यापार में गंभीर बाधा उपस्थित करती है।

(3) दिशाहीन तनाव व्यक्ति को मूढ़ बना देता है तथा सोचने समझने की शक्ति को विकृत कर देता है। ऐसे तनाव से व्यक्ति सृजनशील व्यवहार के प्रति विमुख हो जाता है।

(4) आलस्य के कारण व्यक्ति परम्परागत विधियों, कार्यों या तथ्यों को ही सही मानता रहता है तथा चिन्तन-मनन से यथा-सम्भव बचने का प्रयत्न करता है।

(5) यदि संगठन में किसी एक समूह विशेष का प्रभुत्व है, तो सामान्य व्यक्ति किसी नये कार्य को करने या सृजनशीलता के लिये प्रेरित नहीं हो पाता है।

(6) अति-अभिप्रेरणा के कारण व्यक्ति कभी-कभी गर्व या विवेक शून्यता की स्थिति में आ जाता है तथा नवीनता या चिन्तन-मनन की बजाय दिखावे को ही सृजनशील व्यवहार मान बैठता है।

(7) सामान्यतः अधिकांश प्रबन्धक संशय (Confusion) की स्थिति में कार्य करते हैं।

(8) अभिप्रेरणा का अभाव भी सृजनात्मक व्यवहारों को अवरुद्ध करता है।

(9) उपहास या हँसी-मजाक का भय भी सृजनात्मक व्यवहार में बाधा उपस्थित करता है।

(10) अधिकांश छोटे संगठनों में प्रबन्धक (उद्यमी) तथा अधीनस्थ अविचारपूर्ण निर्णय के अभ्यस्त होते हैं।

(11) सन्तोष की भावना भी व्यक्ति के सृजनात्मक व्यवहार को अवरुद्ध करती है।

(12) नकारात्मक भावना व्यक्ति को हीन तथा कमजोर बना देती है। ऐसा व्यक्ति निराशा तथा उदासी में ही डूबा रहता है तथा सृजनशील व्यवहार की हमेशा उपेक्षा करता है।

(13) ज्ञान के अभाव के कारण व्यक्ति सृजनात्मक व्यवहार के महत्व तथा औचित्य को समझने में असमर्थ रहता है।

(14) प्रतिबद्धता का अभाव भी सृजनात्मक व्यवहार को हतोत्साहित करता है।

(15) सामान्यतः जॉब में आने तथा स्थायी नियुक्ति पाने के बाद व्यक्ति में स्थिरता की प्रवृत्ति आ जाती है। व्यक्ति तनाव, गतिशीलता तथा संघर्ष से दूर स्थिर तथा शान्त जीवन को अधिक पसन्द करता है। ऐसी स्थिरता भी सृजनात्मक व्यवहार को हतोत्साहित करती है।

(16) जलन या ईर्ष्या की प्रवृत्ति सृजनात्मक व्यवहार में बाधा उपस्थित करती है। ऐसा व्यक्ति न तो स्वयं सृजनशीलता के लिये प्रेरित होता है और न ही दूसरे के सृजनशील व्यवहार की प्रशंसा करता है।

(17) पर्याप्त कोषों का अभाव भी सृजनात्मक व्यवहार में एक महत्वपूर्ण बाधा है।

(18) जॉब असुरक्षा की भावना भी सृजनात्मक व्यवहार में एक महत्वपूर्ण बाधा है।

(19) असफलता के भय के कारण भी संगठनों में सृजनात्मक चिन्तन की उपेक्षा की जाती है।

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