वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

वित्त से आशय | वित्त के प्रकार | वित्तीय प्रबन्ध का महत्व | वित्तीय प्रबन्ध की उपयोगिता

वित्त से आशय | वित्त के प्रकार | वित्तीय प्रबन्ध का महत्व | वित्तीय प्रबन्ध की उपयोगिता | Meaning of finance in Hindi | Types of Finance in Hindi | Importance of Financial Management in Hindi | Utility of financial management in Hindi

वित्त से आशय (Meaning of Finance ) :

वित्त व्यवसाय का आधार है। इसके बिना किसी उपक्रम को न तो आरम्भ ही किया जा सकता है और न सम्पन्न ही। व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वित की समुचित व्यवस्था अतिआवश्यक है। इसकी तुलना मानव शरीर की रक्त संचार प्रणाली से की जा सकती है जिस प्रकार शरीर में होने वाला रक्त-संचार विभिन्न अंगों को बल एवं स्फूर्ति प्रदान करता है, उसी प्रकार वित्त व्यावसायिक संगठनों की कार्यकुशलता एवं सफलता का सम्बल माना जाता है। साधारण व्यावसायिक संगठनों में वित्त व्यवस्था करना अपेक्षाकृत सरल कार्य है; क्योंकि इनका स्वरूप व्यक्तिगत होता है तथा इनकी आवश्यकताएँ सीमित होती हैं किन्तु जैसे-जैसे व्यावसायिक संगठनों का स्वरूप व्यक्तिगत से अव्यक्तिगत होता जाता है, वित्त पूर्ति की प्रक्रिया भी अधिक जटिल बनती जाती है।

वित्त आधुनिक आर्थिक संगठन का एक आवश्यक अंग है। कृषि, उद्योग, व्यापार और अन्य सभी क्षेत्रों में वित्त का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अर्थिक प्रगति सर्वत्र वित्त-पूर्ति के साधनों पर निर्भर होती है। वित्त व्यवस्था वस्तुतः धन का विज्ञान है इसके अन्तर्गत हम उन सिद्धान्तों और रीतियों का अध्ययन करते हैं जिनके आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा संचित पूँजी पर नियन्त्रण प्राप्त करके उसे उत्पादक कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। विभिन्न आर्थिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों को एक सूत्र में बाँधने के लिए किसी ऐसे साधन की अपेक्षा होती है जो उन्हें सुचारू रूप से निर्देशित और संचालित कर सके। वित्त ही वह शक्तिशाली साधन है जो इस कार्य को पूरा करता है। इसीलिए वित्त को व्यवसाय का आधार कहा जाता है। वित्त वस्तुतः कोषों को उत्पादक उपयोगों में परिवर्तित करने की एक प्रक्रिया है। संगठन के विभिन्न अंग-प्रत्यंगों में यह प्रक्रिया इस प्रकार समाविष्ट होती है कि इसकी भूमिका का पृथक अवलोकन अथवा मूल्यांकन करना कठिन होता है। फिर भी व्यवसाय में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक सभी स्तरों पर इसकी भूमिका निर्णायक होती है। “ वित्त को रोकड़ एवं ऋण की व्यवस्था से सम्बद्ध एक ऐसे प्रशासनिक क्षेत्र (Administrative area) अथवा किसी संगठन के प्रशासनिक कार्यों के एक ऐसे समूह (Set of administrative Functions) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो संगठन को उसके उद्देश्यों की यथोचित पूर्ति के लिए आवश्यक साधनों की प्राप्ति में सहयोग प्रदान कर सके।

वित्त के प्रकार

वित्त के मुख्यतः दो भेद किये जाते हैं-

(1) सार्वजनिक वित्त (Public Finance): सार्वजनिक वित्त का आशय राजकीय वित्त से है जिसके अनुसार केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के आय-व्यय सम्बन्धी सिद्धान्तों और साधनों का अध्ययन किया जाता है। स्थानीय निकायों (Local bodies) के बजट भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। किसी राष्ट्र के लिए सार्वजनिक वित्त का बहुत महत्व होता है और राष्ट्र की सम्पलता राजकीय वित्त के सिद्धान्तों की बेछता एवं उन सिद्धान्तों के उचित क्रियान्वयन पर निर्भर होती है।

(2) व्यावसायिक वित्त ( Business Finance): व्यावसायिक वित्त का सम्बन्ध उन संगठनों की वित्त व्यवस्थाओं से है जो लाभोपार्जन के उद्देश्य से संचालित की जाती है। यह एक व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत सभी प्रकार के व्यावसायिक संगठनों की वित्त व्यवस्थाएँ सम्मिलित की जाती हैं। एकाकी व्यापार एवं साझेवारी संगठनों की वित्त व्यवस्था व्यावसायिक वित्त का ही अंग है। “निगमों का वित्तीय प्रबन्ध” (Corporate Financial Management) भी व्यावसायिक वित्त का अंग है जिसके अन्तर्गत हम समामेलित संस्थाओं ( Incorporated Bodies) अथवा कम्पनियों की वित्तीय व्यवस्था अथवा उनके वित्तीय प्रबन्ध का विवेचन और विश्लेषण करते हैं। आधुनिक युग में चूंकि व्यावसायिक जगत में ‘कम्पनियों’ अथवा ‘निगमों’ का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, एक पृथक विषय के रूप में निगमों के वित्तीय प्रबन्ध का महत्व भी उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। इस व्यापक सन्दर्भ में गुथमैन एवं डूग्गाल ने व्यावसायिक वित्त को निम्न प्रकार परिभाषित किया है, व्यापक परिभाषा के रूप में व्यावसायिक वित्त का सम्बन्ध ऐसी गतिविधियों से है जो व्यवसाय में प्रयुक्त कोष के नियोजन, एकत्रण नियन्त्रण एवं प्रशासन से जुड़ी हुई हो।

वित्तीय प्रबन्ध का महत्व या उपयोगिता

(Importance of Sound Financial Management)

वित्तीय प्रबन्ध की उपयोगिता या महत्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

(1) व्यावसायिक प्रबन्धकों के लिये महत्व- वित्तीय प्रबन्ध सामान्य व्यावसायिक प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण अंग है। कुशल व्यावसायिक संचालन की दृष्टि से प्रबन्धकों के लिये वित्तीय प्रबन्ध का विषय प्राथमिक महत्व का है। निगमों के रूप में व्यावसायिक संस्थाओं की स्थापना में वृद्धि के कारण प्रबन्धकीय समस्यायें भी जटिल हो गयी हैं। अतः वित्तीय प्रबन्ध के आधुनिक सिद्धान्तों की जानकारी के अभाव में विभिन्न वर्गों के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वाह करना प्रबन्धकों के लिये असम्भव होता है। प्रबन्धक जनता द्वारा विनियोजित धन के प्रन्यासी (Trustee) होते हैं। निगमों में विनियोजित जनता के धन की सुरक्षा एवं सदुपयोग का भार प्रबन्धकों पर ही होता है। प्रबन्धकों द्वारा नियमित रूप से लाभ उपार्जित करके अंशधारियों को उनकी विनियोजित पूँजी एवं जोखिम के लिये समुचित लाभांश दिये जाने की व्यवस्था करना आवश्यक है। यह तभी सम्भव है जब प्रबन्धकों को वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का पूर्ण ज्ञान हो प्रत्येक व्यावसायिक संस्था के प्रबन्धकों का एकमात्र उद्देश्य न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। वित्तीय प्रबन्ध इस लक्ष्य की प्राप्ति में प्रबन्धकों का मार्गदर्शन करता है तथा विभिन्न पक्षकारों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में उनकी सहायता करता है।

(2) अंशधारियों के लिये महत्व : वित्तीय प्रबन्ध के विषय का अंशधारियों के लिए भी कम महत्व नहीं है। अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते हैं, किन्तु निगमों के प्रबन्ध का कार्य निर्वाचित संचालक मण्डल द्वारा किया जाता है। अतः प्रबन्धक एवं संचालक किस सीमा तक अंशधारियों के हित में अपने इस कर्तव्य का पालन करते हैं, इसका मूल्यांकन करना अंशधारियों का कार्य है। यदि अंशधारी वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों से भली-भाँति अवगत हैं तो वे कम्पनी की वित्तीय दशा का उचित मूल्यांकन करके कम्पनी में निहित अपने हितों की सुरक्षा कर सकते हैं। यदि निगम के संचालक प्रवन्धक उनके हितों के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं तो वे उन्हें उचित वित्तीय नीति अपनाने के लिये बाध्य कर सकते हैं। अत: अंशधारियों को अपने हितों की सुरक्षा के लिये वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का ज्ञान होना अति महत्वपूर्ण है। संचालकों को उचित वित्तीय नीतियों को अपनाने के लिये बाध्य करके कम्पनी को अधिक लाभ उत्सर्जित  की ओर अग्रसर कर सकते हैं और फलस्वरूप अधिकतम लाभांश प्राप्त कर सकते हैं।

(3) विनियोक्ताओं के लिये महत्व: वित्तीय प्रबन्ध के विषय से विभिन्न वर्गों के विनियोक्ता भी लाभान्वित होते हैं। विनियोक्ता अपनी संचित पूंजी का विनियोग प्रायः सिक्यूरिटी डीलर्स (Security Dealers) एवं वित्तीय दलालों के माध्यम से करते हैं, किन्तु उनसे यह आशा नहीं की जा सकती कि वह सदैव ही कम्पनी के चयन एवं प्रतिभूतियों के चुनाव में विवेकपूर्ण निर्णय ले सकेगें। अतः वित्तीय प्रबन्ध का ज्ञान रखने वाले विनियोक्ता स्वयं ही इस विषय पर सन्तोषजनक निर्णय लेने में समर्थ होते हैं और अपनी संचित पूंजी पर सुरक्षित एवं नियमित रूप से आय प्राप्त कर सकते हैं। परिकल्पक विनियोक्ता (Speculator Investors) भी वित्तीय प्रबन्ध के ज्ञान से लाभ प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त कुशल वित्तीय प्रबन्ध की सहायता से निगम भी अधिकतम लाभ उपार्जित करने में समर्थ रहते हैं, जिसके फलस्वरूप विनियोक्ताओं को अपनी विनियोजित पूँजी पर अधिकतम आय प्राप्त होती है।

(4) वित्तीय संस्थाओं के लिये महत्व : वित्तीय संस्थाओं का अस्तित्व प्रभावपूर्ण वित्त प्रवन्ध पर आधारित है। अतः अपनी संचित पूंजी के लामपूर्ण विनियोजन के लिये उन्हें वित्तीय प्रबन्ध के प्रत्येक पहलू से पूर्ण रूप से अवगत होना अनिवार्य है। विनियोग बैंकों, अभिगोपकों, प्रन्यासी कम्पनियों, व्यापारी बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं को वित्तीय प्रबन्ध का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए अन्यथा वे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकतीं।

(5) कर्मचारियों के लिये महत्व प्रायः कर्मचारियों का मुख्य उद्देश्य अपने वित्तीय एवं अवित्तीय लाभों को अधिकताम करना होता है। सुदृढ़ वित्तीय व्यवस्था के आधार पर निगम के प्रबन्धक कर्मचारियों की उत्पादकता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि लाकर उनके हितों का संरक्षण कर सकते हैं। अतः वित्तीय प्रबन्धक से कर्मचारी वर्ग भी लाभान्वित होता है।

(6) सरकार के लिये महत्व: सरकार के लिये भी वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्तों का पूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है करों के रूप में जनता से एकत्रित धन का प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग करना ही सरकार का प्रयास होता है। वित्तीय प्रबन्ध के पूर्ण ज्ञान के अभाव में सरकार के लिये सार्वजनिक व्यय द्वारा जनता का अधिकतम कल्याण करना असम्भव होता है। अतः सुदृढ़ वित्तीय प्रबन्ध के आधार पर ही किसी देश में आर्थिक और सामाजिक क्रान्ति लाना सम्भव होता है।

(7) अन्य पक्षकारों के लिये महत्व : वित्तीय प्रबन्ध के ज्ञान से अन्य सभी ऐसे पक्षकार भी लाभान्वित होते हैं जो देश की आर्थिक समस्याओं में रुचि रखते हैं, जैसे- अर्थशास्त्री, वाणिज्य तथा व्यवसाय के विद्यार्थी, राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री आदि। वित्तीय प्रबन्ध के सिद्धान्ता के पूर्ण ज्ञान के अभाव में देश की आर्थिक समस्याओं का सही अध्ययन करना कठिन है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि आधुनिक युग के वित्तीय प्रबन्ध का अत्यन्त महत्व है। यह न केवल प्रबन्धकों, अंशधारियों, विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं और सरकार के लिये ही उपयोगी है वरन् देश की आर्थिक समस्याओं में रुचि रखने वाले अर्थशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों, समाजशास्त्रियों और वाणिज्य एवं व्यवसाय के विद्यार्थियों के लिये भी इसका समान महत्व है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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