इतिहास / History

स्थान के आधार पर इतिहास का वर्गकरण | Classification of history by location in Hindi

स्थान के आधार पर इतिहास का वर्गकरण
स्थान के आधार पर इतिहास का वर्गकरण

स्थान के आधार पर इतिहास का वर्गकरण | Classification of history by location in Hindi

शिक्षाशास्त्रियों ने स्थान के आधार पर इतिहास का वर्गीकरण निम्न श्रेणियों में किया है –

(1) विश्व-इतिहास,

(2) राष्ट्रीय तथ प्रान्तीय इतिहास, और

(3) स्थानीय इतिहास।

(1) विश्व इतिहास-

आज विश्व में जो कलह एवं अशान्ति का वातावरण छाया हुआ है, उसको दूर करने के लिए मानव में विस्तृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मानव में इस दृष्टिकोण का निर्माण करने के लिए बहुत से साधन बताये गये हैं; परन्तु समस्त विद्वान् एक साधन के विषय में एकमत हैं। यह साधन यह है कि छात्रों को विश्व-इतिहास का ज्ञान कराया जाय, परन्तु विद्वान् इस बात पर एकमत नहीं हैं। कि बालकों को विश्व-इतिहास का अध्यापन किस स्तर पर कराया जाय। कुछ विद्वान् इस बात के पक्ष में हैं कि निम्न-स्तर पर बालकों को विश्व-इतिहास नहीं पढ़ाया जाय परन्तु दूसरा दल इस बात का प्रतिपादन करता है कि बच्चों को इसकी एक झलक कहानियों के रूप में प्रदान की जाय। जिन महानुभावों ने मानवता के लिए अनुपम देन प्रदान की है, उनके विषय में बच्चों को कहानियों के रूप में निम्न-स्तर पर ज्ञान प्रदान किया जाय, परन्तु दूसरे दल वालों ने अपने पक्ष में यह तर्क प्रस्तुत किया है कि इस स्तर के बालक विशव की समस्याओं को समक्षने में असमर्थ रहेंगे । दूसरे सांस्कृतिक विषय इस स्तर के बालकों की रुचि को अपनी ओर आकुष्ट नहीं कर सकते। उत्तर प्रदेश के शिक्षा बोर्ड ने हाई स्कूल कक्षाओं के हेतु विश्व इतिहास को निर्धारित किया है। आज के वैज्ञानिक आविष्कारों ने समस्त राष्ट्रों को एक-दूसरे के समीप ला दिया है। इस सामीप्य ने भी विश्व-इतिहास की मांग को और अघिक तीव्र कर दिया है। इसके अतिरिक्त आज यह भी सत्य प्रतीत होता है कि कोई भी आज के युग में अकेला नहीं रह सकता। इस कारण इस अन्योग्याश्रित एवं पारस्परिक सम्बन्धों के लिए विश्व-इतिहास का अच्यापन आवश्यक हो गया है।

इतिहास के विभिन्न प्रकारों का संक्षेप में वर्णन। different kinds of history in Hindi

(2) राष्ट्रीय तथा प्रान्तीय हतिहास-

भारतीय शिक्षालयों में राष्ट्रीय इतिहास की प्रधानता है। राष्ट्रीय इतिहास के शिक्षण में बहुत-सी कठिनाइयो उत्पन्न होती हैं। प्रथम तो एक राष्ट्र दूसरे से पृथक नहीं रह सकता। यदि हम भारतीय इतिहास का अध्ययन कर रहे हैं – यदि हमने इस प्रकार पढना शुरु किया कि भारत में आर्यं बाहर से आये तो स्वतः ही प्रश्न उठेंगे कि वे कब ओर कहाँ से आये? उनकी सभ्यता कैसी थी? उन्होंने भारत पर किस प्रकार अपना प्रभुत्व स्थापित किया? उन्होंने भारत में अपनी सभ्यता का किस प्रकार निमाण किया? इन समस्त प्रश्नों के विश्लेषण के लिए हमें दूसरे देशों के इतिहास की सहायता लेनी पड़ेगी। इसके लिए फिशर (Fisher) तथा अल्तमिरा (Altamira) ने यह सुझाव दिया कि प्रारम्भिक स्तर से विश्व-इतिहास का सामान्य ज्ञान बालकों को दिया जाय। इसके अतिरिक्त छात्रों को गुफाओं के मानव, शिकारी मानव, गड़रिया के रूप में मानव आदि का भी ज्ञान दिया जाय तभी राष्ट्रीय इतिहास का अध्यापन उपयुक्त सिद्ध होगा। राष्ट्रीय इतिहास के शिक्षण में एक दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या यह उत्पन्न होगी कि राष्ट्र के अन्दर बहुत-से ऐसे प्रान्त होते हैं जो कि स्वयं अपना एक इतिहास रखते हैं। इस समस्या का समाधान इस प्रकार किया जा सकता है- प्रान्तीय इतिहास का निर्धारण निम्न स्तरों पर कर दिया जाय तथा उन प्रान्तों की राष्ट्रीय इतिहास को जो देन है, वह राष्ट्रीय इतिहास के शिक्षण के साथ प्रस्तुत की जा सकती है।

(3) स्थानीय इतिहास-

स्थान की दृष्टि से इतिहास का एक अन्य विभाजन स्थानीय इतिहास है। विद्वानों का मत है कि इसको पाठ्यक्रम में स्थान मिलना चाहिए; परन्तु प्रत्येक स्थान अर्थात् कस्बा, नगर या ग्राम का अपना इतिहास होता है। यदि सबके इतिहास को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना सम्भव नहीं है तो बालक को कम से कम उस स्थान के इतिहास का ज्ञान अवश्य कराया जाय जिसमें वह रहता है, परन्तु इससे इतिहास-शिक्षण के मुख्य उद्देश्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को ठेस न पहुँचने पाये। प्रो० घाटे का विचार है कि- “स्थानीय इतिहास का अर्थ यह नहीं है कि जिस नगर या जिले में बालक रहता है, उसका इतिहास ही स्थानीय इतिहास है। जिस पड़ोस अथवा जिस स्थान पर मनुष्य रहता है, उस स्थान के वातावरण की भी विशेषता होती है। छात्रों को इन विशेषताओों से परिचित कराया जाय।” एक अन्य विद्वान का मत है कि उत्तम प्रकार से चयन किया हुआ स्थानीय इतिहास एक पाठ को विस्तार प्रदान करता है तथा अनुभवपूर्ण क्रियाओं हेतु प्रोत्साहित करता है; उदाहरणार्थ- ऐतिहासिक स्थान का भ्रमण। स्थानीय इतिहास के द्वारा छात्रों में स्थानीय परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों के प्रति आादर की भावना उत्पन्न की जानी चाहिये; क्योंकि ये परम्पराएँ उन के निवासियों के जीवन का अंग होती हैं। इतिहास का वर्गीकरण काल के आधार पर भी किया गया है। इसके अनुसार इतिहास को अघोलिखित भागों में विभक्त किया गया है –

  1. अति प्राचीन काल- इसमें पाषाण युग का समावेश किया गया है ।
  2. प्राचीन काल- इसमें मानव सभ्यता के विकास की ओर कार्य करता है।
  3. मध्य काल- सभ्यता का काफी विकास हो जाता है ।
  4. वर्तमान काल- सभ्यता का अधिकतम विकास।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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