निगमीय प्रबंधन / Corporate Management

भारत में विदेशी पूँजी की समस्याए | भारत के आर्थिक विकास में विदेशी पूंजी व सहयोग की भूमिका

भारत में विदेशी पूँजी की समस्याए | भारत के आर्थिक विकास में विदेशी पूंजी व सहयोग की भूमिका | Problems Of Foreign Capital In India in Hindi | Role Of Foreign Capital and Collaboration In India’s Economic Development in Hindi

भारत में विदेशी पूँजी की समस्याए

(PROBLEMS OF FOREIGN CAPITAL IN INDIA)

  1. आर्थिक विकास में सीमित भूमिका (Limited Role in Economic Development) — भारत के आर्थिक विकास पर विदेशी पूँजी का नगण्य प्रभाव पड़ा है। 1 जनवरी, 1990 से मार्च, 2005 तक भारत में कुल 85,712 करोड़ डॉलर की विदेशी पूँजी आयी है। इसमें से मात्र 40,652 अरब डॉलर का प्रत्यक्षी विदेशी विनियोग था। इसमें भी ज्यादातर पूँजी से भारत में नया उद्योग या नया कारोबार शुरू करने के बजाय पहले से चले आ रहे कारोबार के अधिग्रहण या उनके शेयर खरीदने का ही काम विदेशी कम्पनियों द्वारा किया गया है। दूसरे शब्दों में, नई उत्पादक क्षमता या नया रोजगार पैदा करने में विदेशी पूंजी की भूमिका बहुत सीमित रही है। नया निवेश करने के बजाय देशी कम्पनियों को हड़पने में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दिलचस्पी ज्यादा रही है।
  2. बढ़ती विदेशी भागीदारी व कम विदेशी पूँजी (Increasing Foreign Participation and Less Foreign Capital)—अनेक बुनियादी व जरूरी कहलाने वाली सेवाओं में विदेशी कम्पनियों को मुँहमाँगी रियायतें व छूटें प्रदान की गयी हैं। सड़कों, बन्दरगाहों, हवाई अड्डों व बिजली उत्पादन में 100 प्रतिशत विदेशी मिल्कियत की इजाजत पहले ही दे दी गयी थी, लेकिन फिर भी बहुत बड़ी मात्रा में विदेशी पूँजी आयी और भारत की तस्वीर बदल गयी हो, ऐसा नहीं दिखाई देता।
  3. पोर्टफोलियो विनियोग पर अधिक निर्भरता (More Dependence on Portfolio Investment) – (i) भारत में जो विदेशी पूँजी आयी हैं, उसमें से लगभग 50 प्रतिशत भाग पोर्टफोलियो विनियोग के रूप में है। यह पूँजी भारत के शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-फरोख्त व सट्टेबाजी का व्यवसाय करने के मकसद से आयी है, इसका भारत की आर्थिक गतिविधियों में या उत्पादन क्षमता में कोई योगदान नहीं है।

(ii) भारत में किया गया पोर्टफोलियो विनियोग एक प्रकार की क्षुब्ध मुद्रा (Hot Money) है जो यदि बाजार में कोई प्रतिकूल संकेत मिलता है तो फौरन पलायन कर सकती है। अतः पोर्टफोलियो विनियोग को अपने विकास में एक स्थिर कारण-तत्व मान लेना भूल होगी।

(iii) भारतीय कम्पनी का स्वामित्वान्तरण (Take-over of Indian Companies)- बहुराष्ट्रीय निगम भारतीय कम्पनियों में प्रवेश के पश्चात् इनमें अपनी शेयर पूँजी बढ़ाते जाते हैं और अन्ततः भारतीय कम्पनियों पर अपना कब्जा जमा लेते हैं। इस प्रकार निगम क्षेत्र के भारतीयकरण की जो प्रक्रिया जवाहरलाल नेहरू ने शुरू की थी, पूर्णतः उलट गयी है। ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय उद्यमकर्ता अपनी सौदा-शक्ति खो बैठे हैं और बहुराष्ट्रीय निगम विख्यात ब्राण्डों का स्वामित्व अपने अधीन करते चले जा रहे हैं।

भारत के आर्थिक विकास में विदेशी पूंजी व सहयोग की भूमिका

(ROLE OF FOREIGN CAPITAL AND COLLABORATION IN INDIA’S ECONOMIC DEVELOPMENT)

विदेशी सहायता ने भारत के आर्थिक विकास को निम्न रूपों में प्रोन्नत किया है-

  1. निवेश का स्तर उन्नत करने में सहायक (It helped to Raise the Level of Investment)- विदेशी पूँजी के फलस्वरूप हमारा राष्ट्रीय निवेश का स्तर ऊँचा उठा है। प्रथम पंचवर्षीय योजना के शुरू में वार्षिक निवेश दर राष्ट्रीय आय का 5 प्रतिशत थी जो बढ़कर 1989- 90 में 22 प्रतिशत और 2007-08 में 33 प्रतिशत हो गयी। फिर 1970 के दशक से ही देश को विदेशी मुद्रा के संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट को दूर करने और आर्थिक विकास को गति प्रदान करने में विदेशी सहायता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
  2. औद्योगिक विकास में योगदान (Role in Industrial Development)- विदेशी पूँजी व सहयोग ने देश में भारी व आधारभूत उद्योगों की स्थापना, परिवहन, संचार व विद्युत उत्पादन का विस्तार करके जहाँ एक ओर देश में औद्योगीकरण के लिए आधारभूत संरचना का विकास किया है, वहीं दूसरी ओर देश के महत्वपूर्ण उद्योगों में विदेशी पूँजी विनियोग के द्वारा औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  3. तकनीकी ज्ञान में विस्तार (Expansion of Technical Knowledge) – देश को विदेशी पूँजी के अन्तर्गत विदेशी विशेषज्ञों की सेवाएँ, भारतीयों को प्रशिक्षण की व्यवस्था और तकनीकी परामर्श के साथ-साथ अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहन मिला है।
  4. भारतीय उपक्रमियों को लाभ (Benefits to Indian Entrepreneurs)– भारतीय उपक्रमियों को अनुभद और प्रोत्साहन का लाभ मिला है क्योंकि विदेशी सहयोगों में कारखाने स्थापित करने से जाखिम, प्रबन्ध में कुशलता और विदेशी अनुभव का लाभ मिला है। यही कारण है कि भारतीय पूँजी स्वयं बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करने में सक्षम है।
  5. परिवहन व संचार का विकास (Development of Transport and Communication)– परिवहन व संचार के साधनों के विकास में विदेशी पूँजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कुल विदेशी पूँजी का 14 प्रतिशत भाग परिवहन व संचार के विकास पर व्यय किया गया है। इनमें से 12 प्रतिशत व्यय रेल परिवहन के विकास पर हुआ।
  6. लोहा और इस्पात उद्योग का विकास (Development of Iron and Steel Industry)—किसी भी देश के आर्थिक विकास में लोहा व इस्पात उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में यह उउद्यो अविकसित अवस्था में था, किन्तु आज हम लोहे का निर्यात कर रहे हैं। निर्माण उद्योगों के लिए जो विदेशी पूँजी मिली है, उसके 80 प्रतिशत का प्रयोग लोहा और इस्पात उद्योग को विकसित बनाने के लिए किया गया है। पश्चिमी जर्मनी, रूस तथा ब्रिटेन ने इस उद्योग को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  7. कीमत स्थायित्व बनाये रखने में सहायक (Helpful in Maintaining Price Stability)– भारत द्वारा अब तक जितनी विदेशी सहायता का उपयोग किया गया है, उसका लगभग 40 प्रतिशत भाग वस्तुओं, जैसे- खाद्यान्न, कच्चा माल, कल-पुर्जे आदि के रूप में रहा है। इससे एक तरफ खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर रखने में सहायता मिली है तो दूसरी तरफ आयातित औद्योगिक कच्चे माल से देश के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।
  8. विदेशी विनिमय संकट का निवारण (Foreign Exchange Crisis Solved) – विदेशी विनिमय संकट को दूर करने में विदेशी सहायता ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यद्यपि निरंतर विदेशों से ऋण लेने में देश की विदेशी देनदारी में वृद्धि हुई है, परन्तु उससे हमारी अर्थव्यवस्था अधिक सुदृढ़ हुई और निर्यातों में भी वृद्धि हुई है।
  9. राजनीतिक सहयोग एवं सद्भावना में वृद्धि (Political Collaboration and Goodwill)- विदेशी सहायता द्वारा अनेक राष्ट्रों से मेल-जोल बढ़ा है। समय-समय पर जो समझौते और वार्ताएँ होती हैं, इससे अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सहयोग में वृद्धि होती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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