अर्थशास्त्र / Economics

भारत में आर्थिक विषमता | अर्थव्यवस्था में आय के वितरण का महत्त्व | भारत में आर्थिक विषमताओं के कारण | आर्थिक विषमताओं को दूर करने के उपाय

भारत में आर्थिक विषमता | अर्थव्यवस्था में आय के वितरण का महत्त्व | भारत में आर्थिक विषमताओं के कारण | आर्थिक विषमताओं को दूर करने के उपाय

भारत में आर्थिक विषमता

किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का सही ढंग से आर्थिक विकास हो रहा है अथवा नहीं। इस बात की जानकारी हमें केवल उस राष्ट्र की राष्ट्रीय आय तथा उत्पादन में वृद्धि से नहीं मिलती है बल्कि हमें यह भी देखना होता है कि आय एवं उत्पादन का सही वितरण किया जा रहा है अथवा नहीं। यदि आय एवं सम्पत्ति का वितरण सही नहीं है तो आर्थिक विकास अच्छी तरह नहीं माना जायेगा। इसके लिए हम यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि उस देश मे आय एवं सम्पत्ति के वितरण का स्वरूप किस प्रकार का है? व्यक्तिगत तथा प्रादेशिक वितरण की स्थिति किस प्रकार की है? वितरण में समानता है या असमानता तथा विषमता का आर्थिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? इन समस्त प्रश्नों का सम्बन्ध राष्ट्रीय आय एवं सम्पत्ति के वितरण से है जिसका अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

अर्धव्यवस्था में आय के वितरण का महत्त्व

(Importance of Distribution of Income in an Economy)

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था पर उसकी आय और सम्पत्ति के वितरण का गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि आय और सम्पत्ति का वितरण व्यक्तिगत तथा प्रादेशिक स्तर पर समान है तो समृद्धि बढ़ती है, आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, साथ ही राजनीतिक शान्ति के साथ-साथ सामाजिक सद्भावना भी पाई जाती है। व्यक्तिगत कुशलता एवं प्रेरणा को बढ़ावा मिलता है, सामाजिक कल्याण में वृद्धि होती है। अमीरों और गरीबों के बीच की खाई पटती चली जाती है और सभी स्थानों पर शान्ति और सद्भावना का वातावरण देखने को मिलता है।

उपर्युक्त स्थिति के विपरीत यदि अर्थव्यवस्था में आय और सम्पत्ति का वितरण असमान होता है तो अनेक प्रकार की आर्थिक, सामाजिक एवं सामाजिक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है, वर्ग संघर्ष को प्रोत्साहन मिलता है, साथ ही राजनीतिक शान्ति एवं सुदृढ़ता ढीली पड़ जाती है। यदि इस सम्बन्ध में यह कहा जाय कि गरीबी विश्व समृद्धि को खतरे में डाल सकती है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यदि अर्थव्यवस्था में विषमताएँ पायी जाती हैं तो आर्थिक शोषण को बढ़ावा मिलता है। जो लोग गरीब होते हैं, वे अपनी गरीबी अर्थात् निम्न स्तर के कारण और भी गरीब होते जाते हैं। साथ ही धनिक लोग देश में उपलब्ध साधनों को कम उपयोगी क्षेत्रों में काम में लेकर गरीबों के सामाजिक कल्याण में कम कर देते हैं।

वास्तव में किसी देश की अर्थव्यवस्था में धन व सम्पत्ति का असमान वितरण एक अभिशाप है जिसमें धनी वर्ग अपनी विलासितापूर्ण वस्तुओं के लिए गरीबी, भुखमरी तथा बेरोजगारी की बलि चढ़ा देते हैं। इसमें खूनी क्रान्ति को बढ़ावा मिलता है। इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था में सन्तुलित आर्थिक विकास करना है तो आय एवं सम्पत्ति का वितरण समान होना चाहिए।

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमताओं अथवा असमानताओं के कारण

(Causes of Economic Disparities in Indian Economy)

भारतीय अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार की आर्थिक विषमताएँ विद्यमान हैं। आर्थिक विषमताओं अथवा असमानताओं के कारणों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

(1) जन्मजात योग्यताओं में विभिन्नता- इस प्रकार की विभिन्नता वैयक्तिक आय एवं सम्पत्ति का वितरण असमानताओं का प्रमुख कारण माना जाता है। जो लोग दूसरों को तुलना में अधिक योग्य, परिश्रमी तथा बुद्धिमान होते हैं, उनके पास धन एवं सम्पत्ति अधिक मात्रा में पायी जाती है। इसके विपरीत जो लोग तुलनात्मक कम बुद्धिमान, कम योग्य व अकुशल होते हैं उनकी आय कम होती है अर्थात् वे कम धनवान होते हैं।

(2) कर चोरी- जो लोग कर की चोरी करने में बड़ी मात्रा में सफल हो जाते हैं उनके पास धन व सम्पत्ति अधिक शेष रह जाती है। इसके विपरीत जो लोग कर की चोरी करने में सक्षम नहीं होते हैं, उनकी आय का एक बड़ा भाग सरकार को हस्तान्तरित हो जाता है, जिससे उनके पास शेष धन कम मात्रा में बचता है। व्यावहारिक जीवन में ऐसा देखा गया है कि धनवान एवं चतुर व्यक्ति अधिक कर की चोरी करते हैं जबकि ईमानदार व कम आय वर्ग के लोग बहुत कम कर की चोरी करते हैं। इस प्रकार कर की चोरी से आर्थिक विषमता में वृद्धि होती है।

(3) मुद्रास्फीति- भारत में आर्थिक विषमता के लिए मुद्रास्फीति भी जिम्मेदार होती है। मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है और बढ़े हुए मूल्यों का लाभ उत्पादकों और पूँजीपतियों को प्राप्त होता है जबकि कम आय वर्ग के लोगों का शोषण होता है और उनकी क्रय-शक्ति भी कम हो जाती है। ऐसा होने से धनी और अधिक धनी तथा निर्धन और अधिक निर्धन होते जाते हैं अर्थात् आर्थिक विषमता बढ़ती है।

(4) जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि- गत वर्षों में भारत में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। यह वृद्धि आर्थिक असमानता के लिए स्वयं उत्तरदायी है। देश में उपलव्य प्राकृतिक साधनों पर जनसंख्या का भार तीव्र गति से बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति आय तथा जीवन-स्तर में वृद्धि सम्भव नहीं हो सकी है। इसके साथ निर्धन वर्ग के द्वारा अधिक बच्चे पैदा करना एक सामान्य प्रवृत्ति पाई गई है जबकि धनी वर्ग के लोग परिवार नियोजन अपनाकर अपने जीवन का आनन्द उठाते हैं।

(5) अवसरों की असमानता- इस सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि जिन व्यक्तियों को अपने जीवन में धन कमाने के अच्छे अवसर मिल जाते हैं वे अधिक धनवान हो जाते हैं चाहे उनमें व्यक्तिगत योग्यता, कुशलता तथा परिश्रम करने की इच्छा न हो। धनी वर्ग के साधारण बुद्धि वाले लड़के-लड़कियाँ अच्छे अवसर प्राप्त कर अधिक धन कमाने में सफल हो जाते हैं। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों को अच्छे अवसर प्राप्त नहीं होते हैं, वे अधिक धन कमाने में सफल नहीं हो पाते हैं, चाहे वे कितने ही मेहनती, कुशल और ईमानदार क्यों न हों?

(6) व्यवसाय के स्वरूप में अन्तर- कुछ व्यवसाय इस तरह के होते हैं, जिनमें बहुत अधिक आय प्राप्त होती है, जैसे- जोखिमपूर्ण कोई भी व्यवसाय तथा फिल्मी दुनिया में एक अभिनेता का पारिश्रमिक। इसके विपरीत कुछ व्यवसाय अथवा पेशे इस प्रकृति के होते हैं, जिनमें काम करने वाले व्यक्तियों को बहुत कम आय प्राप्त होती है, जैसे- स्कूल के अध्यापक का वेतन। इस प्रकार स्वाभाविक है कि इन दोनों प्रकार के व्यवसायों में काम करने वाले व्यक्तियों में आर्थिक विषमता पर्याप्त मात्रा में पायी जायेगी।

(7) आर्थिक शोषण की प्रवृत्ति- जब पूँजीपतियों एवं उत्पादकों के मन में आर्थिक शोषण की प्रवृत्ति जन्म लेती है तो वे श्रमिकों, उपभोक्ताओं, सरकार, देश व समाज का बड़ी मात्रा में शोषण करते हैं, जिससे आर्थिक विषमता को बढ़ावा मिलता है। गरीबी और अमीरी के बीच की खाई निरन्तर बढ़ती चली जाती है। धनी वर्ग के लोग विलासितापूर्ण वस्तुओं का उपभोग करते हैं, जबकि निर्धन वर्ग के लोग अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को भी ढंग से पूरा नहीं कर पाते हैं।

(8) बेरोजगारी की समस्या- बेरोजगारी की समस्या भी आर्थिक विषमता को बढ़ावा देती है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में यह समस्या बहुत विकट है। भारत में रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या वर्तमान में लगभग 4.5 करोड़ है। कुछ लोग छिपी हुई बेरोजगारी की स्थिति में हैं तो कुछ मौसमी बेकारी के कारण पर्याप्त आय अर्जित नहीं कर पाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अर्द्ध-बेरोजगारी की स्थिति भी आर्थिक विषमता को बढ़ाने में सहायक रही है। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों को रोजगार के साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं, वे अच्छी आय कमा लेते हैं। इस प्रकार इन दोनों वर्गों के लोगों को बीच आर्थिक विषमता स्वतः बन जाती है।

(9) सम्पत्ति एवं भू-स्वामित्व की विषमता- साधारणतया ऐसा देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के पास सम्पत्ति अथवा भू-स्वामित्व अधिक होता है, उनकी आय भी बहुत अधिक होती है क्योंकि वे अपने साधनों का सदुपयोग निजी लाभों के लिए करते हैं और अपनी आय को निरन्तर बढ़ाते जाते हैं। इस प्रकार की स्थिति पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में बहुत अधिक देखने को मिलती है। भारत में भी जागीरदारों, भू-स्वामियों तथा उद्योगपतियों का कुल सम्पत्तियों में से एक बहुत बड़े भाग पर स्वामित्व है, जिसके कारण वे कुल राष्ट्रीय आय का एक बहुत बड़ा भाग प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं, जबकि निर्धन वर्ग एवं श्रमिकों को. आय का एक छोटा भाग प्राप्त होता है जिसके कारण आर्थिक विषमता बढ़ती है।

(10) उत्तराधिकार का नियम- भारत में प्रचलित उत्तराधिकार प्रथा के कारण भी आर्थिक विषमता को जन्म मिलता है। उत्तराधिकार के नियम के अनुसार पैतृक सम्पत्ति पीढ़ी दर पीड़ी उत्तराधिकारी के रूप में बच्चों को मिलती जाती है। इस प्रकार, जो बच्चे धनी परिवार में जन्म लेते हैं, वे अधिक भाग्यशाली समझे जाते हैं। इसके विपरीत जो बच्चे निर्धन अथवा गरीब परिवार में जन्म लेते हैं वे सदैव गरीब बने रहते हैं। भारतीय कृषक के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि “वह ऋण में जन्म लेता है, ऋण में जीवित रहता है और ऋण में ही मरता है।” इस प्रकार आर्थिक विषमता निरन्तर विद्यमान रहती है।

(11) एकाधिकारी नीतियाँ- अर्थव्यवस्था में अनेक वस्तुएँ एवं सेवायें ऐसी होती हैं जिनकी कोई दूसरी स्थानापन्न वस्तुयें एवं सेवाएँ नही होती हैं जिसके कारण इनके उत्पादक एकाधिकारी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं और बाजार में माल की कृत्रिम कमी बताकर कीमतें ऊंची करके अधिक लाभ कमाने में सफल होते हैं। इससे उपभोक्ताओं का शोषण होता है, इनकी क्रय शक्ति कम होती है और आर्थिक विषमता को बढ़ावा मिलता है।

(12) मुनाफाखोरी एवं चोर-बाजारी की नीति- पूँजीपति एवं धनी वर्ग अधिक लाभ कमाने की लालसा में माल को गोदामों में रख लेते हैं और बाजार में कृत्रिम कमी बताकर कीमतों को बढ़ाने में सक्षम हो जाते हैं। इससे उनके लाभ बढ़ते हैं, चोर-बाजारी एवं मुनाफाखोरी को प्रोत्साहन मिलता है तथा उपभोक्ता का बड़ी मात्रा में शोषण होता है। इससे भी आर्थिक विषमता बढ़ती है।

(13) शिक्षण एवं प्रशिक्षण सुविधाओं का लाभ उठाना- जो व्यक्ति देश में उपलब्ध शिक्षण एवं प्रशिक्षण सुविधाओं का पर्याप्त मात्रा में लाभ उठा लेते हैं उन्हें भविष्य में नौकरी एवं व्यवसाय के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं और अधिक आय कमाने में सफल होते हैं। इसके विपरीत जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से इन सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं, वे पिछड़ जाते हैं और अच्छे अवसर प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिसके कारण उनकी आय कम होती है और पहले वर्ग की तुलना में आर्थिक विषमता बनी रहती है।

(14) प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता- यदि हम आर्थिक विषमता को क्षेत्रीय आधार पर देखें तो पता चलता है कि देश के जिन भागों में प्राकृतिक साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं और उनका समुचित ढंग से विदोहन किया गया है तो उन राज्यों में आय बहुत अधिक होगी। इसके विपरीत जिन राज्यों में प्राकृतिक साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं या उनका सही ढंग से सदुपयोग नहीं किया गया है तो उन राज्यों की वार्षिक आय बहुत कम होगी और वे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए राज्य माने जावेंगे।

(15) निर्धनता का कुचक्र- भारत एक विकासशील राष्ट्र हे और यह प्रारम्भ से ही कृषि प्रधान और गरीब राष्ट्र रहा है। यहाँ की लगभग 75% जनसंख्या इसी श्रेणी में आती है। इन परिस्थितियों के कारण कुल जनसंख्या का यह भाग अभी तक ऊपर नहीं उठ पाया है जबकि देश के कुल सम्पत्ति एवं धन का लगभग 47 प्रतिशत भाग चुने हुए चार औद्योगिक घरानों-टाटा, बिड़ला, मफतलाल और सिंघानिया के पास केन्द्रित है जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में आर्थिक विषमता बनी हुई है।

(16) राजनीतिक चेतना की कमी- नागरिकों में राजनीतिक चेतना आर्थिक विकास के लिए उत्तरदायी होती है। जिन लोगों में राजनीतिक चेतना बड़ी मात्रा में पाई जाती है, वे लोग केन्द्र पर दबाव डालकर अपने क्षेत्र का विकास करने में सफल हो जाते हैं तथा जिन लोगों में इस प्रकार की भावना का अभाव होता है, उनका क्षेत्र तुलनात्मक बहुत पिछड़ा होता है जिसके कारण आर्थिक विषमता पाई जाती है।

(17) विकास सम्बन्धी सुविधाओं की उपलब्धता- जिन क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी सुविधायें- परिवहन, संचार, बीमा, बैंकिंग, विद्युत तथा जल आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती हैं उन क्षेत्रों का तीव्र गति से विकास सम्भव होता है। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में इस प्रकार की सुविधायें विकसित नहीं हो पाती हैं, उन क्षेत्रों में विकास की गति बहुत मन्द होती है। इससे आर्थिक विषमता को जन्म मिलता है।

(18) सरकार की उपेक्षा- जिन क्षेत्रों में सरकार पंचवर्षीय योजनाओं में पर्याप्त ध्यान देती उन क्षेत्रों का तीव्र गति से विकास सम्भव होता है। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में सरकार किन्हीं कारणों से विकास के लिए ध्यान नहीं दे पाती है उन क्षेत्रों में तुलनात्मक कम विकास होता है। इससे आर्थिक विषमता पैदा होती है और निरन्तर बढ़ती जाती है।

भारत सरकार के द्वारा आर्थिक विषमता अथवा असमानता को दूर करने के लिए किए गए उपाय

(Measures Adopted by Government of India to Remove the Economic Disparities)

उपर्युक्त विवेचन से यह पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमता अनेक रूपों में देखने को मिलती है और इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं। यदि भारतीय अर्थव्यवस्था का सन्तुलित आर्थिक विकास करना है, तो इस असमानता को शीघ्र ही दूर करना होगा। इस सम्बन्ध में भारत सरकार के द्वारा समय-समय पर अनेक प्रयास किये गये हैं जिनका संक्षिप्त विवेचन अग्र प्रकार हैं।

(1) प्रगतिशील कर नीति- यद्यपि भारतीय आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं को वसूल करने में इसी  नीति का पालन किया जाता है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है जिससे धनिकों पर उनकी बढ़ती हुई आय पर अधिक कर लगाया जा सके और गरीबों पर कम। ऐसा करने से आर्थिक विषमता में कमी आवेगी।

(2) सम्पत्तियों के उत्तराधिकार एवं हस्तान्तरण सम्बन्धी नियमों को प्रभावी बनाना- निजी क्षेत्र की सम्पत्तियों के सम्बन्ध में उत्तराधिकार तथा हस्तान्तरण सम्बन्धी नियमों में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उत्तराधिकार के रूप में अधिक सम्पत्ति निजी क्षेत्र में ही न रह जावे, इसके लिए प्रगतिशील मृत्यु कर लगाये जा सकते हैं तथा आवश्यकता से अधिक संपत्ति बच्चों को हस्तान्तरित न हो, इस पर सरकार अधिग्रहण सम्बन्धी कार्यवाही कर सकती है।

(3) जनसंख्या पर नियन्त्रण- जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावी नियन्त्रण करके आर्थिक विषमता को समाप्त किया जा सकता है। इस दिशा में यद्यपि भारत सरकार के द्वारा काफी प्रयत्न किये गये हैं लेकिन और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

(4) मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण- रिजर्व बैंक, अर्थव्यवस्था में व्याप्त मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण करने के लिए अनेक प्रयत्न करती है। यदि इस दिशा में निजी क्षेत्र का भी सहयोग मिले तो आर्थिक विषमता को और भी कम करने में मदद मिलेगी। भारत सरकार द्वारा देश में मुद्रास्फीति को कम करने के लिए आवश्यकता की वस्तुओं के लिए 4.5 लाख दुकानें खोली गई हैं। मुनाफाखोरी एवं चोरबाजारी पर नियन्त्रण किया गया है।

(5) बेरोजगारी का अन्त- जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में बेरोजगारी की समस्या बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। इसको कम करके आर्थिक विषमता को समाप्त किया जा सकता है।

(6) एकाधिकारी प्रवृत्ति पर रोक- बड़े-बड़े पूँजीपति एवं धनिक वर्ग के लोग कुछ विशेष प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करके एकाधिकार की स्थिति प्राप्त कर लेते हैं और अधिक लाभ कमाने में सफल हो जाते हैं। इन वस्तुओं की स्थानापन्न वस्तुएँ उत्पादित करके एकाधिकारी प्रवृत्ति पर रोक लगायी जा सकती है।

(7) मुनाफाखोरी एवं चोरबाजारी पर रोक- अनेक पूँजीपति एवं उत्पादक माल को गोदाम में संग्रह करके बाजार में कृत्रिम कमी बता देते हैं और मूल्य बढ़ाकर अधिक लाभ कमाने में सफल हो जाते हैं। इस ओर सरकार को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो कुछ वस्तुओं का राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए।

(8) जन-कल्याण कार्यों में वृद्धि- आर्थिक विषमता को समाप्त करने का यह एक सुलभ तरीका है, जिसमें सरकार पंचवर्षीय योजनाओं तथा बीस सूत्रीय कार्यक्रमों के माध्यम से निर्धन वर्ग की छोटी-छोटी आवश्यकताओं को पूरा करने की ओर ध्यान दे, जैसे- बच्चों के स्कूल, अस्पताल, डाकघर, बैंक, मनोरंजन केन्द्र, बेकारी भत्ता इत्यादि। इस दिशा में समाज कल्याण विभाग द्वारा सहायता, अनुदान, बेकारी भत्ता, न्यायिक सहायता, निःशुल्क शिक्षा आदि कार्यक्रमों पर ध्यान दिया गया है।

(9) सार्वजनिक विनियोग तथा औद्योगिक लाइसेन्स नीति- सार्वजनिक क्षेत्रों में विनियोग की मात्रा को बढ़ाकर तथा निजी क्षेत्रों में दिये जाने वाले लाइसेंसों पर प्रतिबन्ध लगाकर आर्थिक विषमता को समाप्त किया जा सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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