वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

वित्तीय प्रबन्ध की अवधारणा | वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा

वित्तीय प्रबन्ध की अवधारणा | वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा | Concept of Financial Management in Hindi | definition of financial management in Hindi

वित्तीय प्रबन्ध की अवधारणा (Concept of Financial Management) :

वित्तीय प्रबन्ध के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाने वाले कार्यों को सम्पन्न करना वित्त विभाग का कोई अनन्य क्षेत्राधिकार (Exclusive Jurisdiction) नहीं होता है, बल्कि इन समस्त दायित्यों का  निर्वाह व्यवसाय के अन्य सभी क्षेत्रों (Areas) के सक्रिय सहयोग से किया जाता है, क्योंकि सभी महत्वपूर्ण निर्णय (चाहे वे किसी भी क्षेत्र से सम्बद्ध हों) प्रबन्धकों द्वारा प्रबन्ध के उच्च स्तर पर लिये जाते हैं। व्यावसायिक निश्चयीकरण की इस प्रक्रिया में प्रत्येक क्षेत्र सम्बन्धित तथ्यों एवं आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण एवं उचित परामर्श के द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका तो अदा करता ही है, साथ ही इन महत्वपूर्ण निर्णयों के क्रियान्वयन में भी प्रत्येक विभाग का कुछ सीमा तक पृथक एवं कुछ सीमा तक सम्मिलित दायित्व होता है। चूँकि वित्त व्यवसाय के विभिन्न क्रियाकलापों को एक सूत्र में आवद्ध करता है, अतः वित्तीय प्रबन्ध विभाग का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) अन्य विभागों की तुलना में कुछ अधिक व्यापक होता है। उदाहरण के लिए उत्पादन के लिए आवश्यक मशीनों, संयन्त्रों उपकरणों, कच्चे माल, ईंधन, आदि के विषय में तकनीकी दृष्टि से विचार करने का दायित्व उत्पादन-प्रबन्ध का होता है, किन्तु इनके विषय में अन्तिम निर्णय तब तक नहीं लिये जायेगे; जब तक कि इनसे सम्बद्ध वित्तीय पहलुओं पर वित्तीय प्रबन्धक अपना उचित परामर्श नहीं दे देता है। व्यवसाय के पूर्व निर्धारण उद्देश्यों की उपलब्धि का श्रेय यद्यपि सभी विभागों को समान रूप से दिया जाना चाहिए, किन्तु जहाँ तक निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समस्त विभागों को नियन्त्रित एवं निर्देशित करने का प्रश्न है, वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्राधिकार कुछ अधिक व्यापक हो जाता है। श्रीयुत जे.एफ. ब्रेडले का मत है कि “वित्तीय-प्रबन्ध, व्यावसायिक प्रबन्ध का वह क्षेत्र है जिसका सम्बन्ध पूँजी का सम्यक् प्रयोग एवं पूँज के साधनों के सतर्कतापूर्ण चयन से है, ताकि व्यवसाय को इसके उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में निर्देशित किया जा सके।” आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वित्तीय प्रबन्ध के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नितान्त आवश्यक हो गयी है, क्योंकि “व्यावसायिक वित्त का प्रबन्ध एक कला होने के साथ-साथ एक विज्ञान भी है। इसके लिए परिस्थिति की सही पकड़ एवं विश्लेषणात्मक दक्षता की तो आवश्यकता होती ही है, साथ ही वित्तीय विश्लेषण की विधियों और तकनीकों के प्रचुर ज्ञान तथा उनके व्यावहारिक उपयोग एवं प्राप्त परिणामों की सही समीक्षा करने की भी अपेक्षा होती है। इसीलिये श्री इजरा सोलामन ने इसे निम्न शब्दों व्यक्त किया है, “वित्तीय प्रबन्ध को कोषों की व्यवस्था करने से सम्बन्धित एक स्टाफ गतिविधि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, अपितु समग्र प्रबन्ध (Overall Management) के एक अभिन्न अंग के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। अतः वित्तीय प्रबन्ध (Financial Management) व्यावसायिक प्रबन्ध का एक प्रमुख अंग है। यदि यह कहा जाय कि यह प्रबन्ध का सबसे महत्वपूर्ण है तो उचित ही होगा, क्योंकि आदि से अन्त तक व्यवसाय के संगठन और संचालन में वित्त का महत्व सर्वोपरि होता है। व्यवसाय की प्रत्येक गतिविधि के साथ वित्त का प्रश्न जुड़ा होता है और नाना प्रकार के कार्यकलापों के क्रम में पग-पग पर अनेक वित्तीय समस्याएँ सामने खड़ी  रहती हैं और उनका सही विश्लेषण एवं उचित निराकरण आवश्यक हो जाता है। यह तब ही सम्भव हो सकता है जबकि वित्त का प्रबन्ध कुशल एवं अनुभवी विशेषज्ञों को सौंपा जाये।

वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा ( Definition of Financial management) :

विभिन्न विद्वानों द्वारा वित्तीय प्रबन्ध को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है। कुछ के मतानुसार, “ वित्तीय प्रबन्ध” उचित शर्तों पर वित्त के एकीकरण से सम्बन्धित है, किन्तु यह वित्त का ही एक पहलू है, इसलिये यह वित्तीय प्रबन्ध का संकुचित अर्थ है। कुछ विद्वानों ने वित्तीय प्रबन्ध का नकदों (Cash) से सम्बन्ध बताया है, क्योंकि व्यवसाय की प्रत्येक क्रिया नकदी से सम्बन्धित है, इसलिए यह वित्तीय प्रबन्ध का अति विस्तृत अर्थ है। आधुनिक वित्त विशेषज्ञों के मतानुसार वित्तीय प्रबन्ध वित्त के एकत्रीकरण, लाभप्रद विनियोजन से सम्बन्धित है। यह एक प्रबन्धकीय विचारधारा पर आधारित अर्थ है और उपर्युक्त दोनों विचारधाराओं का समावेश भी इसमें मौजूद है। अतः प्रबन्धकीय विचारधारा (Managerial Approach) या समस्या केन्द्रित विचारधारा (Problem Centered Approach) पर आधारित वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषायें सन्तोषजनक प्रतीत होती हैं। वित्तीय प्रबन्ध की प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. हॉवर्ड एवं उपटन के अनुसार- “वित्तीय प्रबन्ध से आशय किसी संगठन में ऐसे प्रशासकीय कार्यों से है जो कि रोकड़ एवं साख की इस प्रकार व्यवस्था करने से सम्बन्धित है कि संगठन के लक्ष्य अधिकतम सम्भव सीमा तक मितव्ययिता एवं क्षमतापूर्वक प्राप्त किये जा सकें।”
  2. वेस्टन एवं ब्राईगम “वित्तीय प्रबन्ध वित्तीय निर्णय लेने की वह क्रिया है जो व्यक्तिगत उद्देश्यों और उपक्रम के लक्ष्यों में समन्वय स्थापित करती है।”
  3. आर्कर एवं एम्ब्रोसिया के अनुसार “वित्तीय प्रबन्ध से आशय सामान्य प्रबन्धकीय सिद्धान्तों को वित्तीय प्रबन्ध की विशेष क्रियाओं पर लागू करने से है।”
  4. गुथमेन एवं डुगल के अनुसार- “विस्तृत रूप से व्यावसायिक वित्त से आशय ऐसी क्रिया से है जो कि व्यवसाय में प्रयोग होने वाले वित्त के नियोजन, एकीकरण, नियन्त्रण, एवं प्रशासन से सम्बद्ध है।”
  5. जे० एल० मैसी के अनुसार- “वित्तीय प्रबन्ध किसी व्यवसाय की वह संचालनात्मक क्रिया है जो प्रचालनों (Operations) के लिये आवश्यक वित्त प्राप्त करने और उसका प्रभावशाली रूप से उपयोग करने के लिये उत्तरदायी होती है।”

निष्कर्ष :

वित्तीय प्रवन्ध का अर्थ किसी व्यावसायिक संस्था को श्रेष्ठतम स्रोतों से आवश्यक मात्रा में वित्त उपलब्ध करना तथा उसका प्रभावशाली ढंग से उपभोग करना है। इसके अन्तर्गत वित्तीय नियोजन, वित्त एकत्रीकरण, वित्त विनियोजन, वित्त नियन्त्रण आदि का अध्ययन किया जाता है। निगमों के वित्तीय प्रबन्ध में वित्त से सम्बन्धित समस्त पहलुओं, समस्याओं जैसे अंशों व ऋण-पत्रों का निर्गमन आंतरिक वित्तीय नियन्त्रण अतिरिक्त पूँजी की व्यवस्था, वित्तीय संकटों का निराकरण तथा संचित कोषों, अधिशेष, ह्रास, लाभांश, विनियोग सम्बन्धी नीतियों आदि को शामिल किया जाता है। अतः निगमों का वित्तीय प्रबन्ध व्यावसायिक वित्त का ही अंग होता है। जिसके अन्तर्गत निगमों की वित्तीय समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

वित्तीय प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!