सामाजिक सुरक्षा का अर्थ | सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करने वाले अधिनियम | सामाजिक सुरक्षा उपायों का महत्व
सामाजिक सुरक्षा का अर्थ | सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करने वाले अधिनियम | सामाजिक सुरक्षा उपायों का महत्व
सामाजिक सुरक्षा : अर्थ एवं परिभाषा-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय उस सुरक्षा से है, जिसके अन्तर्गत उपयुक्त संगठन के माध्यम से समाज अपने सदस्यों की विभिन्न प्रकार की जाखिमों से रक्षा करता है। बीमारी, काम के अयोग्य हो जाना, प्रसूति, बुढ़ापा व मृत्यु आदि ऐसी जोखिमें हैं जिनसे अकला आदमी अपने सीमित साधनों से संघर्ष नहीं कर सकता। इसलिए समाज का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह आदमी को इन जोखिमों से बचाकर उनकी सहायता करें। सामाजिक सुरक्षा की मुख्य परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
(i) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, “सामाजिक सुरक्षा से आशय उस सुरक्षा से है, जिसको समाज एक उपयुक्त संगठन द्वारा उन निश्चित जाखिमी के विरुद्ध प्रदान करता है. जिनके शिकार उनक सदस्य हो सकते हैं।”
(ii) वी.वी. गिरि के अनुसार, “सामाजिक सुरक्षा के अन्तर्गत राज्य जोखिमा से बचने के लिए सुरक्षा प्रदाने करता है, जिसके करने के लिए मनुष्य व्यक्तिगत रूप से साधना की अभाव होने के कारण असमर्थ होता है।”
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि सामाजिक सुरक्षा के अन्तर्गत उन सब कार्या को शामिल किया जाता है जो समाज के सदस्यों की कठिनाइयों को दूर करने और ‘भविष्य के संकटों से रक्षा करने के लिए किये जाते हैं। इसमें मुख्यतः निम्न कार्यक्रम शामिल किये जाते हैं-
(i) दुर्घटना तथा बीमारी के समय चिकित्सा एवं आर्थिक सहायता ।
(ii) बेरोजगारी एवं वृद्धावस्था में आर्थिक सहायता।।
(iii) बच्चों के पालन-पोषण एवं उनकी शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था ।
(iv) प्रसूति काल में सवेतन अवकाश, चिकित्सा एवं आर्थिक सहायता।
भारत में सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करने वाले दो अधिनियम
(1) जमा सम्बद्ध बीमा योजना (Deposit Linked Insurance Scheme)-
यह योजना 1 अगस्त, 1976 को प्रारम्भ की गयी। यह योजना उन श्रमिकों व कर्मचारियों पर लागू की गयी है जो ‘कोयला खान भविष्य निधि’ एवं ‘कर्मचारी भविष्य निधि योजना’ के अन्तर्गत आते हैं। इस योजना में किसी कर्मचारी की मृत्यु पर उसके परिवार को भविष्य निधि की धनराशि के अतिरिक्त एक और धनराशि मिलेगी, जो पिछले तीन वर्षों में निधि में जमा औसत धनराशि के बराबर होगी, बशर्तें कि निधि में औसत धनराशि 1000 रु. से कम न रही हो। इस योजना के अन्तर्गत अधिकतम भुगतान 1 0,000 रु. होगा। इस योजना के धन प्रबन्ध के लिए कर्मचारियों एवं श्रमिकों के वेतन का प्रत्येक 100 रु. पर 50 पैसे अंशदान देना पड़ता है। सरकार भी कर्मचारियों के वेतन के प्रत्येक 100 रु. 25 पैसे देती है। प्रशासनिक व्यय की पूर्ति के लिए सरकार व नियोजक से प्रत्येक 100 रुपये पर 10 पैसे व 5 पैसे और लिये जाते हैं। यह योजना कोयला खान भविष्य निधि पर लागू है।
(2) ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 (Gratuity Payment Act, 1972)-
इस अधिनियम की परिधि के अन्तर्गत वे सब औद्योगिक इकाइयाँ, व्यवसायिक संस्थान, बागान, बन्दरगाह, खाद्यान्न एवं तेल क्षेत्र आते हैं, जहाँ 10 या इससे अधिक कर्मचारी अथवा श्रमिक या दोनों अवश्य कार्य करते हों। इस अधिनियम के अन्तर्गत उन सभी श्रमिकों एवं कर्मचारियों को जिनका मासिक वेतन 2500 रु. से अधिक नहीं है, अनिवार्य ग्रेच्युटी भुगतान की व्यवस्था है।
भारत में सामाजिक सुरक्षा उपायों का महत्व-
भारत में सामाजिक सुरक्षा की परम आवश्यकता है। वी,पी. अदारकर ने ठीक ही लिखा है, “आपको भारत की सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालने के लिए बहुत अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा। भारत की निर्धनतापूर्ण दशा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को पुकार-पुकार कर माँग रही हैं।” भारत में
सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) भारत में श्रमिकों की मजदूरी इतनी कम है कि वे अपनी दिन-प्रतिदिन आवश्यकताओं को ठीक प्रकार से पूरा नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में बीमारी, दुर्घटना और वृद्धावस्था जैसी आकस्मिक कठिनाइयों में सामाजिक सुरक्षा उनके लिए अत्यन्त आवश्यक बन जाती है।
(2) निर्धनता और गन्दगी के कारण भारतीय श्रमिक टी.बी., श्वास, मलेरिया, हैजा और हृदय रोग आदि के शिकार होते रहते हैं। भारत में बाल-मृत्यु और मातृत्व-मृत्यु का स्तर भी ऊँचा रहा है। इन रोगों का सामना करने के लिए श्रमिकों के पास साधनों का अभाव रहता है। ऐसी स्थिति में सामाजिक सुरक्षा उनके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।
(3) पहले भारत में जब संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी, तब श्रमिक की दुर्घटना या अन्य प्रकार से मृत्यु होने या संकट में फँसने पर उसका संयुक्त परिवार उसकी मदद करता था, लेकिन आज संयुक्त परिवार प्रणाली लगभग टूट चुकी है। ऐसी स्थिति में श्रमिक का परिवार बेसहारा हो जाता है । सामाजिक सुरक्षा द्वारा इन परिवारों को अनावश्यक सहारा प्रहान किया जाता है।
(4) बेकारी काल में सामाजिक सुरक्षा के अन्तर्गत श्रमिकों को भत्ता दिया जाता है, जिससे उनका परिवार न्यूनतम जीवन स्तर बनाये रख सके।
(5) भारतीय उद्योगपतियों का दृष्टिकोण आज भी पुरानी विचारधारा में जकड़ा हुआ है। श्रम -कल्याण में आज भी उनकी कोई रुचि नहीं है। ऐसी स्थिति में केवल सरकार ही श्रमिकों को सुरक्षित कर सकती है।
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