राज्य की कार्यपालिका तथा राज्यपाल क्या है?

राज्य की कार्यपालिका क्या है तथा राज्यपाल क्या है?

राज्य की कार्यपालिका क्या है तथा राज्यपाल क्या है?

भारत में जम्मू-कश्मीर को छोड़कर प्रत्येक राज्य में लगभग वैसी ही शासन व्यवस्था है जैसी कि केन्द्र में है, अर्थात् संसदीय शासन व्यवस्था है जिसमें एक कार्यपालिका प्रधान जिसे राज्यपाल कहते हैं। तथा उसकी सलाह के लिए मुख्यमंत्री तथा मत्रिपरिषद् जोकि व्यवस्थापिका अर्थात् विधान मण्डल के प्रति उत्तरदायी होती है।

राज्यपाल (Governor) क्या है?

राज्य की समस्त कार्यपालिका की शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती हैं तथा राज्य को पूरा प्रशासन भी राज्यपाल के नाम से ही चलाया जाता है। प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है, लेकिन आवश्यकता पडने पर एक ही राज्यपाल को एक से अधिक राज्यों का एक ही समय में राज्यपाल बनाया जा सकता है, यह 1956 में व्यवस्था की गई। एक से अधिक राज्यों में जब एक ही व्यक्ति राज्यपाल के रूप में कार्य करता है तो वह जिस राज्य में जब कार्य करता है तो वह वहीं की व्यवस्थापिका की सलाह पर कार्य करता है।

राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है?

(1) राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

(2) भारत का कोई भी नागरिक जिसकी उम्र 35 वर्ष या उससे अधिक है तथा, किसी लाभ के पद पर आसीन नहीं है, और संघ या राज्य के किसी विधानमण्डल का सदस्य नहीं है। राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

(3) संविधान में राज्यपाल की नियुक्ति के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की है, लेकिन व्यवहार में यह देखा गया है। कि पुराने राजनीतिक नेता, नागरिक प्रशासन के अवकाश प्राप्त अधिकारी, अवकाश प्राप्त नेताओं के सर्वोच्च सेनापति, विख्यात शिक्षाविद् आदि विशिष्ट एवं विख्यात व्यक्ति ही राज्यपाल नियुक्त किए जाते रहे हैं।

राज्यपाल की पदावधि कितनी होती है?

(1) सामान्यतः राज्यपाल पाँच वर्ष के लिए नियुक्त किया जाता है।

(2) पाँच वर्ष की पदावधि से पूर्व भी वह स्वयं त्यागपत्र दे सकता है अथवा

(3) राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकता है, क्योंकि वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है।

(4) राज्यपाल के ऊपर महाभियोग नहीं लगाया जाता।

(5) राज्यपाल को हटाने में राज्य के विधान मण्डल या उच्च न्यायालय की कोई भूमिका नहीं होती।

(6) राज्यपाल को हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है, लेकिन राष्ट्रपति राज्यपाल को किस आधार पर पद से पदावधि पूर्व हटा सकता है, यह संविधान में उल्लिखित नहीं है। फिर भी यह समझा जा सकता है कि राज्यपाल के विरुद्ध गम्भीर मामलों जैसे-घूसखोरी, भ्रष्टाचार, राजद्रोह, संविधान का उल्लंघन या कार्य करने की अक्षमता आदि में पद से हटाया जाता है।

(7) कोई भी व्यक्ति एक से अधिक बार राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।

राज्यपाल की परिलब्धियाँ-

(1) राज्यपाल को ₹ 1,10,000 मासिक परिलब्धि मिलती है तथा बिना किराए का आवास एवं अन्य परिलब्धियाँ भत्ते, विशेषाधिकार, राज्यपाल अधिनियम, 1982 यथा संशोधित के अनुसार प्राप्त होते हैं।

(2) 1987 के अधिनियम 17 द्वारा राज्यपाल को प्राप्त होने वाली परिलब्धियाँ और भत्ते उसके कार्यकाल के समय कम नहीं किए जा सकते।

राज्यपाल के कार्य तथा अधिकार क्या क्या हैं?

1. कार्यपालिका सम्बन्धी-

(1) राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है।

(2) राज्य के महाधिवक्ता तथा राज्य लोक सेवा के सदस्यों को नियुक्त करता है।

(3) राज्य का महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है, लेकिन राज्यपाल राज्य लोक सेवा के सदस्यों को हटा नहीं सकता।

(4) राज्यपाल को राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करने का अधिकार तो नहीं है, लेकिन इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श करता है।

(5) राज्यपाल को यदि यह समाधान हो जाए कि विधान मण्डल में आंग्ल भारतीय समुदाय के सदस्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो वह उनमें से एक सदस्य को मनोनीत कर सकता है।

(6) जिन राज्यों में विधान परिषद हैं, वहाँ पर राज्यपाल ऐसे व्यक्तियों को जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला सहकारी आन्दोलन और सामाजिक सेवा के सम्बन्ध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है। विधान परिषद में कुल सदस्यों का 1/6 सदस्यों को मनोनीत करता है।

2. विधायी शक्तियाँ-

(1) राज्यपाल, राज्य विधानमण्डल का अंग होता है।

(2) राज्य विधानमण्डल को सत्रावसान करना, सत्र बुलाना, तथा विधान सभा को विघटित करने का अधिकार है।

(3) राज्यपाल को विधानमण्डल में अभिभाषण करने व संदेश भेजने का अधिकार है।

(4) राज्य विधानमण्डल के समक्ष राज्यपाल वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करवाता है।

(5) राज्यपाल को राज्य विधानमण्डल में ‘धन विधेयक’ तथा अनुदान माँगोब की सिफारिश करने की शक्ति है।

(6) राज्यपाल की वीटो शक्ति- राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर एवं अनुमति के पश्चात् ही अधिनियम बनते हैं। जब कोई विधेयक राज्यपाल की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तब राज्यपाल-

(i) उस विधेयक पर अपनी अनुमति देने से इन्कार कर सकता है, तब यह अधिनियम नहीं बन सकता।

(ii) धन विधेयक से भिन्न किसी विधेयक को वह संदेश के साथ विधान मण्डल को वापस भेज सकता है। यदि विधानमण्डल उस विधेयक को पुनः पारित करके भेज देता है तो राज्यपाल को उस पर अनुमति देना आवश्यक होता है।

(iii) राज्यपाल विधेयक को अनुमति न देकर उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है। जब ऐसा होता है। तो इस प्रकार के विधेयक पर राज्यपाल की आगे की शक्ति समाप्त हो जाती है, तथा विधेयक का अधिनियमित किया जाना राष्ट्रपति के हाथ में चला जाता है।

(iv) राज्यपाल विधेयक को यदि अनुमति दे देता है तो वह अधिनियम बन जाता है।

राज्यपाल की अध्यादेश बनाने की शक्ति-

(1) जब विधानमण्डल के सदन सत्र में नहीं है तथा तब किसी विधान की आवश्यकता होती है तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है।

(2) इन अध्यादेशों का प्रभाव विधान मण्डल द्वारा बनाए गए अधिनियमों के समान ही होता है।

(3) राज्यपाल को अध्यादेश बनाने का अधिकार केवल राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के विषय पर ही है।

(4) राज्यपाल का अध्यादेश बनाने का अधिकार स्वविवेक अधिकार नहीं है। इसका प्रयोग मंत्रियों की सलाह पर किया जाता है।

(5) यदि राज्यपाल के अनुसरण में बनाया गया अध्यादेश समवर्ती सूची के ऐसे विषय से सम्बन्धित है जिस पर केन्द्र सरकार का विधान है, तो भी राज्यपाल का अध्यादेश प्रभावी होगा।

(6) राज्यपाल, राष्ट्रपति के अनुदेश के बिना उन विषयों या उपबन्धों पर अध्यादेश सही बना सकता यदि-

(i) उनको विधानमण्डल में प्रस्तुत करने के लिए संविधान के अधीन राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति अपेक्षित हो अथवा

(ii) उन्हीं विषयों या उपबन्धों को प्रभावित करने वाले विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना आवश्यक समझता हो,

(iii) या उनको राष्ट्रपति के आरक्षण के लिए रखने पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त नहीं होती तो विधानमण्डल का वह अधिनियम विधिमान्य नहीं होता।

(7) यह अध्यादेश विधानमण्डल का अधिवेशन होने पर उसके समक्ष रखा जाता है यदि विधानमण्डल (जहाँ दोनों सदन हैं। वहाँवहाँ दोनों सदनों में) इसे सत्र प्रारम्भ होने के छ: सप्ताह के अन्दर या तो निरस्त कर देते हैं तो यह निरस्त माना जाएगा, यदि इसे पारित कर देते हैं तो अधिनियम बन जाता है, और यदि इस पर कोई कार्यवाही नहीं करते तो छः सप्ताह (यदि यह सदन पृथक्-पृथक् तिथि को प्रारम्भ होते हैं तो बाद में प्रारम्भ होने वाले सदन की तिथि से) के पश्चात स्वतः समाप्त हो जाता है।

राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ क्या क्या हैं?

(1) राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ ऐसे व्यक्तियों से सम्बन्धित है, जिन्हें ऐसी विधि के अधीन अपराधी ठहराया गया हो जिसके सम्बन्ध में राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।

(2) राज्यपाल किसी दण्ड को क्षमा, उसका प्रबिलम्बन, विराम, लघुकरण अथवा परिहार कर सकता है।

राज्यपाल के आपातकालीन अधिकार क्या हैं?

राज्यपाल को राज्य में यदि यह समाधान हो जाए कि अब राज्य में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई है कि राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के अनुसार चलाना सम्भव नहीं है तो राज्यपाल राष्ट्रपति से उस राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत ‘राष्ट्रपति शासन’ लागू करने की सिफारिश कर सकता है।

राज्य का शासन राष्ट्रपति द्वारा ग्रहण कर लेने के पश्चात राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में राज्य का प्रशासन चलाता है।

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