शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा में उपभोग की रणनीतियों का उल्लेख कीजिए | Mention consumption strategies in education in Hindi

शिक्षा में उपभोग की रणनीतियों का उल्लेख कीजिए | Mention consumption strategies in education in Hindi

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अवधारणा

चूँकि शिक्षा का सम्बन्ध ज्ञान से है और ज्ञान का सम्बन्ध उत्पादकता से लिया जाने लगा है। मानव शक्ति का विकास, औद्योगिक विकास तथा श्रम शक्ति का प्रतिफल ही पूँजी की उत्पादकता में वृद्धि करता है। अत: शिक्षा वर्तमान में एक उपभोग की वस्तु मानी जाने लगी है। प्राचीन समय में शिक्षा का सम्बन्ध ज्ञान-मोक्ष से लगाया जाता था, परन्तु वर्तमान में पूँजी अर्जन से लगाया जाता है अतः शिक्षा भवन पर व्यय, फर्नीचर पर व्यय एवं शिक्षा के विभिन्न मदों पर व्यय भी एक निवेश है तथा उससे प्राप्त धन पूँजी अर्जन तथा उपभोग है। अर्थात उपभोग के अन्तर्गत मनुष्य की आवश्यकताओं और धन के प्रयोग द्वारा उनकी संतुष्टि का अध्ययन होता है। शिक्षा अर्थशास्त्र की दृष्टि में मानव के समस्त प्रयत्नों का जन्म आवश्यकताओं और उनको संतुष्ट करने की प्रबल वासना से होता है। उपभोग इस प्रकार के समस्त आर्थिक प्रयत्नों एवं उनके द्वारा उत्पन्न धन का उद्देश्य होता है। अत: उपभोग को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।

“मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिये वस्तुओं और सेवाओं की उप्योगिता के प्रयोग को उपभोग कहते हैं।”

इस प्रकार से कह सकते है कि-

(1) शिक्षा भी उपभोग मानी जाती है क्योंकि शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अपने जीवन की प्रत्येक आवश्यकताओं की पूर्ति शिक्षा द्वारा करता है। क्योंकि शिक्षा ही वह कल्पतरु है जिससे उसे धन की प्राप्ति होती है और धन द्वारा वह अपनी सभी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। मानवीय आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि के लिये वस्तुओं की आवश्यकता होती जो शिक्षा द्वारा प्राप्त होती है। यही नहीं सेवाओं की उपयोगिता का प्रयोग भी इसी के माध्यम से होता है।

(2) उपभोग केवल वस्तुओं का ही नहीं होता वरन् सेवाओं का भी उपभोग होता है। जैसे जब अध्यापक विद्यार्थी को पढ़ाता है तो विद्यार्थी अध्यापक की सेवाओं का उपभोग करता है।

आवश्यकताओं की तृप्ति के लिये पदार्थों एवं सेवाओं का प्रयोग (उपभोग) दो प्रकार का होता है-

(a) प्रत्यक्ष

(b) अप्रत्यक्ष

जब हम किसी वस्तु या सेवा का प्रयोग करके प्रत्यक्ष रूप में उसके तुष्टिगुण द्वारा संतुष्टि प्राप्त करते है तो वह उसका प्रत्यक्ष उपभोग हुआ। उदाहरण के लिये सर में दर्द होने पर एनासीन खाकर उसे दूर कर लेना। यहाँ पर एनासीन का प्रत्यक्ष उपभोग हुआ और जैसे कोयले का प्रयोग किसी मशीन को चलाने में किया जाए जो साबुन का निर्माण करती हो तो साबुन के उपयोग करने पर यहाँ पर कोयले कर अप्रत्यक्ष उपभोग हुआ। अन्त में कहा जा सकता है कि शिक्षा एक उपभोग है क्योंकि यह व्यक्ति का आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत वैयक्तिक विकास करती है। इसके द्वारा ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास सम्भव है।

उपभोग की परिभाषाएँ

प्रो. एली के अनुसार– “विस्तृत अर्थ में मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिये आर्थिक पदार्थों तथा व्यक्तिगत सेवाओं का प्रयोग ही उपभोग है।”

प्रो. मेयर के अनुसार– “वस्तुओं और सेवाओं का स्वतंत्र मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रत्यक्ष एवं अन्तिम प्रयोग ही उपभोग कहलाता है।”

पैसन के अनुसार– “आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि कें लिये धन का प्रयोग करना उपभोग कहलाता है।”

उपभोग के लक्षण– उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर उपभोग के निम्न लक्षण उभकर सामने आते हैं।

  1. उपभोग वस्तुओं का ही नहीं वरन् सेवाओं का भी होता है।
  2. इससे मानवीय आवश्यकताओं की तृप्ति होती है।
  3. इससे प्रत्यक्ष अथवा तात्कालिक संतुष्टि होती है।
  4. उपभोग से वस्तुओं का तुष्टिगुण कम हो जाता है, परन्तु उनका विनाश नहीं होता है।

उपभोग के विभिन्न प्रकार-

शिक्षा खर्च आंशिक रूप से उपभोग है और आंशिक रूप से निवेश । मसग्रेव ने शिक्षा के उपभोग पहलू को स्वीकार करते हुये इसे दो भागों में विभाजित किया है-

(क) वर्तमान उपभोग- शिक्षा संस्थान में पढ़ने जाने का उल्लांस।

(ख) भविष्य उपभोग- भविष्य में पूरे जीवन को खुशी से बिताने की योग्यता, जो शिक्षा ने प्रदान की है।

समान्यतः उपभोग के कई रूप हो सकते हैं जैसे- आडम्बरी व्यय, अनुत्पादक, उत्पादक आदि। शौप ने उत्पादक उपशोग और लाभकारी उपभोग में अन्तर इस प्रकार दिया – उत्पादक उपभोग वह है जो निर्गत को बढ़ाकर अपनी कीमत पूर्ण या आंशिक रूप से अदा करें। लाभकारी उपभोग ऐसा प्रकार है, कि यदि यह घटता है तो अर्थव्यवस्था का निर्गत भी कम हो जाता है।

इसके अतिरिक्त भी उपभोग के अन्य प्रकार हैं। जो इस तरह से हैं-

  1. अन्तिम तथा उत्पादक उपभोग– जब किसी वस्तु या सेवा का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप में आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिये किया जाता है तो उसे अन्तिम उपभोग कहा जाता है। इसके विपरीत जब हम किसी वाछित वस्तु के उत्पादन में अन्य वस्तु का प्रयोग करत हैं तो इसे उत्पादक उपभोग कहते हैं।
  2. शीघ्र व मन्द उपभोग– जब किसी वस्तु का उपभोग एक ही बार में कर लिया जाता है तो उसे शीघ्र उपयोग कहते और जब कोई वस्तु कई दिन, मास, वर्ष तक प्रयोग में आने के बाद समाप्त होती है तो उसे मंद उपभोग कहते हैं।

उपरोक्त सभी तथ्यों के आधार पर सार रूप में यह कहा जा सकता है कि मानव कल्याण उत्पादन की मात्रा पर नहीं वरन् उपभोग पर निर्भर करता है। समाज को कितना आर्थिक सुख मिल रहा है, यह इस से बात नहीं जाना जा सकता है कि कितना उत्पादन हो रहा है बल्कि इस बात से जाना जा सकता है कि मनुष्य कितना और किस प्रकार की वस्तुओं का उपयोग करते हैं। यदि मनुष्य अधिक और लाभप्रद वस्तुओं का उपयोग करते हैं तो हम कह सकते हैं कि उनका जीवन स्तर ऊँचा है और वे सुखी हैं। यह सब शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। शिक्षा सफलता की कुंजी है। यह भी देख गया है कि यदि किसी देश के निवासी अपनी आय का अपव्यय करते हैं तो उनके धनी होते हुए भी उनका आर्थिक कल्याण कम होता है। अत: स्पष्ट है कि उपभोग मानव कल्याण की माप भी है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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