SALIENT FEATURES

भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ

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भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ (SALIENT FEATURES)

भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं

वायु दिशा में ऋतुवत परिवर्तन –

वर्ष में मौसम परिवर्तन के साथ वायु की दिशा में परिवर्तन भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ है। शीत ऋतु में ये हवाएँ एमल से जल की ओर उत्तर पूर्व से दशिण पश्चिम दिशा में प्रवाहित होती है । ये हवायें शुष्क होती हैं जिससे शीत ऋतु वर्षा विहीन रह जाती है । ग्रीष्ण ऋतु में हवा की दिशा उलट जाती है । इन दिनों हवायें जल से स्थल की ओर दक्षिण-पश्चिम से उत्तर- पूर्व दिशा में बहने लगती हैं। सागर से आने के कारण इनमें पर्याप्त आर्द्रता वीद्यमान होती है जिससे ग्रीष्मत्रतु के उत्तरार्द्ध देश में वर्षा काल होता है ।

स्थल पर बारी-बारी से उच्च और निम्न दाब क्षेत्रों का निर्माण –

वायु दिशा की भाँति मौसमी परिवर्तन के साथ-साथ वायुमण्डलीय दाब में भी परिवर्तन पाया जाता है। शीत ऋतु में कम तापमान के कारण देश के उत्तरी भाग (कश्मीर एवं पंजाब) में एक उच्च दाब के क्षेत्र का निर्माण हो जाता है। इसके विपरीत ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक धरातलीय ऊष्मन के कारण देश के उत्तरी- पश्चिमी भाग में एक ताप जन्य निम्न दाब केन्द्र बन जाता है। दक्षिण के समुद्री क्षेत्र में दाब दशायें विपरीत होती हैं । स्थल के इन दाब केन्द्रों की तीव्रता का हवाओं की दिशा, वेग एवं वर्षा को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका होती है यथा, जाड़े में हवायें स्थल से सागर की ओर शुष्क और ग्रीष्म में सागर से स्थल की ओर आर्द्र और वर्षा करने में समर्थ।

मौसमी एवं परिवर्ती वर्षा

भारत में 80 प्रतिशत से अधिक वर्षा ग्रीष्म के उत्तरार्द्ध (वर्षा काल) में होती है। वर्षा ऋतु की अवधि देश के विभिन्न भागों में 1 से 5 माह के बीच पाई जाती है। क्योंकि वर्षा मूसलाधार होती है इससे बाढ़ और अपरदन की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वर्षा का वितरण समय एवं स्थान की दृष्टि से एक सा नहीं पाया जाता है। कभी-कभी लगातार कई दिनों तक वर्षा होती रहती है तो कभी-कभी हफ्तों और महीनों तक इस्रमें रुकावट आ जाती है जिससे सूखा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । किसी वर्ष मानसून सामान्य रहता है और अच्छी वर्षा होती है तो किसी वर्ष यह असामान्य हो जाता है जिससे कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। एक ही साथ देश के एक भाग में बाढ़ तो दूसरे भाग में सूखा देखा जाता है। यह सब वर्षा की उच्च परिवर्तिता के कारण होता है।

ऋतुओं की बहुलता –

भारतीय जलवायु के अन्तर्गत मौसमी दशाएँ निरन्तर बदलती रहती हैं । यद्यपि समूचे वर्ष को तीन प्रभान मौसमों (जाड़ा, गर्मी एवं बरसात) में बांटा जाता है परन्तु सूक्ष्म विशेषताओं के आधार पर इसे छ। ऋतुओं (हेमन्त, शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, एवं शरद) में विभाजित किया जा सकता है। इसमें वसन्त और शरद को ‘निर्बल ऋतु’ कहा जाता है जिनकी अवधि आगामी और पश्चागामी त्तुओं की तीव्रता के आधार पर 3 से 6 हफ्तों के बीच पाई जाती है। तऋतुओं की बहुलता से भारतीय मौसमी दशाओं की तेजी से बदलती प्रकृति का बोभ होता है। यहाँ तक कि प्रत्येक आने वाले दिन का मौसम पिछले दिन से कुछ न कुछ भिन्नता लिए होता है।

प्राकृतिक आपदाओं का संकट –

मौसमी दशाओं, विशेषकर वर्षा की अति परिवर्तिता के कारण, भारत की जलवायु में बाह, सूखा, दुर्भिक्ष एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का संकट उत्पन्न हो जाता है। कई दिनों की मूसलाधार वर्षा से एक तरफ जहाँ भयंकर बाढे आती हैं वहीं दूसरी तरफ लम्बी अवधि तक बरसात न होने से सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । इनसे जन साधारण का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।

अन्य विशेषतायें –

भारतीय जलवायु इतनी विविध और जटिल है कि इसमें विश्व की विभिन्न जलवायुओं का सम्मिश्रण देखा जाता है। इसके कारण देश के समूचे भाग में शस्योत्पादन हेतु पर्याप्त ऊष्मा उपलब्ध होती है तथा उष्णकटिबन्ध के अतिरिक्त शीतोष्ण कटिबंध और शीतकटिबंध के क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों की खेती में मदद मिलती है। यहाँ तीन शस्य ऋऋतुएँ (रबी, खरीफ, एवं जायद) हैं जिसमें सैकडों किस्म की फसलें उगाई जाती हैं। देश के कुछ भाग में धान आदि फसलें वर्ष भर उगाई जाती हैं। एक ही फसल की जब देश के एक हिस्से में कटाई होती रहती है तो दुसरे भाग में इसकी बुआई का क्रम देखा जा सकता है।

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