व्यापक अर्थशास्त्र | व्यापक अर्थशास्त्र का क्षेत्र | व्यापक अर्थशास्त्र के प्रयोग और लाभ | व्यापक अर्थशास्त्र की सीमाएँ
व्यापक अर्थशास्त्र | व्यापक अर्थशास्त्र का क्षेत्र | व्यापक अर्थशास्त्र के प्रयोग और लाभ | व्यापक अर्थशास्त्र की सीमाएँ
व्यापक अर्थशास्त्र या समष्टिपरक
(Macro Economics)
सूक्ष्म अर्थशास्त्र की सीमाओं से मुक्त होने के लिए व्यापक आर्थिक विश्लेषण का प्रयोग किया गया | ‘Macro’ पाब्द का अर्थ है बहुत बड़ा। इसलिए इसके अन्तर्गत हम समूहों या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन करते हैं। इसमें हम कुल मांग, कुल पूर्ति, कुल निवेश, कुल आय, कुल रोजगार आदि का अध्ययन करते हैं। व्यापक अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित है-
(1) बोल्डिंग के अनुसार, “व्यापक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत मात्राओं से नहीं है अपितु इन मात्राओं के कुल योग से है, व्यक्तिगत आय से नहीं अपितु राष्ट्रीय आय से, व्यक्तिगत कीमत से नहीं अपितु सामान्य कीमत-स्तर से तथा व्यक्तिगत उत्पादन से नहीं अपितु राष्ट्रीय उत्पादन से है।”
(2) गाईनर एक्ले के अनुसार, “व्यापक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध इस प्रकार के तत्त्वों से है जैसे किसी अर्थव्यवस्था की कुल उत्पादन मात्रा, उसके साधनों को रोजगार दिलाने की सीमा, राष्ट्रीय आय की मात्रा तथा सामान्य मूल्य स्तर इत्यादि।”
(3) चैम्बरलिन के अनुसार, “व्यापक अर्थशास्त्र कुल सम्बन्धों का अध्ययन करता है।”
(4) शुल्ज के अनुसार, “व्यापक अर्थशास्त्र का मुख्य रूप राष्ट्रीय आय विश्लेषण है।”
(5) जे० एल० हेन्सन के अनुसार, “व्यापक अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र का वह भाग है जिसका सम्बन्ध बड़े समूहों से है, जैसे-रोजगार की मात्रा, कुल बचत और निवेश, राष्ट्रीय आय आदि।”
(6) शैपिरो के अनुसार, “व्यापक अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के कार्यकरण से सम्बन्धित है।
व्यापक अर्थशास्त्र का क्षेत्र
(Scope of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र के मुख्य विषय हैं-राष्ट्रीय आय, रोजगार के सिद्धान्त, आर्थिक विकास एवं वृद्धि के सिद्धान्त, सामान्य मूल्य-स्तर, मौद्रिक एवं वित्तीय समस्याएँ, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय आदि। इसके अध्ययन-क्षेत्र को निम्नांकित चार्ट की सहायता से समझा जा सकता है-
व्यापक आर्थिक सिद्धान्त
- आय व रोजगार का सिद्धान्त
- उपभोग फलन का सिद्धान्त
- निवेश का सिद्धान्त
- सामान्य कीमत-स्तर तथा कीमत स्फीति का सिद्धान्त
- आर्थिक विकास का सिद्धान्त
- वितरण का समष्टि सिद्धान्त
“Macroeconomics deals with the functioning of the xonomy as a whole.”
-Shapiro.
व्यापक अर्थशास्त्र के प्रयोग और लाभ
(Uses & Importance of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र का अध्ययन एक व्यक्ति, समाज व सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए समान रूप से उपयोगी है। यह अनेक महत्त्वपूर्ण परन्तु जटिल आर्थिक विषयों जैसे-रोजगार स्तर, राष्ट्रीय आय, पूंजी निर्माण, बैंकिंग, विदेशी विनिमय, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, मौद्रिक, राजकोषीय, औद्योगिक एवं आर्थिक नीति, व्यापार चक्र व आर्थिक नियोजन आदि का अध्ययन करता है। व्यापक आर्थिक विश्लेषण के कुछ प्रमुख लाभ निम्नांकित हैं-
(1) आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक- व्यापक अर्थशास्त्र सरकार की आर्थिक नीतियों के निर्माण एवं क्रियान्वयन में अत्यधिक सहायक होता है। इसके महत्त्व को स्पष्ट करते हुए बोल्डिंग ने लिखा है, “आर्थिक नीति के दृष्टिकोण से व्यापक अर्थशास्त्र अत्यन्त आवश्यक है। इसका कारण यह है कि सरकार की आर्थिक नीतियाँ भिन्न-भिन्न व्यक्तियों से सम्बन्धित नहीं होतीं अपितु सामूहिक सम्बन्ध व्यक्तियों से न होकर व्यक्तियों के समूहों से होता है।”
(2) सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अध्ययन में सहायक- सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों के विकास व निर्माण में व्यापक अर्थशास्त्र का उपयोग सहायक है। उदाहरण के लिए, किसी उद्योग में कार्यरत साधन की मजदूरी दर पर अर्थव्यवस्था की सामान्य मजदूरी दर का प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार किसी वस्तु की कीमत पर सामान्य कीमत-स्तर का प्रभाव पड़ता है।
(3) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के संचालन को समझने में सहायक- व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन मात्र से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के संचालन को नहीं समझा जा सकता। अतः सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के संचालन को समझने के लिए यह आवश्यक है कि व्यापक अर्थशास्त्र का सहारा लिया जाये।
(4) आर्थिक नियोजन में सहायक- आधुनिक समय में सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक विकास एवं आर्थिक नियोजन महत्त्वपूर्ण विषय बन गये हैं। ये दोनों ही सामूहिक चर मूल्यों से सम्बन्धित हैं और इनका अध्ययन व्यापक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है।
(5) अर्थशास्त्र के उद्देश्यों के अनुरूप- अर्थशास्त्र का अन्तिम उद्देश्य निजी हितों की अपेक्षा सामूहिक हितों की अभिवृद्धि करना है। यह व्यापक आर्थिक विश्लेषण द्वारा ही सम्भव है।
(6) अन्तर्राष्ट्रीय तुलना में सहायक- व्यापक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत इकाइयों से न होकर समूहों से होता है। अतः इसका प्रयोग अन्तर्राष्ट्रीय तुलनाओं के लिए किया जा सकता है।
(7) समूह के अलग ज्ञान की आवश्यकता- समूह केवल व्यक्तिगत इकाइयों का योग नहीं है, इसकी अपनी अलग विशेषताएँ होती हैं। अनेक क्रियाएँ ऐसी होती हैं जो एक व्यक्ति के, लिए तो उचित हो सकती हैं, किन्तु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू नहीं की जा सकतीं। प्रो० बोल्डिंग के अनुसार, “व्यक्तिगत इकाइयों के व्यवहार के सामान्यीकरण के आधार पर समूहों के व्यवहार-स्तर की खोज नहीं की जा सकती।” प्रो० बोल्डिंग ने इसे ‘आर्थिक विरोधाभास’ (Economic Paradox) कहा है।
व्यापक अर्थशास्त्र की सीमाएँ
(Limitations of Macro Economics)
व्यापक अर्थशास्त्र की मुख्य सीमाएँ निम्नांकित हैं-
(1) सामान्यीकरण का भय- व्यक्तिगत इकाइयों के अनुभव के आधार पर व्यापक अर्थशास्त्र के लिए निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है क्योंकि अनेक निष्कर्ष जो व्यक्ति विशेष पर लागू किये जाते हैं, सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू नहीं किये जा सकते । उदाहरण के लिए,
(i) बचत एक व्यक्तिगत गुण है लेकिन सामाजिक बुराई है।
(ii) एक व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा का बढ़ना लाभकारी है लेकिन सम्पूर्ण समाज के पास मुद्रा की मात्रा का बढ़ना लाभकारी नहीं है।
(iii) एक व्यक्ति द्वारा बैंक से रुपया निकालना सामान्य क्रिया है लेकिन सभी जमाकर्त्ताओं द्वारा एक साथ बैंक से रुपया निकालना अनर्थकारी है।
(2) समूहों की आन्तरिक बनावट पर ध्यान न देना- समूह की आन्तरिक बनावट एक सी नहीं होती, इसमें अन्तर हो सकता है। माना, 1991 एवं 1992 में सामान्य कीमत-स्तर बिल्कुल समान रहा है। किन्तु इसके आधार पर यह मानना कि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं हुआ है, गलत है। यह सम्भव हो सकता है कि कृषि वस्तुओं की कीमतें गिर गई हों और औद्योगिक वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हों।
(3) समूहों की विजातीय प्रकृति- यदि समूहों की प्रकृति विजातीय (heterogencous) है, तो ऐसे समूहों के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष उचित व सही नहीं होते। बोल्डिंग के अनुसार समूह को बनाने वाली मदें परस्पर सम्बन्धित, रोचक व महत्त्वपूर्ण होनी चाहिये। उनके अनुसार-
(अ) 6 आम +4 आम = 10 आम (सार्थक व रोचक)
(ब) 6 आम +4 केले = 10 फल (कुछ अंश तक सार्थक व रोचक)
(स) 6 आम + 4 मेजें = 10 वस्तुएँ (निरर्थक)
(4) समूह की माप कठिन- आर्थिक समूह का निर्माण जिन इकाइयों से होता है, उनकी प्रकृति भिन्न होती है। भिन्न-भिन्न मात्राओं की मापक इकाइयाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। मुद्रा जो इकाइयों का एक सामान्य मापक है, स्वयं में एक अस्थिर मापदण्ड है क्योंकि इसकी कीमतों में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।
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