शिक्षाशास्त्र / Education

अधिगम के व्यवहारवादी उपागम । अधिगम का व्यवहारवादी दृष्टिकोण

अधिगम के व्यवहारवादी उपागम । अधिगम का व्यवहारवादी दृष्टिकोण

अधिगम का व्यवहारवादी दृष्टिकोण या उपागम (Behaviorist Approach or Views of Learning)

आधुनिक अधिगम सिद्धान्तों में व्यवहारवाद पर आधारित सिद्धान्तों का विशेष महत्त्व है। इन सिद्धान्तों को अधिगम के साहचर्य सिद्धान्त (Associative Theories of Learning) भी कहा जाता है । इसके अन्तर्गत निम्नलिखित सिद्धान्तों को सम्मिलित किया जाता है।

(i) उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त (Stimulus Response Theory)

(ii) अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त (Theory of Conditioned Response)

(iii) सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त (Theory of Operant Conditioning)

(iv) व्यवस्थित व्यवहार सिद्धान्त (Theory of Systematic Behaviour) ।

उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त को संयोजनवाद (Connectionism) भी कहा जाता है। इसके प्रतिपादक ई.एल. थार्नडाइक है। थारनडाइक के अनुसार सीखना, सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य मनुष्य का मस्तिष्क करता है। जब कोई व्यक्ति कुछ सीखता है तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक होता है जो उसे एक विशेष प्रकार की अनुक्रिया करने को प्रेरित करता है । इस प्रकार एक विशिष्ट उद्दीपन का एक विशिष्ट अनुक्रिया से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है जिसे उद्दीपन अनुक्रिया सम्बन्ध (S-R Bond) के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप जब व्यक्ति भविष्य में उसी उद्दीपक का अनुभव करता है तब उससे सम्बन्धित पहले जैसी अनुक्रिया या व्यवहार करता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर थार्नडाइक ने सीखने के तीन प्रमुख नियम प्रतिपादित किये हैं-

(i) प्रभाव का नियम (Law of Effect or Product)

(ii) तत्परता का नियम (Law of Readiness) तथा

(iii) अभ्यास का नियम (Law of Exercise) ।

प्रभाव या परिणाम का नियम अनुक्रिया के प्रभाव या परिणाम के महत्त्व पर बल देता है। संतोषजनक परिणाम अनुक्रिया को पुनर्बलन प्रदान करते हैं तथा असंतोषजनक परिणाम अनुक्रिया की सम्भावना को कम करते हैं । इस प्रकार पुरस्कार एवं दण्ड अधिगम के महत्त्वपूर्ण कारक हैं। तत्परता का नियम S-R सम्बन्ध स्थापित करने में शिक्षार्थी की इच्छा, रुचि एवं प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है जबकि अभ्यास का नियम, अभ्यास के द्वारा S-R सम्बन्ध को अधिक मजबूती प्रदान करने पर बल देता है।

अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त के अनुसार सीखना एक अनुकूलित अनुक्रिया (Conditioned Response) है। अनुकूलित अनुक्रिया, उद्दीपक की पुनरावृत्ति द्वारा व्यवहार का स्व-चालन है जिसमें उत्तेजना या उद्दीपक प्रारम्भ में विशेष अनुक्रिया के साथ जुड़ा होता है। और बाद में वह व्यवहार का कारण बन जाता है। इस सिद्धान्त के प्रतिपादक आई.पी. पवलाव अस्वाभाविक उत्तेजक के प्रति स्वाभाविक उत्तेजक के समान ही होने वाली अनुद्रिया को सम्बद्ध सहज क्रिया (Conditioned Reflex action) कहते हैं। सम्बद्ध सहज क्रिया में कार्य के प्रति स्वाभाविक उद्दीपक के साथ एक प्रभावहीन उद्दीपक होता है जो स्वाभाविक उद्दीपक से सम्बद्ध किये जाने के कारण प्रभावपूर्ण बन जाता है। उदाहरणार्थ- पवलाव के प्रयोग में पहले कुत्ते को भोजन दिखाते समय घंटी बजाई जाती है। स्वाभाविक उत्तेजक (भोजन) के कारण कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगती है। इस क्रिया को बार-बार दुहराने पर बाद में केवल घंटी की आवाज (अस्वाभाविक उत्तेजक) से ही कुत्ते के मुँह से लार टपकने लगती है। इस प्रकार यहाँ पर भी सीखना S-R सम्बन्ध ही है।

बी.एफ स्किनर के सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त के अनुसार अभिप्रेरणा से उत्पन्न क्रियाशीलता अर्थात् सक्रियता ही सीखने के लिए उत्तरदायी होती है। सक्रियता को बनाये रखने हेतु अनुक्रिया के तुरन्त पश्चात् पुनर्बलक उद्दीपक को प्रस्तुत किया जाना आवश्यक होता है।

सी.एल. हल द्वारा प्रतिपादित व्यवस्थित व्यवहार सिद्धान्त ‘पुनर्बलन का सिद्धान्त’ है। इसके अनुसार उत्तेजना और अनुक्रिया के बीच सम्बन्ध स्थापना चालक (Drive) और पुरस्कार (Reward) पर निर्भर करता है। इस प्रकार अधिगम आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता है।

इस प्रकार अधिगम के साहचर्य सिद्धान्त वास्तव में S-R में सम्बन्ध है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि वातावरण में ऊर्जा के स्रोत होते हैं। ये स्रोत प्राणियों की संवेदनशील इन्द्रियों को स्पन्दित करते हैं। ये स्पन्दन ही अनुक्रिया या व्यवहार कहलाते हैं। इस सिद्धान्त को टेलीफोन के उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है। जिस प्रकार एक तरफ से टेलीफोन के निश्चित नम्बर के बटन दबाने से दूसरी तरफ उसी नम्बर के टेलीफोन से सम्बन्ध स्थापित होकर वार्तालाप प्रारम्भ हो जाती है, उसी प्रकार प्रस्तुत उद्दीपक का अनुक्रिया से सम्बन्ध स्थापित होते ही अधिगम प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

व्यवहारवादी दृष्टिकोण के शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implications of Behaviourist Views)

व्यवहारवादी दृष्टिकोण ने आधुनिक शिक्षा को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसके अनुसार शिक्षण शिक्षार्थी के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन करने तथा शिक्षा को प्रभावशाली बनाने के लिए वातावरण में किया जाने वाला परिवर्तन है। अतः इसके अन्तर्गत शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निम्नलिखित सिद्धान्तों को अपनाने का सुझाव दिया जाता है –

(i) परिणाम का ज्ञान अथवा पुष्टि तथा सकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग,

(ii) पुनर्बलन प्रदान करने में कम से कम विलम्ब तथा

(iii) जटिल व्यवहारों (क्रियाओं) की व्याख्या हेतु छोटे-छोटे पदों के रूप में अधिगम विभाजन।

व्यवहारवादियों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शैक्षिक योगदान शैक्षिक उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में परिभाषित करने पर बल देना है। उनके अनुसार शैक्षिक उद्देश्यों को बाह्य व्यवहार के रूप में लिखना इसलिए आवश्यक है जिससे उनका निरीक्षण एवं मापन किया जा सरके। इस प्रकार व्यवहारवादी सिद्धान्तों ने मूल्यांकन को भी प्रभावित किया है तथा इसके नये उपागम प्रस्तुत किये हैं। बी.एस. ब्लूम ने ‘शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण (Taxonomy of Educational Objectives) का एक मॉडल प्रस्तुत किया है।

शिक्षाशस्त्र –  महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

1 Comment

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!