वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

लाभ अधिकतमीकरण सदैव एकमात्र उद्देश्य नहीं है | “लाभ अधिकतमीकरण सदैव एकमात्र उद्देश्य नहीं” वित्तीय उद्देश्य की इस अवधारणा को स्पष्ट कीजिए

लाभ अधिकतमीकरण सदैव एकमात्र उद्देश्य नहीं है | “लाभ अधिकतमीकरण सदैव एकमात्र उद्देश्य नहीं” वित्तीय उद्देश्य की इस अवधारणा को स्पष्ट कीजिए | Profit maximization is not always the only objective in Hindi | “Profit maximization is not always the only objective” Explain the concept of financial objective in Hindi

लाभ अधिकतमीकरण सदैव एकमात्र उद्देश्य नहीं है

(Profit Maximization is not Always the Aim)

लाभ की मात्रा ही किसी व्यापारिक संस्था की उन्नति की सूचक होती है। जो फर्म जितना अधिक लाभ कमाती है, वह उतनी ही उन्नतिशील मानी जाती है। अतः प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम बनाये रखने का उद्देश्य सामने रखती है। किन्तु कुछ कारणों से फर्म सदैव लाभ को अधिकतम नहीं बनाये रख सकती, इसके मुख्य कारणों की वजह से फर्म को उचित सामान्य लाभ ही बनाये रखने पड़ते हैं। ये कारण निम्नांकित है-

(1) सम्भावित प्रतियोगियों के प्रवेश को रोकना

(To Prevent the Entry of Competitors) –

जब एक फर्म अधिक लाभ कमाने लगती है, तो उसकी लाभार्जन शक्ति से प्रभावित होकर अन्य लोग भी उस किस्म का व्यवसाय अपना सकते हैं, जिससे प्रथम फर्म को कड़ी प्रतिस्पर्द्धा कर का सामना करना पड़ सकता है। अतः भावी प्रतियोगियों के प्रवेश को रोकने के उद्देश्य से कोई भी फर्म अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के स्थान पर सामान्य लाभ की प्राप्ति करने का उद्देश्य ही अपनाती है। सामान्य लाभ की दशा में अन्य व्यक्ति व्यवसाय के उस क्षेत्र में प्रवेश की कोशिश ही नहीं करेंगे और प्रथम फर्म सामान्य लाभ की प्राप्ति करती रहेगी।

(2) उद्योग नेतृत्व की प्राप्ति

(Attainment of Industry Leadership) –

प्रत्येक व्यक्ति का यह उद्देश्य रहता है, कि वह अन्य लोगों का नेतृत्व प्राप्त करे। यही धारणा प्रत्येक फर्म की भी रहती है, कि उद्योग का नेतृत्व प्राप्त करे। उद्योग के नेतृत्व प्राप्ति हेतु प्रत्येक फर्म को अधिकतम विक्रय न्यूनतम मूल्य पर करना होता है, इस हेतु प्रत्येक फर्म को सामान्य लाभ ही प्राप्त करना होता है अन्यथा अन्य फर्मे न्यूनतम मूल्य पर विक्रय द्वारा उद्योग में अपनी स्थिति मजबूत कर सकती हैं। अतः उद्योग नेतृत्व की लालसा के कारण भी फर्मे लाभ को अधिकतम न करते हुये सामान्य स्तर पर ही रखती हैं।

(3) जोखिम से बचना

(Avoiding Risk) –

यह कथन सत्य है कि जितनी अधिक जोखिम ली जायेगी उतना ही प्रतिफल अधिक मिलने की सम्भावना रहेगी। किन्तु अनेक फर्मे अधिक जोखिम उठाने को तैयार रहती हैं, क्योंकि जोखिम उठाने पर भी सफल होने की स्थिति में उनको उद्योग से बाहर होने की नौबत आ सकती है। अतः फर्मे अधिक लाभ के लिये अधिक जोखिम उठाने की अपेक्षा सामान्य लाभ की प्राप्ति हेतु ही प्रयत्नशील रहती है।

(4) सुरक्षा की भावना

(Security Point of View) –

जो फर्म चाहती है, कि वह उद्योग में अपना स्थान सुरक्षापूर्ण बनाये रखे, तो उसे अधिकतम लाभ का उद्देश्य त्यागना पड़ता है, क्योंकि अधिकतम लाभ से भावी प्रतियोगियों की उपस्थिति का प्रश्न पैदा हो सकता है, जो फर्म की सुरक्षा के लिये खतरा है। अतः सुरक्षा की दृष्टि से भी फर्मे अधिकतम लाभ के स्थान पर सामान्य लाभ हेतु ही कार्यरत रहती हैं।

(5) उपभोक्ताओं में ख्याति बनाये रखना

(Maintaining Goodwill among Consumers) –

उपभोक्ता बाजार में एक राजा के समान अस्तित्व रखते हैं। उपभोक्ताओं की पसन्दगी ही फर्म की उन्नति में सहायक होती है। फर्म उपभोक्ताओं में अपनी खयाति बनाये रखने के लिये अधिकतम ब्याज प्राप्ति का उद्देश्य नहीं अपना सकती, जो फर्म अधिक लाभ के लिये उपभोक्ताओं का शोषण करने लगती है, उसे उद्योग से बाहर होना पड़ता है। अतः उपभोक्ताओं में ख्याति बनाये रखने की वजह से ही संस्थायें मूल्य वृद्धि के स्थान पर लाभ की मात्रा में कमी करने में ही अपना भला समझती हैं।

(6) वेतन वृद्धि की माँग रोकना

(Restraining Demand for Increase in Remuneration) –

जब कोई फर्म अधिक लाभ कमाने लगती है, तो श्रमिकों द्वारा यह माँग की जाती है, कि उनकी वेतन वृद्धि भी की जाये, क्योंकि लाभ-वृद्धि में एक हिस्सा उनके श्रम का भी होता है इस स्थिति से बचने हेतु फर्मे चाहती हैं, कि उनका लाभ सामान्य बना रहे। यदि अधिक लाभ की दशा में वेतन वृद्धि नहीं की जाती, तो श्रम सम्बन्धों की खराबी के कारण फर्म को आगे चलकर नुकसान उठाना पड़ सकता है। अतः फर्मे लाभ को अधिकतम नहीं करते हये सामान्य स्तर पर बनाये रखते हैं।

(7) सरकारी हस्तक्षेप रोकना

(Preventing Government’s Intervention ) –

जब फर्म संस्था अधिक लाभ कमाने लगती है, तो उपभोक्ताओं द्वारा सरकार से उस संस्था की विभिन्न तरह से जाँच करने की अपील की जाती है। इससे सरकार उस संस्था की नीतियों में हस्तक्षेप करना शुरू कर देती है और उसे सामान्य लाभ बनाने हेतु आदेश देती है। ऐसी स्थिति से बचने हेतु संस्थाएँ प्रारम्भ से ही अपने लाभ को अधिकतम करने का उद्देश्य त्याग कर सामान्य लाभ-प्राप्ति हेतु कार्य करती है।

(8) फर्म की तरलता में वृद्धि

(Increase in Liquidity of the Firm) –

जब फर्म अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहती है, तो उसे उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में प्रवेश करना आवश्यक हो जाता है, जिसके लिये बड़ी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है, इससे फर्म की तरलता में कमी आ जाती हैं तरलता में वृद्धि करने के लिये फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के स्थान पर लाभों को सामान्य स्तर पर ही बनाये रखती है, इससे तरलता में वृद्धि सम्भव हो जाती है।

(9) सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करना

(Fulfilment of social Liability) –

सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने हेतु फर्म को अधिकाधिक लाभ द्वारा जनता का शोषण करना  बन्द करना होता है, जब फर्मे अधिकाधिक लाभ लेना शुरू कर देती हैं, तो उससे समाज में महँगाई बढ़ने लगती है, यह समाज सेवा नहीं है। अतः सामाजिक दायित्व की पूर्ति हेतु भी फर्मे सामान्य लाभ पर ही व्यापार करना पसन्द करती हैं।

उपरोक्त कारणों से फर्म अधिकाधिक लाभ प्राप्ति के उद्देश्य को त्यागकर उचित एवं सामान्य लाभ को ही लक्ष्य बनाती है।

यदि ध्यान से देखा जाये तो अधिकतम लाभ न कमाने के उपरोक्त कारणों से फर्म को अल्प काल में तो लाभ अवश्य कम होते हैं परन्तु दीर्घकाल में फर्म को अधिक लाभ की प्राप्ति होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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