लोकतन्त्र एवं भ्रष्टाचार | भारत में लोकतन्त्र का समकालीन परिदृश्य
लोकतन्त्र एवं भ्रष्टाचार | भारत में लोकतन्त्र का समकालीन परिदृश्य
लोकतन्त्र एवं भ्रष्टाचार
प्रस्तावना-
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ सबको हर तरह की स्वतंत्रता प्राप्त है। परन्तु हमारे देश में इसी भारत के अंदर तो भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। लोग इसी स्वतंत्रता और हमारे देश के लचीले कानूनों का लाभ उठाते हैं। लोकतंत्र लोगों का तंत्र है। लोग अपनी इच्छा से अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। उनका प्रतिनिधि उनका प्रतिनिधित्व संसद में करता है। लोगों को चाहिए कि अपना प्रतिनिधि किसी दल के नाम पर न देकर एक सही और शिक्षित व्यक्ति को दे। परन्तु हमारे यहां अपने कीमती वोट को दलों के नाम पर व्यर्थ कर दिया जाता है। लोकतंत्र में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा फैलाव इन्हीं प्रतिनिधियों के द्वारा फैलाया गया है। इन्होंने जनता के विकास के नाम पर हजारों लाखों रुपया सरकार से हड़प लिया है। किसी भी तरह का कार्य हो बिना पैसे दिए ये कार्य ही नहीं करते हैं। ये भ्रष्टाचार धीरे-धीरे सरकारी व गैर-सरकारी विभागों तक फैलता चला गया इसकी चपेट में पूरा भारत जकड़ चुका है। आप यहां से अपना कोई भी काम करवाना चाहते हैं, बिना रिश्वत खिलाए काम करवाना संभव नहीं है।
भ्रष्टाचार के विविध रूप-
वर्तमान में भ्रष्टाचार इतना व्यापक है कि उसके विविध रूप देखने में आते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य प्रकार हैं-
(क) रिश्वत (सुविधा-शुल्क)- किसी कार्य को करने के लिए किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा लिया गया उपहार, सुविधा अथवा नकद धनराशि को रिश्वत कहा जाता है। इसी को साधारण भाषा में घूस और सभ्य भाषा में सुविधा शुल्क भी कहा जाता है। अपने कार्य को समय से और बिना किसी परेशानी के कराने के लिए अथवा नियमों के विपरीत कार्य कराने के लिए आज लोग सहर्ष रिश्वत देते हैं।
(ख) भाई-भतीजावाद- किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा केवल अपने सगे-सम्बन्धियों को कोई सुविधा, लाभ अथवा पद (नौकरी) प्रदान करना ही भाई-भतीजावाद है। आज नौकरियों तथा सरकारी सविधाओं अथवा योजनाओं के क्रियान्वयन के समय समर्थ (अधिकारी/नेता) लोग अपने बेटा-बेटी, भाई, भतीजा आदि सगे-सम्बन्धियों को लाभ पहुंचाते हैं। इसके लिए प्रायः नियमों और योग्यताओं की अनदेखी भी की जाती है। भाई-भतीजावाद के चलते योग्य और पात्र लोग नौकरियों तथा सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
(ग) यौन शोषण- यह भ्रष्टाचार का सर्वथा नवीन रूप है। इसमें प्रभावशाली व्यक्ति विपरीत लिंग के व्यक्ति को अपने प्रभाव का प्रयोग करते हुए अनुचित लाभ पहुंचाने के बदले उसका यौन- शोषण करता है। आज अनेक नेता, अभिनेता और उच्चाधिकारी इस भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हैं और अनेक जेल की सलाखों के पीछे अपने कृत्यों पर पश्चात्ताप कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार के कारण-
भ्रष्टाचार के यद्यपि अनेकानेक कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
(क) महँगी शिक्षा- शिक्षा के व्यवसायीकरण ने उसे अत्यधिक महंगा कर दिया है। आज जब एक युवा शिक्षा पर लाखों रुपये खर्च करने किसी पद पर पहुंचता है तो उसका सबसे पहला लक्ष्य यही होता है कि उसने अपनी शिक्षा पर जो खर्च किया है उसे किसी भी उचित-अनुचित रूप से व्याजसहित वसूले। उसकी यही सोच उसे भ्रष्टाचार के दलदल में धकेल देती है और फिर वह चाहकर भी इससे निकल नहीं पाता।
(ख) लचर न्याय-व्यवस्था- लचर न्याय व्यवस्था भी भ्रष्टाचार का एक मुख्य कारण है। प्रभावशाली लोग अपने धन और भुजबल के सहारे अरबों-खरबों के घोटाले करके साफ सच निकलते हैं, जिससे युवावर्ग इस बात के लिए प्रेरित होता है कि यदि व्यक्ति के पास पर्याप्त धनबल है तो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बस यही धारणा उसे अकूत धन प्राप्त करने के लिए भ्रष्टाचार की अन्धी गली में धकेल देती है, जहाँ से वह फिर कभी निकल नहीं पाता।
(ग) जन-जागरण का अभाव- हमारे देश की बहुसंख्यक जनता अपने अधिकारों से अनभिज्ञ है, जिसका लाभ उठाकर प्रभावशाली लोग उसका शोषण करते रहते हैं और जनता चुपचाप भ्रष्टाचार की चक्की में पिसती रहती है।
(घ) विलासितापूर्ण आधुनिक जीवन-शैली- पाश्चात्य सभ्यता की विलासितापूर्ण जीवन- शैली ने अपनी चकाचौंध से युवावर्ग को अत्यधिक प्रभावित किया है, जिस कारण वह शीघ्रातिशीघ्र भोग-विलास के सभी साधनों को प्राप्त करके जीवन के समस्त सुख प्राप्त करने का मोह नहीं छोड़ पाता। शिक्षा-प्राप्ति के पश्चात यही युवावर्ग कर्मक्षेत्र में उतरता है तो सभी प्रकार के उचित- अनुचित हथकण्डे अपनाकर विलासिता के समस्त साधनों को प्राप्त करने में जुट जाता है और वह अनायास ही अष्टाचार को आत्मसात् कर लेता है।
भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय-
भ्रष्टाचार को रोकना आज यद्यपि विश्वव्यापी समस्या बन गई है और भले ही इसे समूल नष्ट न किया जा सके, तथापि कुछ कठोर कदम उठाकर इस पर अंकुश अवश्य लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार को दूर करने के कुछ मुख्य उपाय इस प्रकार हैं-
(क) जनान्दोलन- भ्रष्टाचार को रोकने का सबसे मुख्य और महत्त्वपूर्ण उपाय जनान्दोलन है। जनान्दोलन के द्वारा लोगों को उनके अधिकारों का ज्ञान फैलाकर इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा चलाया गया जनान्दोलन भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हआ है। उनके जनान्दोलन की अपार सफलता को देखते हुए भारत सरकार भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए लोकपाल विधेयक लाने के लिए तैयार हो गई है। इस विधेयक का प्रारूप तैयार करने वाली समिति इस विधेयक के दायरे में प्रधानमन्त्री और न्यायाधीश जैसे लोगों को भी लाने का प्रयास कर रही है।
(ख) कठोर-कानून- कठोर कानून बनाकर ही भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सकती है। यदि लोगों को पता हो कि भ्रष्टाचार करनेवाला कोई भी व्यक्ति सजा से नहीं बच सकता, भले ही वह देश का प्रधानमन्त्री अथवा राष्ट्रपति ही क्यों न हो, तो प्रत्येक व्यक्ति अनुचित कार्य करने से पहले हजार बार सोचेगा। दण्ड का यह भय जब तक नहीं होगा, तब तक भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। आज यह थोड़ा-सा सन्तोष का विषय है कि अन्ना हजारे के जनान्दोलन के कारण भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल विधेयक पारित करने पर आम सहमति बन चुकी है।
(ग) कार्यस्थल पर व्यक्ति की सुरक्षा और संरक्षण- कार्यस्थल पर प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकार और कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि उसे पर्याप्त सुरक्षा तथा संरक्षण प्राप्त हो, जिससे व्यक्ति निडर होकर अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी के साथ कर सके। यदि कार्यकारी व्यक्ति को पूर्ण सुरक्षा और संरक्षण मिले तो वो धनबल और बाहुबल का भय दिखाकर कोई भी व्यक्ति अनुचित कार्य करने के लिए किसी को विवश नहीं कर सकता। महिलाकर्मियों के लिए तो कार्यस्थल पर सुरक्षा और संरक्षण देने हेतु कानून बनाया जा चुका है, जिससे उनका यौन-शोषण रोका जा सके। यद्यपि इन कानून को और अधिक व्यापक तथा प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
(घ) नैतिक मूल्यों की स्थापना-नैतिक मूल्यों की स्थापना करके भी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए समाज-सुधारकों और धर्म प्रचारकों के साथ-साथ शिक्षक वर्ग को भी आगे आना चाहिए।
उपसंहार-
हमारे संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में शक्तियों का ही विकेन्द्रीकरण नहीं किया गया है, बल्कि धूमधाम से भ्रष्टाचार का भी विकेन्द्रीकरण कर दिया गया है। पश्चिमी देशों में किसी राजनेता का भ्रष्टाचार उजागर होने पर उसका राजनीतिक जीवन समाप्त हो जाता है, किन्तु हमारे यहाँ तो राजनीतिज के राजनैतिक जीवन की शुरूआत ही भ्रष्टाचार से होती है। जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी और अपराधी, वह उतना ही सफल राजनीतिज्ञ। यही कारण है कि ट्रांसपैरेंसी इण्टरनेशनल द्वारा जारी वर्ष 2010 के भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत 87वें स्थान पर है जबकि वर्ष 2009 में वह 84वें स्थान पर था। भ्रष्टाचार के क्षेत्र में अपनी इन उपलब्धियों के सहारे हम विकासशील से विकसित देश का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकते। हम तभी विकसित देशों की श्रेणी में सम्मिलित हो सकते हैं, जब भ्रष्टाचार के क्षेत्र में न्यायिक तराजू पर राजा और रंक एक ही पलड़े में रखे जाएं। हम कामना करते हैं कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाया गया आन्दोलन एक लक्ष्य को प्राप्त कर देश को भ्रष्टाचारमुक्त करने में सहायक हो और हम एक बार फिर से अपने वैदिक चिन्तन, सदाचार और नैतिकता के बल पर विश्वगुरु के गौरव को प्राप्त करें।
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