समाज शास्‍त्र / Sociology

चिपको आन्दोलन | chipko movement in Hindi

चिपको आन्दोलन | chipko movement in Hindi

चिपको आन्दोलन

अथवा

भारत में चिपको आन्दोलन

भाट तथा सुन्दर लाल बहुगना द्वारा चलाया गया चिपको आन्दोलन तथा उत्तराखण्ड के रेनी ग्राम की महिलाओं द्वारा चलाया गया जन आन्दोलन सराहनीय एवं कारगर ठोस कदम है। रेनी ग्राम की महिलाओं ने वन, विनाश के कारण उर्वर मिट्टियों के क्षय, पेय जल की आपूर्ति करने वाले जल के स्रोतों के सूखने, वर्षा में कमी, पशुओं के लिए चारे तथा जलावन लकड़ी में निरन्तर कमी आदि का मूक अवलोकन करने के बाद प्रकृति तथा वन सम्पदा की महत्त को महसूस किया तथा उन्हें यह विश्वास हो गया कि वन विनाश द्वारा उत्पन्न पर्यावरण अवनयन तथा आर्थिक निर्धनता में गहरा सम्बन्ध है। रेनी ग्राम की महिलाओं को पूर्ण विश्वास हो गया कि वनजलग्रहण क्षेत्रों तथा नदियों की बेसिनों की रक्षा करते हैं, जल के स्रोतों तथा भूमिगत जल को समृद्ध बनाते हैं, जलप्रवाह को नियंत्रित करते हैं, शुद्ध जल की सतत आपूर्ति में सहायक होते हैं, उनके कृषि क्षेत्रों की रक्षा करते हैं तथा पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाये रहते हैं परिणामस्वरूप रेनी ग्राम की महिलाओं ने वनों की कटाई के खिलाफ जेहार छेड़ दिया। ठेकेदारों द्वारा पेड़ों की कटाई का इन्होंने खुलकर कई रूपों में विरोध किया तथाः (i) सर्वप्रथम इन्होंने विनम्रतापूर्वक ठेकेदारों को पेड़ काटने से मना करना प्रारम्भ किया; (ii) ठेकेदारों के न मानने पर इन्होंने अनशन प्रारम्भ किया तथा (iii) इससे भी काम न चलने पर ठेकेदारों की कुल्हाड़ियों को रोकने के लिए इन्होंने अपने को पेड़ों के चारों तरफ चिपकाना प्रारम्भ कर दिया। वास्तव में रेनी की महिलायें अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही थीं। ठेकेदारों के क्रोध तथा राजनैतिक दबाव रेनी की महिलाओं के इरादों को विचलित नहीं कर पाये। अन्ततः इनका आन्दोलन रंग लाया तथा रेती के आस-पास की वन सम्पदा सुरक्षित हो गयी। इन्होंने वन विनाश से प्रभावित क्षेत्रों में ओक का रोपण करना प्रारम्भ किया। देखते-देखते सैकड़ों ग्रामों में वनरोपण का कार्य प्रारम्भ हो गया। भाट तथा सुन्दर लाल बहुगुना का चिपको आन्दोलन तथा रेनी ग्राम की महिलाओं का वन बचाओ आन्दोलन पूरे भारत में फैल गया तथा कई पर्यावरणीय वर्ग एवं स्वयंसेवी संस्थायें देश के विभिन्न भागों में वन विनाश के खिलाफ जन आन्दोलन चलाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया। वन विनाश के खिलाफ कई पर्यावरणीय नारे लगाये जा रहे हैं यथा, ‘पश्चिमी घाट को बचाओ’, ‘बीमार हिमालय की रक्षा करो’, ‘अस्वस्थ गंगा को बचाओं आदि। रेनी ग्राम की महिलाओं द्वारा वनों के विनाश के विरुद्ध चलाया गया जन आन्दोलन अफ्रीका तथा लैटिन अमरिका के कई देशों में भी पहुंच गया। अमेजन बेसिन व वनों के बड़े पैमाने पर सामूहिक सफाया के खिलाफ व्यापक आन्दोलन प्रारम्भ हो चुका है।

(2) वनों से पेड़ों की कटाई विवेकपूर्ण तथा वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए। अर्थात् केवल प्रौढ तथा रोगग्रस्त पेड़ों की ही कटाई होनी चाहिए तथा अनिच्छित एवं अनार्थिक वृक्षों की कटाई नहीं होनी चाहिए। वास्तव में पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भी प्रौढ़ वृक्षों की कटाई वांछनीय होती है क्योंकि न काटे जाने पर भी इस तरह के वृक्ष एक निश्चित समय के बाद नष्ट हो जाते है।

(3) अधिक से अधिक बंजरभूमियों पर तथा वन विनाश के कारण वनविहीन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वृक्षरोपण किया जाना चाहिए। वनरोपण के समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बड़े प्रजातियों के वृक्षों का रोपण होना चाहिए क्योकि पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से जैविक विविधता एकधान्य कृषि (monoculture) की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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