वनों का राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्व – वनों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ
वनों का राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्व- वनों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ
वन राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं। प्रकृति द्वारा प्रदत्त नि:शुल्क प्राकृतिक उपहारों में वन सबसे महत्त्वपूर्ण है। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “उगता हुआ वृक्ष प्रगतिशील राष्ट्र का जीवन प्रतीक है” वन महोत्सव के जन्मदाता डॉ० के०एम० मुन्शी ने वृक्षों की उपयोगिता को इन शब्दों में व्यक्त किया है- “वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।” वृक्षों के महत्त्व को देखते हुए ही भारत सरकार ने 1950 ई० में वन महोत्सव कार्यक्रम लागू किया था। वनों के आर्थिक महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
वनों से प्रत्यक्ष लाभ
वनों के प्रत्यक्ष लाभों को निम्नलिखित भागों में बॉँटा जा सकता है।
1. प्रधान उपजें
एकवनों की मुख्य उपज लकड़ी है। वनों से प्राप्त होने वाली आय का लगभग 75% भाग लकड़ी से ही प्राप्त होता है। भारतीय वनों से प्रति वर्ष लगभग 25 करोड़ की लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं। देवदार, सागौन, शीशम, चीड़, पाइन तथा साल के वृक्षों से उत्तम, कोमल तथा टिकाऊ लकड़ियाँ मिलती हैं, जिनसे विविध प्रकार का फर्नीचर बनाया जाता है। चंदन वृक्ष की लकड़ी से सुगंधित तेल निकाला जाता है। गंगा डेल्टा में सुन्दरी वृक्षों की लकड़ी से टिकाऊ एवं मजबूत नावें बनाई जाती हैं। भारत में प्रति वर्ष 108 लाख घन मीटर औद्योगिक लकड़ी (15 लाख घन मीटर शंकु वृक्ष और 93 लाख घन मीटर चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की) प्राप्त की जाती है। भारतीय वनों से प्रति वर्ष 490 लाख टन ईंधन की लकड़ी का उत्पादन होता है, जबकि माग 1,330 लाख घन मीटर लकड़ी की रहती है।
- गौण उपजें
लकड़ी के अतिरिक्त वनों से अन्य अनेक ऐसे पदार्थ भी प्राप्त होते हैं जो आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं तथा जिनका उपयोग उद्योग-धन्धों के कच्चे माल के रूप में किया जाता है। वनों से निम्नलिखित गौण उपजें प्राप्त होती हैं।
- लाख
वनों की महत्त्वपूर्ण उपज है। लाख के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। यहाँ विश्व का लगभग 75% लाख उत्पन्न किया जाता है। भारत में प्रतिवर्ष 11 करोड़ मूल्य के लाख उत्पादन में से लगभग 90 प्रतिशत का निर्यात कर दिया जाता है, जिससे प्रति वर्ष 10 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। बिहार राज्य भारत का 50 प्रतिशत लाख उत्पन्न करता है। लाख उत्पादन में दूसरा स्थान मध्य प्रदेश का है।
- गोंद
अनेक वृक्षों के तने चिपचिपा रस छोड़ते हैं, जो सूखकर गोंद बन जाता है। यह मुख्यत: बबूल, चीड़, नीम, पीपल, खेजड़ा, कीकर तथा साल के वृक्षों से प्राप्त होता है।
- कत्था
खैर वृक्षों की लकड़ी को पानी में उबालकर तथा सुखाकर कत्था प्राप्त किया जाता है। खैर के वृक्ष उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में अधिक पाये जाते हैं।
- चमड़ा रैँगने तथा पकाने के पदार्थ
वनों के अनेक वृक्षों की छालें चमड़ा पकाने तथा रॅँगने में प्रयुक्त की जाती हैं। बबूल, सुन्दरी, खैर, हरड़, बहेड़ा, आँवला आदि वृक्षों की छालें तथा पत्तियाँ चमड़ा कमाने एवं रॅगने में प्रयुक्त की जाती हैं।
- अन्य पदार्थ
वनों से प्राप्त अन्य गौण उपजों में रबड़, रीठा, तेल, ओषधियाँ, घास, सिनकोना आदि महत्त्वपूर्ण हैं, जिनका उपयोग विभिन्न उद्योग-धन्धों में किया जाता है। वनों में रहने वाले पशु-पक्षियों से मांस, चमड़ा, हड्डी तथा पंख भी प्राप्त होते हैं। वनों में उगी हुई हरी घास पशुओं के लिए उत्तम चरागाह का काम देती है। वनों से सरकार को राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है तथा अनेक लोगों की जीविका भी चलती है।
2. वनों से अप्रत्यक्ष लाभ
वनों से निम्नलिखित अप्रत्यक्ष लाभ भी प्राप्त होते हैं।
- वन जलवायु को सम रखने में सहायक होते हैं तथा वर्षा कराने में भी योगदान देते हैं, क्योंकि इनसे वायुमण्डल को नमी प्राप्त होती है।
- वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। ये वायुमण्डल की कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस को ऑक्सीजन में बदल देते हैं। इस प्रकार वनों से वायु प्रदूषण कम हो जाता है।
- वन बाढ़ों के प्रकोप को रोकने में सहायक होते हैं, क्योंकि वृक्षों की जड़ों से जल का प्रवाह मन्द पड़ जाता है।
- वन मरुस्थल के प्रसार को रोकते हैं। वृक्षों से वायु की गति मन्द हो जाती है तथा तीव्र आँधियों से होने वाली हानि भी कम हो जाती है।
- वनों से भूमि-क्षरण तथा कटाव रुकता है, क्योंकि वृक्षों की जड़ें वर्षा के जल की गति को मन्द कर देती हैं तथा मिट्टी को पकड़कर रखती हैं।
- वनों में रेशम के कीड़े तथा मधुमक्खी पालने का कार्य सुविधापूर्वक किया जाता है।
- वन देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में भी वृद्धि करते हैं। वृक्षों की हरियाली नेत्रों को बहुत भली प्रतीत होती है।
- वनों के वृक्षों से गिरी हुई पत्तियाँ भूमि में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ा देती हैं। इससे मिट्टी में जीवांशों की मात्रा में भी वृद्धि होती है।
- वन पशु-पक्षियों के लिए शरणस्थली होते हैं, जिनसे हमें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
- वन मिट्टी में दब जाने पर कालान्तर में कोयले तथा खनिज तेल का निर्माण करते हैं।
- वनों की जड़ों द्वारा भूमि में जल का रिसाव अधिक होता है। इससे भूमिगत जल का भण्डार बढ़ता है।
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