समाज शास्‍त्र / Sociology

औद्योगिक समाजशास्त्र का सामान्य महत्व | भारत में औद्योगिक समाजशास्त्र का महत्त्व

औद्योगिक समाजशास्त्र का सामान्य महत्व | भारत में औद्योगिक समाजशास्त्र का महत्त्व | General importance of industrial sociology in Hindi | Importance of Industrial Sociology in India in Hindi

औद्योगिक समाजशास्त्र का सामान्य महत्व

(General Importance of Industrial Sociology)

औद्योगिक समाजशास्त्र, ज्ञान की एक नवीन शाखा है जिसमें विभिन्न व्यवसायों में कार्य करने वाले व्यक्तियों, समूहों तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। आधुनिक युग में औद्योगिक समाजशास्त्र के अध्ययन का महत्त्व निम्न कारणों से है-

(1) मानव ज्ञान में वृद्धि (Progress in Human Knowledge) – मानव ज्ञान में औद्योगिक समाजशास्त्र एक नवीन पहलू का निमार्ण करता है। औद्योगिक समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा ही मनुष्य औद्योगिक समाज को भली-भाँति समझ सकता है। अतः समाजशास्त्रीय अध्ययन को पूर्ण करने हेतु औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन नितान्त आवश्यक है। साथ ही विकासशील देशों में जिस गति से औद्योगीकरण हो रहा है, उसके फलस्वरूप भी औद्योगिक समाजशास्त्र के महत्व में वृद्धि हुई है।

(2) औद्योगिक समाज की समस्याओं का अध्ययन (Study of the Problems of Industrial Society) – उद्योग’ वर्तमान जटिल सामाजिक समस्याओं का एक महत्त्वपूर्ण कारकहै। समाज की विभिन्न संस्थाओं पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। अतः इसका अपना निजी महत्त्व है। वास्तव में उद्योग वृहत और जटिल समाज में एक अंश का निर्माण करता है। प्रत्येक संस्कृति में उत्पादन का एक विशेष ढंग रहा है, परन्तु वर्तमान काल में उद्योगवाद, उत्पादन का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यही कारण है कि उद्योगवाद हमारी संस्कृति पर प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में प्रभाव डालता है। यही नहीं वह हमारी सामाजिक संस्थाओं में भी परिवर्तन करता है और इसके साथ-साथ सामाजिक मूल्यों और आदर्शों एवं लक्ष्यों को स्वरूप प्रदान करता है। यद्यपि हमारे देश में उद्योग अभी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हैं फिर भी उद्योगवाद ने हमारे रह-सहन के ढंग को, हमारी सामाजिक संस्थाओं को अत्यधिक प्रभावित किया है।

पश्चिमी देशों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, जहाँ उद्योग का अधिक महत्व है, ने पारिवारिक संरचना को बदल दिया है और सामाजिक संस्तरण को भी अलम्ब दिया है एवं उद्योगवाद ने प्रत्येक औद्योगिक समाज में नया वर्ग ‘श्रमिक वर्ग’ पैदा किया है। श्रमिक संघ आन्दोलन भी इसका ही परिणाम है। श्रमिक हड़ताल और तालाबन्दी से अनेक सामाजिक समस्याओं का जन्म हो रहा है और इसी कारण मनुष्य एवं मशीन तथा उद्योग और समाज से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का जन्म हो रहा है। इस प्रकार, औद्योगिक समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा हमें औद्योगिक समाज की समस्याओं का ज्ञान होता है।

(3) मानव सहयोग और संगठन का अध्ययन (Study of Human Cooperation and Organisation)- इस प्रकार उद्योग वह जाल है जिसका प्रत्येक बिन्दु समाज, संस्कृति और व्यक्तित्व को अलग-अलग छूता है। वास्तव में आज तो यह विचार किया जाने लगा है कि उद्योगवाद मानव समुदाय के सामाजिक सहयोग का एक साधन है। इस आधार पर अनेक विद्वान यह मानने लगे हैं कि उद्योग स्वयं एवं वृहत् सामाजिक संगठन है जिसका निर्माण अनेक सामाजिक संगठनों से मिलकर होता है। यही कारण है कि इसमें कोई एक विशेष संगठन ही अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता वरन् इसके लिए औद्योगिक सामाजिक संगठन और उससे उत्पन्न होने वाले मानवीय सम्बन्धों से सम्बन्धित समस्याओं को सही प्रकार से रखना और उनका ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।

(4) उद्योग और समाज का अध्ययन (Study of Industry and Society)- विद्वानों ने औद्योगिक समाजशास्त्र के उद्भव का कारण उद्योग और समाज के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध माना है परन्तु दूसरी ओर विद्वानों का कथन है कि इसका जन्म समाजशास्त्र में कुछ आवश्यक विकासों के कारण हुआ, अर्थात् इसके क्षेत्र में अत्यधिक परिवर्तन हो गया है। वास्तव में हमारा पुराना समाजशास्त्र कुछ विशेष समस्याओं अथवा वृहत् ऐतिहासिक और दार्शनिक प्रश्नों तक ही सीमित था। अतः एक ओर तो यह परिवार, विवाह, बाल-अपराध तथा अन्य सामाजिक व्याधिकियों (Social Pathologies) से सम्बन्धित था और दूसरी ओर इसका सम्बन्ध समाज के आन्तरिक विकास एवं उसकी उत्पत्ति से रहा। इससे एक महान समाजशास्त्रीय व्यवस्था उत्पन्न हुई और इस व्यवस्था ने सम्पूर्ण सामाजिक घटना (Social Phenomenon) को कुछ विशेष एवं निश्चित सिद्धान्तों एवं शक्तियों से सम्बद्ध करना चाहा। औद्योगिक समाजशास्त्र इसी सन्दर्भ में उद्योग तथा समाज का अध्ययन करता है।

(5) औद्योगिक समाज का वैज्ञानिक अध्ययन (Scientific Study of the Industrial Society)- वर्तमान समाजशास्त्र ने सामाजिक समूहों एवं सामाजिक सम्बन्धों के नये कारणों की खोज के लिए अपने अन्वेषण का ढंग बदल दिया है। आज यह धारणा बन गई है कि मनुष्य प्रत्येक कार्य सामूहिक रूप से करता है। यही कारण है कि समाजशास्त्र में शोध करने वाला विद्यार्थी किसी भी उद्योग की सम्पूर्ण संरचना का सरलता से अध्ययन कर लेता है। यही नहीं समाजशास्त्र ने अपने शोधकार्य में अन्वेषण की पद्धतियों में भी परिवर्तन किया है। आज संशोधित एवं वैज्ञानिक प्रश्नावलियों (Questionaries) एवं अनुसूचियों का प्रयोग समाजशास्त्र के अन्वेषणों में होने लगा है। आज के समाजशास्त्र में सांख्यिकी का महत्त्वपूर्ण स्थान है जबकि पहले इसका कोई स्थान नहीं था।

(6) औद्योगिक सम्बन्धों का अध्ययन (Study of Industrial Relations) – एक समाजशास्त्री किसी एक सीमित क्षेत्र की ही समस्याओं पर विचार करता है। अतः समाजशास्त्र एक ओर निर्णयात्मक प्रक्रियाओं से सम्बन्ध रखता है और दूसरी ओर मानव क्रियाओं पर पड़ने वाले सामाजिक समूहों के प्रभावों की व्याख्या करता है। इस कारण समाजशास्त्र में इस अध्ययन पद्धति का सिद्धान्त मध्य क्षेत्रीय सिद्धांत (Middle-range Theory) कहलाता है। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि एक समाजशात्री अपना ध्यान औद्योगिक समस्याओं की ओर क्यों ले जाता है? अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि एक समाजशास्त्री का उद्योग में क्या योगदान है? पिछले कुछ वर्षों में अनेक अर्थशास्त्रियों, औद्योगिक मनोवैज्ञानिकों, औद्योगिक इन्जीनियर्स तथा अन्य विशेषज्ञों ने उद्योगों के सम्बन्ध में खोजें की और उन्होंने पाया कि उद्योगों में सामाजिक कारक भी व्यापक रूप में विद्यमान हैं। अतः इन सामाजिक कारकों को समझने और उनके द्वारा उत्पन्न समस्याओं के निराकरणा प्रायोगिक एवं सैद्धान्तिक ज्ञान का रहस्योद्घाटन करने के लिए औद्योगिक समाजशास्त्र उपयोगी है।

(7) उद्योग के विभिन्न पक्षों का अध्ययन (Study of the Various Aspects of Industry)- मूल रूप से सामाजिक विज्ञान दो रूपों में पाये जाते है। कुछ सामाजिक विज्ञान सामाजिक जीवन के कुछ विशेष क्षेत्रों की ही व्याख्या करते हैं और दूसरे सामाजिक क्षेत्र की। परन्तु समाजशास्त्र विशेष क्षेत्रों के साथ-साथ सामान्य क्षेत्रों की भी व्याख्या करते है। समाजशास्त्र व मनोवज्ञान में अध्ययन किये जाने वाले विशय ‘सामान्वीकृत’ होते हैं दूसरी ओर अर्थशास्त्र का ‘विशेषीकरण’ भी इसका अध्ययन विषय हैं इस प्रकार समाजशास्त्र इन दोनों का क्रमशः ‘सर्वथा भिन्न लक्ष्यों’ को प्राप्त करने में तथा विशेष प्रकार के आँकड़ों का विश्लेषण करने में प्रयोग करता है। इसके अलावा समाजशास्त्र सामन्वीकृत अभिवृत्तियों एवं मूल्यों का अध्ययन करता है। साथ ही यह सामाजिक समूहों में होने वाले परिवर्तनों एवं विकास के नियमों की भी खोज करता है। सामाजिक प्रक्रिया के रूप में समाजशास्त्री, सामाजिक परिस्थितियों में पायी जाने वाली सभी क्रियाओं की व्याख्या करता है और इन क्रियाओं का वर्गीकरण तार्किक, प्रीावकारी, परम्परान्गुख आदर्शोंमुख क्रियाओं के रूप में करता है। इस प्रकार यह पूर्ण स्पष्ट हो जाता है कि एक समाजशास्त्रीय उद्योग में पाये जाने वाले सामाजिक कारकों का अध्ययन करता है और उनकी वैज्ञानिक ढंग से पूर्ण व्याख्या करता है। अतः एक समाजशास्त्री का उद्योगों में महत्वपूर्ण योगदान है और औद्योगिक समाजशास्त्र का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

(8) राष्ट्रीय शान्ति एवं प्रगति (National Peace and Progress)- आधुनिक युग में राष्ट्र के शान्ति और प्रगति बनाए रखना आवश्यक है इसके लिये औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। यह सभी जानते हैं कि आधुनिक प्रगतिशील युग में अशान्ति का प्रमुख औद्योगिक कलह है। इस कलह को किस प्रकार समाप्त किया जाय इसका उत्तर औद्योगिक समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यही कारण है कि औद्योगिक समाजशास्त्र समाज के विभिन्न वर्गों में शान्ति एवं प्रगति बनाये रखने में सहायता प्रदान करता है।

भारत में औद्योगिक समाजशास्त्र का महत्त्व

(Importance of Industrial Sociology in India)

औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन प्रत्येक देश के लिए लाभकारी है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये, जहाँ औद्योगीकरण के फलस्वरूप, परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। भारत भी एक विकसशील देश है। यदि हम भारतीय परिस्थितियों की ओर ध्यान दें, तो निम्नलिखित दृष्टिकोण से औद्योगिक समाजशास्त्र को उपयोगी पाते

(1) नवीन समस्याओं का समाधान स्वाधीनता के बाद देश में तीव्र गति से औद्योगिकरण हुआ पाश्चात्य देशों की भाँति भारत में भी एक स्थायी श्रमिक वर्ग का विकास होने लगा है। साथ ही श्रम तथा उद्योग से सम्बन्धित अनेक समस्याएं जन्म लेने लगी हैं। अतः इन समस्याओं के समाधान की दृष्टि से औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन अत्यन्त उपयोगी है।

(2) सामाजिक जीवन में उद्योगों का महत्व- भारत के सामाजिक जीवन में उद्योगों का स्थान महत्वपूर्ण है। औद्योगिक विकास के बिना, देश का आर्थिक विकास नहीं हो सकता। औद्योगिक समाजशास्त्र द्वारा उद्योग तथा उसके सामाजिक परिवेश के बारे में वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त होती है। इस दृष्टि से इसका विशेष महत्व है।

(3) सामाजिक परिवर्तन की तीव्र गति- भारत मुख्य रूप से परम्परावादी देश है। कृषि इसके अर्थतन्त्र का मुख्य आधार है। औद्योगिक विकास के कारण परिवर्तन की गति तीव्र हो गई है। नगरीकरण का प्रकार धीरे-धीरे बढ़ रहा है। परम्परात्मक सामाजिक जीवन के स्थान पर नई समाज व्यवस्था का उदय हो रहा है। बदली हुई परिस्थितियों के साथ समायोजन की दृष्टि से औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है।

(4) औद्योगिक सम्बन्ध- भारत में औद्योगिक विकास के साथ-साथ अनेक समस्यायें उत्पन्न हुई हैं। हड़ताल व तालाबन्दी के फलस्वरूप औद्योगिक सम्बन्ध प्रभावित हुए हैं। अतः श्रम तथा उद्योगों के बीच समन्वय की दृष्टि से औद्योगिक समाजशास्त्र अत्यन्त उपयोगी है। औद्योगिक समाजशास्त्र के अध्ययन से श्रम समस्याओं के समाधान में मदद मिलती है।

(5) स्वस्थ श्रम संघों का विकास- भारतीय उद्योगों में काम करने वाले अधिकांश श्रमिक अशिक्षित हैं। शिक्षा की कमी के कारण उनका अनेक प्रकार से शोषण होता है। श्रमिकों की शोषण से रक्षा करने और एक स्थायी श्रमिक वर्ग का विकास करने की दृष्टि से श्रम संघों का विकास आवश्यक है। औद्योगिक समाजशास्त्र की सहायता से हम श्रम संगठनों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

(6) उद्योगों का योजनाबद्ध विकासउद्योगों की अनेक समस्याएँ अनियोजित विकास के कारण उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिये उद्योगों के केन्द्रीयकरण से आवास सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न होती हैं जो श्रमिकों के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। औद्योगिक समाजशास्त्र द्वारा उद्योग के योजनाबद्ध विकास में मदद मिलती है।

(7) श्रम-कानूनों में सहायता (Assistance in Farming Labour Laws) – भारतीय श्रमिकों की समस्याओं को सुलझाने हेतु समय-समय पर श्रम कानून भी पारित होते जा रहे हैं और इन्हीं कानूनों द्वारा श्रमिकों की अनेक समस्यायें जैसे श्रमिक अवकाश, कार्य दिवस, बीमा तथा बोनस आदि सुलझाई गयी हैं। इन श्रम कानूनों को और अच्छा बनाने हेतु इस बीसवीं शताब्दी में यह आवश्यक है कि औद्योगिक समाजशास्त्र का सहारा लिया जाय जिससे कारखानों का प्रबन्ध और बेहतर हो सकें।

(8) अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सुधार (Better International Relations) – बीसवीं शताब्दी में अनकों अन्तर्राष्ट्रीय श्रम-संघों की स्थापना की जा चुकी है ‘श्रम-संघ’ की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी की गयी है। इसका प्रमुख कार्य विभिन्न राष्ट्रों की श्रम सम्बन्धी समस्याओं को सावधानीपूर्वक सुलझाना है।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम-संघ का भारत में अत्यधिक महत्व है क्योंकि भारत औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ राष्ट्र है। श्रम-संघ समय-समय पर आर्थिक सहायता भी प्रदान करता रहता है साथ ही औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े हुए देशों के लिए समृद्ध देशों में सहायता देने हेतु जनमत भी तैयार करता है। औद्योगिक समाजशास्त्र श्रम-संघों के अतिरिक्त इस अन्तर्राष्ट्रीय श्रम-संघ का भी विशेष रूप से अध्ययन करता है और श्रमिकों की दशा में सुधार करता है।

उपर्युक्त कारणों से भारतीय सन्दर्भ में औद्योगिक समाजशास्त्र का विशेष महत्व है। इसकी सहायता से औद्योगिक समस्याओं को हल कर, कार्य सम्बन्धों को दृढ़ कर सकते हैं।

समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!