निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका | बहुराष्ट्रीय निगमों की विशेषताएँ | भारत में निजी क्षेत्र एवं बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका

भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका | बहुराष्ट्रीय निगमों की विशेषताएँ | भारत में निजी क्षेत्र एवं बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका | Role of Multinational Corporations in India in Hindi | Characteristics of Multinational Corporations in Hindi | Role of private sector and multinational corporations in India in Hindi

भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका

(ROLE MULTINATIONAL CORPORATIONS IN INDIA)

बहुराष्ट्रीय निगम ऐसी विशाल फर्मे होती हैं जिनका प्रधान कार्यालय तो देश में स्थित होता है किन्तु वे अपनी व्यापारिक क्रियाएँ बहुत-से अन्य देशों में फैलाती हैं। इन्हें कई बार राष्ट्रपारीय निगम (Transitional Corporation) भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि इनकी क्रियाएँ मूल देश में प्रारम्भ होने के बाद अन्य देशों में भी फैल जाती हैं। आई. बी. एम. वर्ल्ड ट्रेड कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के अनुसार, “एक बहुराष्ट्रीय निगम वह है जो (i) अनेक देशों में कार्य करता है, (ii) उन देशों में विकास, निर्माण तथा अनुसंधान का कार्य करता है, (iii) जिसका बहुराष्ट्रीय प्रबन्ध होता है तथा (iv) जिसका स्कंध स्वामित्व बहुराष्ट्रीय होता है।” इस प्रकार “बहुराष्ट्रीय निगम या कम्पनी एक ऐसी व्यावसायिक संस्था है जिसका व्यवसाय एवं कारोबार अपने जन्म स्थान के देश के अतिरिक्त अन्य देशों में भी फैला होता है।” इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय निगम या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के नाम भी जाना जाता है।

संक्षेप में “बहुराष्ट्रीय निगम एक उद्यम होता है जिसकी क्रियाएँ अपने देश के बाहर अनेकों देशों तक फैली रहती हैं।” ऐसे निगमों को अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी या बहुराष्ट्रीय कम्पनी या निगम या राष्ट्रपारीय निगम के नाम से जाना जाता है।

बहुराष्ट्रीय निगमों की विशेषताएँ

(FEATURES OF MULTINATIONAL CORPORATION)

बहुराष्ट्रीय निगमों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

  1. बड़ा आकार— बहुराष्ट्रीय निगम का आकार पूंजी और बिक्री दोनों ही दृष्टिकोण से बहुत बड़ा होता है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय क्रियाकलाप- इन निगमों की क्रियाएँ किसी एक देश में सीमित न होकर कई देशों में फैली रहती हैं। फिलिप्स को ही लीजिए। यह इंग्लैण्ड की कम्पनी है, किन्तु इसके व्यापार का क्षेत्र भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, वांग्लादेश सहित विश्व के अनेक देशों में फैला हुआ है।
  3. स्वामित्व — इन निगमों की पूँजी में हिस्सा अनेक राष्ट्रों में फैला होता है।
  4. प्रबन्धन- इन निगमों का प्रबन्धन भी बहुराष्ट्रीय होता है। इसका तात्पर्य यह है कि उनके प्रबन्ध मण्डल में अनेक राष्ट्रों के व्यक्ति सम्मिलित रहते हैं।
  5. उत्पाद की किस्म को प्राथमिकता- बहुराष्ट्रीय कम्पनी उत्पाद की किस्म (Qaulity) को सामान्यतः सर्वोच्च प्राथमिकता देती है जिसके बलबूते पर यह कम्पनी विश्व के बाजारों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर लेती है।
  6. विज्ञापन, विक्रय या प्रचार पर जोर- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विज्ञापन, विक्रय तथा प्रचार पर जोर देती हैं।
  7. कारोबार का विशिष्टीकरण- बहुराष्ट्रीय कम्पनी के कारोबार का सामान्यतः विशिष्टीकरण होता है, जैसे-लिप्टन का चाय में तथा कोका कोला का पेय पदार्थ में।

भारत में कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विवरण सारणी में दिया गया है।

सारणी- भारत में बहुराष्ट्रीय क-पनियाँ और उनके द्वारा उत्पादित वस्तुएँ

वस्तु का नाम

बहुराष्ट्रीय कम्पनी द्वारा उत्पादित वस्तुए

1. प्रसाधन सामग्री

पाण्ड्स, क्लियरटोन, क्लियरसिल, नीविया, चार्मिस आदि।

2. नहाने का साबुन

लिरिल, ब्रिज, डिटॉल, पियर्स, लाइफबॉय, रेक्सोना, लक्स, पाण्ड्स आदि।

3. सेविंग क्रीम

प्रो. स्पाइस, नीबिया, पामोलिव, इरास्मिक, पाण्ड्स आदि।

4. टूथपेस्ट

कोलगेट, क्लोज-अप, फोरहेन्स, गलीम, सिबाका, इमोफार्म आदि।

5. रेडियो एवं टी.वी.

फिलिप्स, गोल्ड स्टार आदि।

6. पेय पदार्थ

पेप्सी, लहर, कोका कोला आदि।

7. पंखे

क्रॉम्पटन, जी.ई.सी. रैलीज आदि।

8. चाय तथा कॉफी

रेड लेबल, लिप्टन, टाइगर, नेस्केफे, नेस्ले, डबल डायमण्ड, मधुवन आदि।

भारत में निजी क्षेत्र एवं बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका

(ROLE OF PRIVATE SECTOR AND MULTINATIONAL CORPORATIONS IN INDIA)

भारत के आर्थिक विकास में जहाँ विदेशी पूंजी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, वहीं बहुराष्ट्रीय निगमों का भी योगदान रहा है। इनके कारण देश में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का विदोहन हुआ है। देश में औद्योगीकरण, स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा, विपणन, उन्नत तकनीकी, उत्पादन तकनीकी में सुधार, अनुसंधान आदि कार्यों को बढ़ावा मिलता है। इनके योगदान को निम्न बिन्दुओं में दर्शाया गया है-

  1. आधारभूत क्षेत्रों का विकास (Development of Core Sectors) – बहुराष्ट्रीय निगमों ने अर्थव्यवस्था के आधारभूत क्षेत्रों के विकास के लिए पूँजी, तकनीकी ज्ञान, साहस व जोखिम उठाकर सहयोग प्रदान किया है।
  2. प्राकृतिक साधनों का विदोहन (Exploration of Natural Resources ) – बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा विनियोजित पूँजी के सहयोग से प्राकृतिक साधनों के विदोहन में सहयोग मिला है। भारत में खनिज तेल की खोज में इनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है।
  3. विपणन में भूमिका (Role in Marketing)- बहुराष्ट्रीय निगमों ने विपणन कार्य भी कुशलता से कर निर्यात को बढ़ावा दिया है। इसके लिए बाजार शोध, विज्ञापन, विपणन सूचनाओं का प्रसारण, भण्डारण, प्रबंध, पैकेजिंग आदि का भी विकास किया है जिससे वस्तु उपभोक्ता तक उचित प्रकार से पहुँच सके।
  4. रोजगार में भूमिका (Role in Employment)- बहुराष्ट्रीय निगमों ने वृहत् स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा कर रोजगार के अवसर दिए हैं जिससे देश में रोजगार सुविधाएँ बढ़ी हैं।
  5. शोध एवं विकास में भूमिका (Role in Research and Development) — इन निगमों ने शोध एवं विकास पर पर्याप्त मात्रा में व्यय किया है तथा मुख्य कार्यालय के शोध एवं विकास का लाभ शाखा कार्यालय व सहायक कम्पनियों को भी दिया है जिसमें अल्पविकसित देशों के औद्योगीकरण में सहायता मिली है।
  6. जोखिम उठाने में भूमिका (Role in Risk Bearing) — बहुराष्ट्रीय निगम अपने साधनों अनुभव एवं तकनीकी के आधार पर जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं। इससे देश में दूरसंचार, सड़क, परिवहन, सॉर-ऊर्जा, विद्युत उत्पादन आदि क्षेत्रों में विकास हुआ है।
  7. प्रबन्ध कुशलता में वृद्धि (Increase in Management Efficiency)- बहुराष्ट्रीय निगमें उच्च योग्यता प्राप्त पेशेवर प्रबन्धकों को रखने में समर्थ हैं। जब ये निगमें दूसरे देशों में कार्य करती हैं तो इन्हें भी इनके प्रबन्धकों की योग्यता का लाभ मिलता है।
  8. भुगतान शेष पर अनुकूलन प्रभाव (Favourable Effects on Balance of Payment)- बहुराष्ट्रीय निगमों की कार्य विधियों का आतिथ्य देश के भुगतान शेष पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसके पास विश्वव्यापीकरण बाजार उपलब्ध होता है जिसकी सहायता से ये विकासशील देशों के निर्यातों में वृद्धि कर सकते हैं।
  9. तकनीकी लाभ (Technological Benefits)- बहुराष्ट्रीय निगमों ने भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम का लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादन तकनीक में अनेक बार परिवर्तन किए जिससे उत्पादन आधुनिक और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से प्रतियोगी बन गया जो देश के हित में रहा है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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