विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का विरोध | University Grants Commission opposes in Hindi
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का विरोध | University Grants Commission opposes in Hindi
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( UGC )
परिचय – 1948-49 में राधाकृष्णन कमीशन ने यह सिफारिश की कि विश्वविद्यालयों को अनुदान देने के लिए एक कमीशन संगठित किया जाना चाहिए। इस सिफारिश के आधार पर सन् 1953 में भारत सरकार ने एक विश्वविद्यालय अनुदान कमीशन की स्थापना की जो विश्वविद्यालयों की आर्थिक कठिनाइयों के सम्बन्ध में अध्ययन करती थी और जहाँ आवश्यकता होती वहाँ पर केन्द्र सरकार को यह सलाह देती थी कि अनुदान प्रदान किया जाए। इसके पश्चात् सन् 1956 में यू.जी.सी. एक्ट के अन्तर्गत इस कमीशन को एक नियमित संस्था बना दिया गया और इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नाम से जाना जाने लगा।
आयोग का कार्यक्षेत्र – (UGC) का कार्यक्षत्र निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया गया है –
- विश्वविद्यालयी शिक्षा के विकास कार्यक्रमों पर परामर्श देना।
- विश्वविद्यालयों की आर्थिक आवश्यकताओं का आंकलन, आवश्यक आर्थिक सहायता प्रदान करना।
- पाँच साल में एक बार विश्वविद्यालयों का निरीक्षण करना और उन्हें आवश्यकतानुसार सुझाव देना।
आयोग के दायित्व अथवा कर्त्तव्य –
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कर्त्तव्य निम्न हैं:
(1) विश्वविद्यालयों के शैक्षिक स्तर का निर्धारण करना तथा उसे बनाये रखने के सुझाव बताना।
(2) प्रान्त एवं केन्द्र सरकारों को विश्वविद्यालय को धन उपलब्ध करवाने के सम्बन्ध में सुझाव देना।
(3) नये विश्वविद्यालयों की स्थापना के सम्बन्ध में, माँगे जाने पर केन्द्र एवं प्रान्तीय सरकारों को सलाह देना।
(4) अध्यापकों के वेतन भक्ते आदि के स्तर में सुधार करना।
(5) नये पाठ्यक्रमों को चलाना/वैधता प्रदान करना।
(6) अध्यापक पद के लिए न्यूनतम अर्हता सम्बन्धी नियम बनाना।
(7) विश्वविद्यालयों को मान्यता/वैधता प्रदान करना।
(৪) विश्वविद्यालयों द्वारा विविध सेवाओं के लिए प्रदान की गई उपाधियों के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार/राज्य सरकार को सलाह देना।
(9) विश्वविद्यालयों के ऊपर एक प्रशासनिक संस्था के रूप में कार्य करना।
(10) अध्यापकों की कार्यकुशलता बढ़ाना तथा विशिष्ट योग्यता वाले शिक्षकों को नये-नये अनुसंधानों के लिए प्रेरित करने के लिए सहायता देना।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रमुख कार्य | Major Functions of University Grants Commission in Hindi
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का विरोध –
कोई भी व्यक्ति संस्था हो जैसे ही वह अपने कर्त्तव्यों से जरा भी चूकती है अथवा वह जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती या उसके कार्यों से सामान्य जन को किसी भी प्रकार की आर्थिक मानसिक यातना प्राप्त होती है तो उसका विरोध शुरू हो जाता है।
वर्तमान में (UGC) के विरुद्ध भी आवाजें उठ रही हैं जिनके कुछ प्रमुख कारण निम्न हैं –
- समान कार्य असमान वेतन – इस शीर्षक के अन्तर्गत विश्वविद्यालय/महावि० में कार्यरत उन शिक्षकों की बात उठती है जो या तो निश्चित मानदेय पर कार्यरत् हैं अथवा किसी स्ववित्त पोषित संस्था में ऐसे शिक्षक वर्ग में इस मुद्दे को लेकर शेष है कि जब स्थायी तथा निश्चित मानदेय अथवा स्ववित्तपोषी संस्था के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सभी योग्यताएँ एवं शर्ते समान हैं। उसने लिये जाने वाले कार्य समान हैं तो उनके वेतन भी समान होने चहिए। गही नहीं अनेक विश्वविद्यालय /महाविद्यालयों को मैजेजमेंट ऐसे शिक्षकों को वेतन अपनी मनमर्जी अनुसार प्रदान करता है। चूंकि सभी विश्वविद्यालय/महाविद्यालय (UGC) के नियमों के अधीन हैं अत: ऐसे में (UGC) से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस वेतन विसंगति से शिक्षकों को छुटकारा दिलाये तथा शिक्षकों की असंतुष्टि के कारण को दूर करे।
- पाठ्यक्रम की वैधता – वर्तमान में एक बड़ी संख्या में Ph.D डिग्री धारक युवाओं में UGC के प्रति असंतष्टि है। इसका कारण यह कि UGC ने अपने नये नियमों के निर्धारण में कुछ ऐसे बिन्दु शामिल किये हैं कि यदि उनके आधार पर ही Ph.D डिग्री है तो वह मान्य है अथवा अमान्य। यद्यपि युवा इस बात से सहमत हैं कि शैक्षिक स्तर में उन्नयन हेतु समय समय पर नियमों में बदलाव आवश्यक हैं किन्तु विरोध का कारण यह है कि UGC इन नियमों को पूर्व की तिथि से लागू कर रही है और उसके आधार पर अनेकों युवाओं की शोध डिग्रियाँ अमान्य हो रही हैं। ऐसे में इन युवाओं का कहना है कि UGC इन नियमों के प्रकाश में आने के पश्चात् से लागू करे न कि पूर्व से तथा साथ ही यह भी कहना है किसी भी पाठ्यक्रम की वैधता सम्बन्धी सभी नियमों को उस पाठ्यक्रम के चालू शैक्षिक वर्ष से पूर्व ही निर्धारित किया जाना चाहिए न कि बाद में।
- प्रवक्ता पद की न्यूनतम अर्हता में बदलाव – विश्वविद्यालय/महाविद्यालय में प्रवक्ताओं की भर्ती हेतु न्यूनतम अर्हता UGC द्वारा ही तय की जाती है किन्तु इन अर्हताओं में बार-बार परिवर्तन के विरुद्ध युवाओं द्वारा आवाज उठाई जा रही है। पूर्व में प्रवक्ता पद के लिए न्यूनतम अर्हता Ph.D निर्धारित थी। इसके पश्चात् UGC ने नये नियमों के अन्तर्गत यह तय कर दिया कि Ph. D डिग्री होने के बावजद NET अनिवार्य है। ऐसे में वे युवा काफी आहत हुए जो Ph.D डिग्री प्राप्त कर के प्रवक्ता बनने की उम्मीद संजोए थे। इसके साथ ही साथ कुछ समय पूर्व UGC ने यह नियम निर्धारित किया कि M.Phil. डिग्री भी प्रवक्ता पद के लिए मान्य होगी। जिसके चलते अनेको ने इस पाठ्यक्रम को चुना कंतु कुछ समय पश्चात् UGC ने फिर से यह कह दिया कि M.Phil. डिग्री धारक प्रवक्ता नहीं बन सकते। ऐसी स्थिति में उन युवाओं द्वारा UGC का विरोध किया गया जिन्होंने प्रवक्ता पद के लिए योग्य होने के लिए M.Phil. डिग्री को करने में अपना धन, श्रम तथा समय खर्च किया था।
- शुल्क में असमानता – देश भर के यदि सभी विश्वविद्यालय/महाविद्यालय को देखा जाए तो एक ही पाठ्यक्रम का भित्न-भिन्न विश्वविद्यालय / महाविद्यालय में शुल्क भित्न-भिन्न है उसमें भारी असमानता है। चूँंकि UGC सभी विश्वविद्यालय / महाविद्यालय पर प्रशासन का अधिकार रखती है अत: उसे इस विसंगति को दूर करके विद्यार्थियों के असंतोष को दूर करना चाहिए। UGC के प्राप्त असंतुष्टि का यह भी एक प्रमुख कारण है।
- निजी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों की मान्यता में अन्तर – UGC के विरोध का एक कारण है कि आज देश में कई प्राइवेट विश्वविद्यालय/महाविद्यालय स्थापित हो गये हैं जो कि UGC एप्रव्वड हैं। इन संस्थाओं की फीस अनुदानित संस्थानों से काफी अधिक होती है, किन्तु काफी संख्या में युवक अपने भविष्य को संवारने के लिए इन संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करते हैं, मगर तनाव तब उत्पन्न होता है जब नौकरी के लिए आवेदन करने पर अनुदानित संस्थाओं की डिग्रियों को वरीयता प्रदान की जाती है। ऐसे में युवाओं ने यह आवाज उठाई कि जब UGC प्राइवेंट संस्थानों को एप्रूवल प्रदान करके समान दर्जा देती है। तो उसकी डिग्रियों को भी समानता प्राप्त करवाये तथा यहाँ के विद्यार्थियों को समान अवसर प्राप्त कराये।
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