भारत में बेरोजगारी के कारण

भारत में बेरोजगारी के कारण | बेरोजगारी दूर करने हेतु सरकार द्वारा उठाए गये कदम

भारत में बेरोजगारी के कारण | बेरोजगारी दूर करने हेतु सरकार द्वारा उठाए गये कदम

बेरोजगारी के कारण-

ग्रामीण बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) जनसंख्या की तीव्र वृद्धि (Rapid Growth of Population)-

भारतवर्ष में जनसंख्या की वृद्धि दर अत्यन्त ऊँची हैं, जबकि गाँवों में जन्म दर नगरों की तुलना में ऊंची है। गाँवों में अशिक्षा, परिवार-नियोजन का तिरस्कार आदि ऐसे कारण हैं, जो जन्म-दर में वृद्धि कर रहे हैं, फलतः आज जो बच्चा जन्म ले रहा है, बीस वर्ष बाद वह युवक होकर बेकारों की कतार में खड़ा हो जाता है। अतः ग्रामीण बेकारी का एक प्रमुख कारण जनसंख्या की तीव्र वृद्धि है।

(2) उत्तराधिकार का नियम (Law of Inheritance)-

भारत में उत्तराधिकार का नियम लागू है, जिससे भू-स्वामी की मृत्यु के बाद भूमि का बंटवारा उसके पुत्रों में किया जाता है। भूमि का बंटवारा होने पर खेत अपखण्डित व उपविभाजित होकर अलाभकारी हो जाते हैं लेकिन पिता की सम्पत्ति से मोह के कारण वे भूमि नहीं छोड़ पाते हैं। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी व्याप्त है।

(3) भूमि से लगाव (Affection with Land) –

भूमि पूर्वजों की निशानी है, जिस पर खेती होने से उनकी आत्मा को शान्ति मिलती है। परिणामस्वरूप कृषि हानिकर व्यवसायहोते हुए भी वे कृषि कार्य करते हैं, जबकि वे वास्तव में बेरोजगार होते हैं। अतः भूमि का अगाध प्रेम भी उन्हें बेरोजगार रखता है।

(4) मौसमी कृषि (Seasonal Agriculture) –

भारत में कृषि एक मौसमी व्यवसाय है, जिसमें सम्पूर्ण वर्ष काम नहीं होता है। डॉ. राधाकमल मुखर्जी के मतानुसार संघन कृषि क्षेत्रों में कृषकों को वर्ष में केवल 200 दिन ही काम मिलता है, शेष समय अर्थात् 165 दिन वे बेरोजगार होते हैं।

(5) संयुक्त परिवार प्रणाली (Joint Family System) –

ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित होने के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है, उसका बोझ परिवार के अन्य सदस्यों पर पड़ता है। अतः संयुक्त परिवार प्रणाली के कारण भी बेकारी पोषित होती है। जैसे ही संयुक्त परिवार टूटता है, वैसे ही सभी रोजगार की तलाश में निकलते हैं।

(6) गाँवों से विशेष प्रेम (Special Attachment with the Villages) –

भारत के गाँववासियों की धारणा है कि “दाल-रोटी खायेंगे, गाँव छोड़कर नहीं जायेंगे।” अतः गाँवों से विशेष लगाव होने के कारण लोग शहरों में नहीं जाना चाहते हैं। इस प्रकार गाँवों से विशेष प्रेम भी ग्रामीण बेकारी का एक कारण है।

बेरोजगारी दूर करने हेतु सरकार द्वारा उठाए गये कदम-

समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (I.R.D.P.)को एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम भी कहते हैं, जो ग्रामीणअर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की दृष्टि से वर्ष 1978-79 में प्रारम्भ हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों से गरीबी उन्मूलन हैं।

यदि समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम से पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी निराकरण के लिए घोषित योजनाओं पर ध्यान दें, तो 55 चयनित क्षेत्रों में सामुदायिक विकास योजना प्रारम्भ हुई, जिन्हें शनैः-शनैः समग्र देश के विकास खण्डों (Development Blocks) में संचालित किया गया। इस कार्यक्रम से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के प्रति चेतना उत्पन्न हुई। चौथी योजना में लघु किसान विकास एजेन्सी (Small Farmers Development Agency S.FD. A.) व सीमान्त किसान व कृषि धार्मिक योजनाएँ (Marginal Farmers and Agricultural Laboure Plans M.E.A.L.) क्रियान्वित होने पर आर्थिक दृष्टि से कमजोर कृषकों की दशा में सुधार हुआ। इसके बाद जंगल विकास कार्यक्रम (F.D.P) व सूखा उन्मुख क्षेत्र कार्यक्रम (D.P.A.P.) अपनाये गए, जिससे वनों का संरक्षण व सूखाग्रस्त क्षेत्रों को आर्थिक सहायता प्रदान की गई। वर्ष 1977 में “काम के बदले अनाज योजना” (Food for Work) से ग्रामीण क्षेत्रों के शारीरिक श्रम करने वाले लोगों को लाभ हुआ।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (N.R.E.P.) (National Rural Employment Programme)

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भारत सरकार ने अक्टूबर 1981 से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार

कार्यक्रम (NREP)चलाया। यह कार्यक्रम 1977 में ‘काम के बदले अनाज योजना’ के नाम से विख्यात था।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम एक केन्द्रीय प्रत्यायोजित कार्यक्रम है, जो केन्द्र व राज्य सरकार के समान अंशदान पर क्रियान्वित है। इस कार्यक्रम से गाँचासियों को काम के बदले खाद्यान्न प्रदान किया जाता है। इससे गाँववासियों के लिए जहाँ भोजन उपलब्ध होता है, वहीं अनाज की कीमतों पर नियंत्रण हुआ है।

इस कार्यक्रम से गाँवों के मजदूरों को खाली समय में रोजगार मिलता है, वहीं स्थाई परिसम्पत्तियाँ जैसे सड़क निर्माण, वृक्षारोपण कार्य नहरों का निर्माण, पंचायत घरों का निर्माण, ट्यूबवैल्स के लिए पक्की नालियों का निर्माण आदि कार्य होते हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम में श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी भुगतान की जाती है, जिसमें 1/2 मजदूरी अनाज के रूप में होती है।

ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP) (Rural Landless Employments Guarantee Programme)

भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के 12 करोड़ भूमिहीन श्रमिकों के लिए कुछ योजनाएँ क्रियान्वित की हैं, जिनमें ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कोर्यक्रम (LEGP) प्रमुख है। यह कार्यक्रम 15 अगस्त 1983 में घोषित हुआ। इससे भूमिहीन कृषकों को रोजगार प्राप्त होता है।

जवाहर रोजगार योजना (Jawahar Rojgar Yojana)

भारतवर्ष के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर घोषित जवाहर रोजगार योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार देने वाली एक महत्वपूर्ण योजना है।

इस योजना की घोषणा फरवरी 1989 के केन्द्रीय बजट में हुई, जिसमें गाँव के बेरोजगार युवकों को नये रोजगार के अवसर देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक कार्यक्रम घोषित हुआ। भारत में जवाहर रोजगार योजना का क्रियान्वयन अप्रैल 1989 में सम्पूर्ण देश के सभी जिलों में हुआ।

ग्रामीण युवक स्व-रोजगार प्रशिक्षण (TRYSEM) (Training of Rural Youth for Self-Employment)

भारतवर्ष में सन् 1979 से TRYSEM योजना प्रारम्भ हुई जो ग्रामीण युवको को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देती है। चूंकि देश में बेरोजगारी की भीषण समस्या है, अतः युवको को रोजगार एक कठिन कार्य है। इस कटु सत्य को स्वीकारते हुए सरकार ने युवकों के लिए स्व-रोजगार कार्यक्रम घोषित किया है, जिससे व अपना कार्य स्वयं करें। लेकिन व्यवसाय प्रारम्भ होने से पूर्व प्रशिक्षण आवश्यक है। इस दृष्टि से ग्रामीण युवक स्व-रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।

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