यूनानी राजनीतिक चिन्तन की प्रमुख विशेषताएँ

यूनानी राजनीतिक चिन्तन की प्रमुख विशेषताएँ | Main Characteristics of Greek Political Thought in Hindi

यूनानी राजनीतिक चिन्तन की प्रमुख विशेषताएँ | Main Characteristics of Greek Political Thought in Hindi

राजनीतिक चिन्तन को आरम्भ करने का श्रेय यूनानियों को प्राप्त है । जिमर्न का मत है। कि “यूनानियों की सबसे बड़ी देन है कि उन्होंने राजनीतिक चिन्तन का आविष्कार किया।”

यूनानियों के राजनीतिक चिन्तन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-

  1. भानव स्वभाव का अध्ययन (Study of Human Nature)
  2. मानव जीवन के लिये राज्य का अस्तित्त्व अनिवार्य है (Existence if State is essential for the Existence of Man)
  3. नगर- राज्यों के प्रति असीम श्रद्धा (Unlimited devotion towards City Sates)
  4. राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव (Lack of Nationalism and Internationalism)
  5. सुधारों का जोर (Emphasis of Reforms)
  6. व्यक्ति का महत्त्व (Significance of Individual)
  7. राज्य का कार्यक्षेत्र (.Jurisdiction of the State)
  8. आदर्श की खोज (Search of Ideals)
  9. आलोचना (Criticism)
  10. राज्य का स्थान (Position of State)
  11. राज्य एवं समाज (State and Society)
  12. बुद्धिबादी चिन्तन (Rationalistic Thinking)
  13. भौतिकवादी विचारधारा (Materialistic Ideology)
  14. सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Approach)
  15. दास प्रथा (Slavery)
  16. वैयक्तिक कानूनों का अभाव (Lack of Private Laws)

 

  1. भानव स्वभाव का अध्ययन (Study of Human Nature)- यूनानियों ने सर्वप्रथम मानव स्वभाव का चिन्तन करने का प्रयास किया है । उन्होंने सर्वप्रथम घोषणा की कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। (Man is a Social Animal )। मनुष्य अपना विकास समाज के अन्दर रहकर ही कर सकता है। समाज में ही उसका जन्म होता है, पालन-पोषण होता है और मानवीय गुणों का विकास होता है। समाज के अभाव में मानव-जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है।
  2. मानव जीवन के लिये राज्य का अस्तित्त्व अनिवार्य है (Existence if State is essential for the Existence of Man)- यूनानी राजनीतिक चिंतन के अनुसार मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है। समाज के साथ -साथ मानव-जीवन के विकास के लिये राज्य का होना भी आवश्यक है।
  3. नगर- राज्यों के प्रति असीम श्रद्धा (Unlimited devotion towards City Sates)- यूनानियों की नगर-राज्य के प्रति असीम श्रद्धा थी। यदि एक नगर-राज्य का व्यक्ति दूसरे राज्य में चला जाता था तो उस नगर-राज्य के लोग उसे विदेशी समझते थे। नगर-राज्यों के निवासी एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध होते थे। नगर की जनता के अन्तर्गत अमीर संभ्रान्तों से लेकर निम्न श्रेणी का कार्य करने वाले तक आते थे।
  4. राष्ट्रीयता और अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव (Lack of Nationalism and Internationalism) – यूनान के नगर राज्यों में राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था।
  5. सुधारों का जोर (Emphasis of Reforms)- ये राजनीतिक चिन्तन राजनीतिक अव्यवस्था के कारणों का अध्ययन कर उसके सुधार के सुझाव प्रस्तुत करने के प्रयास में थे।
  6. व्यक्ति का महत्त्व (Significance of Individual) – यूनान के राजनीतिक चितचरारों में व्यक्ति का स्थान विशेष महत्त्व का न था। तथापि कुछ तार्किक, दार्शनिक व्यक्तिवाद के समर्थक थे पर अधिकांश यूनानियों के मतानुसार राज्य और व्यक्ति दोनों एक ही थे। राज्य व्यक्ति का वृहत् स्वरूप था और व्यक्ति राज्य का सूक्ष्म स्वरूप, अत: व्यक्ति के जीवन के समत्त पक्ष राज्य के नियन्त्रण में थे। यहाँ तक कि धार्मिक जीवन राजनीतिक जीवन का अंग था।
  7. राज्य का कार्यक्षेत्र (.Jurisdiction of the State) – यूनानी राज्य द्वारा नागरिकों के कल्याण के लिये किये जाने वाले कार्यों के प्रबल समर्थक थे । इनके मतानुसार राज्य द्वारा ही मनुष्य उच्चतम विकास कर सकता था। मनुष्य के कल्याण के लिये राज्य कोई भी सार्वजनिक कार्य कर सकता था तथा नागरिकों के दैनिक जीवन की छोटी, से छोटी बातों पर नियन्त्रण कर सकता था। राज्य के कार्य सकारात्मक थे, नकारात्मक नहीं।
  8. आदर्श की खोज (Search of Ideals) – यूनान के राजनीतिक विचारों में आदर्श की खोज का प्रयत्न किया गया है। यूनान में जब कभी उपनिवेश की स्थापंना करके किसी नवीन राज्य का निर्माण किया जाता था तो उसके संविधान के निर्धारण का कार्य, विद्वानों का इस कारण सौपा जाता था कि नया संविधान, (Constitution) सर्वोत्तम प्रकार का बनाया जा सके और समकालीन संविधान के दोष न आने पायें: अत: ये विद्वान नये संविधान का निर्माण करते समय तत्कालीन संविधान को अपने समक्ष रखते थे। प्लेटो ते ‘रिपब्लिक’ में इसी प्रकार के आदर्श राज्य का चित्रण किया है।
  9. आलोचना (Criticism) – यूनान के राजनीतिक विचारों में समकालीग राज्या की आलोचना पाई जाती है क्योंकि कोई भी विचारक समकालीन वातावरण से अछूता नहीं बच सकता । उदाहरणार्थ अफलातून (प्लेटो) की Republic) नें स्पार्टा और ‘लाज’ (Laws) में एथेंस की राजनीतिक संस्थाओं की प्रशंसात्मक आलोचना की गई है। अरस्तू न यूनान के 156 संविधानों का अध्ययन करके ‘पॉलिटिक्स’ की रचना की थी।
  10. राज्य का स्थान (Position of State)- उनके अनुसार राज्य उच्चतम जीवन का साधन है। राज्य को उच्च नैतिक महत्व प्रदान किया गया है। राज्य को नैतिक संस्था के रूप में माना गया है। उनकी मान्यता थी कि राज्य के अभाव में उच्च आदर्श की स्थापना सम्भव नहीं है।
  11. राज्य एवं समाज (State and Society) – यूनान के राजनीतिक विचारों में समाज और राज्य के मध्य सम्बन्ध पर भी विचार किया गया है। समाज “आर्थिक वर्गों के उस समूह को कहते हैं जिसके विभिन्न अंग समस्त समाज के हित साधन में सहयोग करते हुए भी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को पूर्णरूपेण बलिदान नहीं करते।” इसके विपरीत राज्य “वह समदर्शी, निष्पक्ष, निरपेक्ष सत्ताधारी संस्था है जो समस्टि कल्याण के लिये समाज के व्यक्तिवाद को उचित सीमा में रखता है।”
  12. बुद्धिबादी चिन्तन (Rationalistic Thinking)- यूनानी दार्शनिकों का चिन्तन बुद्धिवादी था । वे तर्कों के आधार पर किसी निष्कर्ष को प्राप्त करते थे। उन्हें धार्मिक अन्धविश्वासों पर विश्वास न था।
  13. भौतिकवादी विचारधारा (Materialistic Ideology) – यूनानी दार्शनिकों का चिन्तन भौतिकवादी था । उसमें आध्यात्मिकता का कोई स्थान न था। उन्हें इहलोक में ही आस्था थी, परलोक में नहीं। इस समाज और इसमें रहकर सुखी, समृद्ध तथा नैतिक जीवन की खोज तथा उसकी उपलब्धि उनके चिन्तन का प्रमुख उत्प्रेरक बना।
  14. सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Approach) – वर्तमान समय में राज्य का लक्ष्य व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करना है। इसके विपरीत यूनानियों के अनुसार राज्य का लक्ष्य सकारात्मक अर्थात् भलाई में वृद्धि करना तथा नागरिकों के जीवन को पूर्ण बनाना है।
  15. दास प्रथा (Slavery) – यूनानी राज्य की सम्पूर्ण जनता तीन भागों में विभक्त थी। सबसे उच्च स्थान नागरिकों को प्राप्त था और केवल इन्हें ही राज्य के कार्यों में भाग लेने का अधिकार था । राज्य में दूसरा स्थान विदेशियों का था। विदेशियों को किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। राज्य में तीसरा स्थान दासों का था । इनकी संख्या सबसे अधिक थी। इनका क्रय-विक्रय होता था। दासों का अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्त्व न था । वे अपने स्वामी की इच्छानुसार जीते और कार्य करते थे। नागरिक उनको हेय दृष्टि से देखते थे।
  16. वैयक्तिक कानूनों का अभाव (Lack of Private Laws) – वर्तमान समय में सार्वजनिक कानूनों का विकास हो चुका है जो राज्य तथा व्यक्ति के सम्बन्ध निश्चित करता है पर यूनान में राज्य को नागरिकों के जीवन के पूर्ण विकास का साधन मान लिये जाने के कारण राज्य तथा व्यक्तियों के अधिकारों के मध्य कोई संघर्ष न था। अतएव वहाँ वैयक्तिक कानून का विचार उत्पन्न नहीं हुआ था.
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