वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

वित्तीय प्रबन्ध के उद्देश्य | वित्तीय उद्देश्य-अधिकतम लाभ उपार्जन | अधिकतम लाभ उपार्जन की आलोचना

वित्तीय प्रबन्ध के उद्देश्य | वित्तीय उद्देश्य-अधिकतम लाभ उपार्जन | अधिकतम लाभ उपार्जन की आलोचना | Objectives of Financial Management in Hindi | Financial Objective-Maximizing Profit Earning in Hindi | Criticism of earning maximum profit in Hindi

वित्तीय प्रबन्ध के उद्देश्य (Objective of Financial Management ):

किसी भी व्यवसाय में प्रबन्ध का यह प्रयत्न रहता है कि न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करके, अधिकतम लाभ अर्जित हो। वित्तीय प्रबन्ध भी सामान्य प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण अंग है। अतः वित्तीय प्रबन्ध का भी प्रमुख उद्देश्य न्यूनतम वित्तीय साधनों द्वारा अधिकतम लाभ अर्जित करना ही होता है। वित्तीय प्रबन्ध के विषय पर कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा अधिकतम लाभ’ शब्द के प्रयोग पर एतराज किया गया है। उनका कहना है कि वित्तीय प्रबन्ध का उद्देश्य ‘अधिकतम लाभ’ अर्जित करने के स्थान पर ‘उचित लाभ’ उपार्जित करना होना चाहिए। सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से यह ठीक है, क्योंकि यदि वित्तीय प्रबन्ध द्वारा ‘उचित लाभ’ उपार्जित किया जाता है तो समाज के किसी भी वर्ग का शोषण नहीं हो सकेगा। किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से वित्तीय प्रबन्ध का प्रयास ‘उचित’ लाभ कमाना नहीं होता बल्कि अधिकतम लाभ उपार्जित करना ही होता है। वस्तुतः वर्तमान विनियोक्ता भी उसी संस्था की ओर आकर्षित होता है जिस संस्था के लाभोपार्जन की दर अधिकतम होती है। वित्तीय प्रबन्ध के विशेषज्ञ प्रो0 सोलामन इजरा ने भी अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि, “वित्तीय प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य धन अधिकतमीकरण होना चाहिये।” वित्तीय प्रबन्ध के अन्य सभी उद्देश्य इसी उद्देश्य पर केन्द्रित हैं। यदि वित्तीय प्रबन्ध अधिकतम लाभ उपार्जित करने में समर्थ है तभी भी दिया जा सकता है। इस प्रकार, निष्कर्ष के रूप में हम कह अंशधारियों को अधिकतम लाभांश भी दिया जा सकता है। इस प्रकार, निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि वित्तीय प्रबन्ध का उद्देश्य लाभ एवं धन को अधिकतम करना है तथा इसके अन्य सभी उद्देश्य लाभ के अधिकतमीकरण (Maximization) उद्देश्य पर निर्भर करते हैं।

वित्तीय उद्देश्य-अधिकतम लाभ उपार्जन

(Financial Goal- Maximum Earn Profit)

किसी व्यावसायिक उपक्रम का मूल उद्देश्य उसके स्वामियों को अधिकतम लाभ प्रदान करना है। यह अधिकतम लाभ तभी प्रदान किया जा सकता है जब वित्तीय प्रबन्ध के द्वारा अपने साधनों का पूरा उपयोग किया जाये और उत्पादन सम्बन्धी एवं विक्रय सम्बन्धी सभी क्रियाओं को सही ढंग से क्रियान्वित किया जाये। अधिकतम लाभ उपार्जन को निम्नलिखित तर्कों के आधार पर उचित ठहराया जा सकता है-

(1) सभी व्यावसायिक निर्णय लाभोपार्जन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर किये जाते हैं।

(2) संस्था के पास जितने भी साधन मौजूद होते हैं उनका प्रयोग लाभ के आधार पर हो किया जा सकता है।

(3) कोई भी व्यक्ति व्यापार करते समय यदि अधिकतम लाभ कमाने की योजना नहीं बनाता है तो इस प्रतिस्पर्धा के युग में शीघ्र प्रगति नहीं कर सकता है इसलिये विकास की दर बढ़ाकर अधिक से अधिक लाभ कमाने की योजना बनाता है।

(4) कोई व्यक्ति व्यवसाय करता है तो वह अपने विवेक का पूरा उपयोग करना चाहता है। विवेक का पूरा उपयोग तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक पूरा लाभ कमाने की योजना न हो।

(5) लाभ एक ऐसी प्रेरणा है जिसके वशीभूत होकर व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह कठोर परिश्रम करके एवं कड़ी प्रतिस्पर्धा करके दूसरे लोगों के व्यवसाय से अच्छा व्यवसाय बनाने की कोशिश करता है अधिकतम लाभ की प्रेरणा एवं आकर्षण व्यवसाय को सफलता के शीर्ष पर पहुँचाने के लिए प्रेरित करती है।

19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अधिकतम लाभ कमाना ही व्यवसाय का उद्देश्य था क्योंकि उस समय अधिकतर लोगों के निजी एवं एकाकी व्यवसाय थे लिकिन आज के परिवेश में व्यवसाय का रूप बदल गया है इसमें वित्त की व्यवस्था अंशधारियों तथा लेनदारों के द्वारा की जाती है तथा उसका प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्धकों के द्वारा किया जाता है इसलिए विगत कुछ वर्षों से व्यवसाय के मूल उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाने के सिद्धान्त की आलोचना की गयी है। विद्वानों का तर्क है अधिकतम लाभ के स्थान पर उचित लाभ कमाने का उद्देश्य होना चाहिए क्योंकि अधिकतम लाभ कमाने के चक्कर में सामाजिक सेवा में कमी आ जायेगी और कम्पनियाँ अपने मूल उद्देश्यों को भूल जायेंगी। इसके साथ ही साथ अधिकतम लाभ पूर्ण प्रतियोगिता की ही स्थिति में कमाया जा सकता है। अंत में यह कहा जा सकता है कि आज के युग में अधिकतम लाभ कमाने का सिद्धान्त लगभग समाप्त हो चुका है।

आलोचना (Criticism) : अधिकतम लाभ उपार्जन की आलोचना निम्नलिखित है-

(1) लाभ की अवधारणा स्पष्ट नहीं है क्योंकि लाभ कई प्रकार के होते हैं; जैसे- सकल लाभ, शुद्ध लाभ, संचालन लाभ, औसत लाभ इत्यादि।

(2) अधिकतम लाभ कमाने के चक्कर में कोई व्यक्ति अपने नैतिक आदर्शों एवं व्यावहारिकता को भूल जाता है।

(3) एक वर्ष के अन्दर विभिन्न महीनों में लाभ अलग-अलग होता है इसलिये अधिकतम लाभ की परिभाषा स्पष्ट नहीं होती है। इसके साथ-साथ मुद्रा के मूल्य में परिवर्तनों को भी ध्यान में रखा जाता है।

(4) अधिकतम लाभ शब्द अव्यावहारिक लगता है।

(5) अधिकतम लाभ स्वामियों के आर्थिक कल्याण को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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