वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

दीर्घकालीन वित्त से आशय | दीर्घकालीन वित्त पूर्ति के साधन | Meaning of Long-Term Finance in Hindi | Sources of Long-Term Finance in Hindi

दीर्घकालीन वित्त से आशय | दीर्घकालीन वित्त पूर्ति के साधन | Meaning of Long-Term Finance in Hindi | Sources of Long-Term Finance in Hindi

दीर्घकालीन वित्त से आशय

(Meaning of Long-Term Finance)

दीर्घकालीन वित्त से आशय ऐसे चित्त से होता है जिसका भुगतान दीर्घकाल में करना होता है। सामान्यतः इसकी अवधि 10 से 25 वर्ष या इससे भी अधिक हो सकती है। प्रायः दीर्घकालीन वित्त का विनियोजन भूमि व भवन, प्लाण्ट व मशीनरी, मोटर गाड़ियाँ, पेटेन्ट, ख्याति आदि सम्पत्तियों में किया जाता है। परन्तु यदि संस्था किसी विशेष परिस्थिति में अल्पकालीन वित्तीय साधनों द्वारा अपनी इस आवश्यकता को पूरा करती है। लेकिन दीर्घकालीन वित्त पूर्ति के साधनों से केवल स्थायी सम्पत्तियों में विनियोजन हेतु वित्त की प्राप्ति अधिक न्यायोचित एवं तर्क संगत होती है।

दीर्घकालीन वित्त पूर्ति के साधन

(Sources of Long-Term Finance)

दीर्घकालीन वित्तं पूर्ति के निम्नलिखित साधन होते हैं-

स्वामीगत पूँजी( Ownership capital)- वह ऐसी पूँजी होती है जिसे संस्था के स्वामी स्वयं प्रदान करते हैं इन्हें कम्पनी के संचालन पर नियन्त्रण रखने का अधिकार होता है और साथ ही कम्पनी की लाभ-हानि का उत्तरदायित्व भी वहन करना होता है। स्वामीगत पूँजी में जिन साधनों को सम्मिलित किया जाता है, वे हैं- (i) समता अंश-पूँजी, (ii) पूर्वाधिकार अंश-पूँजी, एवं (iii) लाभों का पुनर्विनियोग।

(i) समता अंश-पूँजी (Equity Share Capital) – समता अंश-पूँजी का कम्पनी की वित्त व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसे औद्योगिक कम्पनी के वित्तीय ढाँचे का आधार स्तम्भ भी कहा जाता है। कम्पनी अपने पूँजी का बहुत बड़ा भाग इन अंशों में निर्गमन द्वारा ही प्राप्त करती है समता अंशधारियों का कम्पनी में हित असीमित होता है। कम्पनी अपने सम्पूर्ण दायित्वों का भुगतान करने के पश्चात् सर्वप्रथम पूर्वाधिकार अंशधारियों को लाभांश वितरित करती है। तत्पश्चात् जो कुछ शेष बचता है उस पर समता अंशधारियों का ही अधिकार होता है। इसलिये इस पूँजी को साहस पूँजी या जोखिम पूँजी भी कहा जाता है। ये अंशधारी कम्पनी के आयगत लाभों पर तो अधिकार रखते ही हैं और इसके साथ ही साथ यदि कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियों की बिक्री से कोई पूँजीगत लाभ प्राप्त हो या आकस्मिक अवसरों से कोई आय प्राप्त हो तो इन लाभों और आयों पर भी इन्ही अंशधारियों का अधिकार होता है कम्पनी की साधारण वार्षिक सभा में मत देने का इन्हें पूर्ण अधिकार होता है।

समता अंश-पूँजी में सबसे बड़ा यह दोष है कि हानि के वर्षों में इन अंशधारियों को कुछ भी प्राप्त नहीं होता और यदि कम्पनी का समापन हो जाता है तो इनकी पूँजी सबसे अन्त में लौटाई  जाती है। इस प्रकार यदि सम्पूर्ण दायित्वों का भुगतान करने के पश्चात् कुछ भी नहीं बचता तो इन्हें अपनी लगाई हुई पूँजी भी वापस नहीं मिलती। इन अंशधारियों को इसीलिये अवशिष्ट दावेदार (Residual claimant) भी कहा जाता है। फिर भी यह अंश-पूंजी इन सम्पूर्ण जोखिमों को वहन करते हुए भी कम्पनियों में सर्वाधिक लोकप्रिय

(ii) पूर्वाधिकार अंश-पूँजी (Preference Share Capital) – समता अंश की भाँति पूर्वाधिकार अंश-पूँजी से भी कम्पनी काफी बड़ी मात्रा में वित्त एकत्रित करती है। कम्पनी पूर्वाधिकार अंश-पूँजी पर एक निश्चित दर से लाभांश भुगतान करने के लिये बाध्य होती है और इन अंशों पर लाभांश का भुगतान, समता अंश-पूँजी पर लाभांश भुगतान करने से पूर्ण किया जाता है। कम्पनी के समापन पर भी पूर्वाधिकार अंशधारियों को अदत्त लाभांश का पहले भुगतान किया जाता है। अंश- पूँजी का सबसे अधिक लाभ उन अंशधारियों को प्राप्त होता है जो हानि की जोखिम से बचना चाहते हैं और एक निश्चित दर से ही लाभांश प्राप्त करके सन्तुष्ट रहते हैं।

(iii) लाभों का पुनर्वियोग (Ploughing Back of Profits )- कम्पनी के स्वामीगत ‘दीर्घकालीन वित्त’ पूर्ति के साधनों में से लाभों का पुनर्वियोग एक बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है। इसे प्रतिधारित आय (Retained Earnings) भी कहा जाता है। यह एक ऐसी विधि है जिसमें कम्पनी आय के कुछ भाग को बचाकर उसका प्रयोग भावी विकास परियोजनाओं के लिये करता है। कम्पनी अपने लाभ का एक भाग अंशधारियों में लाभांश के रूप में बाँट देती है और शेष जो लाभ बचता है उसे वह अपने व्यवसाय में ही पुनः विनियोजित कर लेती है, जिसे लाभ का पुनर्वियोग कहते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार इस प्रतिधारित आय की कोई लागत नही होती क्योंकि वित्त पूर्ति के इस साधन पर कम्पनी, प्रत्यक्ष रूप से किसी भी प्रकार का लाभांश या ब्याज देने के लिये बाध्य नहीं है। परन्तु कम्पनी को लाभों का पुनर्विनियोजन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रकार के विनियोग पर उचित प्रत्याय अवश्य प्राप्त हो।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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